मृणाल पाण्डे का लेख: अटल जी भारतीय राजनीति के दुर्गम जंगल में एक दुर्लभ प्रजाति की संजीवनी बूटी थे

अटल जी सही अर्थों में सहृदय रसिक थे जिनको मीडिया और रचनाकारों से सहज आदर मिलता रहा। खाना हो या शास्त्रीय संगीत, कविता हो या गद्य, वे सबका सहज खुला आनंद लेना जानते थे।

फोटोः सोशल मीडिया
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मृणाल पाण्डे

भारतीय राजनीति के तरह-तरह के आक, धतूरे, नीम और भटकटैया के कांटों से भरे दुर्गम जंगल में अटल जी एक दुर्लभ प्रजाति की संजीवनी बूटी थे। एक-एक कर देश में उस सहज, गुणकारी और जनसुलभ प्रजाति की वनस्पतियां खत्म हो रही हैं। वे उन लोगों में से थे, जिनको मेरी स्पष्टभाषी मां की पीढ़ी ‘इज़्ज़तदार’ कहती थी। बहुत कम लोग उनकी तरह राजनीति में इस विशेषण के हकदार थे। मेरी मां के उन सुधी पाठकों में से अटल जी वर्षों से शामिल थे जिनके प्रति उनका अंत तक सहोदर सरीखा स्नेह बना रहा। एक समझदार निष्कपट स्नेह जो किसी प्रतिदान की आकांक्षा से रहित होता है।

फोटोः नवजीवन
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पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ वरिष्ठ पत्रकार मृणाल पाण्डे

जब मैंने साप्ताहिक हिंदुस्तान के संपादक का काम संभाला तो वे चुहल में मुझे संपादिका जी कहने लगे। साप्ताहिक के लिये वे कविताओं के अतिरिक्त जब राजनैतिक वजहों वे जेल गये, तो कैदी कविराय के नाम से बहुत मज़ेदार कुंडलियां भी लिखा करते थे। मेरे द्वारा रचनाओं की संपादकीय मांग करने पर हमेशा उनका शालीनता और परिहासमय सहज स्नेह के साथ जवाब आता। उन्होंने हमेशा अपने स्नेहभाजन लोगों का मान रखा, उनका भी, जिनसे उनकी राजनैतिक मूल्यों को लेकर खास सहमति नहीं बनती थी। रचनायें भेज कर सम्मान दिया पर यह कहना कभी नहीं भूलते कि यदि ठीक लगें तो ही छापियेगा अन्यथा...।

मृणाल पाण्डे का लेख: अटल जी भारतीय राजनीति के दुर्गम जंगल में एक दुर्लभ प्रजाति की संजीवनी बूटी थे
लेखिका शिवानी और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी

अटल जी की जनसामान्य के लिये सहज सुलभता और उनका गरिमामय सार्वजनिक व्यवहार, उन अधजल राजनीतिक गगरियों के लिये अनुकरणीय होगा जो बात-बेबात छलकती, कटुभाषी निंदा और आत्मप्रशंसा की कीच फैलाती रहती हैं। वे बहुत मितभाषी थे, लेकिन जो कहना होता, वह कहने की कला जानते थे:

‘मेरे प्रभु !

मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना,

गैरों को गले न लगा सकूं

इतनी रुखाई कभी मत देना।’

अटल जी सही अर्थों में सहृदय रसिक थे जिनको मीडिया और रचनाकारों से सहज आदर मिलता रहा। खाना हो या शास्त्रीय संगीत, कविता हो या गद्य, वे सबका सहज खुला आनंद लेना जानते थे। और इसीलिये वे खुल कर मानते रहे, ‘सर्वपंथ समभाव भारत को घुट्टी में मिला है। भारत कभी मज़हबी राज्य नहीं बना, न कभी भविष्य में बनेगा। हम एक दंगा मुक्त समाज और सद्भावनायुक्त वातावरण बनाने के लिये प्रतिबद्ध हैं।’

मृणाल पाण्डे का लेख: अटल जी भारतीय राजनीति के दुर्गम जंगल में एक दुर्लभ प्रजाति की संजीवनी बूटी थे
वरिष्ठ पत्रकार मृणाल पाण्डे को लिखा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का पत्र

निजी जीवन अपनी शर्तों पर जीने वाले अटल जी उन लोगों में से थे, जिनको राजनीति की मर्यादा रेखाओं का भान सदा रहा। 28 मई1996 को संसद के सदन में अपना त्यागपत्र राष्ट्रपति को देने की घोषणा करते हुए उन्होने राम के शब्दों में अध्यक्ष महोदय से जो कहा था, वह आज के संदर्भ में फिर याद आता है: ‘न भीतो मरणादस्मि, केवलं दूषितो यश: (मरने से नहीं मैं यश के कलंकित होने से डरता हूं)।

मृणाल पाण्डे का लेख: अटल जी भारतीय राजनीति के दुर्गम जंगल में एक दुर्लभ प्रजाति की संजीवनी बूटी थे
वरिष्ठ पत्रकार मृणाल पाण्डे को लिखा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का पत्र

‘...जब मैं राजनीति में आया तो कभी सोचा भी नहीं था कि एमपी बनूंगा। मैं पत्रकार था और जिस तरह की राजनीति चल रही है, वह मुझे रास नहीं आती। मैं छोड़ना चाहता हूं, पर राजनीति मुझे नहीं छोड़ती। ..प्रधानमंत्री बनते समय मेरा ह्रृदय आनंद से उछलने लगा हो, ऐसा नहीं हुआ। अब जब मैं सब कुछ छोड़छाड़ कर चला जाऊंगा, तब भी मेरे मन में किसी तरह की ग्लानि होगी, ऐसा होने वाला नहीं है। ..’

आज के ज़हरीले दंभी और यशलिप्सु वातावरण में उनका इस तरह चले जाना, चुपचाप, बिना क्षोभ, बिना किसी लाग लपेट के, सर्वथा उनके व्यक्तित्व के अनुरूप है।

मृणाल पाण्डे का लेख: अटल जी भारतीय राजनीति के दुर्गम जंगल में एक दुर्लभ प्रजाति की संजीवनी बूटी थे
वरिष्ठ पत्रकार मृणाल पाण्डे को लिखा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का पत्र

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Published: 16 Aug 2018, 6:29 PM