यूपी चुनाव: आखिर अंतिम दो चरणों में ही इतनी बेचैनी से क्यों जोर लगा रहे हैं मोदी?

अगर मान लें कि आखिरी चरणों की 111 सीटों में से बीजेपी 100 सीटें जीत जाती है तो इसका श्रेय मोदी को दिया जाएगा और अगर ऐसा नहीं होता तो ठीकरा योगी आदित्यनाथ के साथ ही बीजेपी के उन नेताओं के सिर फोड़ा जाएगा जो पहले से प्रचार कर रहे थे।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया

उत्तर प्रदेश चुनाव के आखिरी चरणों के लिए बीजेपी ने एक तरह से प्रधानमंत्री को प्रचार में झोंक सा दिया है। मोटे तौर पर पहले पांच चरणों के चुनाव के दौरान लगभग खामोश ही रहे प्रधानमंत्री का पूर्वांचल में मतदान से पहले जोर-शोर से प्रचार मैदान में उतरना एक तरह से बीजेपी की हताशा का ही संकेत देता है। तो क्या प्रधानमंत्री खुद उत्तर प्रदेश में पार्टी की हालत को लेकर चिंतित हैं या फिर यूपी के लिए उनके नेतृत्व का कोई और संदेश है?

मोदी अब प्रचार में उतर चुके हैं। शुरुआती दौर के चुनाव में तो उन्होंने अपनी बिजनौर रैली को भी बिना किसी विशेष कारण से रद्द भी कर दिया था। उसके बाद वे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद, नोएडा, हापुड़, मेरठ, बुलंदशहर, अमरोहा, संभल, रामुपर और लखीमपुर खीरी में प्रचार के लिए आए ही नहीं। पांचवें चरण के चुनाव तक केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ ही विपक्षी लहर से मोर्चा लेते दिखे। और अब जबकि राज्य की कुल 403 में से 292 सीटों पर मतदान हो चुका है, प्रधानमंत्री के मैदान में उतरने को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं।

क्या इसे आखिरी वक्त की जोरआजमाइश माना जाए ताकि उनकी पार्टी को कुछ सीटें हासिल हो सकें, क्या इसे उनकी साख की बात मानी जाए क्योंकि वे तो लोकसभा में उत्तर प्रदेश का ही प्रतिनिधित्व करते हैं और साबित करना चाहते हैं कि वे ही बीजेपी को किसी हताशा या निराशा से बचा सकते हैं? अगर विपक्षी दलों के नेताओं की बात मानी जाए तो पीएम अपनी पारटी के लिए एक सम्मानजनक संख्या तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव तो दावा करते हैं कि उनकी पार्टी पहले पांच चरणों में ही 200 का आंकड़ा पार कर चुकी है। हो सकता है कि वे इसे बढ़ा-चढ़ाकर बोल रहे हों, क्योंकि कम से कम 12 दर्जन ऐसी सीटें थीं जिन पर सपा और बीजेपी के बीच कांटे का मुकाबला देखने को मिला था।

लेकिन इतना तो यह है कि बीजेपी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खासा नुकसान हुआ है और उसी की भरपाई के लिए पूर्वांचल पर जोर लगाया जा रहा है।


कुछ राजनीतिक टिप्पणीकारों का कहना है कि दरअसल प्रधानमंत्री का फोकस विधानसभा चुनाव पर है ही नहीं, वह तो 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी के पेंच कसने का काम कर रहे हैं। कुछ लोग ऐसे भी है जिनका मानना है कि प्रधानमंत्री तो यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ को बौना साबित करना चाहते हैं। उनका कहना है कि जहां-जहां बीजेपी कमजोर थी, प्रदानमंत्री वहां से गायब रहे, लेकिन पूर्वांचल के अधिकतर हिस्सों में बीजेपी को मजबूत माना जाता है इसलिए वे वाराणसी और आसपास के इलाकों में खुलकर सामने आ गए हैं। ये सारे बिंदु सही हो सकते हैं, लेकिन कुल मिलाकर बात ब्रांड मोदी की है।

