आकार पटेल का लेख: उम्मीद करें 2025 से, जब असमानता और अधिनायकवाद बेलगाम हो

आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस, जलवायु परिवर्तन, असमानता और अधिनायकवाद बेलगाम होकर बढ़ रहे हैं, तो कैसे कहें कि 2025 एक रोमांचक साल होगा, हालांकि कोई यह सुनिश्चित नहीं कर सकता कि जो घटनाएं उत्साह पैदा करती हैं, उनका स्वागत किया जाएगा या नहीं।

डोनाल्ड ट्रम्प और शी जिनपिंग की यह तस्वीर 2018 के जी-20 सम्मेलन के दौरान की है (फोटो : Getty Images)
डोनाल्ड ट्रम्प और शी जिनपिंग की यह तस्वीर 2018 के जी-20 सम्मेलन के दौरान की है (फोटो : Getty Images)
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आकार पटेल

2025 से हमें क्या उम्मीद करनी चाहिए? उम्मीद का अर्थ कि हम इस साल का स्वागत करने के बजाए यह देखें कि क्या कुछ और होगा इस साल। कई मायनों में नया साल एक निर्णायक वर्ष और दौर होगा।

सबसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम तो अगले महीने सामने आएंगे जब डोनाल्ड ट्रम्प फिर से अमेरिका के राष्ट्रपति बनेंगे। पिछले 100 साल के दौरान अमेरिका की राजनीति में जो कुछ भी हुआ है, उसका असर दुनिया पर पड़ता रहा है, लेकिन अमेरिका को ट्रम्प जैसा राष्ट्रपति कभी नहीं मिला है। ज्यादातर अमेरिकी राष्ट्रपति भले ही बदलाव के हिमायती रहे हैं, लेकिन फिर भी वास्तव में निरंतरता को ही प्राथमिकता देते रहे हैं।

यहां तक ​​कि बराक ओबामा जैसी एक अद्भुत शख्सियत ने भी युद्ध और मध्य पूर्व जैसे मामलों पर अमेरिकी नीतियां बदलने के लिए कुछ खास नहीं किया और पिछले चार दशकों में डेमोक्रेट राष्ट्रपतियों और रिपब्लिकन राष्ट्रपतियों की आर्थिक नीतियों में कोई खास फर्क नहीं रहा। मिसाल के तौर पर देखें तो जो बाइडेन ने चीन पर उन्हीं टैरिफ को जारी रखा जो ट्रम्प ने शुरु किए थे।

ट्रम्प कुछ अलग हैं, और इसका कारण है उनका वोट आधार और ऐसे लोगों के प्रति आकर्षण जो एकरूपता तोड़कर बदलाव चाहते हैं और यथास्थिति को खत्म करना चाहते हैं। ट्रम्प इस मामले में भी अलग हैं कि वह लगातार दो कार्यकाल तक नहीं जीत सके। इसका मतलब यह है कि मौजूदा राष्ट्रपतियों के उलट, उन्होंने निरंतरता के खिलाफ अभियान चलाया। लेकिन, इसका यह भी मतलब है कि उन्हें एक पंगु राष्ट्रपति के रूप में नहीं देखा जाएगा, खासकर इसलिए क्योंकि वह संभवतः अपने उत्तराधिकारी को रिपब्लिकन पार्टी के प्रमुख के रूप में नियुक्त करेंगे।

हालांकि ट्र्म्प एक ऐसी राजनीतिक पार्टी का नेतृत्व करते हैं जिसे रूढ़िवाद का प्रतिनिधित्व करने वाला माना जाता है, लेकिन ट्रम्प स्वभाव से रूढ़िवादी नहीं, बल्कि कट्टरपंथी हैं। इन सभी कारणों से, हमें बड़े बदलावों की उम्मीद करनी चाहिए।


सबसे महत्वपूर्ण बदलाव चीन को लेकर रुख में होगा। नौ साल पहले ट्रम्प ने अपने पहले प्रचार अभियान की शुरुआत एक भाषण से की थी जिसमें उन्होंने 23 बार चीन का जिक्र किया था। 2016 से 2020 के राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान उन्हें चीन पर नए टैरिफ लगाए गए जो आज भी लागू हैं। लेकिन ट्रम्प के तमाम भाषणों के बावजूद और खासतौर से प्रसिद्ध उकसावे वाले भाषण के बाद से चीन ने 50 फीसदी की वृद्धि की है। अमेरिका के लिए चीन की प्रगति को रोकना मुमकिन नहीं रहा है। और चीन अब इतना मजबूत हो गया है कि आर्थिक और सैन्य दोनों मोर्चों पर अमेरिका को पीछे धकेल सकता है।

इस कारण से, ट्रम्प को या तो इस मामले में या तो और आक्रामक होना होगा या फिर हार मान लेनी होगी। हार मानने की तो संभावना नहीं लगती, ऐसे में वह आक्रामकता का ही वकल्प चुनेंगे। उनका अभियान ही आक्रामकता पर आधारित था। और इस आक्रामकत का असर दुनिया पर पड़ेगा और हम भी इससे अछूते नहीं रहेंगे।

लोग भारत की ‘चीन प्लस 1’ रणनीति की चर्चा करते हैं, जिसमें भारत को चीन से बाहर निकलने वाली कंपनियों या कहीं और अपने धंधे स्थापित करने से लाभ मिलता है। लेकिन सच्चाई यह है कि बीती चौथाई सदी से भारत को वैश्विक व्यापार के खुलने का फायदा मिला है, और अगर यह बंद होता है तो उसे नुकसान होने की आशंका है। जब वैश्विक व्यापार बढ़ता है तो हमारे निर्यात बढ़ते हैं, जब वैश्विक व्यापार स्थिर या गिरता है तो वे स्थिर या गिर जाते हैं।

