मानगढ़ धाम: आदिवासी समाज ने पूरे सम्मान से संजोई है समाज-सुधारक गुरु गोविंद की स्मृति

गुरु गोविंद एक महान समाज-सुधारक थे और देशभक्त थे। उन्होंने नशे और अनेक अन्य सामाजिक बुराईयों को समाप्त करने का संदेश दिया और साथ में स्वदेशी का, स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का आह्नान भी किया।

फोटो: पी.एल. पटेल
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भारत डोगरा

गुरु गोविंद (1858-1931) देश के एक अमर स्वतंत्रता सेनानी और समाज-सुधारक थे। उनके महान योगदान को चाहे पूरे राष्ट्रीय स्तर पर आज तक उतनी मान्यता न मिली हो जितनी जरूरत थी, पर उनके क्षेत्र के आदिवासी और विशेषकर भील आदिवासी समुदाय ने आज भी उनकी स्मृति को बहुत सम्मान से संजोए रखा है।

गुरु गोविंद का कर्मक्षेत्र मुख्य रूप से वह स्थान रहा जहां आज राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात के अनेक आदिवासी बहुल गांव बसे हुए हैं। विशेषकर जहां यह तीन राज्य मिलते हैं, उन सीमा क्षेत्रों में गुरु गोविंद की याद में गाए गीत और भजन आप को सहज ही इन गांवों में सुनाई पड़ जाएंगे। यहां अनेक गांववासी और विशेषकर आदिवासी एक दूसरे से मिलने पर ‘नमस्कार’ के स्थान पर ‘जय गुरु’ अधिक सहजता से कहते हैं जो कि गुरु गोविंद की स्मृति में ही हैं। इसी सीमा-क्षेत्र में ‘मानगढ़ धाम’ स्मृति स्थल भी विकसित किया गया है जिसका एक भाग राजस्थान में है तो दूसरा भाग गुजरात में है।

फोटो: पी.एल. पटेल
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यह वही स्थान हैं जहां अंग्रेज फौज ने रजवाड़ों के समर्थन में स्वतंत्रता सेनानियों और आदिवासी हकदारी के रक्षकों पर वर्ष 1913 में बहुत क्रूरता से हमला किया था जिसमें लगभग 1500 स्वतंत्राता सेनानी मारे गए थे जिनमें से सबसे अधिक भील आदिवासी थे। यहां शहादत प्राप्त करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों की संख्या जलियांवाला बाग कांड से भी कहीं अधिक थी, पर चूंकि आदिवासी बहुल क्षेत्र अधिक उपेक्षित हुए, अतः इस त्रासदी की चर्चा भी इतिहास के पन्नों में कम हुई है।

फोटो: पी.एल. पटेल
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गुरु गोविंद एक महान समाज-सुधारक थे और देशभक्त थे। उन्होंने नशे और अनेक अन्य सामाजिक बुराईयों को समाप्त करने का संदेश दिया और साथ में स्वदेशी का, स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का आह्नान भी किया। उन्होंने रजवाड़ों, सामंतशाही और उनसे जुड़े अंग्रेज शासकों की शोषणकारी नीतियों और अत्याचारों के विरुद्ध बहुत आवाज उठाई। जब अपने अधिकारों और शोषण के विरुद्ध लोग उठ खड़े हुए तभी अंग्रेज सैनिक अधिकारियों ने उन पर गोली चलाने का आदेश दिया।

फोटो: पी.एल. पटेल
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मानगढ़ के इस गोलीकांड में गोविंद गुरु भी घायल हुए और गिरफ्तार कर लिए गए। लंबे समय तक जेल में रहने के बाद जब वे रिहा हुए तो वे सेवाश्रम स्थापित कर सुधार और सेवा के कार्यों में वर्षों तक लगे रहे। उन पर अंग्रेज शासकों ने रोक लगा दी थी कि वे अपने मूल कर्मक्षेत्र में लौट नहीं सकते थे।

फोटो: पी.एल. पटेल
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इसी सेवा और सुधार के जीवन में लगे हुए उनका देहान्त 30 अक्टूबर 1931 को हुआ। उनके जीवन से आज भी उनके कार्यक्षेत्र के हजारों परिवार प्रेरणा प्राप्त करते हैं। उनके और उनके साथियों की सेवाओं और बलिदान को व्यापक राष्ट्रीय मान्यता मिलनी चाहिए।

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