जाहिर तौर पर तो प्रधानमंत्री की पूर्वांचल में मौजूदगी पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों में जोश भरने के लिए हैं, लेकिन एक कारण यह भी हो सकता है कि इस बात को फिर से प्रतिष्ठापित किया जाएकि भगवा ब्रिगेड के लिए मोदी से बेहतर कोई और है ही नहीं।

वैसे यूपी में सत्तारूढ़ बीजेपी अभी तक तो यहीं जाहिर करती रही है कि पहले पांच चरणों में उसे कोई नुकसान नहीं हुआ है। माना जा रहा है कि कम से कम 70 सीटें ऐसी थीं जिन पर पार्टी कड़े मुकाबले में थी और इन सीटों पर जीत-हार का अंतर 5 हजार से कम वोटों का हो सकता है। बीजेपी को लगता है कि पार्टी चुनाव तो जीत रही है लेकिन स्थितियां वैसी नहीं रह गई हैं जैसी कि दो महीने पहले तक नजर आ रही थीं।

राजनीति विश्लेषकों का मानना है कि ‘मोट भाई’ के एक्शन में आए बिना और सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल किए बिना बीजेपी की सत्ता में वापसी मुश्किल ही नजर आती है। आखिरी चरणों के चुनाव में जिन सीटों पर चुनाव होना है, उनके नतीजों से जीत-हार का फैसला पूरी तरह नहीं हो सकता है, इसलिए इस बार का पूरा चुनाव बीजेपी के लिए मुश्किलों भरा रास्ता ही साबित हुआ है।

एक ऐसी पार्टी जो एक के बाद एक लहर पर सवार होकर सत्ता तक पहुंचती रही हो, उसके लिए स्थितियां ऐसी होना सामान्य बात नहीं है। अभी 111 सीटों पर मतदान बाकी है। अगर इन दोनों चरणों में बीजेपी क्लीन स्वीप करे तो ही सत्ता में उसकी वापसी का रास्ता कुछ हद तक सुगम हो सकता है।

लेकिन अगर वोटों की आखिरी गिनती के बाद मामला फंसता है तो बीजेपी निश्चित रूप से कर्नाटक 2.0, मध्य प्रदेश 2.1 या फिर गोवा 2.3 आजामा सकती है। वैसे अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। लेकिन सवाल घूम-फिरकर वही सामने आता है कि आखिर प्रधानमंत्री पहले पांच चरणों से क्यों गायब रहे और क्यों वे आखिरी दो चरणों पर पूरी ताकत झोंक रहे हैं।


प्रधानमंत्री वाराणसी और उसके आसपास के महाराजगंज, चंदौली, बल्लिया, गोरखपुर और कुशीनगर पर फोकस कर रहे हैं। यह वे जिले हैं जहां 2017 के चुनाव में बीजेपी को जबरदस्त कामयाबी मिली थी। इन इलाकों में योगी आदित्यनाथ की हिंदू युवा वाहिनी का भी प्रभाव है। योगी के प्रभाव को कम करने और मोदी को पार्टी का सबसे बड़ा प्रचारक और चेहरे के तौर पर पुनर्स्थापित करने में बीजेपी को भी मशक्कत करनी पड़ेगी।

मोदी के साथ एक बात और है, और वह यह कि वह कभी भी पार्टी की नाकामी अपने सिर नहीं लेते हैं। बीजेपी को लगता है कि वह आश्चर्यजनक रूप से आखिरी दो चरणों में पार्टी को जीत तक पहुंचा सकते हैं। अगर मान लें कि आखिरी चरणों की 111 सीटों में से बीजेपी 100 सीटें जीत जाती है तो इसका श्रेय मोदी को दिया जाएगा और अगर ऐसा नहीं होता तो ठीकरा योगी आदित्यनाथ, राजनाथ सिंह, जय प्रकाश निषाद, महेंद्र पांडेय जैसे नेताओं के सिर फोड़ा जाएगा। और इस दावो को मीडिया भी खूब हवा देगी।

ऐसे में कहा जा सकता है यूपी के आखिरी दो चरणों का चुनाव दरअसल मोदी की छवि को पुनर्स्थापित करने के लिए है।

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