खरी-खरीः निःसंदेह एक मानव त्रासदी है कश्मीर, जितने भी आंसू बहाए जाएं कम हैं

कश्मीर में जो हो रहा है, उसकी जिम्मेदारी मोदी सरकार की है। सच ये है कि पिछले तीन दशक से घाटी फौज के साये में जी रही है। लेकिन ये भी सच है कि कश्मीरियों की इस हालत के लिए पाकिस्तान जिम्मेदार है जिसने आजादी के नाम पर कुछ कश्मीरियों के हाथों में बंदूकें थमा दी।

फोटोः सोशल मीडिया
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ज़फ़र आग़ा

कश्मीर में जो होना था सो हो गया। कश्मीर घाटी अब पूरी तरह से भारत के कब्जे में है। भले ही लगातार कर्फ्यू के कारण पूरी कश्मीर वादी एक जेल का स्वरूप ले चुकी है और वहां का छोटा-बड़ा हर नेता नजरबंद है, लेकिन भारतीय व्यवस्था धीरे-धीरे अब वहां हालात सामान्य करने का प्रयास कर रही है। पिछले सप्ताह कुछ लैंडलाइन फोन चलाए गए, लेकिन इंटरनेट और सेलफोन अभी भी बंद हैं। कुछ स्कूल भी खुले, परंतु पूरी वादी भय के चादर से ऐसी ढकी है कि मां-बाप ने बच्चों को स्कूल नहीं भेजा। बाजार अभी भी बंद हैं।

बीबीसी ने प्रारंभ में जिस सरकार विरोधी प्रदर्शन की रिपोर्ट दी थी उसके पश्चात ऐसा बड़ा विरोध का कोई समाचार तो नहीं मिला है। हां, कुछ छुटपुट पथरावों के समाचार जरूर मिले। कश्मीर घाटी से सिविल सोसायटी का एक ग्रुप लौटकर आया, उसने अपनी रिपोर्ट में कहा कि वादी में गम और गुस्से की लहर है। जिस प्रकार रातों-रात जम्मू-कश्मीर को दो टुकड़ों में बांटकर उसके चप्पे- चप्पे पर फौज लगा दी गई, उसके पश्चात कश्मीरियों में गम और गुस्सा होना स्वाभाविक है।

लेकिन कोई भी कौम केवल जज्बात के सहारे तो सदा नहीं चल सकती है। अतः खून का घूट पीकर कश्मीरी भी आहिस्ता-आहिस्ता जीवन की आपाधापी में डूब जाएगा। हां, कभी-कभी जब गुस्सा बढ़ेगा, तो फिलिस्तीनियों के समान कश्मीरी भी पत्थरों से फौज से लड़ेगा और मारा जाएगा। जैसे आज फिलिस्तीनियों पर आंसू बहाने वाला कोई नहीं है, वैसे ही दुनिया में कोई कश्मीर की त्रासदी पर आंसू नहीं बहाएगा।

कटु सत्य यही है कि दुनिया कश्मीरियों से अभी से ही मुंह मोड़ चुकी है। इसका सीधा उदाहरण पिछले सप्ताह की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक है। पाकिस्तान और चीन कश्मीर मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाने में तो सफल हो गए, लेकिन इस बैठक में कश्मीर में भारतीय सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 खत्म करने या किसी भी बात पर भारत की कोई खुलकर निंदा भी नहीं हुई। भारत के खिलाफ कोई प्रस्ताव भी नहीं पास हुआ। हां, कुछ सदस्य देशों ने इस मामले पर चिंता जरूर व्यक्त की। वह भी वैसे ही हुआ जैसे कभी-कभी यूएन के कुछ सदस्य फिलिस्तीन के मामले पर अपनी चिंता व्यक्त करते हैं।

हां, पाकिस्तान सुरक्षा परिषद की बैठक पर शोर मचा रहा है कि वह पचास साल बाद फिर कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय रंग देने में सफल हो गया। पर इससे कश्मीर की स्थिति या अनुच्छेद 370 पर भारत ने जो कुछ किया उस पर क्या प्रभाव पड़ने वाला है। कटु सत्य तो यह है कि कश्मीर मुद्दे पर संपूर्ण इस्लामी जगत भी खामोश है। सऊदी अरब और दुबई तक इस मामले में भारत के साथ हैं। लब्बोलुआब यह है कि अब कश्मीर अंतरराष्ट्रीय रडार से बाहर हो चुका है। केवल पाकिस्तान है जो कुछ चूं-चां कर रहा है। कुछ समय बाद वह भी अंतरराष्ट्रीय दबाव के आगे घुटने टेक देगा।


अब यह भी असंभव नहीं कि दो-चार वर्षों के बाद भारत और पाकिस्तान कश्मीर समस्या आपस में बैठकर हल कर लें। इसका हल यही है कि जिसके पास कश्मीर का जो हिस्सा है, वह उसी के पास रहे। इधर कश्मीर में हिंदू बस्तियों का निर्माण वैसे ही प्रारंभ हो जाएगा जैसे फिलिस्तीन में यहूदियों की बस्तियां आए दिन बसती रहती हैं। हां, कश्मीरी नौजवान पत्थरों से अपनी लड़ाई अवश्य लड़ेगा और भारतीय फौज के हाथों मारा जाएगा। पर उस पर आंसू बहाने वाला कोई नहीं होगा।

