ज़फ़र आग़ा का लेखः तीन तलाक बिल चुनावी फायदे के लिए मुसलमानों के खिलाफ मोदी की चाल है

दंगों में मुस्लिम महिलाओं के साथ हो रहे बलात्कार के समय जिन लोगों ने आंखें फेर ली थी, वे कभी भी उनके लिए कोई सुधार लाने के प्रति ईमानदार नहीं हो सकते।

फोटोः सोशल मीडिया
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ज़फ़र आग़ा

एक साथ तीन तलाक देना अब एक अपराध है। निश्चित तौर पर इसे बहुत पहले खत्म हो जाना चाहिए था। 1980 में गुजारा भत्ता के लिए शाह बानो की लड़ाई से लेकर हाल में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक मुस्लिम समाज के भीतर लैंगिक न्याय के संघर्ष ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। शुरूआत में 1986 में शाह बानो मामले में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की अगुवाई में मुस्लिम रूढ़िवादियों ने तत्कालीन राजीव गांधी सरकार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदलने के लिए मजबूर कर दिया था।

लेकिन, 2014 में मोदी सरकार के दिल्ली की सत्ता में आने के बाद से तीन तलाक के दशकों पुराने बहस में काफी तेजी आ गई थी। तीन तलाक की आड़ में मुसलमान पुरुषों द्वारा लैंगिक न्याय का उल्लंघन किए जाने के खिलाफ मुस्लिम महिलाओं के कुछ समूहों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इस मामले ने धार्मिक या व्यक्तिगत मुद्दे को कानून की नजर में लैंगिक न्याय के मुद्दे में तब्दील कर दिया। इसने अदालत के काम को और आसान बना दिया, क्योंकि तीन तलाक स्पष्ट रूप से बिना किसी धार्मिक भेद के सभी को प्राप्त महिला अधिकारों का उल्लंघन करता है। इसी कड़ी में कुछ महीने पहले सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया जिसमें तीन तलाक की मध्ययुगीन कुप्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

बदलाव की मांग करने वाले सभी लोगों को इस फैसले से राहत मिली। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ऐसा प्रतीत हो रहा था कि सभी के लिए यह मामला सुलझ गया है। लेकिन, गुजरात चुनाव के प्रचार के बीच में अचानक मोदी सरकार ने ऐलान किया कि इस कुप्रथा में शामिल लोगों को अपराधी घोषित करने करने के लिए केंद्र सरकार लोक सभा में एक विधेयक पेश करेगी। अपने वादे को पूरा करते हुए मोदी सरकार ने पिछले सप्ताह संसद के निचले सदन में इस विधेयक को पेश किया और 1985 में इस मुद्दे पर मुस्लिम रूढ़िवादी गुट के साथ खड़ी कांग्रेस सहित लगभग सभी धर्मनिरपेक्ष पार्टियों की ओर से बगौर किसी खास विरोध के इसे पारित करा लिया।

भारत के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय के भीतर महिलाओं के अधिकार के अहम मुद्दे का यह संक्षिप्त इतिहास रहा है। वास्तव में सामाजिक परिवर्तन एक कठिन प्रक्रिया है। किसी भी बदलाव को जमीन पर लाने से पहले यह हमेशा कई तरह के आकार और घुमाव लेता है। तीन तलाक का मुद्दा भी अलग नहीं था। रूढ़ीवादियों और धर्म गुरुओं की अगुवाई वाले मुस्लिम समाज में इस संबंध में कोई त्वरित सकारात्मक बदलाव लाना कानून निर्माताओं के लिए ज्यादा मुश्किल काम था।

लेकिन मोदी सरकार ने गतिरोधों को हटाया और एक दृढ़ निश्चय किया कि चाहे जो हो जाए तीन तलाक को खत्म किया जाएगा। उसने मुस्लिम महिलाओं के अधिकार के मुद्दे को बढ़ावा दिया और अदालत और संसद दोनों में तीन तलाक के खिलाफ जाने का फैसला किया। यह कदम मुस्लिम समुदाय के साथ-साथ बदलाव की मांग करने वाले उदारवादियों के लिए भी हैरान करने वाला था।

