विष्णु नागर का व्यंग्य: कुछ भी हो जाए, जुमलावाद और वीआईपीवाद जिंदा रहेगा
महाकुंभ में मौनी अमावस्या को इतना बड़ा हादसा हो गया, तो क्या प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री या दोनों ने इस्तीफा दे दिया, जो अपने बड़े-बड़े होर्डिंग लगाकर बड़े बड़े दावे कर रहे थे? कोई कल्पना भी कर सकता है कि ये त्यागपत्र दे सकते हैं?

यह सुनकर खुशी भी होती है, रोना भी आता है, आश्चर्य भी होता है कि इस धरती पर सर्बिया जैसे भी कुछ देश अभी हैं, जहां एक रेलवे स्टेशन की छत का एक हिस्सा गिरने से 15 लोगों की मौत हो जाने पर जनता, प्रधानमंत्री को इस्तीफा देने को मजबूर कर देती है। एक और देश है, जिसका नाम है पुर्तगाल। वहां ढाई साल पहले हमारे देश की एक गर्भवती महिला घूमने गई थी। उसे रास्ते में प्रसव- पूर्व दर्द हुआ। पास के अस्पताल में जगह नहीं मिली तो उसे दूसरे अस्पताल भेजा गया। वहां उसने बच्चे को जन्म दिया और उसके बाद उस महिला की मृत्यु हो गई। इस कारण वहां की स्वास्थ्य मंत्री को इस्तीफा देना पड़ गया। है न आश्चर्य!
हमारा देश में भी कभी ऐसा होता था। लालबहादुर शास्त्री के रेलमंत्री रहते हुए सुदूर दक्षिण भारत में एक बड़ा रेल हादसा हुआ। शास्त्री जी ने इसकी जिम्मेदारी ली। पद से इस्तीफा दिया और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उसे स्वीकार कर लिया लेकिन अब ये भारत के पाषाण युग की बातें लगती हैं। 'नए भारत' में ऐसा नहीं होता। अगर आज भी हमारे प्यारे देश में शास्त्री- नेहरूवाली 'गलती' की जा रही होती तो महामानव जी कभी प्रधानमंत्री नहीं बन पाते। प्रधानमंत्री तो छोड़ो पद ग्रहण करने के कुछ महीने बाद मुख्यमंत्री तक नहीं रह पाते। इतिहास के गर्त में कहीं गहरे समा जाते और फ्लड लाइट की रोशनी में भी नहीं मिल पाते। किसी को याद नहीं रहता कि नरेन्द्र मोदी नामक भी कोई नेता कभी हुआ करता था। किसी युवा गुजराती से आज पूछा जाता तो वह कहता कि हां मम्मी-पापा के मुंह से ऐसा कोई नाम सुना तो था मगर मालूम नहीं कि वो कौन थे!
हमारे यहां तो ऐसे हजारों सर्बिया हो चुके हैं और ऐसे लाखों पुर्तगाल हो चुके हैं। रोज होते रहते हैं और 'गर्व' से होने दिए जाते हैं। अब कोई मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री किसी बात के लिए त्यागपत्र नहीं देता। दे रहा होता तो लगभग हर रोज देश के प्रधानमंत्री को इस्तीफा देना पड़ता और हर रोज देश को एक नया प्रधानमंत्री मिलता! किसी की किस्मत अच्छी होती तो वह एक सप्ताह तक पद पर टिक जाता। जनता उसे आदर से देखती कि ये देश के उन महान और बिरले प्रधानमंत्रियों में हैं, जो सात दिन तक अपने पद पर बने रहे! शायद महात्मा गांधी की फोटू के साथ उसका फोटू लगाया जाता!
सोचिए ऐसा होता तो पिछले साढ़े दस साल में अब तक 450-500 प्रधानमंत्री देश को मिल चुके होते और भीड़ में कहीं खो चुके होते! देश सचमुच इस मामले में आज 'विश्वगुरु' बन चुका होता! विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों की संख्या अब तक हजारों में पहुंच चुकी होती! यहां तो आज पुल का उद्घाटन होता है और कल ढह जाता है। सैकड़ों लोग मर जाते हैं तो भी कोई इस्तीफा नहीं देता! इस्तीफा मांगनेवाले भी अच्छी तरह जानते हैं कि यह इस्तीफा नहीं देनेवाला! इस्तीफा मांगनेवाला कोई अगर पहले कभी मुख्यमंत्री रह चुका होगा तो उसने भी कुछ भी हो जाने पर इस्तीफा नहीं दिया होगा। अगर वह भविष्य में फिर से बना तो भी वह यही करेगा!
