मंदिर आंदोलन की लहर पर सवार होकर सत्ता में पहुंची पार्टी से कैसे करें उपासना स्थल कानून की रक्षा की उम्मीद

सभी सरकारों से कानूनों की रक्षा करने की उम्मीद की जाती है, लेकिन मौजूदा सरकार का रुख क्या है, यह स्पष्ट नहीं है, क्योंकि वह ऐसी पार्टी की अगुवाई वाली सरकार है जिसने उस आंदोलन से सत्ता का शीर्ष हासिल किया है जिसके कारण उपासना स्थल कानून बनाना पड़ा था।

अजमेर शरीफ दरगाह (फाइल फोटो)
अजमेर शरीफ दरगाह (फाइल फोटो)
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आकार पटेल

उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) कानून, 1991 एक ऐसा कानून है जिसके तहत किसी भी उपासना स्थल के धर्म को बदलने पर रोक लगाता है और सका वैसा ही स्वरूप और चरित्र बनाए रखने को सुनिश्चित करता है जैसा कि 15 अगस्त 1947 को इसकी स्थिति थी। यानी इस कानून के लागू होने के बाद किसी भी उपासना स्थल में उसी धर्म की उपासना या इबादत होती रहेगी, जैसी कि 15 अगस्त 1947 को होती थी।

यह एक असामान्य रूप से बनाया गया कानून है जो कहता है कि मंदिर, मस्जिद, चर्च, स्तूप  या गुरुद्वारा आदि वैसे ही रहेंगे जैसे वे 1947 में थे। इसका मतलब है कि उस ढांचे या जगह पर जो धर्म प्रचलित था, उसका पालन होता रहेगा।

आखिर इस कानून को क्यों बनाया गया? मोटे तौर पर कहें तो बाबरी मस्जिद गिराए जाने जैसी और घटनाओं को रोकने के लिए ऐसा कानून बनाया गया। अपने शब्दों या इरादे में इससे अधिक स्पष्ट तौर पर इस बात को नहीं कहा जा सकता था।

लेकिन भारत में तो कानून, यहां तक कि अदालतें भी, घटनाओं को घटित होने से शायद ही कभी रोक पाए हैं।

2019 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपने फैसले से बाबरी मस्जिद की जगह को मंदिर के लिए दिए जाने के बाद, उत्तर प्रदेश की एक अदालत में वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर दायर की गई याचिका सुनी गई।

अदालत ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी एएसआई को मस्जिद का सर्वे करने का निर्देश दिया, हालांकि इतिहासकारों ने साफ तौर से दर्ज किया है कि इस मस्जिद का निर्माण 1669 में औरंगजेब द्वारा ध्वस्त किए गए एक मौजूदा मंदिर के ऊपर किया गया था। उपासना स्थल कानून का मकसद ठीक इसी तरह के मध्यकालीन इतिहास को समसामयिक घटनाओं में बदलने से रोकना था।

यह मामला 2022 में सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। जहां. बाबरी मस्जिद का फैसला लिखने वाले जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने एक ऐसी टिप्पणी की जो आगे चलकर बेहद विनाशकारी साबित हुई। उन्होंने कहा कि किसी स्थान के ‘धार्मिक चरित्र का पता लगाना’ उपासना स्थल कानून में कहीं निषिद्ध नहीं है। एक तरह से इसका मतलब यह निकलता है कि लोग इस बाबत अदालत में मुकदमा दायर करने के लिए स्वतंत्र हैं।

उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद में ऐसी जगह सर्वे को जारी रखने की अनुमत दे दी, जो कि एक फव्वारे के आसपास थी और जिसे हिंदू पक्ष शिवलिंग कहता है।  2023 में वाराणसी की अदालत ने एएसआई से कहा कि वह इस बात का पता लगाए कि “मौजूदा इमारत या ढांचा (मस्जिद) पहले से मौजूद हिंदू मंदिर के ऊपर बना है या नहीं।“


और जैसी कि आशंका थी, इन घटनाओं के चलते उत्तर प्रदेश, राजस्थान और अन्य स्थानों पर कई न्यायाधीशों ने मध्यकालीन भारत में निर्मित मस्जिदों के ‘धार्मिक चरित्र का पता लगाने’ की मांग वाली याचिकाओं को स्वीकार करना और सर्वेक्षण का आदेश देना शुरु कर दिया है।

जिन जगहों पर सर्वे की मांग की गई है उनमें 1199 में कुतुबुद्दीन ऐबक (जिन्होंने दिल्ली में कुतुब मीनार भी बनवाया था) द्वारा बनवाई गई अजमेर स्थित मस्जिद ढाई दिन का झोपड़ा और अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह का सर्वे की मांग उठाई गई। ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती का देहात 1236 में हुआ था।

