विष्णु नागर का व्यंग्य: हमको तो अभीच न्यू इंडिया मांगता है मिस्टर मोडी, हम 2022 तक वेट नहीं करेगा

‘न्यू इंडिया’ का नारा देकर प्रंचड बहुमत से दोबारा सत्ता में आई मोदी सरकार से लोग अधीर हो रहे हैं। वे जल्दी से जल्दी न्यू इंडिया को देखना चाहते हैं। लोग कह रहे हैं कि जो ‘न्यू इंडिया’ बनता दिख रहा है, वह वही पांच साल पुराना इंडिया है, इसमें नया क्या है?

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया
user

विष्णु नागर

इस उपभोक्तावाद ने लोगों को बहुत ज्यादा बिगाड़ कर रख दिया है। हर चार-चार, छह-छह महीने में कार, टीवी, मोबाइल आदि के नये मॉडल बाजार में आ जाते हैंं और छह महीने पुराना मॉडल सदियों पुराना लगने लगता है। लोग यही अपेक्षा अब मोदी जी से भी करने लगे हैं- हमको फौरन, इंडिया का लैटेस्ट मॉडल मांगता, ‘न्यू इंडिया’ मांगता। उधर मोदी जी का वादा है- ‘भाइयों-बहनों, हम 2022 तक न्यू, वेरी-वेरी न्यू इंडिया बनाकर आपको पकड़ा देंगे।’

लोग कह रहे हैं कि- ‘नो, हमको तो अभीच मांगता। इतना लेट काय कू? तीन साल में तो किसी भी कंपनी के पच्चीस नये माडल बाजार में आ जाते हैं और आप हमें 2022 में जाकर 'न्यू इंडिया' दोगे?हमारा इतना टैम खोटी करोगे? 'कंपनी- इंडिया' के आप सीईओ हो या देश के प्रधानमंत्री हो? 'कंपनी- इंडिया' के सीईओ होकर भी ऐसी फिजूल की बातें करते हो? अब तक दूसरी कंपनी में होते तो मालिक आपको निकाल बाहर करता। हरी अप, डोंट वेस्ट अवर वेल्यूएबल टाइम, मिस्टर मोडी।’

और यही लोग कह रहे हैं- ‘मिस्टर मोडी वेरी सॉरी आज हमें जो 'न्यू इंडिया' बनता दिख रहा है, वह तो एक्जैक्टली, वही का वही, पांच साल पुराना इंडिया है, इसमें नया क्या है, लैटेस्ट क्या है बताओ तो?’ इस पर मोदी जी समझा रहे हैं, अमित शाह भी समझा रहे हैं कि- ‘देखो भाइयों-बहनों, ये भी चलेगा और वो भी चलेगा। और हकीकत ये है कि हिंदूवाद तो हर कीमत पर चलेगा, 'न्यू इंडिया' चले न चले। और ये नहीं चला तो वो तो फिर बिल्कुल भी नहीं चलेगा। और सुन लो, वैसे भी हम कार या टीवी नहीं, 'न्यू इंडिया' प्रोड्यूस करते हैं, उसका उत्पादन करते हैं, उसे बनाने में समय लगता है। यह राष्ट्र-निर्माण का प्रश्न है, कार-टीवी-मोबाइल निर्माण का नहीं। अरे नया और ढंग का मॉल बनाने तक में दो-तीन साल लग जाते हैं, यह तो न्यू- झकास इंडिया बनाने का प्रश्न है। वेट, यंग मेन, डोंट बी सो इंपेशंट।

लोग कह रहे हैं, नो मोडी जी नो। नो वेट, हमें अभी का अभीच मांगता, नो मोर डिले। हम मेज-कुर्सी पर 'न्यू इंडिया' रेस्तरां में बैठेला है। चाय-काफी आर्डर किये ला है। कब तक 'न्यू इंडिया' की न्यू डिश के लिए वेट करता बैठा रहेगा? हमको आलतू-फालतू समझ रखा है क्या? हमारा टाइम की भी वैल्यू होता, फकत तुमारा टाइम का नईं? वी कांट वेट एनी मोर मिस्टर मोडी एंड मिस्टर अमित शा।हम गरम-गरम, कुरकुरा-कुरकुरा 'न्यू इंडिया' मांगता, सड़ा-बुसा, तीन साल पुराना ठंडा-बासता, मिट्टी सर का इंडिया नहीं।

