हाल-ए-अफगानिस्तान: अमेरिका ने अपनी शतरंजी चाल में छोड़ी है अफगानिस्तान में इस्लामी आतंकियों की फौज

अफगानिस्तान से सोवियत संघ को निकाल बाहर करने के लिए अमेरिका ने जो व्यूह रचना की, उसमें उसने उग्रवादी तत्वों को पाला-पोसा और उनका इस्तेमाल किया। फिर जब यही तत्व बागी हो गए तो अमेरिका को अपने ही बोए कांटे को हटाने में पसीने छूट गए।

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सईद नक़वी

सौर क्रांति या अप्रैल, 1978 में हुए तख्तापलट ने अफगान कम्युनिस्टों, खल्क और परचम को सत्ता में ला दिया। यह युगांतरकारी घटना अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के उकसावे पर हुए असफल दुस्साहसी प्रयासों का परिणाम थी। ईरान के शाह के कुख्यात सावक ने इस अभियान का नेतृत्व किया था। कम्युनिस्ट प्रधानमंत्री नूर मोहम्मद तर की की पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल होने के लिए मैं काबुल में था। इंडियन एक्सप्रेस ने मुझे इस मौके को कवर करने के लिए भेजा था और तख्तापलट पर मेरा आलेख अखबार के संपादकीय पन्ने पर प्रकाशित हुआ था।

जिमी कार्टर के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जबिग्न्यू ब्रेजिंस्की को एक ऐसी वैश्विक व्यवस्था कायम करने का जिम्मा दिया गया था जिसमें “क्षेत्रीय तौर पर रोब-दाब रखने वालों” की अहम भूमिका हो। ब्रेजिंस्की के मुताबिक, शाह मजबूत क्षेत्रीय ताकत थे और उन्होंने सावक को काबुल में अभियान चलाने की शह दे दी जहां मार्क्सवादी “नुमा” मोहम्मद दाऊद साफ तौर पर मास्को की ओर झुकते जा रहे थे। दाउद के आसपास के कट्टर कम्युनिस्टों के सफाये की तैयारी हुई। जैसा कि तमाम खुफिया अभियानों के मामले में होता है, सावक द्वारा रची गई साजिश लीक हो गई। कम्युनिस्ट ट्रेड यूनियन नेता मीर अकबर खैबर अनजाने में मारे गए और इससे देश भर के कम्युनिस्ट सावक योजना को लेकर चौकन्ने हो गए।

हाल-ए-अफगानिस्तान: अमेरिका ने अपनी शतरंजी चाल में छोड़ी है अफगानिस्तान में इस्लामी आतंकियों की फौज

सावक की योजना की पहले ही काट करने की मंशा के साथ सैन्य अधिकारी असलम वतनजर और अब्दुल कादिर डगरवाल ने बख्तरबंद गाड़ियां जुटाईं और राष्ट्रपति भवन पर धावा बोल दिया। दाऊद और उसके रिश्तेदारों को मार डाला गया और इस तरह कम्युनिस्टों ने सत्ता हासिल कर ली। कम्युनिस्ट शासन वाले काबुल ने देश में सोवियत संघ के लिए मार्ग प्रशस्त किया। इसे देखते हुए एक बार फिर ब्रेजिंस्की सक्रिय हुए। उन्होंने पड़ोसी पाकिस्तान का इस्तेमाल करते हुए अफगानिस्तान में सामरिक रूप से एक रणनीतिक अंत के बारे में सोचना शुरूकिया।


अमेरिका, सऊदी अरब और पाकिस्तान अपने-अपने मकसद के लिए एकजुट हो गए। सोवियत संघ को अफगानिस्तान से खदेड़ने के लिए अमेरिका सैन्य प्रशिक्षण और साजो-सामान मुहैया कराने वाला था। सउदी और पाक भी चाहते थे कि सोवियत संघ अफगानिस्तान से बाहर जाए लेकिन उनका अपना- अपना एजेंडा था। ईरान में एक साल पहले ही शिया अयातुल्लाह सत्ता में आए थे और इस्लाम के अरबी संस्करण के जरिये अयातुल्लाह को कमजोर करने के लिए सऊदी अरबों डॉलर खर्च करने के लिए तैयार था। यह सब पाकिस्तान के राष्ट्रपति जिया उलहक के मनमाफिक था। वह अपने निजाम ए मुस्तफा, या इस्लामी कानूनों के आधार पर सरकार बनाने की योजना को आगे बढ़ा सकते थे। कुल मिला कर ईरान में अरबी इस्लाम के फलने-फूलने से पाकिस्तान में प्रचलित इस्लाम भी उसी ढर्रे में ढल जाता और इस तरह भारत जिस धर्मनिरपेक्षता और मिश्रित संस्कृति को बढ़ावा दे रहा था, उससे पाकिस्तान की अवाम दूर हो जाती। अगर जिया आज जिंदा होता तो भारत में आ रहे सामाजिक बदलाव को देखकर खुश ही होते।

