अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर चीन-जापान और दक्षिण कोरिया के बराबर पहुंचने के लिए हमें बहुत कुछ बदलना होगा

भारत आज उसी जगह पर है जहां जापान, दक्षिण कोरिया और चीन उस समय थे जब वे लगभग 2000 डॉलर प्रति व्यक्ति जीडीपी वाले देश थे। क्या हम उनकी तरह छलांग लगा सकते हैं? लेकिन ऐसा होने के लिए बहुत कुछ बदलना होगा।

सोशल मीडिया
सोशल मीडिया
user

आकार पटेल

भारत ने यूनाइटेड किंगडम (यूके) को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने का स्थान हासिल कर लिया है। यह दूसरा मौका है जब हमने यूके को अर्थव्यवस्था के मामले में पीछे छोड़ा है। पहली बार कुछ साल पहले ऐसा हुआ था। लेकिन जब हमारी तरक्की की रफ्तार सुस्त पड़ी तो हम यूके से पीछे हो गए थे। हमसे जो देश इस मोर्चे पर आगे हैं उनमें जर्मनी, जापान, चीन और अमेरिका है। इन चार में से दो एशियाई देश हैं जिससे उम्मीद जगती है कि हम भी विकसित और अमीर राष्ट्र बन सकते हैं।

किसी देश की अर्थव्यवस्था के आकार को देखने का एक तरीका उसकी जीडीपी को देखना है। दूसरा तरीका है प्रति व्यक्ति जीडीपी को देखना। भारत की आबादी यूके के मुकाबले 20 गुना है, इसलिए हमें इस पर हल्ला करते वक्त इस तथ्य को ध्यान में रखना होगा। हमारी प्रति व्यक्ति जीडीपी 2200 डॉलर है, जो लगभग 1.75 लाख रुपये प्रति वर्ष या 14,500 रुपये प्रति माह है। यूके की औसत आय $47,000 या 37 लाख रुपये प्रति वर्ष है। सवाल यह है कि हम उस मुकाम तक कैसे पहुंच सकते हैं। निश्चित रूप से यह हमारे लिए भी संभव है यदि हाल के दिनों में दक्षिण कोरिया (34,000 डॉलर), जापान (39,000 डॉलर) और चीन (12500 डॉलर) सहित अन्य राष्ट्र वहां तक पहुंचे हों।

विश्व बैंक उन देशों को निम्न मध्यम आय वाले देश के रूप में परिभाषित करता है, जहां प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) $1,036 और $4,045 के बीच है ( 2200 डॉलर के साथ हम तो निम्न मध्यम आय वाले हैं और 2008 से यहीं बने हुए हैं। उसीसाल हमने 1000 डॉलर के आंकड़े को पार किया था)। उच्च मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्थाएं वे हैं जिनकी प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय $4,046 और $12,535 के बीच है। इसके ऊपर उच्च आय है।

इन तीन आर्थिक रूप से सफल एशियाई राष्ट्रों का एक दिलचस्प पहलू यह है कि उनकी विकास दर का उच्चतम दौर तब आया जब वे उस स्तर पर थे जहां हम आज हैं। 1970 में जापान हमारे स्तर ($2056) पर था। 1980 के दशक में, इसने अपनी अर्थव्यवस्था को 16% प्रति वर्ष बढ़ाकर 9463 डॉलर तक पहुँचाया। उसके बाद के चार दशकों में यह औसतन 3.5% की वृद्धि दर से बढ़कर 39,000 डॉलर से अधिक हो गई।

इसी तरह 1983 में दक्षिण कोरिया 2198 डॉलर पर था। 10 वर्षों में यानी 1993 तक, उसने अपनी जीडीपी को 15% हर साल बढ़ाकर 8884 डॉलर कर दिया। उसके बाद अगले तीन दशकों तक यह सालाना लगभग 5% की दर से बढ़ी। ताजा मामला चीन का है। चीन का मामला हमारे लिए ज्यादा अहम इसलिए है क्योंकि आबादी के मामले में हम लगभग उसके बराबर ही हैं। और यह एक समय में चीन भी हमारे जैसा ही गरीब था।


विश्व बैंक के आंकड़ों से पता चलता है कि 1960 में भारत की प्रति व्यक्ति आय 82 डॉलर थी, जबकि चीन की 89 डॉलर थी। 1970 में, हम $112 थे और चीन $113 था। 1980 में भारत 266 डॉलर और चीन 194 डॉलर था। 1990 में, यानी 32 साल पहले, भारत 367 डॉलर और चीन 317 डॉलर था। वह आखिरी बार था जब हम उनसे आगे थे। 2000 में, हम $1357 थे और चीन $4450 था। आज जैसा कि पहले बताया गया है, हम $2277 हैं और चीन $12,556 पर है।