और जो किचन से बास मतलब सुगंध मतलब खुशबू आ रहा है, वह तो वही पुरानाइच है। वही जय श्री राम, वही वंदेमातरम, वही हिंदू राष्ट्रवाद, वही सरकारी अस्पतालों में चमकी आदि रोगों से सैकड़ों गरीब बच्चों की मौत, वही पांच साल पुराना प्रॉमिसेज का रिन्यूअल, वही मौतें, वही सूखा, वही बाढ़, वही मंदिर, वही मस्जिद, वही पाकिस्तान पर एक और स्ट्राइक, वही दलित बच्चे को मंदिर के पास कड़ी धूप में लेटाने की सजा, वही बैंकों का पैसा डकार कर विदेश भाग जाने का सिलसिला, वही मुसलमानों को डराना-धमकाना, वही तीन तलाक, वही गोहत्या, वही अंबेडकर-विद्यासागर की मूर्तियां तोड़ना और राम, शिवाजी, पटेल की ऊंची-ऊंची मूर्तियां बनाने की प्रतियोगिता करना, वही धारा 370 को खत्म करने की बातें।

वही प्राइवेटाइजेशन, वही दागियों का बीजेपी में आने पर उनका पवित्रीकरण हो जाना, मीडिया पर मोदी-योगी पर कुछ भी लिखने पर गिरफ्तारी, मुकदमेबाजी। बोर कर दिया आपने। वही बड़े-बड़े नारे, वही-वही भाषण, वही हाथ हिलाते रहना मगर काम धेले भर का नहीं करना, बस हमारे पैसों पर विज्ञापन-विज्ञापन खेलना। दिल्ली तक स्वच्छ नहीं मगर स्वच्छता अभियान की सफलता की डुगडुगी बजाकर हमारे कान फोड़ देना। लोग प्यासे हैं, जमीन प्यासी है, 300-300 फुट तक जमीन के अंदर पानी नहीं, साफ पानी का नाम नहीं मगर घर-घर नल का पानी पहुंचाने का वादा। वही आंकड़ेबाजी का खेल, व्हेअर इज यूअर न्यू इंडिया? पांच साल पुराना माल बेचता और कहता है- 'न्यू इंडिया'! किधर से बनाएगा 'न्यू इंडिया'? कैसा बनाएगा- 'न्यू इंडिया'?

है न कंज्यूमरिज्म वेरी प्राब्लेमेटिक।अब 'न्यू इंडिया' आलू-प्याज या कद्दू की सब्जी तो है नहीं कि फटाफट काटा, बघारा और बच्चों से कहा, चलो डाइनिंग टेबल पर आओ, प्लेटें लगाओ। बस अभी गरम-गरम रोटी बनती है, जितनी मर्जी खाओ। न्यू इंडिया टू मिनट्स नूडल भी नहीं कि लो बन गया और बच्चा लोग खुश। क्यों मोदी जी मैं गलत तो नी के रिया हूं। अरे भाई हिंदुत्व ही तो आपका 'न्यू इंडिया' है,असली बात तो लोग समझते नहीं। 'न्यू इंडिया', दरअसल 'अच्छे दिन' का नया नाम है, नई ब्राडिंग है। जैसे 'अच्छे दिन' आकर जा चुके हैं, वैसे ही 'न्यू इंडिया' भी एक दिन आएगा, दूसरे दिन चला जाएगा। बताओ, इन लोगों में इतनी सी भी राजनीतिक समझ नहीं, किसने दिया इन्हें वोट का अधिकार?

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia