महिलाओं पर हिंसा के नए आयाम, सोशल मीडिया ने नया औजार थमाया, AI ने और अधिक घातक बना दिया
भारत में महिलाओं की स्थिति अफगानिस्तान जैसी ही है, बस अंतर यह है कि तालिबानी महिलाओं का खुलेआम विरोध करते हैं जबकि हमारे देश में सत्ता महिला सशक्तीकरण का दावा करते हुए उनपर हिंसा करती है।

मानव सभ्यता की शुरुआत से ही हिंसा और वर्चस्व का दौर चल रहा है। हरेक सामाजिक और तकनीकी विकास के साथ ही उम्मीद रहती है कि हिंसा का पैमाना कुछ कम होगा और समानता कुछ बढ़ेगी, पर होता इसके ठीक विपरीत है। समाज का सशक्त वर्ग हमेशा अपने वर्चस्व को स्थापित करने के लिए हिंसक स्वरुप लेता है, और इसका सबसे सटीक उदाहरण महिलाओं पर हिंसा है। समाज जितनी तरक्की करता है, महिलाओं पर हिंसा का पैमाना उतना बढ़ता जाता है। यू एन वीमेन की एक रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं पर शारीरिक हिंसा का दौर खत्म भी नहीं हुआ था तभी पुरुषवादी समाज को सोशल मीडिया ने ऑन-लाइन हिसा का एक नया औजार थमा दिया। इसके बाद आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस ने इस हिंसा को पहले से भी अधिक घातक बना दिया। अब स्थिति यह है कि महिलाओं पर ऑन-लाइन हिंसा ही उनपर शारीरिक प्रताड़ना और हिंसा को बढाने लगी है।
सोशल मीडिया के चमत्कारिक विकास ने पूरी दुनिया में कट्टर दक्षिणपंथी विचारधारा को नए सिरे से उभारा है और आज लगभग पूरी दुनिया से प्रजातंत्र लगभग खत्म हो गया है। यह दौर निरंकुश शासकों का है और निरंकुश शासकों के दौर में अपेक्षाकृत कमजोर वर्ग, जिसमें महिलायें भी शामिल हैं, को लगातार कुचला जाता है। हमारे देश में तो महिलाओं पर हिंसा के नए आयाम स्थापित किये जा रहे हैं। यहां तो सत्ता पक्ष या इससे सम्बंधित राजनैतिक दलों के शीर्ष से लेकर छुटभैये नेता तक सभी महिलाओं से सम्बंधित हिंसक भाषा के सन्दर्भ में एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं। अमेरिका जैसे दूसरे देशों में लम्बे समय से महिलाओं को चुनावी प्रक्रिया से बाहर रखने की मांग दक्षिणपंथी रिपब्लिकन और तमाम क्रिश्चियन आर्गेनाईजेशन करते रहे हैं। डोनाल्ड ट्रम्प की सत्ता में वापसी के बाद यह मांग नए सिरे से शुरू की गयी है।
हमारे देश में महिलाओं को चुनावी प्रक्रिया से बाहर रखने का अपना तरीका है- यहां रिश्वत से सत्तापक्ष महिलाओं को अपना गुलाम बनाती है। वर्ष 2014 के बाद से हरेक चुनाव में महिलाओं पर हिंसा में वृद्धि के साथ ही उन्हें आर्थिक लालच दिया गया है। बिहार चुनाव तक यह आर्थिक लालच विशुद्ध तौर पर खुलेआम रिश्वत में बदल गया है। इस रिश्वत का सीधा सा अर्थ है महिलाओं के बल पर सत्ता पर काबिज होना और फिर महिलाओं का उन्मुक्त दमन। यह मानसिक तौर पर महिलाओं को गुलाम बनाने का एक नया तरीका है। कुछ वर्ष पहले महिला जन प्रतिनिधियों के सम्मलेन में प्रधानमंत्री मोदी जन-प्रतिनिधियों को यह बता रहे थे कि जब खाना बनाते समय महिलाओं की उंगली जलती है तब वे पति के सामने कैसी प्रतिक्रिया देती हैं।
महिलाओं की भारत में दुर्दशा का एक पैमाना वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम द्वारा प्रकाशित ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स है। इसके वर्ष 2025 के संस्करण में कुल 148 देशों में हम 131वें स्थान पर हैं। वर्ष 2013 में हम इस इंडेक्स में 101वें स्थान पर थे। प्रधानमंत्री मोदी महिला सशक्तीकरण की जितनी भी बातें करते हैं हम इस इंडेक्स में उतना ही नीचे गिरते जाते हैं। वर्ष 2023 में हम 127वें, 2024 में 129वें और अब 131वें स्थान पर हैं। सरकार की नीतियों की आलोचना करने वाली हरेक महिला को सत्ता पक्ष के नेताओं और समर्थकों द्वारा खुले आम बलात्कार और ह्त्या की धमकी दी जाती और सत्ता और न्यायालय उन्हें आतंकवादी करार देती है- प्रधानमंत्री जी बस तमाशा देखते हैं और इस हिंसा को बढ़ावा देते हैं।
