विष्णु नागर का व्यंग्य: मोदी-शाह की जोड़ी ने संविधान की ‘रक्षा’ के लिए अपनाया गजब तरीका!

लोग आरोप लगाते हैं कि संविधान की मर्यादा सुरक्षित नहीं है। याद रखिए, भिक्षुवेश में आए रावण ने ‘लक्ष्मण रेखा’ पार नहीं की थी, सीता से ही कहा था कि देवी, भिक्षा इससे बाहर आकर दो। इस प्रकार सीता ने ‘लक्ष्मण रेखा’ का उल्लंघन किया, तो बेचारे इसमें रावण का क्या दोष कि वह सीता का अपहरण करके ले गया!

फोटो: सोशल मीडिया
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विष्णु नागर

बहुत खेल किया मोटा भाई आपने, छोटा भाई आपने भी गजब ही किया और महामहिम भाई आपने भी जान ही लड़ा दी। उत्सव भी मनाया दिल्ली में येदुयुरप्पा जी की जीत का आपने, उन्हें करीब 48 घंटे तक मुख्यमंत्री भी बनाये रखा। उनकी सरकार के वास्ते खरीद-फरोख्त का बाजार भी लगाया,100 करोड़ तक विधायकों की कीमत लगाई यानी संविधान और लोकतंत्र की 'रक्षा' के लिए सबकुछ किया मगर 'माल' आया नहीं नकदी पड़ी रही, यह कितने दुख की बात है। छोटा-मोटा भाई इस बार आपसे कामयाबी का फासला बहुत रहा, यह परम यानी शरम आश्चर्य की बात है!

कोई बात नहीं, संविधान और लोकतंत्र में आपकी 'आस्था' ठीक इसी तरह बनी रही तो एक दिन आपको तो क्या, मगर लोकतंत्र को कुछ न कुछ सफलता जरूर मिलेगी। उसकी सांस जो रुकी हुई है, शायद फिर से धीरे धीरे चलने लगे। देश भर में 'अवसरवादी' गठबंधन बनने लगें और आपकी चाल, आपका चरित्र और आपका चेहरा साफ-साफ दिखने लगे!

आप आश्वस्त रहें मोटा-छोटा भाई, महामहिम भाई, इतना सब करके-करवाके भी आपने भारतीय लोकतंत्र और संविधान का कुछ नहीं बिगाड़ा। बस उस संविधान के चेहरे पर एक काला धब्बा और लगा दिया, उसके कुछ पेज फाड़कर दिखा दिए, कुछ जलाकर भी दिखा दिए, यह आपका डेली रूटीन है। बाकी कुछ भी तो नहीं किया आपने! हां, यह भी किया कि संविधान की किताब पर,जहां पंडित नेहरू और बाबा साहेब के हस्ताक्षर हैं, वहां ऐसा लगने लगा कि जैसे 'साहब' और उनके 'मुसाहिब' के हस्ताक्षर हों। बाकी तो कुछ नहीं किया। महामहिम जी इसी से खुश हैं, क्योंंकि साहेब यही होते हुए तो देखना चाहते थे,अपनी लॉयल्टी इस तरह प्रूव करके महामहिम प्रसन्न हैं। सुप्रीम कोर्ट ने उनका फैसला बदल दिया, विधानसभा ने उनका निर्णय पलट दिया तो पलट दिया। उन्होंने तो अपना काम कर दिया, बाकी मोटा-छोटा भाई जानें!

इससे लोकतंत्र और संविधान को कुछ नहीं हुआ है। देखिए सारे संवैधानिक पद भरे हुए हैं। राष्ट्रपति हैं, उपराष्ट्रपति हैं, प्रधानमंत्री हैं, मंत्री हैं, राज्यपाल हैं, मुख्यमंत्री हैं, उच्चतम न्यायालय है, उच्च न्यायालय हैं, संसद है, सांसद हैं, विधानसभाएं हैं, विधायक हैं, दलबदल है, उसे महामहिमों का आशीर्वाद भी प्नाप्त है। भागते विधायक हैं, पकड़ती पार्टियां हैं। सब तो है। हां, कुछ कम है, तो कुछ ज्यादा है। संविधान का सारा कारोबार अपनी जगह से कुछ खिसका हुआ है, लेकिन फिर भी है तो!समाजवाद लंबी छुट्टी पर गया है तो, 'गौरक्षा' तो इतनी ज्यादा है न कि शक करने का बहाना भर मिल जाए तो आदमी को खुशी-खुशी मारा जा सकता है, मगर गायों को सिर्फ सरकार की छांव तले, गौशाला में ही भूखा-प्यासा मारकर मारा जा सकता है, मरने दिया जा सकता है। तब हंगामा-हिंसा नहीं होती, भावनाएं आहत नहीं होतीं, लेकिन आदमी को जब चाहे, जहां चाहे, कभी भी, कैसे भी मारो। किसी की कोई भावना आहत नहींं होतीं। कुछ ही भावनाएं आहत होने के लिए आरक्षित की गई हैं।

