विष्णु नागर का व्यंग्यः एक गरीब मां के इस झोलीवाले-चौकीदार बेटे की इमेज खराब कर आपको क्या मिला ओलांद साहब!

ओलांद साहब आप तो रिटायर हो गए थे, अनिल भाई ने आपकी खूबसूरत गर्लफ्रेंड जूली गायेत की फिल्म बनाने में अच्छी खासी मदद भी की थी, फिर भी आपको चैन नहीं मिला? रिटायर थे, बैठते अपने घर, मौज करते। और मौज नहीं करना था तो दुनिया में और भी गम हैं, राफेल के सिवा !

फोटोः सोशल मीडिया
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विष्णु नागर

मन बड़ा बेचैन हो जाता है, जब देश के चौकीदार पर, झोलीवाले फकीर पर आरोप लगता है कि हजारों करोड़ का राफेल सौदा अनिल अंबानी को दिलाने में उस चौकीदार, उस फकीर, उस चायवाले, उस गरीब मां के बेटे का हाथ है। वैसे गरीब का वह बेटा, वह चायवाला भी इतना दम, खम और बम रखता है कि राहुल गांधी से तो निबट लेता, फिर से पप्पू कहने-कहलवाने लग जाता। ये केस चलवा देता, वो केस लदवा देता। ये एफआईआर दर्ज करवा देता, वो करवा देता, इस और उस कोर्ट में हाजिरी लगवा देता।

गरीब मां के उस लाडले ने आज तक इन यशवंत सिन्हाओं, अरुण शौरियों और प्रशांत भूषणों की परवाह की होती, तो क्या ये देश चल पाता? और देश तो चल भी जाता मगर सवाल फकीर के चलने का प्रमुख था। क्या वह चल पाता? लेकिन ये फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद को पता नहीं, क्या खुजली चली कि कह दिया कि भैया हम क्या करते, अनिल अंबानी का नाम तो भारत सरकार ने ही भिजवाया था कि इन्हें पार्टनर बनाओ, तो हमें तो सौदा करना था, राफेल बेचना था, हम ठहरे व्यापारी देश। हम भी कह दिए कि ठीक है भैया जी, जो करना है, सो करो, मरना है तो मरो मगर तुम तो बस हमसे सौदा पक्का करो। तो इस तरह हमने सौदा कर लिया।

अब ओलांद साहब आप तो रिटायर हो गए थे, अनिल भाई ने आपकी खूबसूरत गर्लफ्रेंड जूली गायेत की फिल्म बनाने में अच्छी खासी मदद भी की थी, फिर भी आपको चैन नहीं मिला? रिटायर थे, बैठते अपने घर, मौज करते। और मौज नहीं भी करना था तो दुनिया में और भी गम हैं, राफेल के सिवा, यह शेर पढ़ते हुए कुछ और काम करते! झोलीवाले और चौकीदार और चायवाले और गरीब मां के इस बेटे की इमेज खराब करके आपको मिला क्या? एक तरफ से आपको उस फकीर की बद्दुआएं लगेंगी, दूसरी तरफ से कल उस चौकीदार की चौकीदारी चली गई तो उसकी बद्दुआएं अलग से लगेंगी। तीसरी तरफ से सस्ती-जायकेदार चायवाले की गुमटी छिन गई, बर्तन-भांडे बिक गए तो क्या वह आपको आशीर्वाद देगा? और ये तो सोचा होता कि उस फकीर, उस चौकीदार, उस चायवाले की गरीब मां भी तो जिंदा है, ये सब सुनकर उसके दिल पर क्या गुजरेगी? उसका कलेजा फट कर चाक हो जाएगा! उसकी बद्दुआएं लगेंगी, सो अलग। क्या इतनी सारी बद्दुआएं आप झेल पाओगे ओलांद साहब?

हमारे यहां दुआएं भले असर न करें मगर बद्दुआएं जरूर अपना असर दिखा जाती हैं। खैर फकीर के पास तो झोला है, चाय की दुकान भी है, चौकीदारी भी है और मां का आशीर्वाद भी है, वह कुछ न कुछ मैनेज कर ही लेगा। मैनेज करने की कला में वह शुरू से टॉपर रहा है, आराम-दक्ष रहा है, ध्वज प्रणाम रहा है। उसने ये हफ्ता मोहन भागवत जी का तीन दिवसीय प्रवचन करवाकर सफलतापूर्वक मैनेज कर ही लिया था समझो, लेकिन हफ्ता पूरा होते-होते ओलांद साहब की ओलावृष्टि से लहलहाती फसल चौपट हो गई।

