लोकतांत्रिक ताकतों में व्यापक एकता जरूरी, बिखराव से मिलता है विरोधी ताकतों को मौका

समतावादी और लोकतांत्रिक सोच रखने वाली राजनीतिक ताकतें अपनी काफी ऊर्जा आपसी झगड़ों में ही खर्च कर देती हैं। ऐसे में प्रतिकूल सोच की ताकतों को आगे निकलने का अवसर मिल जाता है, जिससे उन राजनीतिक दलों को ही नहीं, बल्कि समतावादी सोच को भी गहरा नुकसान पहुंचता है।

फोटोः सोशल मीडिया
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भारत डोगरा

हाल में हुए ब्राजील के राष्ट्रपति चुनाव में एक बार फिर स्पष्ट हुआ कि समतावादी लोकतांत्रिक ताकतों के बिखराव के कारण ऐसे तत्त्वों को आगे आने का मौका मिलता है जो न केवल समतावादी सोच, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए भी प्रतिकूल हैं। इसलिए लोकतंत्र की राह पर न्याय और समता को आगे बढ़ाने वाली राजनीतिक ताकतों को अपने छोटे-मोटे भेदभाव मिटा कर कुछ अधिक व्यापक उद्देश्यों के लिए एकता स्थापित करनी चाहिए।

अक्सर देखा गया है कि काफी हद तक एक जैसे कार्यक्रम और उद्देश्य रखने वाली अनेक राजनीतिक ताकतें अपनी काफी ऊर्जा आपसी झगड़ों में ही खर्च कर देती हैं। कभी नेत्तृत्व को लेकर तो कभी अहं के कारण या कभी सीटों के बंटवारे को लेकर उनमें आपसी समझौते नहीं हो पाते हैं। इन सभी ताकतों के लिए स्थिति बेहद प्रतिकूल हो जाने पर भी वे कई बार इन आपसी विवादों को हल नहीं कर पाते हैं। ऐसी स्थिति में उनके विरोधी ताकतों को तेजी से आगे निकलने का अवसर मिल जाता है। ऐसे में कुछ राजनीतिक दलों की ही नहीं, बल्कि समतावादी सोच को ही नुकसान पहुंचता है, जबकि अधिकांश लोग समतावादी सोच को आगे बढ़ाना चाहते हैं।

इसलिए अब यह बहुत जरूरी हो गया है कि विभिन्न देशों की जरूरतों के अनुसार ऐसे सारे राजनीतिक दल संकीर्ण सोच से ऊपर उठकर ऐसे व्यापक गठबंधनों को बनाने का प्रयास करें जो छोटे-मोटे आपसी मतभेदों से ऊपर उठकर समतावादी सोच की सरकार बना सकें और उन्हें सफलतापूर्वक चला भी सकें। इसके लिए न्याय और समता पर आधारित साझे कार्यक्रम बनाना बहुत जरूरी है जो इन गठबंधनों का मार्गदर्शन करें, उनके समर्थकों की सोच को स्पष्ट रुख दें और साथ ही मतदाताओं के प्रति उनकी जवाबदेही भी सुनिश्चित करें।

ऐसे साझे कार्यक्रमों को बनाने में इस महत्त्वपूर्ण सोच का समावेश जरूरी है कि अब पर्यावरण रक्षा का महत्त्व पहले से कहीं बढ़ गया है। अनेक संदर्भों में अब यह जीवन-मरण का सवाल बनता जा रहा है। विश्व के अनेक जाने-माने वैज्ञानिक बार-बार यह चेतावनी दे रहे हैं कि धरती की जीवनदायिनी क्षमता ही खतरे में है। इसलिए अगर जनहितकारी राजनीति करनी है तो समतावादी सोच का पर्यावरण की रक्षा से मिलन करना बहुत जरूरी हो गया है।

इसी तरह स्थानीय और विश्व स्तर पर अमन-शांति का महत्त्व अब पहले की अपेक्षा कहीं अधिक बढ़ गया है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि हथियारों की विनाशक क्षमता बहुत बढ़ गई है और युद्ध, गृह युद्ध और आतंकवाद अब बहुत थोड़े से समय में पहले के दीर्घकालीन युद्धों से भी अधिक विनाश कर सकते हैं। इसलिए हर स्तर पर अमन-शांति के लिए बढ़ती प्रतिबद्धता मानवता के लिए एक बड़ी जरूरत बन गई है।

अलग-अलग देशों की राजनीतिक ताकतें अपने-अपने देश की परिस्थितियों के अनुसार जब साझे कार्यक्रम बनाएं तो उन्हें विश्व स्तर पर अमन-शांति और पर्यावरण रक्षा के उद्देश्यों का समावेश अपने कार्यक्रम में अवश्य करना चाहिए, क्योंकि इसके बिना जनहित के व्यापक लक्ष्य प्राप्त हो ही नहीं सकते हैं।

इस समय पूरा विश्व एक बेहद नाजुक दौर से गुजर रहा है और ऐसी स्थिति में संकीर्ण सोच से ऊपर उठकर कुछ महत्त्वपूर्ण शुरुआत करना जरूरी है। विभिन्न समतावादी राजनीतिक ताकतों को इसके लिए समुचित तैयारी करनी चाहिए। उद्देश्य केवल सत्ता प्राप्त करना नहीं है बल्कि बेहद कठिन दौर में इस सत्ता का उपयोग सबसे जरूरी और सार्थक उद्देश्यों के लिए करना भी है। जो राजनीतिक ताकतें इस व्यापक और सार्थक सोच के आधार पर प्रयास करेंगी, विश्व इतिहास के इस संवेदनशील दौर में उन्हें ही सफलता प्राप्त होगी और विश्व इतिहास में उनकी उपलब्धि दर्ज होगी। यह समय निश्चित तौर पर ही संकीर्ण सरोकारों, अहं और व्यक्तिवाद का नहीं है। समय की मांग को समझते हुए समतावादी राजनीतिक दलों को व्यापक सार्थक उद्देश्यों की ओर बढ़ना चाहिए और समान उद्देश्यों की ताकतों से एकता स्थापित करनी चाहिए।

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