फिर भी कर्नाटक सहित सारे देश में संविधान सुरक्षित है, बेहद ही सुरक्षित है, दिल्ली में तो बेहद बेहद सुरक्षित है। देखिए, अंबेडकर जी की प्रतिमाएं बनी हैं न जगह-जगह, खंडित भी हुई हैं न जगह जगह! इसका यही मतलब हुआ न कि संविधान सुरक्षित है और अब इन्हीं तरीकों से सुरक्षित भी रखा जाएगा। कोई और तरीका रहा नहीं। ये संघ-बीजेपी द्वारा आविष्कृत नई प्रिजर्वेशन टेक्नालॉजी है।

लोग आरोप लगाते हैं कि संविधान की मर्यादा सुरक्षित नहीं है। याद रखिए, भिक्षुवेश में आए रावण ने 'लक्ष्मण रेखा' पार नहीं की थी, सीता से ही कहा था कि देवी, भिक्षा इससे बाहर आकर दो। इस प्रकार सीता ने 'लक्ष्मण रेखा' का उल्लंघन किया, तो बेचारे इसमें रावण का क्या दोष कि वह सीता का अपहरण करके ले गया!

लोग कहते हैं संविधान की चिंदियां उड़ रही हैं। अब चिंंदियां हैं और हवा भी है तो बताइए चिंदियां उड़ेंगी नहीं तो क्या करेंगी! क्या उनके बस में है न उड़ना! अच्छा चलो चिंदियां उड़ रही हैं न, और आपको इसका दुख भी हो रहा है तो ऐसा करो एक-एक चिंदी उठाकर लाकर हमें दो और बताओ कि कौन सी कहां जुड़ेगी तो हम उन्हें सेलो टेप से जोड़ देंगे, सीधी सी बात है। फालतू में इतना रोना-गाना क्यों? और भी उड़ें चिंदियां तो उन्हें भी ले आना, उन्हें भी जोड़ देंगे। इट्स सो ईजी। वैसे संविधान में कहां लिखा है कि उसे चिंंदी-चिंदी नहीं किया जा सकता! जितना मोदीजी ने पढ़ा है, उसमें तो कहीं नहीं लिखा है। जितना अमित शाह ने पढ़ा है, उसमें भी कहीं नहीं लिखा है और इनसे ज्यादा पढ़ाकू आज देश में है कौन? ये दिन-दिन भर पढ़ते ही तो रहते हैं और बेचारे करते क्या हैं? और जहां तक संविधान का सवाल है, वह तो इन्हें वेद-पुराण की तरह अक्षर-अक्षर, पंक्ति-पंक्ति याद है। जहां से कहो, श्लोक शैली में सुना दें। जो है नहीं, वह भी लाकर बता दें और जो है उसे छूमंतर करके भी बता दें। संविधान पढ़ने के बाद ही इन्होंने अपने-अपने पद संभाले थे वरना इन्हें इनकार करना भी आता है। जब इन्हें पूरी तरह विश्वास हो गया कि हमीं हैं सिर्फ अब, जो संविधान की रक्षा कर सकते हैं तो ये मैदान में आए।आप क्या समझे और नहीं समझे तो भाड़ में गये या नहींं?रास्ता न मालूम हो तो बता दें!

बाकी संविधान को कुछ नहीं हुआ है, बस उसकी तबीयत पिछले चार साल से नासाज जरूर रहने लगी है, 100 से 102 डिग्री तक बुखार रहने लगा है। बताते हैं यह मोदियाना नामक कीटाणुओं के लगने से होने वाला रोग है। इसे जाने में पांच साल लग जाते हैं। मरीज़ कमजोर हो तो दस साल भी लग जाते हैं, लेकिन मरीज मरता नहीं। वैसे इस मरीज की हालत सुधर रही है कि पांच साल में चंगा हो जाएगा।

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Published: 20 May 2018, 7:59 AM