परंतु कश्मीर में जो कुछ हो रहा है, उस त्रासदी का जिम्मेदार किसको ठहराया जाएगा? निःसंदेह अभी कश्मीर में जो कुछ हो रहा है उसकी जिम्मेदारी नरेंद्र मोदी सरकार की है। जिस प्रकार बेदर्दी से अभी ऑपरेशन कश्मीर चला उसकी जिम्मेदार मोदी सरकार ही है। परंतु सत्य यह है कि पिछले तीन दशकों से कश्मीर फौज के साये तले ही जी रहा है और वहां पिछले तीन दशकों से कश्मीरी मारा भी जा रहा है। यह भी सत्य है कि कश्मीरियों की इस दुर्दशा के लिए केवल और केवल पाकिस्तान ही जिम्मेदार है जिसने आजादी के नाम पर कुछ कश्मीरियों के हाथों में बंदूकें थमा दी। भावुक कश्मीरी यह समझ बैठा कि उसको अब आजादी मिली और तब आजादी मिली।

उधर पाकिस्तानी फौज का कश्मीर में खेल ही कुछ अलग था। उसको कश्मीरियों की आजादी से कुछ लेना-देना नहीं था। पाकिस्तानी फौज की मंशा केवल इतनी थी कि वादी में इतना आतंक फैलाए कि भारतीय फौज वहीं फंसी रहे और पाकिस्तान भारतीय आक्रमण से सुरक्षित रहे। जब पाकिस्तान ने 1980 के दशक में आतंक का यह खेल शुरू किया, तो उस समय अफगानिस्तान में सोवियत फौज की उपस्थिति के कारण अमेरिका सहित संपूर्ण पश्चिमी देशों का पाकिस्तान को सहयोग था। अतः पाकिस्तान कश्मीर को आग में झोंकता रहा और दुनिया खामोश रही।

परंतु अब शीतयुद्ध समाप्त हो चुका है। सोवियत संघ ही समाप्त हो चुका है। अमेरिकी फौजें अफगानिस्तान से बाहर आने को तैयार हैं। अमेरिका की आतंक की रणनीति में दिलचस्पी खत्म हो रही है। फिर भारत लगभग संपूर्णतया अमेरिकी खेमे में है। अब पश्चिमी देशों को पाकिस्तान की कम और भारत की अधिक आवश्यकता है। यही कारण है कि पिछले सप्ताह सुरक्षा परिषद की बैठक में भारत की न तो निंदा हुई और न ही कोई प्रस्ताव पास हुआ। चीन के अतिरिक्त पाकिस्तान के साथ कोई खड़ा होने वाला भी नहीं था।


इन बदली हुई अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों में दुनिया में कोई भी कश्मीरियों को अपना कंधा सहारे के लिए नहीं देने वाला है। मोदी सरकार ने इन परिस्थितियों को भलीभांति समझते हुए ही कश्मीर पर इतना बड़ा कदम उठाया और वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कामयाब दिखाई दे रही है। उधर, कश्मीरी आतंक की कहानी का अब अंत दिखाई पड़ता है। बदली हुई अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों में अब पाकिस्तान के लिए कश्मीरियों को हथियार दे पाना भी लगभग असंभव होगा। हां, फौज के साये में जीने वाली कोई भी कौम चुप नहीं बैठी रह सकती है। कश्मीरी भी अपनी लड़ाई लड़ेंगे और बिना किसी सहयोग के कुचल दिए जाएंगे। यह एक मानव त्रासदी है जिस पर जितने भी आंसू बहाए जाएं कम हैं।

परंतु कश्मीर त्रासदी से हर कौम, विशेषकर दुनिया भर के मुसलमानों को, एक ऐतिहासिक सबक लेना चाहिए। सबसे पहला सबक तो यह है कि राजनीति केवल जज्बात का खेल नहीं होती। केवल भावुकता की राजनीति का अंजाम बुरा ही होता है। कश्मीरी ने भावुक होकर बंदूक थाम ली, पाकिस्तान ने उसका उपयोग किया और जब परिस्थितियां बदलीं, तो पाकिस्तान ने उसको भारतीय फौज के आगे झोंक दिया। कश्मीर त्रासदी की दूसरी सबसे अहम बात यह है कि आतंक की राजनीति कभी किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकती है। ओसामा बिन लादेन ने अमेरिका को आतंक के जोर पर सबक सिखाने की कोशिश की, आज वह मौत की नींद सो रहा है। अल बगदादी ने आतंक के जोर पर इस्लामी खिलाफत कायम करने का ऐलान किया। अब न तो उस बगदादी का कोई नाम लेवा है और न ही उस खिलाफत का कहीं अता-पता है। इसी प्रकार कश्मीरी नौजवान ने पाकिस्तान के उकसाने पर बंदूक उठाई पर आज उसका हश्र उसको भुगतना पड़ रहा है।

आतंक की राजनीति एक पाप है। इस पाप की राजनीति को आरंभ करने वाला समूह कुछ समय तक तो अपना अस्तित्व जता सकता है, लेकिन अंततः इसका अंजाम बुरा ही होता है। यह एक कटु सत्य है जिसका सामना अब कश्मीरी कर रहा है। दूसरी ओर, आरएसएस कश्मीर की स्थिति का लाभ उठाकर कश्मीर में अपना एजेंडा लागू करने में सफल है। पर कश्मीर निःसंदेह एक मानव त्रासदी है। परंतु अब दुनिया के पास इस त्रासदी पर आंसू बहाने के लिए समय नहीं है। बेचारा कश्मीरी, पाकिस्तान ने उसको मरवा दिया।

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