अगले हफ्ते सर्जिकल स्ट्राइक का फर्जीकल दिवस है। वो तो खैर खूब धूमधाम से, बैंडबाजों के साथ बढ़िया मन जाएगा, उस दिन कांग्रेस पर खूब फर्जीकल स्ट्राइक होगी। मोदी- मोदी भी बहुत करवा लिया जाएगा। फिर भी अनिश्चितता इतनी है कि उसके ठीक बाद या उसके ठीक पहले क्या हो जाए, कुछ पता नहीं। गरीब के बेटे के साथ इस देश में क्या कुछ नहीं हो सकता? साहेब के ग्रह-नक्षत्र वैसे भी आजकल खराब ही चल रहे हैं। खैर उस डैमेज को कंट्रोल करने के लिए गांधीजी की 150वीं जयंती का धूम धड़ाका है। वैसे सत्य-अहिंसा के पुजारी को छेड़ना ठीक नहीं होता, फिर भी मैनेज करने का रिस्क तो लेना ही पड़ेगा न! इस तरह मैनेज हो गया तो ठीक वरना फिर कुछ और बड़ा तमाशा करना पड़ेगा, देशभक्ति पुनर्जागृत करनी पड़ेगी। षड़यंत्र है, षड़यंत्र है, मंत्र का जाप करना पड़ेगा।

देखो ओलांद साहब यह घोषणा करके तो चुनाव जीता नहीं जा सकता था कि मैं खाऊंगा भी और अंबानियों-अडाणियों को खिलाऊंगा भी और नीरव भाइयों-मेहुल भय्याओं और विजय माल्याओं को भगाऊंगा भी और घर-घर आग लगाऊंगा भी। कहना तो यही पड़ता है न कि अच्छे दिन लाऊंगा, एक के बदले दस पाकिस्तानियों के सिर लाऊंगा, पेट्रोल-डीजल के भाव गिराऊंगा, पंद्रह-पंद्रह लाख से लोगों की जेब भर दूंगा। जबान है, जितनी चला सकते हो, चलाओ, पहले वोट कमाओ। फिर तो ये देश पांच साल के लिए तुम्हारी जागीर है, जहां से जो मिले, बटोरते जाओ, आंकड़ों की एक पर एक फर्जीकल स्ट्राइक करवाते जाओ। तो हमने भी यही किया। मीडिया मैनेजमेंट हमारा अच्छा था तो बढ़िया ढंग से सब संपन्न होता गया तो आप ही बताओ, बुरा किया क्या हमने?

और विपक्षी नेताओं के कहने से पहले कुछ हुआ करता था मगर अब धेला भी नहीं होता। जनता मानकर चलती है कि ये पावर में आया है तो डटकर खाकर ही जाएगा, अच्छे होस्ट की तरह अपनों को बढ़िया तर माल भी खूब खिलाएगा, जिनको डराना है, उन्हें डराएगा भी और अपना काम निकालेगा। और ओलांद साहब, ये भारत है, यहां आजकल जस की तस रखो न चदरिया, काली-पीली करके न धरो तो कोई पूछता नहीं। बल्कि जस की तस रख दो तो जनता-जनार्दन कहती है कि तू तो कबीर है, कविता कर, धरम-अध्यात्म कर, यहां राजनीति में क्या कर रहा है। तो ओलांद साहब ये कमीशनखोरी हमें स्वहित, जनहित, जनता की खुशी के लिए करनी पड़ती है, ताकि जनता भी सोचे कि हां ये आया है कोई काबिल बंदा।

तो भैया पाकेट गरम हो तो सबकुछ मक्खन से भी नरम हो जाता है। और आप जैसे लोग मोदीजी को ज्यादा प्रोवोक करोगे तो वह स्कूल ऑफ करप्शन मैनेजमेंट स्टडीज का विभाग ठेठ जेएनयू में खुलवा देंगे। उसमें प्रवेश की एक ही योग्यता होगी, बंदा, एबीवीपी का आजीवन सदस्य हो। तो सदस्य बनते जाओ, एडमिशन लेते जाओ, मोदी-मोदी करते जाओ। और हां व्यापम-विशेषज्ञ शिवराज सिंह चौहान को अगर मध्य प्रदेश की जनता ने जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया तो उन्हें इसका डायरेक्टर नियुक्त कर देंगे। भावी पीढ़ी याद करेगी कि हुआ था, कोई मोदी।

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