विष्णु नागर का व्यंग्य: यह सिस्टम है, यह सब जानता है!

आप सौभाग्यशाली हैं कि आपका वास्ता बैंक के मैनेजर से पड़ा है और वह इस शर्त के साथ आपको जीवित मानने को तैयार है कि आप पिछले साल भी जीवित होने का प्रमाण दे दें। इतना करने भर से आपकी पुरानी पेंशन भी बहाल हो जाएगी।

प्रतीकात्मक तस्वीर
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विष्णु नागर

बैंक से एक पेंशनर को एक पत्र आया। 'श्रीमान, आपका इस वर्ष का जिंदा प्रमाण पत्र वक्त पर प्राप्त हो गया है‌। इसके लिए हम आपके बहुत आभारी हैं पर साथ ही खेद है कि आपने पिछले वर्ष आप के जिंदा होने का प्रमाण पत्र जमा नहीं कराया था, जिसका उल्लेख हमारे ऑडिटर ने अपनी रिपोर्ट में कर दिया था। अतः आपसे अनुरोध है कि कोई डाक्यूमेंट पेश करें ताकि यह सुनिश्चित हो कि पिछले वर्ष भी आप जीवित थे। धन्यवाद।'

शाखा प्रबंधक को इसका जवाब पेंशनर यह दिया: 'आपका पत्र मिला। बैंक ने मुझसे गत वर्ष भी मैं जीवित था, इसका प्रमाणपत्र मांगा है। खेद का विषय है कि इस तरह का कोई दस्तावेज मेरे पास उपलब्ध नहीं है व इस उम्र में मेरी याददाश्त कमजोर है तो मुझे याद नहीं कि मैं पिछले साल भी जिंदा था कि नहीं। धन्यवाद ।'

-धीरज बंसल।


यह पत्र -व्यवहार निश्चित रूप से बेहतरीन चुटकुला होने की समस्त पात्रताएं रखता है मगर किसी सज्जन ने किसी अखबार की कतरन के हवाले से इसे सोशल मीडिया पर उपलब्ध करवाया है तो इसे खबर ही माना जाए। वैसे इसमें जितनी चुटकुला होने की पात्रता है, उससे अधिक खबर होने की है। हमारा यह भारत देश चूंकि महान है, इसलिए इसमें कुछ भी हो सकता है। जो आप सोचते हैं कि नहीं हो सकता, वही सबसे पहले और सबसे अधिक हो सकता है। हमारा देश आज चल इसीलिए रहा है कि इसमें ऐसे बैंक प्रबंधक, ऐसे अफसर, ऐसे क्लर्क, ऐसी पुलिस, ऐसे वकील, ऐसे जज इत्यादि प्रभूत मात्रा में उपलब्ध हैं। धीरज बंसल जी जैसे लोग बहुत कम हैं और यह उचित है क्योंकि जितने अधिक धीरज बंसल टाइप होंगे, उतना ही ज्यादा यह सिस्टम बाधित होगा। रुकेगा-भटकेगा-अटकेगा। जनता पहले ही बहुत परेशान है और अधिक परेशान हो जाएगी, तो कौन संभालेगा उसे? सरकार तो कह देगी, यह उसे अस्थिर करने का षड़यंत्र है! इतना कहकर दूसरी करवट लेकर सो जाएगी!

