व्यापार कूटनीति की बिसात पर ट्रंप-शी में शह-मात का खेल
अमेरिका और चीन में चल रहे टैरिफ युद्ध पर दुनिया भर की निगाहें टिकी हैं क्योंकि इसका असर पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है

दुनिया के ज्यादातर देशों और खास तौर पर चीन के साथ टैरिफ विवाद में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप जान-बूझकर बोतल से जिन्न को बाहर निकाल रहे हैं, चीनी ड्रैगन को एक नए शीत युद्ध के लिए उकसा रहे हैं और अपनी नीतियों के साथ दुनिया को मंदी की ओर धकेल रहे हैं।
हाल ही में जे.पी. मॉर्गन ने इस साल के अंत तक वैश्विक अर्थव्यवस्था के मंदी की चपेट में आने के अपने पूर्वानुमान को 40 से बढ़ाकर 60 फीसद कर दिया। ट्रंप की बेलगाम व्यापार गुंडागर्दी अमेरिकी सपने को भी चकनाचूर कर देगी। इससे किसी भी देश की तुलना में अमेरिकियों को सबसे ज्यादा नुकसान होगा। आयातों पर दंडात्मक कर निःसंदेह घरेलू व्यवसायों की लागत बढ़ाएंगे, अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए कीमतें महंगी करेंगी और लगातार आर्थिक गिरावट झेलता हुआ अमेरिका आकिरकार मंदी में जा फंसेगा।
अगर अमेरिकी आयातक बढ़ी टैरिफ का बोझ खुद उठाने का फैसला करते हैं तो उनकी कमाई प्रभावित होगी और इसकी भरपाई के लिए उन्हें परिचालन खर्चे को घटाने और कामगारों को निकालना होगा और अगर उन्होंने टैरिफ लागत का बोझ उपभोक्ताओं पर डाला तो मांग में भारी गिरावट आएगी, जिससे विनिर्माण प्रभावित होगा और कामगार बेरोजगार हो जाएंगे।
‘टैक्स फाउंडेशन’ का अनुमान है कि संभावित विदेशी कार्रवाई के असर को नजरअंदाज भी कर दें तो ट्रंप के टैरिफ दीर्घकाल में अमेरिका के जीडीपी में 0.8 फीसद की कमी कर देंगे। अगर बदले की संभावित कार्रवाई के असर को भी ले लें तो अमेरिकी जीडीपी में 1 फीसद की गिरावट आ सकती है। अमेरिकी डॉलर का प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले गिरना बता भी रहा है कि निवेशक वैश्विक वित्तीय बाजारों में लंबे समय से सबसे सुरक्षित रहे अमेरिकी बाजार से दूर हो रहे हैं।
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ताकतवर नेता हैं जो ट्रंप की ज्यादतियों का सामना करने का हरसंभव प्रयास करेंगे। 2022 की अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चीन को ‘अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को नया रूप देने के लिए आर्थिक, कूटनीतिक, सैन्य और तकनीकी शक्ति वाले अकेले प्रतियोगी’ के रूप में उद्धृत करती है।
दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच कर युद्ध में ट्रंप ने चीन से आयात पर 145 फीसद तो इसके जवाब में जिनपिंग ने 125 फीसद कर लगा दिया। चीन ने ट्रंप प्रशासन के कार्यों को ‘मजाक’ करार देते हुए कहा कि वह उन्हें बराबरी के लायक नहीं समझता। ट्रंप ने 100 अरब डॉलर के तकनीकी आयात को छूट देकर इसके प्रभाव को कम करने की कोशिश जरूर की है, लेकिन तनाव बना हुआ है क्योंकि वाशिंगटन इलेक्ट्रॉनिक्स की राष्ट्रीय सुरक्षा जांच पर विचार कर रहा है।
चीन ने छह दुर्लभ मृदा खनिजों के निर्यात को रोक दिया है, जिससे अमेरिका को इन खनिजों से वंचित होना पड़ा है जो तकनीक, ऑटो, एयरोस्पेस, रक्षा और विनिर्माण के लिए अहम हैं। इसके अलावा, इसने चीनी एयरलाइनों को बोइंग के विमानों की आगे की डिलीवरी न लेने का आदेश दिया है। चीन बोइंग का सबसे बड़ा ग्राहक है और अगले दो दशकों में 9,000 विमानों की डिलीवरी पाने की कतार में है - जो बोइंग के उत्पादन का 20 फीसद है।
हालांकि यह भी तथ्य है कि अमेरिका को चीन के साथ भारी व्यापार घाटा झेलना पड़ रहा है जो पिछले साल 295.4 अरब डॉलर से अधिक हो गया। चीन को अमेरिकी निर्यात 143.5 अरब डॉलर का है, जो 2023 से 3 फीसद कम है और यह चीन से हुए 438.9 अरब डॉलर के आयात के मुकाबले बहुत कम है। 2024 में वस्तुओं और सेवाओं में अमेरिका का कुल व्यापार घाटा 918.4 अरब डॉलर था, जो 2023 से 17 फीसद ज्यादा है, और इसका चालू खाता घाटा, जिसमें वस्तुओं और सेवाओं का व्यापार शामिल है, बढ़कर 1.13 खरब डॉलर हो गया, जो जीडीपी का 3.9 फीसद है।
इसके उलट चीन का कुल व्यापार अधिशेष 2024 में रिकॉर्ड 992.2 अरब डॉलर तक बढ़ गयाः इसके निर्यात में 5.4 फीसद की वृद्धि हुई, जिससे घरेलू स्तर पर सुस्त वृद्धि की भरपाई में मदद मिली। पिछले महीने भी ट्रंप के टैरिफ युद्ध के नारे के बीच, चीन ने 102.64 डॉलर का व्यापार अधिशेष दर्ज किया। 1981 से 2025 तक इसका व्यापार संतुलन औसतन 16.81 अरब डॉलर रहा है, जो फरवरी में 170.52 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर रहा, और 2020 की फरवरी में कोविड की शुरुआत में -61.99 अरब डॉलर के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया।
हालांकि, दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका से इस तरह की झड़प की उम्मीद नहीं थी क्योंकि 2024 में इसकी जीडीपी 29 खरब डॉलर से कुछ ही कम थी जो दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन की 2024 की जीडीपी 18.6 खरब डॉलर से कहीं ज्यादा है।
ट्रुथ सोशल पर एक पोस्ट में ट्रंप ने कहा कि व्यापार के मामले में किसी भी देश, खास तौर पर चीन को खुली छूट नहीं दी जा रही। उन्होंने लिखा, ‘अन्य देशों द्वारा हमारे खिलाफ इस्तेमाल किए गए अनुचित व्यापार संतुलन और गैर-मौद्रिक टैरिफ बाधाओं के लिए कोई छूट नहीं है, खासकर चीन को जो अब तक हमारे साथ सबसे बुरा व्यवहार करता रहा है!’
