आकार पटेल का लेख: लॉकडाउन खत्म होने के बाद कैसा होगा हमारा जीवन, क्या समाज में आएगी कुछ समानता!

4 मई के बाद इन सबका क्या होगा और एक समाज के तौर पर हमारा क्या होगा जब अचानक हम उस सबसे दूर हो जाएंगे या कर दिए जाएंगे जिसके हम बरसों से आदी हो चुके हैं? सवाल पे सवाल दिमाग में आते हैं।

फोटो : सोशल मीडिया
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आकार पटेल

भारत में लॉकडाउन 3 मई को खत्म हो रहा है, लेकिन 4 मई को या उसके आगे हालात पहले जैसे सामान्य नहीं होंगे। स्कूलों को जून में फिर से खोलने की बात है, लेकिन माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजेंगे, ऐसे में अभी यह स्पष्ट नहीं है कि स्कूल वर्ष या स्कूली शिक्षा का क्या होगा? हम वर्चुअल क्लासरूम (ऑनलाइन पढ़ाई) के लिए तैयार या आदी देश नहीं हैं, और इसमें एक साथ खेलने और घुलने मिलने का स्कूली शिक्षा का जरूरी हिस्सा और अनुभव तो है ही नहीं।

डेनमार्क ने इस सप्ताह अपने स्कूल खोल दिए हैं और बच्चों को क्लासरूम में एक दूसरे से कम से कम छह फुट की दूरी पर अलग डेस्क बिठाया जा रहा है। भारत के अधिकांश स्कूलों में ऐसा करना संभव नहीं है, क्योंकि इनमें सिर्फ बुनियादी तौर पर कमरे होते हैं और बैठने की सुचारु व्यवस्था तक नहीं होती। डेनमार्क के बच्चों को कहा गया है कि वे खेलकूद में शामिल न हों, लेकिन बिना सुपरविजन के ऐसा होना संभव है? बच्चे तो बच्चे होते हैं और दूसरों की मौजूदगी भर से ही उनमें घुलने मिलने का उत्साह पैदा हो जाता है।

कितने माता-पिता अपने बच्चों के जीवन के साथ जोखिम लेंगे, क्योंकि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि स्कूल में बच्चे संक्रमण का शिकार नहीं होंगे।?

और क्या होगा अगर कोई एक बच्चा भी संक्रमित हो जाता है तो? और इसकी संभावना प्रबल है और शायद अपरिहार्य भी। तो क्या स्कूल फिर से स्थाई रूप से बंद हो जाएगा या फिर कुछ नहीं होगा कि उम्मीद में सामान्य रूप से चलता रहेगा? इन समस्याओं के कोई सीधे-सीधे उत्तर फिलहाल नहीं हैं। हम केवल कोशिश कर सकते हैं कि कैसे हालात को सामान्य कर सकते हैं। डेनमार्क की सरकार ने कोशिश की है और कुछ करने का साहस किया।

जब लोग वापस कार्यस्थलों पर जाएंगे तो वहां भी हालात अलग ही होंगे। कंपनियों की नीतियां आमतौर पर मानव संसाधन विभागों (एचआर डिपार्टमेंट) द्वारा तय की जाती हैं। आमतौर पर उनका काम वेतन, पदोन्नति और वेतन वृद्धि, कार्यस्थल पर विवाद और यौन उत्पीड़न के मामलों और भर्ती को देखना है। उन्हें उन चीजों से निपटने का कोई अनुभव नहीं है जो लॉकडाउन खत्म होने के बाद 4 मई से सामने आने वाली हैं। मसलन, क्या कर्मचारियों को काम पर आने के लिए वाहन उपलब्ध कराना चाहिए? क्या कंपनी के ड्राइवरों को ऐसी इजाजत मिलेगी और अगर ड्राइवर या कोई कर्मचारी संक्रमित है तो इसकी जिम्मेदारी किसकी होगी? कार्यस्थलों को इस तरह बदला जाएगा जिसे करने में कई कंपनियां सक्षम ही नहीं होंगी। असेम्बली लाइन और शॉप फ्लोर्स को बरसों की मेहनत के बाद इस तरह विकसित किया गया है कि ताकि इनसे ज्यादा से ज्यादा काम लिया जा सके, लेकिन इसमें संक्रमण से बचाव का कोई तरीका तो है ही नहीं। ऐसे में कामगारों की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाएगी।


ये ऐसे मुश्किल सवाल हैं जिनका कोई उत्तर किसी के पास अभी नहीं है। कार्यस्थलों में एकसमानता नहीं है और बहुत से दफ्तरों और कंपनियों के अपने नियम हैं। इसके अलावा इन नियमों के बदलाव में कानून अड़चनें सामने आएंगी, सुरक्षा और बीमारी से बचाव के नए तरीके खोजने होंगे। इन सबमें एचआर विभागों को कोई अनुभव है नहीं।

प्रसिद्ध लेखक सलमान रुश्दी ने एक बार भारत को एक भीड़ कहा था। भले ही इसे मजाक में कहा गया हो, लेकिन कुछ हद तक यह सही भी है। धार्मिक उत्सवों से लेकर राजनीतिक रैलियों तक बड़ी-बड़ी भीड़ हमारे जीवन का आम हिस्सा हैं। 4 मई के बाद इन सबका क्या होगा और एक समाज के तौर पर हमारा क्या होगा जब अचानक हम उस सबसे दूर हो जाएंगे या कर दिए जाएंगे जिसके हम बरसों से आदी हो चुके हैं? सवाल पे सवाल दिमाग में आते हैं। साथ ही बहुत से कयास भी हैं। दुनिया की सबसे अधिक असमानता वाले समाज में कोरोना वायरस के बाद क्या अधिक समानता आएगा या इसमें और कमी नजर आएगी?

जाहिर है कि इन हालात में अमीर लोग अच्छी स्वास्थ्य सेवाओं का फायदा उठा पाएंगे, लेकिन ऐसा तो हमेशा से होता रहा है। लेकिन जो बदलेगा वह यह कि अब गरीब भी मांग करेगा कि उसके जीवन की बलि न दी जाए और उनके जीवन का भी उतना ही सम्मान हो जितना अमीरों का। यह स्वीकार करना चाहिए कि इस देश ने जब लॉकडाउन को अपनाया तो गरीबों की ही बलि दी गई, लाखों लोग बिना काम, पैसे और भोजन के जहां-तहां फंसे हुए हैं।

सरकार के लिए भी गरीबों की अनदेखी करना अब आसान नहीं होगा, इसीलिए मैं कहता हूं कि समाज में कुछ समानता नजर आएगी। जितने दिन तक यह महामारी लाइलाज रहेगी, उतने दिन तक आम लोगों, पूरे सिस्टम और देशों पर नए-नए बदलावों को अपनाने का दबाव होगा।


बदलाव के बारे में आखिरी बात यह है कि इसकी गति क्या है। मौजूदा पीढ़ी ने जो सबसे बड़ा बदलाव देखा है वह है इंटरनेट और मोबाइल टेलीफोनी का, लेकिन इस बदलाव में भी दो दशक का वक्त लगा। लेकिन अब जो बदलाव हो रहा है वह महज चंद दिनों में हो रहा है, और वह हम सब पर एक तरह से थोपा जा रहा है।

इसलिए यह बदलाव सख्त ही नहीं बल्कि नजर आने वाला भी होगा। हमारी संस्कृति में अनुशासनहीनता को बरदाश्त करने की स्तर शायद बदलेगा। जब कोई एक व्यक्ति दूसरे शख्स की जान को खतरे में गैरजिम्मेदार तरीके से डालेगा तो लोगों के व्यवहार में बदलाव आना लाजिमी है। और यह बदलाव सिर्फ सार्वजनिक जगहों पर थूकने या यातायात नियमों का पालन न करने से जुड़ा नहीं होगा।

अब हम सब एक-दूसरे के लिए जिम्मेदार हैं। यही सबसे बड़ा बदलाव है जो कोरोना वायरस ने हम सब पर थोप दिया है। उम्मीद करें कि मौजूदा संकट ने हमारी जिंदगियों में जो बदलाव किए हैं वह अच्छे के लिए हैं, और ये सब हमें 4 मई से नजर आने लगेगा।

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