विष्णु नागर का व्यंग्य: हम भी उस दुश्मन जैसे जो अवाम की आवाज कुचलता है और हम भी
हमारा दुश्मन भी वैसा ही दिखता है, जैसे हम। वह भी वही जुबान बोलता है ,जो हम। वह भी वही खाता है, जो हम। उधर भी लोग भूखे हैं, इधर भी। उधर भी किसान रोता है, इधर भी। उधर भी अवाम की आवाज कुचली जाती है, इधर भी।

हमारा मंत्री कहता है कि हमारे जांबाज सैनिकों के हौसले बुलंद हैं। वे किसी भी समय, किसी भी परिस्थिति का मुकाबला करने के लिए पूरी तरह समर्थ हैं। कोई हमें डरा नहीं सकता। हमारी नीति युद्ध की नहीं है मगर हमारी तरफ किसी ने आंख उठाकर भी देखा तो उसकी आंखें निकाल ली जाएंगी, सिर कलम कर दिया जाएगा। उसे धूल में मिला दिया जाएगा। उसका नाम मिटा दिया जाएगा।
दूसरी तरफ उनके मंत्री के शब्द, उनकी भाषा थोड़ी सी बदली हुई हो सकती है मगर यह जरूरी भी नहीं है। उनका मंत्री भी इतना ही जोशीला है, जितना कि हमारा मंत्री क्योंकि वह भी आखिर अपने देश का मंत्री है और मंत्रियों को जुबान ही तो लड़ाना होता है, हथियार थोड़े ही उठाने होते हैं!
कभी वह हमारे मंत्री की नकल में बोलता है और कभी हमारा मंत्री उनकी नकल में। एक दूसरे की नकल करते हुए उन्हें अपनी मौलिकता का बोध होता है।
हमारा मंत्री कहता है हमारे सैनिकों ने उनके आठ सैनिकों को हलाक करके उनके हौसले हमेशा के लिए पस्त कर दिए हैं। उनके मंत्री के पास भी यही जबान है। वह कहता है, हमने उनके पंद्रह सैनिकों को रास्ते से हटाकर कामयाबी की नई मंजिल फतह कर ली है।
हमारा इतिहास एक है , जो अलग -अलग तरह से अलग- अलग मुल्कों में पढ़ाए जाने के कारण इतना मुख्तलिफ हो गया है कि लगता नहीं कि एक था। एक ही इतिहास है मगर इधर भी नफ़रत का पाठ पढ़ाता है, उधर भी।
हम उन्हें मारने के लिए हथियार खरीदते हैं, वे हमें मारने के लिए। वे भी इसके लिए डालर चुकाते हैं, हम भी। डालर खर्च करने के बाद हम दोनों में एक दूसरे से लड़ने का आत्मविश्वास जागता है। अक्सर उन्हें जो हथियार बेचता है, वही हमें भी बेचता है या राष्ट्रीय स्वाभिमान की रक्षा के लिए इस बात को इस तरह भी कह सकते हैं कि जो हमें हथियार बेचता है, वह उन्हें भी बेचता है। हम भी इसके लिए उसके शुक्रगुजार होते हैं ,वह भी। वह हमसे दो हजार कम लेता है, उनसे चार हजार अधिक, तो हम उन्हें चिढ़ाते हैं। वह हमारे सरताजों को कम कमीशन देता है, उनके को ज्यादा तो वे हमें अंगूठा दिखाते हैं।

हथियार बेचने वाला दोनों तरफ से मुनाफा कमाता है, और दोनों से अपने नये हथियारों का परीक्षण करवाता है। इनका संशोधित- परिवर्धित संस्करण फिर से हम दोनों को बेच कर हमसे और उनसे, रिश्ते और डालर को मजबूत बनाता है। इस तरह बेचने वाला भी खुश रहता है, खरीदने वाला भी। दोनों खरीददार देश इस तरह खुश रहते हैं कि हमने एक -दूसरे से लड़ने-मरने के लिए पहले से बेहतर हथियार खरीद लिये हैं और इस बार नहीं जीते तो हम अगली बार अवश्य जीतेंगे।
हमारा दुश्मन भी वैसा ही दिखता है, जैसे हम। वह भी वही जुबान बोलता है ,जो हम। वह भी वही खाता है, जो हम। उधर भी लोग भूखे हैं, इधर भी। उधर भी किसान रोता है, इधर भी। उधर भी अवाम की आवाज कुचली जाती है, इधर भी। हमने भी उन्हें मारा- काटा और उजाड़ा है, उन्होंने भी हम पर कोई रहम नहीं किया है। उन्होंने भी औरतों पर बलात्कार किए हैं और हमने भी बराबरी से मुकाबला किया है। हम एक-दूसरे के पक्के दुश्मन हैं और हमने कसम खाई है कि हम अपने-अपने 'राष्ट्रीय हित ' के लिए एक-दूसरे को माफ नहीं करेंगे, लड़ते रहेंगे।
हमें कमजोर दुश्मन चाहिए, उन्हें मजबूत दुश्मन। दोनों को मर्दानगी दिखाने का बहुत शौक है और दिखाने के लिए उनके पास संदिग्ध किस्म की मर्दानगी के अलावा कुछ और है भी नहीं।
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