नतीजा यह हुआ कि अफगानिस्तान सीमा पर पाकिस्तानी इलाके में सैकड़ों मदरसे वगैरह खुल गए और वहां मुजाहिदीन तैयार किए गए जिन्होंने आखिरकार 1989 में सोवियत संघ को बाहर निकालने में मदद की। उसके एक साल बाद ही सोवियत संघ टूट गया और जाते-जाते अमेरिका ने अफगानिस्तान में इस्लामी आतंकियों की फौज छोड़ दी जिनके पास कोई काम नहीं रह गया था और उन्होंने कश्मीर, मिस्र, अल्जीरिया का रुख किया।

इन सब बातों को हिलेरी क्लिंटन ने कांग्रेस की सुनवाई में खोलकर सामने रखा। उनका बयान अब भी यूट्यूब पर उपलब्ध है। कुछ साल पहले, रूसी उप विदेश मंत्री मोर्गुलोव इगोर व्लादिमीरोविच ने एक संवाद में कहा था कि सीरिया से इस्लामी उग्रवादियों को हवाई मार्ग से उत्तरी अफगानिस्तान भेजा जा रहा है। अगले हफ्ते ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खुमैनी ने तेहरान में जुमे की नमाज के बाद इसी आरोप को दोहराया।

क्या यह सच है?

1996 में एक बार फिर अमेरिका ने तालिबान के सिर पर हाथ रख दिया। 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद हमारे साउथ ब्लॉक का एक तबका अमेरिकी खेमे में शामिल हो गया था और वह तालिबान के उभरने का हिमायती था। सबको एक ही बात समझाई गई थी: तालिबान अफगानिस्तान को नियंत्रित करेगा और अमेरिका तालिबान को।


अलकायदा के संस्थापक ओसामा बिन लादेन ने 1980 के बाद से एक ही मिशन के साथ अफगानिस्तान को अपना मुख्यालय बनाया था: सोवियत संघ को खदेड़ने में मदद करना। उसके लिए एक मुस्लिम देश पर सोवियत संघ का कब्जा इस्लाम का अपमान था। सोवियत संघ को खदेड़ने के बाद बिन लादेन ने अपनी मातृभूमि में विदेशी सैनिकों और तेल कंपनियों पर नजरें गड़ा दीं। बिन लादेन ने रियाद के खिलाफ विद्रोह का झंडा फहराया, इसके तुरंत बाद जुहैमान अल-ओतैबी और उसके अल-इखवान समूह ने मक्का की मस्जिद पर 20 दिनों तक कब्जा करके जैसे भूचाल ला दिया था। जनवरी, 2001 में जॉर्ज डब्ल्यू बुश के व्हाइट हाउस में प्रवेश करते ही, बुश परिवार के साथ सऊदी शाही परिवार के मजबूत संबंध सभ्यताओं के संघर्ष की वजह बने। आठ महीने बाद 9/11 हुआ और फिर नए-नए विरोध की वजह से अमेरिका ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया।

बताया जा रहा है कि यह पहली बार है जब अमेरिका द्वारा प्रशिक्षित सैनिकों ने तालिबान के खिलाफ युद्ध नहीं लड़ा। लेकिन वियतनाम में क्या हुआ? गूगल कर के देखें। आज के रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन की सीरिया के उग्रवादियों को प्रशिक्षित करने की 50 करोड़ डॉलर की योजना के सिलसिले में किस तरह सीनेट आर्म्ड सर्विसेज सेलेक्ट कमिटी ने किस तरह खिंचाई की थी।

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