अपने ऐतिहासिल महत्व के कारण ढाई दिन का झोपड़ा पहले से ही पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है, लेकिन राजस्थान विधानसभा में स्पीकर बीजेपी नेता की मांग है कि एएसआई नए सिरे से सर्वे करके पता लगाए कि ढाई दिन का झोपड़ा और अजमेर दरगाह एक प्राचीन संस्कृत कॉलेज के ऊपर बनी है।

ऐसे ही लखनऊ की टीलेवाली मस्जिद को लेकर भी विवाद उठा है। दावा है कि इस मस्जिद को शाहजहां के गवर्नर ने लक्ष्मण नाम के एक चबूतरे पर बनवाया था।

यूपी के बदायूं में बादशाह इल्तुमिश (जिनका देहांत 1236 में हुआ था) के जमाने में बनी जामा मस्जिद शम्सी पर भी अखिल भारतीय हिंदू महासभा ने दावा कर दिया है। जौनपुर में  अटाला मस्जिद पर भी दावा है, हालांकि उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग की वेबसाइट पर यह अभी भी मस्जिद के तौर पर अंकित है, जिसमें कहा गया है कि यह मस्जिद जौनपुर की अन्य मस्जिदों के निर्माण के लिए आदर्श के तौर पर देखी जाती है। लेकिन स्वराज वाहिनी एसोसिएशन नाम के एक समूह ने अदालत में अर्जी देकर इस मस्जिद के अंदर पूजा करने की मांग की है।

मार्च 2024 में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के निर्देश के बाद राज्य के धार जिले में स्थित भोजशाला-कमाल मौला काम्प्लेक्स पर एएसआई ने वैज्ञानिक सर्वे शुरु किया।

पिछले साल नवंबर में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की एक अदालत ने संभल की जामा मस्जिद को लेकर दायर याचिका की सुनवाई की और मस्जिद परिसर की सर्वे का आदेश जारी किया, जो उसी दिन किया गया। इसके बाद सर्वे टीम दोबारा मस्जिद में रविवार को सुबह-सुबह सर्वे करे पहुंच गई। इसी दौरान अफवाह फैल गई कि मस्जिद के नीचे खुदाई की जा रही है। इसका विरोध करने के लिए एक भीड़ जमा हो गई और उन्हें तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने गोली चलाई जिसमें 5 लोगों की मौत हो गई। इस पूरी त्रासद घटना को हम सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पणी से जोडकर देख सकते हैं।


एक और बेहद असामान्य बात जो विशेषज्ञों ने नोट की है वह यह है क सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों का कोई महत्व नहीं होता है। इन शब्दों को जो आदेश जारी होता है उनमें नहीं जोड़ा जाता है, और सिर्फ तभी तक इनका जिक्र होता है जब मामले की उस दौरान रिपोर्टिंग होती है। सुप्रीम कोर्ट ने उपासना स्थल कानून पर कोई रोक नहीं लगाई और न ही इसे रद्द किया है। यह कानून अभी भी मान्य है, यानी यह अभी भी लागू है और जब तक 15 अगस्त 1947 को किसी ढांचे का कई धर्मों द्वारा सक्रिय रूप से उपयोग नहीं किया गया हो, तब तक इसे विवाद के रूप में अदालत में नहीं लाया जा सकता।

इसके बावजूद हम देख सकते हैं कि किस तरह 7वीं शताब्दी के उपासना स्थलों पर दावे पेश कर संपत्ति के विवाद खड़े किए जा रहे हैं। ऐसे लोग जो इस लेख के लेखक की ही तरह अयोध्या विवाद के भड़कने और फिर इसके फूटने के वक्त और फिर कैसे यह तीन दशकों तक राजनीति का मुख्य मुद्दा बना रहा, उस दौरान व्यस्क थे, उनके लिए आज जो कुछ हो रहा है, वह बेहद चिंताजनक स्थिति है। इन सब पर कितनी राष्ट्रीय ऊर्जा खर्च हो रही है और खून-खराबा हो रहा है।

पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने सभी अदालतों को निर्देश दिया कि वे ऐसे मामले रजिस्टर करना बंद करें। साथ ही यह भी कहा कि वह किसी भी पहले से चल रहे मामले में कोई अंतरिम या अंतिम फैसला जारी नहीं कर सकता, जब तक कि उपासना स्थल कानून की वैधता पर पर फैसला नहीं कर लेता। जल्द ही इस मामले पर कोर्ट में सुनवाई होगी, तभी हमें पता चलेगा कि इस कानून को लेकर मोदी सरकार का रुख क्या है।

सभी सरकारों से कानूनों की रक्षा करने की उम्मीद की जाती है, लेकिन मौजूदा सरकार का रुख क्या है, यह स्पष्ट नहीं है, क्योंकि वह ऐसी पार्टी की अगुवाई वाली सरकार है जिसने उस आंदोलन से सत्ता का शीर्ष हासिल किया है जिसके कारण उपासना स्थल कानून बनाना पड़ा था।

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