दुनियाभर में शांति के लिए यूक्रेन जंग हर हाल में हो खत्म, हजारों लोगों की मौत, लाखों विस्थापित, कई संकट हुए उत्पन्न

यूक्रेन युद्ध के सात महीने से अधिक गुजर चुके हैं। एक-एक दिन के साथ नई पेचीदगियां और कटुता उत्पन्न हो रही हैं। अतः इस युद्ध का अब शीघ्र से शीघ्र समाप्त हो जाना बहुत जरूरी हो गया है।

फोटो: Getty Images
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भारत डोगरा

यूक्रेन युद्ध से बहुत तबाही तो हो ही रही है, इसके साथ विश्व शांति के लिए इतने गंभीर खतरे उपस्थित हुए हैं जितने हाल के वर्षों में कभी नहीं देखे गए। हाल के वर्षों में इस तरह परमाणु शस्त्रों के उपयोग की संभावना की चर्चा या विश्व युद्ध की संभावना की चर्चा पहले कभी नहीं हुई, जिस तरह कि यूक्रेन युद्ध के दौरान हुई है।

इस युद्ध के सात महीने से अधिक गुजर चुके हैं। एक-एक दिन के साथ नई पेचीदगियां और कटुता उत्पन्न हो रही हैं। अतः इस युद्ध का अब शीघ्र से शीघ्र समाप्त हो जाना बहुत जरूरी हो गया है।

यह सच है कि समझौता आसान नहीं है क्योंकि विवाद के कई तीखे मुद्दे हैं। लेकिन इस समय सभी विवादों को एकमुश्त सुलझाने का इंतजार नहीं करना चाहिए क्योंकि इसकी उम्मीद बहुत कम है। कुछ सीमित मुद्दों पर समझौते के साथ सीजफायर या युद्धबंदी की घोषणा दोनों पक्षों को कर देनी चाहिए, जबकि अधिक विवाद के मुद्दों पर यह तय कर लेना चाहिए कि इन्हें बेहतर हालात में सुलझाया जाएगा। दो-तीन वर्षों तक लगातर कटुता कम करने और अच्छा माहौल बनाने के, सुलह-समझौते को स्थायी करने के प्रयास होने चाहिए। इसके बाद जब बेहतर माहौल बन जाए तो अधिक विवादग्रस्त मुद्दों को भी धीरे-धीरे सुलझा लेना चाहिए। विश्व की सब अमन पसंद सरकारों और संस्थानों को इस शांति प्रक्रिया में सहयोग करना चाहिए।


हाल के दो-तीन दशकों में विशेषकर पिछले 8 वर्षों के दौरान एक बड़ी समस्या यह उत्पन्न हुई है कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने यूक्रेन पर इस बात के लिए दबाव बनाया है कि वह निरंतरता से रूस विराधी नीतियां अपनाए। वर्ष 2014 इस दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण वर्ष रहा है। इस समय यहां लोकतंत्रिक ढंग से निर्वाचित ऐसी सरकार थी जो अपने पड़ोसी देश रूस से मित्रतापूर्ण संबंध बनाए रखना चाहती थी, पर वर्ष 2014 में संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने तख्ता-पलट को प्रोत्साहित किया और यह सरकार गिर गई।

इसके बाद यूक्रेन में जो भी सरकारें आई हैं उन्होंने निरंतरता से रूस विरोधी नीतियां अपनाई है। उन्होंने और नव-नाजी सशस्त्र गिरोहों ने पूर्वी यूक्रेन में रूसी भाषा बोलने वाले नागरिकों पर काफी जोर-जुल्म किए। उसका असर यह हुआ कि ऐसे कुछ क्षेत्रों जैसे डोनबास क्षेत्र में अलगाववादी आंदोलन मजबूत हुए और गृह युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई। इस वर्ष के आरंभ में जब इन क्षेत्रों पर यूक्रेनी सेना के हमले तेज हुए तो इसी हालात में रूस का हमला फरवरी माह में आरंभ हुआ।

इस युद्ध में हजारों लोग मारे गए हैं और दसियों लाख लोग विस्थापित हो चुके हैं। इस युद्ध के कारण विश्व स्तर पर अनेक जरूरतमंद देशों में तेल और गैस, खाद्य और खाद जैसे महत्त्वपूर्ण उत्पादों का संकट उत्पन्न हुआ है। कहीं खाद्य संकट विकट हुआ है तो कहीं ऊर्जा संकट विकट हुआ है। सबसे अधिक चिंता का विषय तो यह है कि युद्ध के अधिक व्यापक होने का और रूस का अमेरिका और नाटो से सीधे टकराव का संकट उत्पन्न हो गया है। अमेरिका और नाटो के कुछ अन्य सदस्य देशों से यूक्रेन को इतने अधिक हथियार और सैन्य सहायता दी गई है कि रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका और नाटो के बीच सीधे युद्ध की संभावना भी उत्पन्न हो गई है और परमाणु हथियारों के उपयोग की संभावना भी चर्चित हुई है।

ध्यान रहे कि इस समय विश्व में कुल लगभग 13000 परमाणु हथियारों का भंडार है जिनमें से 90 प्रतिशत से भी अधिक मात्र रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका में केंद्रित है। अतः यदि विश्व को तबाही से रोकना है तो इन दोनों सैन्य महाशक्तियों को भी युद्ध के नजदीक जाने से रोकना बहुत जरूरी है।

बाहरी तौर पर देखें तो विश्व में अधिकांश लोग सामान्य जीवन जी रहे हैं, पर कुछ गहराई से देखें तो विश्व सर्वनाशी युद्ध की संभावना के नजदीक जा रहा है और यदि इस संभावना को न्यूनतम करना है तो यूक्रेन युद्ध को शीघ्र समाप्त कर देना चाहिए। रूस और यूक्रेन के लोग शताब्दियों से पड़ौसी रहे हैं और उनमें अनेक स्तरों पर प्रगाढ़ संबंध रहे हैं। वे निश्चय ही अमन-शांति का भविष्य प्राप्त कर सकते हैं। दूसरी ओर संयुक्त राज्य अमेरिका को यह जिद छोड़ देनी चाहिए कि यूक्रेन निरंतरता से रूस विरोधी नीतियां ही अपनाता रहे।

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