धीरज जी, महत्वपूर्ण यह नहीं है कि आप इस साल जीवित हैं। अधिक महत्वपूर्ण यह है कि आप पिछले साल भी जीवित थे या नहीं? आप कहते हैं, मुझे याद नहीं। याद तो करना पड़ेगा, महोदय। आप जीवित थे तो इसका कागजी प्रमाणपत्र आपको कहीं न कहीं से लाना होगा वरना आप मृत या अवैध रूप से जीवित माने जाएंगे। इस स्थिति में आपके विरुद्ध कोई भी कठोर कार्रवाई हो सकती है। समस्या आडिट की है, जो आपके व्यंग्य की तार्किकता से नहीं सुलझ सकती। आप पेंशन लेना चाहते हैं तो आपको यह सिद्ध करना ही होगा कि आप पिछले साल भी जीवित थे। आपको यह मुगालता है कि इस साल जीवित होने से यह स्वत: प्रमाणित हो जाता है कि आप पिछले साल भी जीवित थे। आडिट विभाग इस तरह के तर्क को बेहूदा मानता है। उसे आपके जीवित होने से मतलब नहीं, जीवित होने का दस्तावेजी सबूत से मतलब है। पेंशन लेना है तो निरंतरता में जीवित रहना होगा। पिछले साल जीवित रहने से अवकाश लेकर आप इस साल जीवित रहना साबित नहीं कर सकते। अगर आपको पिछले वर्ष जीवित रहने से छूट चाहिए थी तो आपको इसके लिए थ्रू प्रापर चैनल एप्लाई करना चाहिए था। अनुमति मिलने तक इंतजार करना चाहिए था। खेद है कि आपने यह नहीं किया। अतः सिस्टम इस वर्ष आपके जीवित होने को मान्यता देने के लिए बाध्य नहीं है। आपके विरुद्ध धोखाधड़ी का मामला बन सकता है। नियम, नियम है। और नियम के साथ खिलवाड़ करने की छूट कम से कम एक रिटायर्ड कर्मचारी को नहीं मिल सकती। इसके हकदार आप तभी तक थे, जब आप नौकरी में थे। अब आप या तो कुबूल कीजिए कि आप पिछले साल से ही मृत हैं, अभी भी मृत हैं और आगे भी मृत रहेंगे। कम से कम पेंशन के मामले में आपकी स्थिति यह रहेगी लेकिन अगर सिस्टम को आपके आधार कार्ड, बैंक एकाउंट आदि से यह पता चल गया कि आप जीवित और मृत दोनों साथ- साथ हैं तो फिर सीबीआई और ईडी का छापा पड़ना तय है।


आप सौभाग्यशाली हैं कि आपका वास्ता बैंक के मैनेजर से पड़ा है और वह इस शर्त के साथ आपको जीवित मानने को तैयार है कि आप पिछले साल भी जीवित होने का प्रमाण दे दें। इतना करने भर से आपकी पुरानी पेंशन भी बहाल हो जाएगी। गनीमत है कि आपका सामना विशुद्ध सरकारी दफ्तर से नहीं पड़ा वरना मामला मुफ्त में नहीं निबटता। बकाया पेंशन का 40-50 % रिश्वत दिए आपको जीवित माना नहीं जाता। उत्तर प्रदेश के लाल सिंह को 18 साल यह सिद्ध करने में लगे थे कि वह मृत नहीं, जीवित है। इसके लिए उसे काफी पापड़ बेलने पड़े थे। मृतक संघ बनाना पड़ा था। अपने नाम के आगे ' मृतक ' जोड़ना पड़ा था। गजब यह कि प्रशासन उसे मृत मानने को तैयार नहीं था। उसकी पत्नी का विधवा पेंशन के आवेदन मंजूर नहीं किया गया था।इस तरह वह न मृत था और न जीवित! और ऐसे लाल सिंह आज भी बहुत हैं। इसलिए महोदय, तुरंत बैंक मैनेजर के पास जाएं। पिछले साल जीवित होने के पर्याप्त सबूत दें और बकाया पेंशन लें। पेंशन से ही आदमी की इज्ज़त घर और बाहर रहती है। और मैनेजर कहे कि आपको पिछले पत्र के लिए लिखित रूप से क्षमा मांगना होगा तो चुपचाप मांग लें और प्रसन्नतापूर्वक शेष जीवन बिताएं। आप खुशकिस्मत हैं कि आपकी उस जमाने में सरकारी नौकरी लगी,जब पेंशन मिलती थी। इसके लिए ईश्वर अथवा माता-पिता अथवा, जिसे भी धन्यवाद देना चाहें, दें। कागज़ात इकट्ठे करें और शुभमुहूर्त में प्रसन्नतापूर्वक बैंक के लिए प्रस्थान करें।इससे पूर्व ब्राह्मण देवता अथवा कुंवारी कन्या अथवा दोनों का कार्यसिद्धि के लिए आशीर्वाद लें।

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