विष्णु नागर का व्यंग्य: ये नहीं जानते शर्म भी कुछ होती है!

सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद, चुनावी बांड का यह खेला उजागर होने के बाद, जनता में कहीं कोई बड़ी हलचल दिखती है? प्रधानमंत्री क्या वैसे ही दनदनाते घूम नहीं रहे हैं? उन्हें पूरा भरोसा है कि कुछ होकर भी कुछ नहीं होगा। पढ़ें विष्णु नागर का व्यंग्य।

 (फोटो : Getty Images)
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विष्णु नागर

अच्छा हुआ, जो चुनावी बांड का भांडा फूट गया। बस इनके लिहाज से थोड़ी टाइमिंग गलत हो गई मगर कोई बात नहीं, ये इसे भी संभाल लेंगे। मीडिया इनका है, सरकार इनकी है, ईडी-सीबीआई इनकी है, ये मैनेज करना जानते हैं। इसे भी मैनेज कर लेंगे। ये तो महज भ्रष्टाचार का दाग़ है, ये तो खून का दाग भी धोना मैनेज कर चुके हैं वरना ये न जाने कब के आउट हो चुके होते। वैसे यह देश भी इतना पक्का, इतना मजबूत, इतनी मोटी चमड़ीवालों का है कि यहां भांडे फूटते रहते हैं और कुछ नहीं होता। कमाल यह है कि जिसका भांडा फूटता है, वह जनता का और अधिक लाड़ला बन जाता है। वह शेर की तरह दनदनाता है। उसे कोई डर, कोई चिंता, कोई घबराहट नहीं सताती।

इसलिए जो इस भंडाफोड़ से ज्यादा खुश हो रहे हैं, कृपया न हों। न कालेधन की रक्षा के लिए चंदा देनेवालों को, न इन लेनेवालों को कभी शर्म आई थी, जो अब आएगी? इनमें से कोई मुंह छिपाकर आज तक घर बैठा है? किसी को लाटरीकिंगों, शराब माफियाओं आदि काले पैसेवालों के चंदे से चलनेवाली राजनीति से नफरत कभी हुई, जो अब होगी? नहीं होगी। किसी ने आज से ऐसी गन्दी राजनीति छोड़ने की घोषणा की है? नहीं की है और न करनेवाला है। इनके भक्त, इनके कार्यकर्ता इनसे विमुख होंगे? नहीं होंगे। इस भंडाफोड़ से ईडी या इनकम टैक्स का छापा मार कर चंदा वसूली के इस खेल पर बंदिश लगेगी? नहीं लगेगी। वह कंपनी जो अपना कुल लाभ दो करोड़ से भी कम बताती है, वह 183 करोड़ का चुनावी चंदा कैसे दे देती है और लेनेवाले कैसे ले लेते हैं, यह सवाल उठेगा? नहीं उडेगा और उठेगा तो कुछ अंतर पड़ेगा? नहीं पड़ेगा। काले पैसे से चलनेवाली यह राजनीति रुकेगी? नहीं रुकेगी। और क्या आप ऐसी लुटेरी कंपनियों और ऐसी छापामार सरकार को उठाकर कभी फेंक देना चाहेंगे? कभी नहीं।


सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद, चुनावी बांड का यह खेला उजागर होने के बाद, जनता में कहीं कोई बड़ी हलचल दिखती है? प्रधानमंत्री क्या वैसे ही दनदनाते घूम नहीं रहे हैं? उन्हें पूरा भरोसा है कि कुछ होकर भी कुछ नहीं होगा। यह मुद्दा अभी उनके लिए कोई मुद्दा नहीं है मगर आश्चर्य नहीं कि चुनाव तारीखों  की घोषणा के बाद यही श्रीमन, जो इस खेल के संचालक -परिचालक हैं, इसे भी अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल करें। यह राजनीति है और ये प्राचीन देश भारत है। यहां होता हुआ लगता जरूर है कभी कभी मगर कुछ होता नहीं। कुछ होता है, तो मंदिर -मंदिर जाने से, मंदिर बनाने से होता है। भगवान के आगे मत्था टेकते रहने से, आशीर्वाद लेते रहने से होता है। धर्म की आड़ में तो बड़े बड़े जनसंहार तक छुप जाते हैं‌। झूठ दफा हो जाते हैं। तो ये नहीं होगा?

अभी भी वे कांग्रेस और सारे विपक्ष को पहले की तरह भ्रष्ट बताते घूम रहे हैं और जनता भी आराम से सुन रही है। बीच-बीच में ताली बजा रही है। भाजपा के नेता अभी आश्वस्त हैं कि कुछ भी हो जाए,  सूरज भले पश्चिम से निकलने लग जाए मगर जीतेगा तो मोदी ही। कोई भगदड़, कोई डर, कोई शर्म, कोई चिंता कहीं नहीं है। भगवान का आशीर्वाद, रामलला का मंदिर साथ जो है!

तो ये है मेरा हिंदुस्तान। यहां अयोध्या में राममंदिर बनाने से फर्क पड़ता है मगर तरह-तरह के माफियाओं को धमका कर, चुनावी बांड के आड़ में पैसा वसूल कर उनके खिलाफ केस बंद करने से कोई अंतर नहीं पड़ता। भले ही वह शख्स न खाऊंगा, न खाने देनेवाला का जाप करनेवाला हो! वह हमेशा की तरह विकास की बातें करेगा, वंचितों के कल्याण का ढोंग करेगा क्योंकि यह मेरा देश महान है, इसकी मिट्टी स्वर्ण समान है, कि इसमें नफरत की बह रही बयार है, इसलिए यहां सब चलता है। ढोंग तो यहां सबसे ज्यादा चलता है। यह मात्र एक देश नहीं है, विश्वगुरु है। यहां गलत करने से कोई फर्क नहीं पड़ता, सही करने से फर्क पड़ जाता है।


कुछ नहीं होगा। जो आज सत्ता में हैं, वे तो जानते भी नहीं हैं कि शर्म भी कुछ होती है। शर्म से डूब मरना भी कुछ होता है और अभी भी कई बार लोग शर्म से फांसी के फंदे पर लटक जाते हैं। ये तो ये भी नहीं जानते, विनम्रता भी कुछ होती है। मनुष्यता भी कुछ होती है? ये नहीं जानते, ज्ञान क्या होता है, स्वाभिमान क्या होता है, जनता क्या होती है, वह कैसे जीती और कैसे मरती है? बस ये एक चीज जानते हैं राजनीति करना, जैसे भी हो, सरकार बनाना और जिस विधि भी हो सके, पैसा बनाते रहना। इसके लिए इन्हें रामनाम भी जपना पड़ जाता है‌ तो ये जप लेते हैं। 'सच्चा हिंदू' बनना पड़ जाता है (नहीं आजकल ये हिंदू सनातनी हो चुके हैं।), तो बन जाते हैं। इसके लिए झूठ-मूठ का विकास पुरुष बनना पड़ता है तो बन जाते हैं। दिन में छह बार चोला बदलना पड़ता है,  लच्छेदार हिंदी बोलनी पड़ती है, झूठ बोलना पड़ता है तो वह भी कर लेते हैं। ये सब एकसाथ कर लेते हैं क्योंकि ये भारत है, मेरा देश महान है क्योंकि यह अघोषित हिन्दू राष्ट्र बन चुका है। यहां सबकुछ संभव है।  

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