भारत में समाज का हिस्सा बन गयी कट्टरपंथी समूहों की हिंसा, विदेश मीडिया में मोदी सरकार और बीजेपी पर उठे सवाल

भारत में उन्मादी कट्टरपंथी समूहों की हिंसा और सरकार की नाकामी पर देश का मीडिया कितनी भी लीपापोती करे, लेकिन पूरी दुनिया में इसके चर्चे हो रहे हैं। कम से कम अब सरकार को शर्म आनी चाहिए कि उसने कैसे उन्मादी कट्टरपंथी समूह द्वारा हिंसा को वैध कर दिया है।

फोटोः सोशल मीडिया
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महेन्द्र पांडे

उन्मादी कट्टरपंथी हिन्दू समूहों द्वारा की जाने वाली हिंसा समाज का एक अंग बनती जा रही है। इसे सरकार का समर्थन है, प्रशासन का भी समर्थन है और पुलिस तो अधिकतर मामलों में इस समूह का हिस्सा ही बन जाती है। पुलिस, प्रशासन, सरकार और मीडिया द्वारा इसे भीड़ हिंसा का नाम दिए जाने के अनेक फायदे हैं।

भीड़ की पहचान नहीं होती और सबकुछ अज्ञात लोगों के नाम थोप दिया जाता है। बाद में यही अज्ञात चेहरे नेता बनकर विधानसभा और संसद में बैठते हैं और फिर ऐसे ही दूसरे अज्ञात चेहरों की वकालत करते नजर आते हैं। दरअसल तथाकथित गुजरात मॉडल से विकास की गुंजाइश हो या नहीं हो, उन्मादी कट्टरपंथी हिन्दू समूहों का फायदा जरूर हो रहा है।

भीड़ तो अलग जगह और उद्देश्य से आए लोगों का जमावड़ा होता है, जैसे मेले की भीड़ या फिर रेलवे स्टेशन की भीड़। भीड़ में सबका व्यवहार अलग होता है, मारपीट की दशा में कुछ लोग मारपीट को रोकने का प्रयास भी करते नजर आते हैं और इसमें सफल भी होते हैं। लेकिन पुलिस और मीडिया ने जिसे भीड़ हिंसा का दर्जा दिया है, वह तो एक उन्मादी, कट्टरपंथी, हिंसक समूह की योजनाबद्ध कार्यवाही है। ऐसी घटनाओं में पुलिस जिन्हें अज्ञात बताती है, सब एक-दूसरे को जानते हैं और बस एक ही मकसद से आते हैं। यह भी संभव है कि पुलिस और प्रशासन को इत्तला देकर आते हों।

इस तरह की हिंसा इतने बड़े पैमाने पर हो रही है कि आप इसपर कोई समाचार या लेख लिखते हैं और जब तक वह प्रकाशित होता है, तब तक इस बीच में एक-दो ऐसी घटनाएं और हो जाती हैं। इस तरह की हिंसा के समाचार हम इतने पढ़ चुके हैं कि अब तो कोई प्रभाव भी नहीं पड़ता, मानो यह भी एक सामान्य समाचार है जो रोज आता है।

जरा सोचिये, क्या अब आप ऐसे समाचार से प्रभावित होते हैं या फिर आपका खून खौलता है? सब रोजमर्रा की जिन्दगी का हिस्सा हो चला है और धीरे-धीरे समाज का अभिन्न अंग बनता जा रहा है। सरकार और पुलिस के समर्थन से ऐसे लोगों को जो बल मिल रहा है, उससे तो यही लगता है कि ऐसी घटनाएं और बढेंगी और फिर समाचार बनना ही बंद हो जाएंगे जैसे पेट्रोल के बढ़े दाम अब समाचार नहीं बनाते।

