बाघिन अवनि की हत्या: क्या भूमि पर सिर्फ मनुष्य का अधिकार है, जानवर का नहीं?

कुछ दिनों पहले ही अवनि नामक बाघिन को महाराष्ट्र में वन विभाग ने शार्प शूटर की मदद से गोली मार दी। आरोप था कि अवनि आदमखोर है और अब तक 13 लोगों को मार चुकी है। अवनि का मतलब है - भूमि और इसे मारे जाने का सीधा सा मतलब है कि भूमि पर मनुष्य का अधिकार है, किसी जानवर का नहीं।

फोटो: महेन्द्र पांडे
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महेन्द्र पांडे

कुछ महीनों पहले फिलीपींस से एक खबर आयी थी। मगरमच्छों के एक ब्रीडिंग सेंटर में एक व्यक्ति एक ऐसे टैंक के पास चला गया जो मगरमच्छों के लिए बना था। वहां जाना मना था, पर उसने कोई ध्यान नहीं दिया। टैंक के एकदम पास जब वो खड़ा था, तभी मगरमच्छ ने कुछ हरकत की और वो डरकर टैंक में गिर गया। मगरमच्छ ने उसे निगल लिया और यह बात जब पास के गांव वालों को पता लगी, तब करीब 300 लोगों ने फावड़े, कुल्हाड़ी और इसी तरह के अन्य धारदार हथियारों के साथ उस ब्रीडिंग सेंटर पर हमला बोल दिया और सेंटर में रहने वाले 200 से अधिक मगरमच्छों को मार डाला और फिर उनकी लाशों को एक के ऊपर एक रखकर आग लगा दी।

बाघिन अवनि की हत्या: क्या भूमि पर सिर्फ मनुष्य का अधिकार है, जानवर का नहीं?

पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के दुधवा टाइगर रिज़र्व पर पास के गांव के 300 लोगों ने हमला कर दिया। फारेस्ट रेंजर्स और गार्ड्स के साथ मारपीट की और उनका ट्रैक्टर छीन लिया। उन्होंने एक बाघिन को भी मार डाला और फिर उसकी लाश को ट्रैक्टर से कुचल डाला। भीड़ का आरोप है कि उस बाघिन ने गांव के एक व्यक्ति और उसके मवेशी को मार डाला था।

कुछ दिनों पहले ही अवनि नामक बाघिन को महाराष्ट्र में वन विभाग ने शार्प शूटर की मदद से गोली मार दी। आरोप था कि अवनि आदमखोर है और अब तक 13 लोगों को मार चुकी है। अवनि का मतलब है - भूमि और इसे मारे जाने का सीधा सा मतलब है कि भूमि पर मनुष्य का अधिकार है, किसी जानवर का नहीं। यह मामला हाई प्रोफाइल हो चुका है और राहुल गांधी समेत कांग्रेस के अनेक नेता इसके विरोध में ट्वीट कर चुके हैं या वक्तव्य दे चुके हैं। आश्चर्यजनक यह है कि इस मामले के विरोध में मोदी सरकार में मंत्री और जानवरों के अधिकारों के लिए समय-समय पर आवाज बुलंद करने वाली मेनका गांधी भी मुखर तरीके से खड़ी हैं। मेनका गांधी ने कहा है कि यह मामला पूरी तरह से आपराधिक है और वन्यजीव कानूनों का खुलेआम उल्लंघन है।

राहुल गांधी ने अपने ट्वीट में गांधी जी का एक वाक्य भी लिखा था, “किसी देश को समझना है तो वहां के लोगों का पशुओं के साथ जो बर्ताव है, उसका आकलन करो।” आप भी आकलन कीजिये, आज मनुष्य पशु से भी बदतर हो गए हैं। जब मनुष्य दूसरे मनुष्य को मारने में जरा भी देर नहीं लगाता तो जानवरों की क्या बिसात है? अवनि की उम्र महज 6 वर्ष की थी और उसके 10 महीने के दो शावक भी हैं।