आखिर उसने ऐसा कैसे किया? 1990 और 2000 के बीच 11% की दर से वृद्धि करके, और फिर 2000 और 2010 के बीच 16.5% प्रति वर्ष की दर से और फिर पिछले दशक में 10% की दर से वृद्धि करके। दूसरी ओर इसी अवधि में हम 6% की दर से बढ़े। 15% प्रति वर्ष की दर से बढ़ना एक आश्चर्यजनक उपलब्धि है जिसे हमने कभी हासिल नहीं किया, लेकिन इन तीन देशों ने गरीबी से बचने के लिए कई वर्षों में निरंतरता के साथ इसे हासिल किया है।

तो फिर वह गुप्ता फार्मूला है क्या? जापान दुनिया में उच्चतम गुणवत्ता के उपभोक्ता ब्रांड बनाने में सक्षम था, जैसे टोयोटा, सोनी, होंडा, पैनासोनिक, यामाहा और इसी तरह के अन्य ब्रांड। सभी देशों के उपभोक्ता अपनी कारों, पियानो, वॉकमेन सेट और टीवी के लिए पैसे देने को तैयार थे। उनके पास मित्सुबिशी जैसी औद्योगिक कंपनियां भी थीं। इसी तरह, दक्षिण कोरिया ने इंजीनियरिंग दिग्गज हुंडई और सैमसंग और एलजी जैसे उपभोक्ता ब्रांड स्थापित किए।

चीन ने लगभग ऐसा रास्ता नहीं चुना, बल्कि उसने खुद को दुनिया का मैन्युफैक्चरिंग हब बना लिया। लागत और दक्षता लाभ के चलते तमाम कंपनियों ने अपने ऑपरेशन चीन में स्थापित कर लिए। तीनों राष्ट्र भी आगे बढ़े जिसे वैल्यू चेन या मूल्य श्रृंखला कहा जाता है और इलेक्ट्रॉनिक्स और सेमी कंडक्टर के निर्माण में विकसित उद्योग माना जाता है।

भारत को अपनी सफलता को दोहराने के लिए, हमें यह पता लगाना होगा कि उन्होंने जो किया वह कैसे करना है, लेकिन वहां तक पहुंचने का यही एकमात्र तरीका नहीं है। क्यूबा ($10,000) एक खुली अर्थव्यवस्था न होने और गंभीर प्रतिबंधों के बावजूद जीवन प्रत्याशा, प्रति व्यक्ति आय, स्वास्थ्य और शिक्षा के मानकों में विश्व स्तरीय है।

एक और तरीका भी है, जिसमें आज विकसित कहे जाने वाले अन्य राष्ट्रों ने आधुनिक युग में समृद्धि हासिल की है। और ऐसा एक स्वतंत्र न्यायपालिका और आपराधिक न्याय प्रणाली सहित पारदर्शी और कार्यात्मक लोकतंत्र होने के माध्यम से हुआ है। ये ऐसी चीजें हैं जो केवल लोकतंत्र ही प्रदान कर सकते हैं और अत्याचार नहीं और इस कारण से, यह विशेष मार्ग उन राष्ट्रों के लिए बंद है जो सत्तावादी हैं।


भारत आज उसी तरह जगह पर है जैसे जापान, दक्षिण कोरिया और चीन उस समय थे जब वे लगभग 2000 डॉलर प्रति व्यक्ति जीडीपी वाले देश थे। क्या हम उनकी तरह छलांग लगा सकते हैं? हम सभी निश्चित रूप से ऐसा चाहते हैं और यह दुनिया के लिए भी बहुत अच्छा होगा। लेकिन ऐसा होने के लिए बहुत कुछ बदलना होगा। जब हम अपने साथी एशियाई देशों द्वारा हासिल की गई विकास दर के करीब थे, वह 2004 और 2014 के बीच 10 साल की अवधि में था (9% की दर से $627 से $1573 तक बढ़ रहा था)। यह सबकुछ केवल राजनीतिक दलों के बारे में नहीं है: उस अवधि में वैश्विक व्यापार में उछाल आया और इसलिए हमारे निर्यात में तेजी से वृद्धि हुई। वह उछाल अब चला गया है और हम अब इसका लाभ नहीं उठा सकते हैं।

2014 के बाद हमारी वृद्धि औसतन लगभग 5% रही है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो हम मिस्र, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और बांग्लादेश की तरह यहीं रहेंगे। हकीकत यह है कि जो आर्थिक रूप से सफल राष्ट्र होत हैं, वे बहुत ही दुर्लभ होते हैं।

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia