आरोग्य सेतु ऐप से कौन-सा उद्देश्य पूरा हो रहा मालूम नहीं, लेकिन इसे लेकर रहस्य अब भी बना हुआ है

भारत दुनिया में एकमात्र ऐसा लोकतांत्रिक देश है जिसने करोड़ों लोगों के लिए कोराना वायरस ट्रैकिंग ऐप को अनिवार्य बनाया है। वह भी ऐसे समय में जब हमारे यहां कोई राष्ट्रीय डेटा प्राइवेसी कानून नहीं है और यह भी साफ नहीं है कि इस ऐप से किसे और किन स्थितियों में डाटा एक्सेस करने का अधिकार है।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया
user

रश्मि सहगल

कोविड-19 महामारी डैने फैलाकर बढ़ रही है। इसकी रफ्तार ऐसी है कि कोई आश्चर्य नहीं कि इससे संक्रमित लोगों की संख्या के मामले में भारत अमेरिका को पछाड़कर पहले नंबर पर पहुंच जाए। संक्रमण की स्थिति की पहचान और इससे बचाव के लिए 2 अप्रैल को आरोग्य सेतु ऐप की घोषणा की गई थी। 2 अप्रैल को जब इसकी घोषणा की गई, वह पहले लॉकडाउन का नौवां दिन था। उस वक्त कोविड-19 के मामले काफी कम थे और अधिकांश लोगों को भरोसा था कि कुछ ही हफ्तों में इसकी बढ़ने की रफ्तार पर हम काबू पा लेंगे।

हमें बताया गया था कि कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग के खयाल से आरोग्य सेतु ऐप महत्वपूर्ण कदम होगा- इसका उपयोग करने वाले व्यक्ति को संक्रमित व्यक्ति के आसपास आने या होने पर सतर्क करने वाली सूचना मिल जाएगी। इस ऐप ने इस कदर आशा जगाई थी कि सिर्फ 13 दिनों के रिकॉर्ड समय में इसे पांच करोड़ लोगों ने डाउनलोड कर लिया था। यह पूरी दुनिया में डाउनलोड किया गया सबसे तेज ऐप बन गया। लगभग दस करोड़ लोग इसे डाउनलोड कर चुके हैं।

कोविड-19 से निबटने में टेक्नोलॉजी और डाटा प्रबंधन के मामलों की देखरेख करने वाले समूह 9 के चेयरमैन के तत्वावधान में 12 मई को हुई प्रेस मीट में एक अधिकारी ने बताया कि यह मोबाइल ऐप्लीकेशन संक्रमित व्यक्ति के आसपास होने की वजह से संक्रमण के संभावित खतरे को लेकर लगभग 1.4 लाख लोगों को चेतावनी दे चुका है और इसने देश में करीब 700 हॉटस्पॉट को लेकर सूचना जुटाने में मदद की है। आरोग्य सेतु आपके फोन के ब्लूटूथ और लोकेशन डेटा का उपयोग करते हुए आपको संक्रमण के पहचाने जा चुके मामलों के डाटाबेस को स्कैन कर बताता है कि आप कोविड-19 वाले किसी व्यक्ति के आसपास हैं या नहीं। फिर, ये आंकड़े सरकार को दिए जाते हैं।

कई विशेषज्ञों ने इस बारे में चेताया है कि कोविड-19 के नए मामलों का पता लगाने के खयाल से ब्लूटूथ एप्लीकेशन किस तरह बेकार है। फिर भी, सरकार ने इस बात पर जोर देते हुए इसे आगे बढ़ाया कि अगर कोई व्यक्ति पिछले दो हफ्तों में कोविड-19 पॉजिटिव पाया गया है, तो यह ऐप संक्रमण और निकटता के खतरे की गणना कर सकता है और वह इसका उपयोग करने वाले व्यक्ति को सलाह दे सकता है कि वह संक्रमण से किस तरह बचे। कुछ अन्य विशेषज्ञ सवाल उठाते हैं कि आखिर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसी टेक्नोलॉजी डाउनलोड करने का अनुरोध क्यों किया जिसकी क्षमता को लेकर पूरी तरह प्रामाणिकता सिद्ध नहीं है। फिजीशियन और हार्वर्ड में मानवाधिकारों के लिए एफएक्सबी सेंटर के फेलो डॉ. सचित बल्सारी का कहना है कि अधिकांश देशों ने पाया है कि कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग वाले ऐप काम नहीं करते और उन्होंने इसे वापस ले लिया है। वह कहते हैं कि ‘पारंपरिक कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग बहुत कठिन है इसलिए इसका वैसी टेक्नोलॉजी के साथ संवर्धन करना होगा जो वैध हैं। लेकिन इस किस्म का सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप तब ही बढ़ाया जाना चाहिए जब टेक्नोलॉजी विधि मान्य हो।’


दरअसल, ये ऐप यूनिवर्सिटी कैंपस जैसे अपेक्षाकृत छोटे क्षेत्रों में काफी ज्यादा संख्यावाले स्मार्टफोन वाली आबादी में कुछ भूमिका निभाने वाले पाए गए हैं। लेकिन ज्यादा बड़े क्षेत्र में उनकी क्षमता कई तरह की चीजों पर निर्भर करती है। यह बिल्कुल सटीकता के साथ गतिविधि को पकड़ने की संवेदनशीलता पर निर्भर है। यह ऐप किसी शॉपिंग मॉल के दो छोरों या किसी दीवार के दोनों तरफ के लोगों के भी विवरण पकड़ पाने में असमर्थ पाया गया है। यह उन नाजुक फर्क को पकड़ने में भी सक्षम नहीं है कि कोविड-19 वायरस कैसे फैलता है।