अवनि को घात लगाकर मारने के लिए लगभग 150 लोगों का दल तीन महीने तक अत्याधुनिक हथियारों, ड्रोन, पारा-ग्लाइडर्स, कुत्ते, हाथी, शार्प शूटर्स और कैमरे के साथ खोज-बीन करता रहा। उनका उद्देश्य कभी भी उसे पकड़ना रहा ही नहीं, उन्हें मारना ही था और फिर तथाकथित 150 बहादुरों के एक दल ने उसे मार डाला। वन विभाग ने जब उसे मार गिराए जाने का आदेश दिया था तब अनेक पर्यावरण संगठन सर्वोच्च न्यायालय में गुहार लगाने गए, पर पर्यावरण संरक्षण और वन्यजीव संरक्षण पर अनेक निर्णायक फैसले देने वाले सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस मामले में मार गिराए जाने के आदेश को बरकरार रखा।

दुनिया में जितने बाघ हैं उनमें से 60 प्रतिशत भारत में हैं, इनकी संख्या लगभग 3000 है। वर्ष 1972 में वन्यजीव अधिनियम लागू होने के बाद इनकी संख्या में लगातार वृद्धि होती रही है। प्रोजेक्ट टाइगर एक सफल परियोजना थी। इसके अंतर्गत अनेक बाघ अभयारण्य स्थापित किये गए, जिनका सम्मिलित क्षेत्र लगभग 3 लाख वर्ग किलोमीटर है। पर अब यह क्षेत्र बाघों की संख्या की तुलना में बहुत कम रह गया है।

ऊपर की तीनों घटनाएं कुछ दिनों पहले की हैं, पर ऐसी घटनाएं लगातार होती हैं। इसका जिम्मेदार कौन है - जानवर या आदमी? दरअसल, मनुष्यों ने पूरी तरह ये समझ लिया है कि पूरी पृथ्वी पर उसका मालिकाना हक़ है। पर ऐसा है नहीं, क्योंकि पृथ्वी पर यहां की जैव-विविधता का भी बराबर का अधिकार है। मनुष्य हरेक जगह - जंगल, पहाड़, रेगिस्तान, बर्फीले प्रदेश, दलदली भूमि और ऐसी हरेक जगह फैलता जा रहा है। इसका नतीजा यह है कि जानवरों की जगहें लगातार सिकुड़ती जा रही हैं। जानवर कितना भी खूंखार हो, मनुष्य से जरूर डरता है और न ही उसके इलाके में शिकार करने जाना चाहता है। पर घने जंगल में जब मनुष्य पशु चराने, घास काटने या कभी-कभी शौच के लिए जाते हैं, तभी बाघ जैसे जानवर उनका शिकार करते हैं। जंगली हाथी भी तभी उत्पात करते हैं, जब वनों में खेती होने लगती है या फिर तथाकथित विकास परियोजनाएं लगती हैं।

बाघिन अवनि की हत्या: क्या भूमि पर सिर्फ मनुष्य का अधिकार है, जानवर का नहीं?

वन्य जीव भी प्राकृतिक संसाधन हैं और मनुष्य ने तथाकथित विकास के दौर में सभी प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट करने का बीड़ा उठाया हुआ है। ऐसा नहीं है कि यह सब केवल भारत में किया जा रहा है। पूरी दुनिया की हालत ऐसी ही है। जो वन्यजीव दिन में जंगलों में विचरण करते थे, अब मनुष्यों के डर से रात में निकलते हैं। लगभग हरेक वन्यजीव क्षेत्र अब विकास परियोजनाओं (सड़क, रेल मार्ग इत्यादि) की चपेट में हैं जिससे उनके विचरण में बाधा पड़ रही है। एक अध्ययन के अनुसार, कुछ दशक पहले तक जो वन्यजीव दिन भर में लगभग 22 किलोमीटर तक घूमते थे, अब 8 किलोमीटर भी नहीं चलते हैं क्योकि स्वछन्द विचरण की जगह छोटी हो गयी है।

यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं जब जानवर होंगे ही नहीं, हरेक जगह बस आदमी ही होंगे, अपनी पाशविक प्रवृत्ति के साथ। फिर शायद हम कहेंगे, इनसे अच्छे तो जानवर ही थे।

(इस लेख में व्यक्त विचारों से नवजीवन की सहमति अनिवार्य नहीं है।)

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