भारत में महिलाओं की स्थिति अफगानिस्तान जैसी ही है, बस अंतर यह है कि तालिबान महिलाओं का खुलेआम विरोध करते हैं जबकि हमारे देश में सत्ता महिला सशक्तीकरण का दावा करते हुए उनपर हिंसा करती है। प्रधानमंत्री मोदी ने राजनीति में महिलाओं के एक-तिहाई आरक्षण पर मोदी सरकार ने खूब ढिंढोरा पीटा, धन्यवाद मोदी जी के खूब पोस्टर लगाए गए, पर स्थिति यह है कि देश में महिला सांसदों और महिला मंत्रियों की संख्या हरेक चुनावों के बाद कम होती जा रही है।
यूएन वीमेन की रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर महिला पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और सामाजिक तौर पर सक्रिय महिलाओं और सोशल मीडिया पर इन्फ़्लुएंसर्स पर ऑन-लाइन हमले बढ़ते जा रहे हैं। लगभग 70 प्रतिशत महिलायें ऑन-लाइन हिंसा का शिकार हैं, पर महिला पत्रकारों के सन्दर्भ में यह 75 प्रतिशत है। इसमें से 42 प्रतिशत महिलायें ऑन-लाइन हिंसा के बाद शारीरिक प्रताड़ना और हिंसा की शिकार हुईं हैं। वर्ष 2020 में युनेस्को द्वारा कराये गए वैश्विक सर्वेक्षण में ऑन-लाइन हिंसा के बाद शारीरिक तौर पर प्रताड़ित महिलाओं की संख्या 20 प्रतिशत ही थी, यानि पिछले 5 वर्षों के भीतर ही ऐसी हिंसा में दुगुनी से भी अधिक वृद्धि हो गयी है।
वैश्विक स्तर पर ऑफलाइन और ऑनलाइन हिंसा के बीच का अंतर खत्म हो रहा है। अब तो आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस के व्यापक प्रसार ने महिलाओं के प्रति हिंसा को तेजी से बढाया है, इसमें सबसे घातक हथियार डीपफेक और संशोधित कंटेंट हैं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि हरेक सत्ता आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस को बढ़ावा दे रही है पर इसके घातक प्रभावों के नियंत्रण पर किसी का ध्यान नहीं है। जिन 70 प्रतिशत महिलाओं पर ऑन-लाइन हिंसा की गयी है उनमें से 25 प्रतिशत महिलाओं में हिंसक सामग्री आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस की मदद से तैयार की गयी थी। इससे सबसे अधिक प्रभावित सोशल मीडिया इन्फ़्लुएसर्स हैं, उनमें से 30 प्रतिशत महिलाओं पर हिंसक सामग्री एआई की मदद से तैयार की गयी थी।
महिलाओं पर हिंसक ऑनलाइन प्रहार के कारण बड़ी संख्या में महिलायें डिजिटल स्पेस से दूरी बनाने लगी हैं जिससे प्रजातंत्र के साथ ही अभिव्यक्ति की आजादी पर खतरा बढ़ने लगा है। ब्रिटिश स्कॉलर नीतिशा कॉल के अनुसार डोनाल्ड ट्रम्प, व्लादिमीर पुतिन और नरेंद्र मोदी जैसे शासक अपनी पुरुषवादी और बलशाली छवि बनाना चाहते हैं और इस छवि का मुख्य आधार कमजोर वर्ग पर अपनी निर्बाध हुकूमत को कायम करना है। महिलाओं को सत्ता द्वारा कमतर समझाने के सन्दर्भ में अमेरिका के रिपब्लिकन पार्टी के एक वर्ग की विचारधारा बिकुल सटीक लगती है- महिलाओं को इश्वर ने कमतर बनाया है, उन्हें इस तरीके से नहीं गढ़ा गया है कि वे युद्ध में हिस्सा ले सकें और राजनीति सबसे घातक युद्ध है। हमारे देश में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में पैर जमा चुकी दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी विचारधारा महिलाओं को कमतर और राजनीति को सबसे घातक युद्ध ही समझती है।
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