ट्रंप मुक्त अमेरिका से भले ही प्रभावित न हो कारोबारी रिश्ते, लेकिन भारत में मानवाधिकारों पर नजर रखेगा व्हाईट हाउस

इसी साल जून में जारी एक नीति दस्तावेज में जो बिडेन भारत सरकार से जम्मू-कश्मीर में कश्मीरियों के अधिकारों को बहाल करने का आग्रह कर चुके हैं, और धर्म-आधारित नागरिकता (संशोधन) कानून सीएए और एनआरसी लागू करने पर चिंता जता चुके हैं।

फोटो : सोशल मीडिया
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सरोश बाना

आनाकानी करते हुए व्हाईट हाऊस से डोनल्ड ट्रंप की विदाई के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उनके साथ गलबहियों का भी पटाक्षेप हो गया। दोनों नेताओं की इस लंबे समय से चली आ रही दोस्ती ही भारत-अमेरिका रिश्तों को परिभाषित कर रही थी, हालांकि इस दौरान कई बार ट्रंप ने ऐसे की कदम उठाए जिससे भारत असहज हुआ। ध्यान रहे कि जनवरी 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन पहले विश्व नेताओं में से एक थे जिन्होंने ट्रंप को फोन कर राष्ट्रपति चुने जाने पर बधाई दी थी।

मोदी ने इस रिश्ते को मजबूती देने के लिए काफी जोर लगाया, सितंबर 2014 से सितंबर 2019 के बीच उन्होंने 6 बार अमेरिका की यात्रा की। इतना ही नहीं उन्होंने इस साल फरवरी में उस समय ट्रंप और उनके परिवार को भारत में बुलाकर शानदार स्वागत कराया जब भारत और अमेरिका दोनों ही कोरोना महामारी की चपेट में आ रहे थे।

ट्रंप की 36 घंटे की भारत यात्रा के दौरान मोदी सरकार ने करीब 130 करोड़ रुपए खर्च किए। अहमदाबाद में नव निर्मित एक लाख से ज्यादा क्षमता वाले स्टेडियम में उनके लिए भव्य स्वागत समारोह का आयोजन उन्हें अपना ‘सबसे करीबी दोस्त’ घोषित किया और 2014 में बीजेपी के नारे कॉपी करते हुए ‘अबकी बार ट्रंप सरकार’ का नारा दिया।

इस नारे को अमेरिका में रिपब्लिकन हिंदू कोलिशन ने भारतीय-अमेरिकियों के बीच 2016 में ट्रंप के प्रचार में खूब इस्तेमाल किया था। इतना ही नहीं कोलिशन ने ट्रंप के प्रचार के लिए 1.5 मिलियन (15 लाख) डॉलर भी जुटाए। इस सबकी आलोचना भी हुई लेकिन मोदी ने इसे अनदेखा कर दिया और डेमोक्रेट के प्रति अपनी खुन्नस दिखाते हुए सार्वजनिक रूप से प्रोटोकॉल का उल्लंघन किया।

2016 में अपने चुनाव प्रचार के दौरान ट्रंप ने अमेरिका में 3.8 मिलियन संख्या वाले भारतीय समुदाय के रिझाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाया और सार्वजनिक रूप से कहा कि वे “हिंदू और भारत के बहुत बड़े प्रशंसक” हैं। उन्होंने बात यहीं नहीं छोड़ी थी, और कहा था, “अगर मैं राष्ट्रपति बना तो भारतीय और हिंदू समुदाय को व्हाइट हाऊस में अपना सच्चा दोस्त मिलेगा और मैं इसकी गारंटी देता हूं...।”


दरअसल जब से तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 2014 में मोदी के पीएम बनने पर उन पर अमेरिका दौरे पर लगी पाबंदी को हटाया था, तब से ही पीएम मी अमेरिका को लेकर काफी उत्साहित रहे हैं। ध्यान रहे कि अमेरिका ने मोदी की यात्रा पर उस समय पाबंदी लगा दी थी, जब वे 2002 में गुजरात के मुख्यमंत्री थे और वहां हुए दंगों में कम से कम 1000 लोगों की जान गई थी, जिनमें से अधिकतर मुस्लिम थे।