महाकुंभ में मौनी अमावस्या को इतना बड़ा हादसा हो गया, तो क्या प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री या दोनों ने इस्तीफा दे दिया, जो अपने बड़े-बड़े होर्डिंग लगाकर बड़े बड़े दावे कर रहे थे? कोई कल्पना भी कर सकता है कि ये त्यागपत्र दे सकते हैं? कोई ऐसा कयास लगाने की गलती आज कर सकता है?यहां तो प्रधानमंत्री से लेकर अदना से अदना अधिकारी तक जानता है कि महाकुंभ हो रहा है तो तय है कि एक न एक बड़ा हादसा होगा। सौ -पचास तो मरेंगे ही। दो हजार भी मर गए तो कोई परवाह नहीं। इससे इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। दो -चार दिन लोग रोएंगे, कोसेंगे, गालियां देंगे। फिर सब सामान्य हो जाएगा। कोई रोएगा, चीखेगा भी तो उसकी कोई सुननेवाला न होगा!
शायद महाकुंभ जानेवाले भी जानते हों कि जा तो रहे हैं मगर जान हथेली पर रखकर जा रहे हैं। वहां कुचल कर मर भी सकते हैं, जैसे कि पहले कभी बद्रीनाथ-केदारनाथ जानेवाले तीर्थयात्री यह सोचकर जाते थे कि जिंदा नहीं भी लौट सकते हैं। इतना खतरा उठाने की जिनमें हिम्मत है, शायद वही पर्व के दिन नहाने जाते हैं। बचकर लौट आए तो गंगा मैया की जय और मर गए तो भी गंगा मैया की जय।
मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री भी जानते हैं कि इस जनता की मौत और जिंदगी की परवाह करने की जरूरत नहीं। जो यहां से दुखी होकर जाएगा, हादसे में अपने किसी को खोकर भी जाएगा, वह भी मौका आने पर वोट हमें देगा। मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री तक इसकी आंच पहुंचने नहीं देगा। सुनते हैं , हादसे में मौतों की खबर देते -देते, मुख्यमंत्री जी रो दिए। जनता के लिए इतना जानना काफी है। इससे धुल जाता है सारा रोष! मुख्यमंत्री रो दे, प्रधानमंत्री रो दे तो लोगों को लगता है कि गलती उनकी नहीं, हमारी थी। इन्हें रुलाकर हमने 'पाप ' किया है। हम ऊपर जाएंगे तो इसका हिसाब मांगा जाएगा तो क्या जवाब देंगे!
इसलिए यहां कुछ भी हो जाए कुछ नहीं होता। होता हुआ सा लगता है मगर होता नहीं। जांच होती है मगर कुछ नहीं सा होता है। लीपापोती जारी रहती है। लोग मर जाते हैं,फिर भी शाही स्नान होकर रहता है। दावे जो भी हों, वीआईपी जब नहाने जाता है तो रास्ते सब तरफ से बंद पहले भी रखे जाते थे, अब भी बंद रखे जाएंगे। दुनिया की कोई ताकत वीआईपी को वीआईपी होने से रोक नहीं सकती। वीआईपीवाद खत्म करने का दावा एक और जुमला था, जैसे ' विकसित भारत ' एक जुमला था। जुमलावाद और वीवीआईपीवाद सगे भाई हैं।
मुख्यमंत्री पहले की तरह बेखौफ रहेंगे बल्कि और अधिक बेखौफ हो जाएंगे। हिंदू -मुस्लिम पहले की तरह मुस्तैदी से करेंगे। मरनेवालों को भूले रहेंगे, महाकुंभ की सफलता के गीत प्रधानमंत्री संग उसी तरह गाते रहेंगे,जिस तरह प्रधानमंत्री कोरोना से निबटने में उनकी सरकार की 'सफलता' के गीत आज तक गाते रहते हैं। महाकुंभ की भूमि पर हिन्दू राष्ट्र का प्रस्ताव कल हर्षध्वनि के साथ पास होकर रहेगा। प्रधानमंत्री तथा मुख्यमंत्री की अदृश्य तालियां हम तक पहुंचती रहेंगी!
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