यूबीएस का अंदाजा है कि आने वाली तिमाहियों में अमेरिका को चीन का निर्यात दो-तिहाई गिरेगा और 2025 में कुल चीनी निर्यात में 10 फीसद की गिरावट आएगी। 15 अप्रैल को बैंक ने 2025 के लिए चीन की जीडीपी वृद्धि के पूर्वानुमान को घटाकर 3.4 फीसद कर दिया। यूबीएस के मुताबिक आने वाले समय में अमेरिका के सहयोगी देश भी चीन के खिलाफ आयात शुल्क बढ़ाने वाले हैं। 14 अप्रैल को कानूनी सलाहकार समूह दि लिबर्टी जस्टिस सेंटर ने अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय व्यापार न्यायालय से अपील की कि वह ट्रंप के मनमाने टैरिफ पर रोक लगाए क्योंकि ऐसा करने का अधिकार सिर्फ कांग्रेस को है।
उधर, कूटनीतिक मोर्चेबंदी में जुटे राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने आगाह किया कि व्यापार युद्ध और टैरिफ युद्ध में किसी की भी जीत नहीं होती। उन्होंने बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था, स्थिर वैश्विक सप्लाई चेन और सहयोगात्मक अंतरराष्ट्रीय माहौल की तरफदारी की। और तो और, बीजिंग ने नई दिल्ली को भी ‘साथ आने’ के लिए प्रेरित करने की कोशिश की।
चीनी दूतावास के प्रवक्ता यू जिंग ने एक्स पर पोस्ट कियाः ‘चीन-भारत आर्थिक और व्यापार संबंध परस्पर फायदे पर आधारित हैं। अमेरिका का टैरिफ युद्ध खास तौर पर विकासशील देशों को उनके विकास के अधिकार से वंचित करता है। ऐसे में दो सबसे बड़े विकासशील देशों को एक साथ खड़ा होना चाहिए।’
इसके बाद खुद शी ने भारत-चीन के कूटनीतिक रिश्तों की 75 वीं वर्षगांठ पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को शुभकामना संदेश भेजते हुए कहा कि भारत-चीन के बीच दोस्ताना रिश्ते न केवल दोनों देशों बल्कि पूरी दुनिया के फायदे में है। भारत ने इसपर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, हालांकि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि द्विपक्षीय रिश्ते ‘सकारात्मक दिशा’ में बढ़ रहे हैं। वैसे, ट्रंप और शी जिनपिंग की लड़ाई में भारत फूंक-फूंककर कदम रख रहा है और वह इस टैरिफ युद्ध में चीन के किसी भी नुकसान का फायदा उठाना चाहेगा। भारत पहले से ही ट्रंप प्रशासन के साथ सुलह की कोशिश कर रहा है।
उधर, जिनपिंग यूरोपीय संघ से भी तालमेल बढ़ाने पर जुटे हुए हैं। हाल ही में उन्होंने स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज की मेजबानी करते हुए कहा, ‘चीन और यूरोप को अपनी अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियां निभानी चाहिए... और एकतरफा धमकियों का मिलकर विरोध करना चाहिए।’ चीन ने यह भी कहा कि अगर अमेरिका ‘लापरवाही’ से काम करना जारी रखता है तो वह व्यापार युद्ध लड़ने को तैयार है। ट्रंप ने जिनपिंग को ‘बड़ा चालाक व्यक्ति’ बताया और कहा, ‘मुझे लगता है कि वह समझौता करना चाहेंगे...।’
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने पलटवार किया: ‘चीन यह युद्ध नहीं लड़ना चाहता...लेकिन वह डरा हुआ भी नहीं है। यदि अमेरिका वास्तव में बातचीत के माध्यम से मुद्दों को हल करना चाहता है, तो उसे अत्यधिक दबाव डालना और लापरवाही से काम करना बंद कर देना चाहिए।’ 15 अप्रैल को चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने कहा कि ‘बातचीत का द्वार खुला है… हमें उम्मीद है कि आपसी सम्मान, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और सहयोग के सिद्धांतों के आधार पर मतभेदों को सुलझा लिया जाएगा।’
(सरोश बाना बिजनेस इंडिया के कार्यकारी संपादक और जर्मनी के इंडिया/एशिया-पैसिफिक के क्षेत्रीय संपादक हैं।)
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