हालांकि, भारत में कई लोगों को इस बात पर हैरानी थी कि आखिर मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जैसे एक कद्दावर नेता के बीच क्या आम समान थी, जो गंभीर रूप से विकट था, खुलेआम लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाता था, समाज को ध्रुवीकृत करता था, अभद्र भाषा का इस्तेमाल करता था, अपने पद का दुरुपयोग करता था, खुद को कानून से ऊपर मानता था, अल्पसंख्यकों के हकों को मारता था, नस्लवाद भड़काता था, लिंगभेद अधिकारों का मजाक उड़ाता था, विपक्ष का अपमान करता था, सुप्रीम कोर्ट को कमजोर करता था, जिसे अपनी सरकार में जबरदस्त समर्थन हासिल था, ट्विटर के जरिए सरकार चलाता था, असहमति की आवाजों को कुचलता था, विरोध करने वालों पर क्रूरता दिखाता था, नजदीकियों के लिए पूंजीवाद को बढ़ावा देता था, कोरोना महामारी से निपटने में नाकाम रहा था, असत्य को बढ़ावा देता था और विजिलांते और ट्रोल आर्मी को प्रश्रय देता था।

ट्रम्प की विदाई से हो सकता है कि भारत-अमेरिका के द्विपक्षीय संबंध प्रभावित न हों, क्योंकि पारस्परिक हित इतने गहरे हैं कि अमेरिकी नेतृत्व में बदलाव से शायद ही उन पर असर पड़े। वैसे भी निर्वाचित डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति जो बिडेन की डिप्टी भारतीय मूल की अमेरिकी कमला हैरिस हैं, जिनकी मां तमिलनाडु से थीं। बिडेन इस बात को रेखांकित कर चुके हैं कि वे क्या नहीं करेंगे, और एक तरह से मोदी सरकार के नागरिक अधिकारों, धर्मनिरपेक्षता और बहुलतावादी सहिष्णु लोकतंत्र के रिकॉर्ड को सामने रख चुके हैं।

इसी साल जून में जारी एक नीति दस्तावेज में पूर्व अमेरिकी उपराष्ट्रपति जो बिडेन भारत सरकार से जम्मू-कश्मीर में कश्मीरियों के अधिकारों को बहाल करने का आग्रह कर चुके हैं, और धर्म-आधारित नागरिकता (संशोधन) कानून सीएए और एनआरसी लागू करने पर चिंता जता चुके हैं। गौरतलब है कि इन मुद्दों पर भारत भर में जबरदस्त विरोध प्रदर्शन हुए थे। इतना ही नहीं जिस समय ट्रंप का भारत में स्वागत किया जा रहा था उसी समय दिल्ली में पुलिस फायरिंग 13 भारतीयों की मौत भी हुई थी। हालांकि भारत यात्रा पर राष्ट्रपति ट्रंप कोई टिप्पणी नहीं की थी।


भारत के साथ अपने व्यवहार में, ट्रम्प ने भारत-अमेरिका की रणनीतिक साझेदारी को मोटे तौर पर अपने उद्यमी कौशल के जरिए एक लेनदेन की साझेदारी बना दिया था। भारत को भ इसमें कोई संकोच नहीं हुआ था क्योंकि इससे उसे समय-समय पर अपना लाभ भी दिख रहा था, और नतीजतन अमेरिका से भारत को रक्षा आयात बढ़ गया, और बदले में भारत सिर्फ खुद को महान शक्ति साबित करने की आकांक्षा में ट्रंप प्रशासन से तमगा हासिल करने की कोशिश में लगा रहा।

वाशिंगटन को खुश रखने की बेचैनी में मोदी सरकार ने अपने रक्षा खर्च को अमेरिका की तरफ मोड़ दिया। परिणामस्वरूप, अमेरिका से भारत की हथियारों की खरीद 2008 में लगभग शून्य से बढ़कर 2020 में 20 बिलियन डॉलर तक पहुंच गई, जिसमें अमेरिका ने अपनी विदेशी सैन्य बिक्री और प्रत्यक्ष वाणिज्यिक बिक्री दोनों प्रक्रियाओं के माध्यम से और अधिक रक्षा सामान भारत को बेचा। एक आधिकारिक अमेरिकी बयान में कहा गया, "ये बिक्री दोनों देशों में हजारों नौकरियों के मौके उपलब्ध कराती है और दोनों देशों के रक्षा औद्योगिक प्रतिष्ठानों को चलाए रखने में मदद करती है।"

इसके अलावा अमेरिका के साथ द्विपक्षीय कारोबार 2019-20 में 88.8 अरब डॉलर तक पहुंच गया जिससे अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार भी बन गया।

पर, अब ऐसा प्रतीत नही होता है कि मोदी की बिडेन से मुलाकात गर्मजोशी से हाथ मिलाने और एक दूसरे को झप्पियां देने के साथ होगी। लेकिन भारत-अमेरिका के बीच दो-तरफा रिश्ते अपनी गति से चलते रहेंगे।

(लेखक बिजनेस इंडिया पत्रिका के कार्यकारी संपादक हैं।)

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