सच्चाई यह है कि चाहे महिलाएं हों या पुरुष, नरेंद्र मोदी को भारतीय मुसलमानों से कोई प्रेम नहीं है। उनके शासन के दौरान ही गुजरात में 2002 में अब तक के सबसे विभत्स मुस्लिम विरोधी दंगे हुए। उस दौरान मुस्लिम महिलाओं के साथ बड़े पैमाने पर सामुहिक बलात्कार की घटनाओं की पुष्ट खबरें आईं। उनमें से कई महिलाएं आज भी अदालतों में इंसाफ की गुहार लगा रही हैं और मोदी के शासन काल से ही बीजेपी की सरकार उनके मुकदमे का विरोध कर रही है। यह बात पूरी तरह से भ्रामक और शातीराना चाल है कि जब से नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में सत्ता संभाली है तब से तीन तलाक से पीड़ित मुस्लिम महिलाओं के लिए उनका हृदय परिवर्तन हो गया है।

नरेंद्र मोदी लैंगिक भेद से परे मुसलमानों से नफरत करते हैं। अपनी जान और इज्जत को लेकर भारतीय मुसलमान इतने खौफ में कभी नहीं रहे हैं, जितना मोदी राज में हैं। उनके साथ लगभग हर रोज गोमांस पर प्रतिबंध के नाम पर भीड़ द्वारा पीट पीट कर हत्या की घटनाएं हो रही हैं और ऐसे में मोदी का इन घटनाओं से निगाहें फेर लेना इस सरकार में भारतीय मुसलमानों के लिए एक आम बात हो गई है।

इसलिए, यह साफ बकवास है कि मोदी ने किसी सुधार की नियत से प्रेरित होकर तीन तलाक को कानूनी तौर पर प्रतिबंधित करने के लिए कोई बहुत 'प्रगतिशील' विधेयक लाया है। तीन तलाक को आपराधिक घोषित करने वाला कानून लाने की जल्दबाजी के पीछे मोदी की और क्या सोच हो सकती थी? मोदी हमेशा दो योजनाओं पर काम करते हैं, जो कि अब और स्पष्ट हो गया है। उनकी पहली योजना यह होती है कि कैसे अगले चुनावों में जीत सुनिश्चित की जाए? दूसरा, वह अपनी व्यक्तिगत वैचारिक प्रतिबद्धता के साथ ही चुनावों में बीजेपी की जीत सुनिश्चित करने के लिए रात दिन काम करने वाले संघ के गुट को खुश करने के लिए हिंदुत्व के एजेंडे को लागू करने के प्रति पूरी तरह से सचेत और दृढ़ प्रतिज्ञ हैं।

मोदी की अब तक की रणनीति चुनाव जीतने के लिए मुसलमानों का हौआ खड़ा कर हिंदू वोट बैंक तैयार करना रहा है। वह यह काम कभी-कभी बड़ी चालाकी से करते हैं और कभी-कभी बेहद क्रूर तरीके से। हाल में हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में अपने गृह राज्य मे जीत के लिए मोदी द्वारा हिंदू वोट बैंक बनाने का अब तक का सबसे घटिया प्रयास देखने को मिला। 2018 कई महत्वपूर्ण चुनावी लड़ाइयों का साल है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक जैसे अन्य महत्वपूर्ण राज्यों में बहुत जल्द चुनाव होने वाले हैं।

चुनावी लड़ाई अब मोदी के लिए कोई आसान नहीं रह गई है। वह राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की तरफ से पेश की गई कड़ी चुनौती के बावजूद गुजरात में लगभग हार के मुंह से जीत हासिल कर पाने में कामयाब हो सकते हैं। स्वाभाविक रूप से, इस बात ने उनके दिल और दिमाग में हार का डर बैठा दिया है। भाजपा को सत्ता में बनाए रखने के लिए हताश मोदी को एक हिंदू वोट बैंक की अब और अधिक जरूरत है।

तीन तलाक को अपराध घोषित करना कट्टर हिंदुत्व वोट बैंक के लिए मोदी के गूढ़ संदेशों में से एक है कि वह अकेले ही मुसलमान शत्रु को निपटा सकते हैं --- चाहे वह तीन तलाक के माध्यम से हो या उनकी गोमांस खाने की आदत के जरिये हो। यह आरएसएस को भी खुश करेगा, जो कि सुधार की नियत से नहीं बल्कि जनसांख्यिकीय कारणों से तीन तलाक पर प्रतिबंध लगाने की मांग करता आ रहा था।

तीन तलाक कानून मुस्लिम महिलाओं को लैंगिक न्याय दिलाने की बजाय अपने व्यक्तिगत चुनावी फायदे के लिए मुसलमानों को ठिकाने लगाने की मोदी की चाल है। सांप्रदायिक दंगों में मुस्लिम महिलाओं के साथ हो रहे बलात्कार के समय जो लोग दूसरी तरफ देख रहे थे, वे कभी भी उनके लिए कोई सुधार लाने के प्रति ईमानदार नहीं हो सकते।

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