केंद्र सरकार संसद में कहती है कि पुलिस और अपराध के मामले राज्य सरकारों के हैं, इसलिए वह इन मामलों पर कुछ नहीं कर सकती। पर, यही सरकार और प्रधानमंत्री पश्चिम बंगाल में जब किसी बीजेपी कार्यकर्ता की हत्या होती है, तब इसे खूब हवा देते हैं। झारखंड में उन्मादी कट्टरपंथी हिन्दू समूह और पुलिस की मिलीभगत से तबरेज अंसारी की हत्या के बाद अमेरिका के कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम के चेयरमैन टोनी पर्किन्स ने बयान जारी कर कहा था, “हम इस क्रूर हत्या की कठोर शब्दों में निंदा करते हैं। भारत सरकार को इस तरह की हिंसा रोकने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। ऐसे लोगों को जो किसी दंड के अभाव में सोचते हैं कि किसी भी धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय पर हिंसा कर सकते हैं, जवाबदेही के अभाव में केवल बढावा मिलेगा।”


जून के शुरू में इसी कमीशन की रिपोर्ट “एनुअल 2018 इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम रिपोर्ट” के अनुसार सत्तारूढ़ बीजेपी के वरिष्ठ सदस्य अल्पसंख्यकों के विरुद्ध भड़काऊ बयान देते रहते हैं और इससे प्रेरित होकर अतिवादी हिन्दू संगठन, जिनको सरकार और पुलिस का समर्थन मिलता है। कभी जय श्री राम के नाम पर तो कभी गाय के नाम पर खुलेआम अल्पसंख्यकों से मारपीट करते हैं और हत्या भी कर देते हैं। रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल जनवरी से नवंबर के बीच ऐसे 18 हमले किये गए जिसमें कम से कम 8 लोगों की हत्या सरेआम उन्मादी कट्टरपंथी हिन्दू समूह द्वारा की गयी। मारे गए सभी अल्पसंख्यक समुदाय के थे।

अब जरा हमारे देश की हकीकत भी देखिये, इस रिपोर्ट के आसपास के दिनों में ही झारखंड में तबरेज अंसारी की हत्या हो गयी और उनकी हत्या करने वाले पुलिस संरक्षण में आराम कर रहे हैं। असम के बारपेटा में भी जय श्री राम नहीं कहने पर एक युवक की हत्या कर दी गयी। मुंबई के टैक्सी ड्राईवर फजल उस्मान खान को भी उन्मादी कट्टरपंथी समूह ने जय श्री राम नहीं कहने पर पीटा। कोलकाता के एक मदरसा शिक्षक हफीज मोहम्मद शाहरुख हलधर जब रेलगाड़ी में सफर कर रहे थे, तब पहले तो उनके पहनावे पर लोगों ने फब्तियां कसीं और फिर जय श्री राम नहीं कहने पर चलती रेलगाड़ी से उन्हें नीचे फेंक दिया गया। उत्तर प्रदेश में मदरसा के बच्चों पर हमला किया गया और बिहार में तीन लोगों की हत्या कर दी गयी

टाइम के 28 जून के अंक में और रायटर की 19 जुलाई की खबर में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि इन सब घटनाओं को सरकार का समर्थन प्राप्त है, क्योंकि यही नारा अब संसद में धक्कामुक्की के बीच सुनाई देता है। बीजेपी के नेता खून कर देने की सरेआम धमकी देते हैं। इन दोनों समाचारों के अनुसार यह सब उस समाज की हकीकत है जहां प्रधानमंत्री “सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास” का नारा गढ़ते हैं।

संसद में प्रधानमंत्री उस संविधान पर नतमस्तक भी होते हैं जिसके अनुसार धर्मनिरपेक्षता हमारे देश का मूल मंत्र है। नए सांसदों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री जी पिछली सरकारों को अल्पसंख्यकों की उपेक्षा का दोषी मानते हुए आह्वाहन भी करते हैं कि अब किसी के साथ अन्याय नहीं होगा। टाइम के अनुसार पिछले दस वर्षों में उन्मादी कट्टरपंथी समूहों द्वारा जितने लोगों की हत्या की गयी है, उसमें से 90 प्रतिशत से अधिक नरेन्द्र मोदी के शासनकाल में की गई है। रायटर की खबर में याद दिलाया गया है कि पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी हिंसा के लिए अलग से कानून बनाने का आदेश दिया था, जिसे सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया।

देश के मीडिया की तो हिम्मत नहीं हैं, लेकिन विदेशी मीडिया और संस्थान समय-समय पर देश में अल्पसंख्यकों पर सरकार समर्थित हिन्दू अतिवादी संगठनों द्वारा की जाने वाली हिंसा पर रिपोर्ट प्रकाशित करते रहे हैं। ह्यूमन राइट्स वाच नामक संस्था द्वारा पिछले वर्ष प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में गाय के नाम पर या इसी तरह के अन्य बहानों के नाम पर हिंसा की खुली छूट है। भीड़ द्वारा मारे गए लोगों में अधिकतर मुस्लिम या फिर अल्पसंख्यक लोग हैं और जो लोग ऐसी हिंसा करते हैं, उन्हें बचाने में स्थानीय प्रशासन, स्थानीय राजनेता और पुलिस सभी संलग्न रहते हैं।

रिपोर्ट में सरकार से अपील की गयी थी कि इस तरह की हिंसा में संलग्न लोगों को कड़ी से कड़ी सजा सुनिश्चित करे। गाय बचाने के नाम पर उन्मादी कट्टरपंथी समूह का रवैया अभी वही चल रहा है। रिपोर्ट के अनुसार मई 2015 से दिसंबर 2018 के बीच कम से कम 44 व्यक्ति गौ मांस के शक में या फिर गाय के व्यापार के शक में मारे जा चुके हैं। इन 44 व्यक्तियों में से 36 मुस्लिम थे। गाय और जय श्री राम का नाम लेकर उन्मादी कट्टरपंथी समूह का ऐसा तांडव नया चलन है।


साल 2014 से पहले के पांच वर्षों की तुलना में इसके बाद के चार सालों के दौरान जनता के चुने गए प्रतिनिधियों द्वारा साम्प्रदायिक भाषणों में 500 प्रतिशत का इजाफा हो गया है और ऐसा करने वाले अधिकतर प्रतिनिधि बीजेपी के हैं। गाय के नाम पर उन्मादी कट्टरपंथी समूह द्वारा हिंसा की 90 प्रतिशत से अधिक घटनाएं बीजेपी के सत्ता में आने के बाद हुई हैं और 66 प्रतिशत घटनाएं ऐसे राज्यों में हुईं, जहां बीजेपी का शासन था।

ह्यूमन राइट्स वाच की साउथ एशिया डायरेक्टर मीनाक्षी गांगुली के अनुसार इस तरह की घटनाओं की शुरुआत भले ही हिन्दू वोट बटोरने के लिए की गयी हो पर अब यह सब नियंत्रण के बाहर हो गया है, और निशाना अल्पसंख्यक बन रहे हैं। रिपोर्ट में इस तरह की 11 घटनाओं का विश्लेषण कर यह बताया गया है कि किन कारणों से ऐसे लोगों पर कार्रवाई नहीं की जाती। एक घटना में हत्या करने वाले ने यह बताया कि उसने हत्या की है, पर स्थानीय पुलिस ने उस स्टेटमेंट को कोर्ट में पेश ही नहीं किया। दूसरी घटना में उन्मादी कट्टरपंथी समूह को स्थानीय नेताओं का संरक्षण प्राप्त था इसलिए पुलिस ने मामला उठने ही नहीं दिया।

जून 2018 में जब उन्मादी कट्टरपंथी समूह ने गौ-मांस के नाम पर जब एक मुस्लिम को मार दिया तब पुलिस में इसे मोटरसाइकिल दुर्घटना का केस बना दिया। रिपोर्ट के अनुसार लगभग हरेक घटना में पुलिस का रवैया एक जैसा ही रहता है, शिकायत दर्ज नहीं करना, घटना की छानबीन नहीं करना, सबूतों को नष्ट करना और यहां तक कि हत्या में खुद शामिल हो जाना। घटना की तत्परता से तहकीकात कर मुजरिम को पकड़ने के बजाय पुलिस पीड़ितों को, गवाहों को या फिर पीड़ित के सगे-संबंधियों को ही मुजरिम ठहराने के लिए पूरा जोर लगा देती है।

इंडिया स्पेंड नामक संस्था की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 8 साल (2010 से 2017) के दौरान गायों के नाम पर उन्मादी कट्टरपंथी समूह द्वारा कुल हमलों में से 51 प्रतिशत मुस्लिम थे, जिन्हें निशाना बनाया गया और इसमें मरने वाले कुल 25 व्यक्तियों में से 84 प्रतिशत मुस्लिम थे। पिछले 8 साल के दौरान इस तरह की जितनी भी घटनाएं हुईं उनमें से 97 प्रतिशत घटनाएं मई 2014 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद हुईं। ये सभी तथ्य इतना तो उजागर करते हैं कि गाय या दूसरे मामलों में अतिवादी हिन्दू संगठनों के सदस्य उन्मादी कट्टरपंथी समूह की शक्ल में मुस्लिमों और अल्पसंख्यकों को मार रहे हैं और इन्हें सरकारी समर्थन प्राप्त है।

वाशिंगटन पोस्ट में 23 जुलाई 2018 को प्रकाशित समाचार के अनुसार पिछले कुछ महीनों के दौरान भीड़ ने 25 व्यक्तियों की हत्या बच्चा चुराने के बहाने से की और 20 लोगों की हत्या गाय के नाम पर कर दी। इस समाचार में राहुल गांधी के ट्वीट, “मोदी के क्रूर भारत” का भी जिक्र है। हिन्दू अतिवादी संगठन अपने आप को गौ-रक्षक बताते हैं और इनका संबंध प्रधानमंत्री मोदी की पार्टी बीजेपी से है।

21 जुलाई 2018 के द गार्डियन के अनुसार हिन्दू-अतिवादी संगठनों का वर्चस्व बढता जा रहा है। ज्यादातर राज्यों में मांस के लिए गाय को मारने पर प्रतिबंध है, फिर भी 2014 में नरेन्द्र मोदी की हिन्दू राष्ट्रवादी सरकार आने के साथ ही गौ-रक्षा के नाम पर हिंसाएं तेजी से बढी हैं। मानवाधिकार संगठन और मुस्लिमों का कहना है कि मोदी समेत सरकार के अन्य मंत्री इसकी निंदा करने से बचते हैं और पुलिस लचर रवैया अपनाती है।


खबर में असदुद्दीन ओवैसी के ट्वीट को भी शामिल किया गया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि भारत में गाय को जीने का मौलिक अधिकार तो है, पर मुस्लिमों को नहीं। मोदी सरकार के 4 साल उन्मादी कट्टरपंथी समूहों की हिंसा के हैं। मोदी सरकार के दौरान हिन्दू अतिवादी संगठन एक प्राइवेट मिलिट्री जैसा काम कर रहे हैं और कानून का उन्हें कई डर नहीं है। मावाधिकार संगठन आक्षेप लगा रहे हैं कि हिन्दुओं की हत्यारी उन्मादी कट्टरपंथी समूह उसी पार्टी से ताल्लुक रखती है जो 2014 में सत्ता में आयी।

स्पष्ट है कि ऐसी खबरों पर देश का मीडिया कितनी भी लीपापोती करे, पूरी दुनिया में भारत के उन्मादी कट्टरपंथी समूह की हिंसा और सरकार की नाकामी के चर्चे हैं। अनेक जन-अधिकार कार्यकर्ताओं के अनुसार अब तो सरकार को शर्म आनी चाहिए कि उसने कैसे उन्मादी कट्टरपंथी समूह द्वारा हिंसा को वैध कर दिया है। पर, इस सरकार से शर्म की आशा करना बेमानी है, कम से कम पिछले पांच वर्षों का अनुभव तो यही साबित करता है।

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