और तब भी, कन्टेनमेंट जोन में रहने वाले लोगों तथा सरकारी और निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए इसे अनिवार्य बना दिया गया है। नोएडा में इसे डाउनलोड करना अनिवार्य है और जो ऐसा नहीं करते, उन्हें छह माह की जेल हो सकती है। जोमैटो और स्विगी-जैसे खाना पहुंचाने वाले स्टार्ट-अप ने भी इसे अनिवार्य कर दिया है। हवाई और ट्रेन यात्रा करने वालों के लिए भी यह अनिवार्य है। हाल में दिल्ली से अहमदाबाद जाने और वहां से वापस हवाई यात्रा करने वाली गुड़गांव की एक होम मेकर मिन्नी मेहता ने बताया, ‘जब आप एयरपोर्ट में प्रवेश करते हैं और जब वहां सिक्योरिटी चेक करवाने जाते हैं- दोनों ही अवसरों पर आपको अपना ऐप दिखाना पडता है, अन्यथा आपको आगे जाने की अनुमति नहीं मिलेगी।’ उन्होंने बताया कि ‘जब मैं हवाई अड्डेपर थी, तो ऐप ने मुझे बताया कि 'आप किसी संक्रमित व्यक्ति के पास नहीं हैं।’ जब मैं अहमदाबाद हवाई अड्डे पर पहुंची, तब भी मुझ उसी तरह का संदेश मिला।’

कई लोगों ने इसे एक्टिवेट किए बिना भी इसे डाउनलोड कर लिया है। उद्यमी तृप्ति जोशी ने बताया कि 'मैंने इसे डाउनलोड कर लिया है क्योंकि मुझे कम समय के नोटिस पर यात्रा करनी पड़ती है। लेकिन मैंने अपने ऐप को एक्टिवेट नहीं किया है क्योंकि मुझे इसके कुछ फीचर्स बहुत ही आक्रामक लगते हैं।’

इस ऐप को लेकर कुछ अन्य चीजें हैं जिनसे संदेह पैदा हो रहे हैं। भारत की आबादी का 70 फीसदी से ज्यादा बड़े हिस्से के पास स्मार्टफोन नहीं हैं और इसलिए वे लोग इस ऐप को डाउनलोड करने की हालत में नहीं हैं। एक बिजनेस मैन ने कहा कि ‘रेलवे पहले 16,000 ट्रेन चला रही थी। सरकार इस वक्त महज 260 ट्रेन चला रही है। यह भी चलेगी या नहीं, इसका तब की स्थिति पर फैसला होता है। ऐसे में, इस बड़ी आबादी की ट्रेन यात्रा फिलहाल दूर की कौड़ी ही है।’ और इसलिए उनके बारे में कोई जानकारी नहीं मिलनी है।

कोई व्यक्ति कोविड-19 पॉजिटिव पाया जाता है, तो इस ऐप में यह सूचना डाल दी जाती है। लेकिन वैसे लक्षणहीन (एसिम्पटोमैटिक) लोगों का क्या जिन्हें खुद भी पता नहीं है कि वे संक्रमित और वायरस के कैरियर हैं? उनकी केस हिस्ट्री इस ऐप में दर्ज नहीं होगी और वे संक्रमण फैलाते रहेंगे। सवाल यह भी है कि अगर ऐप आधारित कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग के परिणाम इतने ही असाधारण थे, तो सरकार टेस्टिंग को लगातार बढ़ाने पर क्यों जोर देती रही है। अभी 17 अगस्त को एक ही दिन में नौ लाख लोगों के टेस्ट किए गए और स्वास्थ्य विशेषज्ञ कह रहे हैं कि इनकी संख्या और बढ़ानी होगी।


गुड़गांव में कोलम्बिया एशिया अस्पताल के प्रमुख कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. मोनिक मेहता दावा करते हैं कि इस ऐप का एक मात्र लाभ यह है कि यह हमारे बिल्कुल आसपास के इलाके को लेकर हमें कुछ जानकारी देता है। वह कहते हैं, ‘अभी के हाल में यह एकमात्र ऐप है जिसे सरकार या कोई प्राइवेट ऑपरेटर कुछ नया लेकर सामने आया है।’

भारत दुनिया में एकमात्र ऐसा लोकतांत्रिक देश है जिसने करोड़ों लोगों के लिए कोराना वायरस ट्रैकिंग ऐप को अनिवार्य बनाया है। वह भी ऐसे समय में जब हमारे यहां कोई राष्ट्रीय डेटा प्राइवेसी कानून नहीं है और यह भी साफ नहीं है कि इस ऐप से किसे और किन स्थितियों में डाटा एक्सेस करने का अधिकार है। इस वक्त, डेटा को एक्सेस करने या उसका उपयोग करने को लेकर कोई कड़ी, पारदर्शी नीतिया डिजाइन सीमाएं भी नहीं हैं। यह बात कई नागरिक अधिकार विशेषज्ञ रेखांकित कर चुके हैं। कई लोगों ने यह भी कहा है कि इसका कोड ओपन सोर्स नहीं है और सरकार जो कुछ कह रही है, उसमें कई झोल लगते हैं।

यह प्रमुख सवाल भी विशेषज्ञ भी उठाते हैं कि टेक्नोक्रेट्स की टीम कौन-सी है जिसने यह दावा करते हुए प्रधानमंत्री को गुमराह किया है कि यह महामारी के नियंत्रण में प्रमुख भूमिका निभाएगा जबकि ऐसा है नहीं।

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia