विष्णु नागर का व्यंग्य: भाइयों-बहनों मैं वही बातें कहूंगा, जो पहले भी कह चूका हूं, आगे भी कहूंगा और कहकर भूल जाऊंगा!

सबसे पहले तो मैं देश की जनता से क्षमा मांगता हूं कि मैंने इतने सालों तक उससे झूठ ही झूठ बोला। मैं करता भी क्या? मैं सफलता की एक से एक नई सीढ़ियां चढ़ना चाहता था। मेरी विचारधारा ने भी यही सिखाया था कि उद्देश्य पाने के लिए दुनिया का बड़ा से बड़ा झूठ बोलना भी ईश्वर की आराधना है।

फोटो: सोशल मीडिया
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विष्णु नागर

भाइयों-बहनों

आज आजादी की पचहत्तरवीं वर्षगांठ पर मैं सभी देशवासियों का अभिनंदन करता हूं। हम आज आजादी के 76वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। इस अवसर पर मैं सभी देशवासियों के मंगल भविष्य की कामना करता हूं। सब यानी सब। हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई, पारसी सब। पिछड़े, दलित, आदिवासी सब। उत्तर से लेकर दक्षिण तक सब। पूर्व से लेकर पश्चिम तक सब। एक- एक हिंदुस्तानी। एक -एक आदमी, औरत, बच्चा-बच्ची सब।

आज मैं हमेशा की तरह लंबी- चौड़ी हांकने नहीं आया हूं। वह मैं काफी कर चुका। आठ साल से यहां, इस शहर में भी यही सब तो किया है। आज के भाषण के लिए मैंने विशेष तैयारी की है। कई रातों तक अपने आप से लड़ा हूं। आराम से सोया नहीं हूं। वही सब करना होता, जो मैं करता आया हूं तो वह तो मेरे बांये हाथ का खेल था। मैं कुछ अलग कहने और करने के इरादे से यहां आया हूं। मेरे घनिष्ठ से घनिष्ठ भी सोच नहीं सकते, जो मैं आज यहां कहने जा रहा हूं। उन्हें तो यही मालूम है कि मैं आज देश के करोड़ों देशवासियों वही बातें कहूंगा, जो मैं पहले भी कहता आया हूं,आगे भी कहूंगा और कहकर भूल जाऊंगा।

सबसे पहले तो मैं देश की जनता से क्षमा मांगता हूं कि मैंने इतने सालों तक उससे झूठ ही झूठ बोला। मैं करता भी क्या? मैं सफलता की एक से एक नई सीढ़ियां चढ़ना चाहता था। मेरी विचारधारा ने भी यही सिखाया था कि उद्देश्य पाने के लिए दुनिया का बड़ा से बड़ा झूठ बोलना भी ईश्वर की आराधना है। आदत ही ऐसी पड़ गई है कि मेरे मुंह से झूठ के अलावा कुछ निकलता नहीं। कोशिश करूं तो मुंह जाम हो जाता है। जबान लड़खड़ा जाती है। सिर घूमने लगता है। चक्कर आने लगते हैं। काफी अभ्यास किया मैंने पिछले दिनों कि आज इस जगह से केवल सच बोलूं। माफ़ कीजियेगा, अगर फिर भी आदतन झूठ बोलने लग जाऊं पर कोशिश करूंगा कि ऐसा न हो।

तो क्षमा मैं इसलिए मांगने आया हूं कि मैंने अपनी छवि बनाने के अलावा इन वर्षों में कुछ किया नहीं। करने का नाटक खूब किया और अभिनय की कला को इतने उच्च स्तर तक पहुंचाया कि लोग उसे ही यथार्थ समझने लगे, समझाने लगे। हर गली, हर चौराहे पर अपनी फोटो देखने का मुझे खूब शौक है। जो भी मंच मिला, उसका इसके लिए इस्तेमाल किया ‌। कोई बस में नहीं आया तो उसकी गर्दन पर चढ़ कर मनमर्जी का काम करवा लिया। जिनके लिए सचमुच काम किया, उनके नाम- काम -धाम सब आप जानते हैं। चुना आपने है मगर काम मैंने उनके लिए किया क्योंकि उन्होंने ही अपने धन बल से मुझे लाकर यहां खड़ा किया था। वे न साथ देते तो मैं कहीं नहीं होता।

वे जानते थे कि मैं इस जगह पर एक बार बैठ गया तो फिर आसानी से उठूंगा नहीं और भूल से भी अपने मालिकों से गद्दारी नहीं करूंगा। करूंगा तो एक दिन में वे पटक कर मुझे गिरा देंगे। आज का सच यह है कि पैसे से ताकतवर कोई नहीं। कोई देश, प्रधानमंत्री, कोई राष्ट्रपति नहीं। पैसे की ताकत के बल पर कोई भी ऐंठ सकता है और मेरी ऐंठ मेरे पीछे लगे पैसे के कारण है। मैं नहीं, उस पैसे की ताकत ऐंठ रही है। मैं तो उसका चोला हूं। मेरा कमाल यह है कि जनता के एक वर्ग को मैंने अपना इतना दीवाना बना लिया है कि उसकी सोचने- समझने की क्षमता खत्म हो गई हे। उसे लगता है कि मैं जो कुछ भी करता हूं, देशहित में करता हूं, हिन्दुओं के हित में करता हूं जबकि मेरे सामने केवल अपना और उनका हित होता है, जिनका मैं वफादार सेवक हूं। स्वार्थ की दो दुनियाओं को मैंने इस कुशलता से संभाला है कि मेरे मालिकों को मेरा विकल्प ढूंढने से भी नहीं मिल रहा।

खैर। इस तरह मैंने आपके आठ साल पूरी तरह नष्ट किए हैं। जिनके पास नौकरी थी, कामधंधा था, उनमें से अधिकांश को सड़क पर ला दिया है। नफ़रत का ज़हर इतना बोया है कि भाई, भाई का न रहा, बहन, बहन की न रही। पति- पत्नी तक में दरार पड़ गई। अब हालत ये है कि महात्मा गांधी फिर से जन्म लें या जवाहरलाल नेहरू फिर से प्रधानमंत्री बनें तो भी ये कुछ नहीं कर पाएंगे। और मैं तो कुछ करना चाहता ही नहीं।बस लोगों के बीच खाइयां और दरारें चौड़ी कर सकता हूं।

मैं आज करोड़ों लोगों को हाजिर -नाजिर जानकर कह रहा हूं कि मैं इस पद पर रहूंगा तो यही कर सकता हूं और यही करूंगा। यही क्या कम है कि आज के दिन पूरी दुनिया के सामने मैंने सच बोल दिया। सच बोल दिया यानी सत्य आचरण भी करूंगा, इसकी कोई गारंटी नहीं। अब इस सत्य को उगलने के बाद मैं नहीं जानता कि मेरे मालिक मुझे नौकरी पर रखेंगे या नहीं। लोकतंत्र में जनता को ही हमारा सच्चा मालिक होना चाहिए। वह भी क्या करेगी, मुझे मालूम नहीं। जो भी हो, सच यही है और सत्ता का सच मुझसे अधिक कोई नहीं जानता। इस खेल को खेल कर इस पद पर पहुंचे चुके पुराने शूरमा भी आज यह बात मानेंगे।

आपसे झूठ बोला हूं कि मेरा क्या है एक दिन झोला उठा कर चल दूंगा पर सत्ता के सुख के आगे सब सुख बेकार हैं और मैं झोला उठा कर नहीं चल सकता। दो कदम भी मैं सत्ता के बगैर नहीं रह सकता। इन लाठियों के सहारे चल कर ही मैं तगड़ा और तना हुआ दीखता हूं लेकिन क्या यह रास्ता अब भी मेरे लिए खुला हुआ है? आज देश के लोगों से कहने के लिए मेरे पास यही था।आज का विषय मैं ही था।जय हिन्द,जय भारत कहूं, उससे पहले जरा रुकिए।

बैठिए अभी। जल्दी क्या है? जाते कहां हैं ? टीवी बंद मत कीजिए। असल भाषण तो अब शुरू होगा।यह तो मज़ाक था। 75वीं वर्षगांठ पर कुछ नया करने की कोशिश थी। कभी- कभी ऐसा करके लोगों को चौंकाना भी चाहिए।मजा आया न आपको! आप अपने नेता को अच्छी तरह जानते हैं।वह जो कल था,आठ साल पहले था,वही है,वही रहेगा।

तो भाइयों-बहनों...

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