यहां चाहे कोई भी सरकार सत्ता में हो, यह रूख नहीं बदलता है और न ही बदलेगा। इसलिए हमें यह नहीं मान लेना चाहिए कि अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध में इजाफे से हमें फायदा होगा, इससे हमें ही नहीं सभी को नुकसान भी हो सकता है।

एक और मुद्दा है जिसका विपरीत असर दुनिया पर पड़ेगा, वह है जलवायु परिवर्तन। ट्रम्प ने अपने पहले कार्यकाल में पेरिस समझौते से हाथ खींच लिये थे और जो बाइडेन के ग्रीन एनर्जी फोकस (मुद्रास्फीति में कमी करने वाले अधिनियम के माध्यम से, जिसमें विद्युतीकरण के लिए भारी सब्सिडी दी गई थी) से हटकर अधिक शोधन (ड्रिलिंग) और अधिक ईंधन हासिल करने की दिशा में बढ़ने का वादा किया गया था। इससे अमेरिका एक ऐसा टापू जैसा बन जाएगा जहां फोर्ड और जनरल मोटर्स जीवाश्म ईंधन (पेट्रोल-डीजल) से चलने वाले पिक-अप ट्रक बनाना जारी रखेंगे जिन्हें केवल अमेरिकी ही चलाएंगे जबकि चीन इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड कारों के वैश्विक उत्पादन पर अपनी पकड़ मजबूत करता रहेगा।


फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि ट्रम्प गाजा में इजरायली नरसंहार या यूक्रेन के खिलाफ रूसी युद्ध को समाप्त करने के लिए क्या कर सकते हैं। उनका सामान्य दृष्टिकोण यह रहा है कि अमेरिका को युद्धों से बाहर निकल जाना चाहिए, लेकिन 2025 में क्या होगा, इस बारे में उन्होंने जो टीम चुनी है, उससे बहुत कुछ पता नहीं चल सकता। ट्रम्प ने मिशिगन जैसे राज्यों में अरब-अमेरिकी वोटरों, खासकर लेबनानी मूल के लोगों का दिल जीतने में कामयाबी हासिल की, क्योंकि वोटर का ये तबका बाइडेन से नाराज था।

यह उम्मीद करना कि अमेरिका इजरायल को बम और विस्फोटक देना बंद कर देगा जिसका इस्तेमाल फिलिस्तीनी बच्चों की हत्या के लिए किया जाता है, इजरायल के कब्जे के लिए दोतरफा या द्विदलीय समर्थन को देखते हुए एक बड़ी बात हो सकती है, लेकिन फिर भी नरसंहार को समाप्त करने या उसमें कमी लाने वाला कोई भी कदम स्वागत योग्य होगा। बाहरी लोगों के लिए यह समझना उल्लेखनीय है कि 2001 के बाद से अमेरिका ने खुद को दुनिया भर में जिस तरह की गड़बड़ हालात में पाया है, उसका असर अमेरिका की  मध्य पूर्व नीति में लड़खड़ाहट की वजह है।

ट्रम्प के पास रूस की तुलना में इजरायल की कार्रवाइयों पर अधिक नियंत्रण है। ऐसा लगता है कि वह अपने पहले के किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति की तुलना में नाटो (NATO) को कहीं ज्यादा नापसंद करते हैं और वह इसे रणनीतिक परिसंपत्ति के बजाए खर्च वाले संगठन के रूप में अधिक देखते हैं। वह चाहते हैं कि रुस के संभावित खतरे के खिलाफ यूरोपीय सुरक्षा के लिए नाटो भुगतान करे, न कि अमेरिका। अगर चीन पर उनके टैरिफ तरीकों की तरह ही, इस रवैये को भी उनके उत्तराधिकारी बुद्धिमानी भरा मानेंगे तो इसका नतीजा एक बड़ा  बदलाव होगा।

ट्रम्प यूरोप और मेक्सिको और कनाडा को मजबूत सहयोगी नहीं मानते हैं, बल्कि इन्हें ऐसे राष्ट्रों के रूप में देखते हैं जिन्हें व्यापार और सुरक्षा के सवाल पर काबू पाना होगा। इससे इन देशों में सवाल उठेंगे कि उन्हें व्यापार और शायद करेंसी जैसे अन्य मुद्दों पर भी चीन के साथ दोस्ताना व्यवहार करना चाहिए।

भविष्य अक्सर बड़े बदलाव का वादा करता हुआ प्रतीत होता है, लेकिन पूरी तरह से नहीं। इस बात की बहुत कम संभावना है कि 2025 और ट्रम्प के चार साल भी इस सामान्य नियम के अनुरूप होंगे। कई मोर्चों पर चीजें – आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस, जलवायु परिवर्तन, अंतरिक्ष, असमानता, अधिनायकवाद - अनुमान से कहीं अधिक तेजी से आगे बढ़ रही हैं। लगभग इस हद तक कि इस पर कोई नियंत्रण नहीं है। यह एक रोमांचक 2025 होगा, हालांकि कोई यह सुनिश्चित नहीं कर सकता कि जो घटनाएं उत्साह पैदा करती हैं, उनका स्वागत किया जाएगा या नहीं।

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