हिंसा और नफरत के इस दौर में गांधी जी होते तो क्या करते!

आज महात्मा गांधी की पुण्यतिथि है। गांधी भले ही भौतिक रूप में हमारे साथ नहीं हैं, लेकिन प्रेम, सद्भाव और भाईचारे के उनके प्रयास आज भी प्रासंगिक हैं।

1946 में नोआखली के एक इलाके में महात्मा गांधी, साथ में सुचेता कृपलानी जो उस जगह की तरफ इशारा कर रही हैं जहां हिंसा हुई थी (फोटो - Getty Images)
1946 में नोआखली के एक इलाके में महात्मा गांधी, साथ में सुचेता कृपलानी जो उस जगह की तरफ इशारा कर रही हैं जहां हिंसा हुई थी (फोटो - Getty Images)
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हिमांशु जोशी

मणिपुर में हिंसा का दौर खत्म होने का नाम नही ले रहा है और मणिपुर में चल रही हिंसा ने हमें देश की आजादी के वक्त नोआखली में हुई हिंसा की याद दिला दी है। तब महात्मा गांधी ने नोआखली में जाकर हिंसा समाप्त करने के लिए प्रयास किए थे, यदि आज भी महात्मा गांधी जीवित होते तो मणिपुर के लिए भी वही करते। वह भटकाव के शिकार समुदाय को सद्भावना की ओर मोड़कर हिंसा की आग को बुझाने का हर संभव प्रयास करते।

मणिपुर बीते आठ नौ महीने से जातीय हिंसा से गुजर रहा है, वहां पिछले साल से चल रही हत्याओं का दौर इस साल भी जारी है। मणिपुर में अब तक लगभग दो सौ लोगों की हत्या हो चुकी है। किसी भी जगह युद्ध और हिंसा के बीच सबसे ज्यादा अत्याचार महिलाओं पर किए जाते हैं और मणिपुर में भी यह हो रहा है, पिछले साल हुई एक वायरल वीडियो में पूरे देश ने यह देखा कि किस तरह मणिपुर में महिलाओं पर अत्याचार किए गए।

1946 में नोआखली में महात्मा गांधी

साल 1946 के दौरान भी भारत में मणिपुर की तरह ही हिंसा का दौर चला था और तब हिन्दू-मुस्लिम दंगों में हजारों लोग मारे गए थे। महात्मा गांधी ने तब इन दंगों को समाप्त करने के लिए प्रयास किए। दिनेश चंद्र सिन्हा और अशोक दासगुप्ता की लिखी किताब '1946: द ग्रेट कलकत्ता किलिंग्स एंड नोआखली जेनोसाइड' में महात्मा गांधी के इन प्रयासों के बारे में लिखा है कि लगभग चार महीने तक गांधीजी दंगाग्रस्त इलाकों में रहे। गांवों में घूमे, वहां के निवासियों, हिंदुओं और मुसलमानों दोनों से बातचीत की।

उन्होंने वहां प्रार्थना करने के साथ-साथ प्रेम, शांति और सहनशीलता का संदेश दिया। उन्होंने सात सप्ताह तक नंगे पैर चलते हुए 47 गांवों का दौरा किया, जिसमें उन्होंने 116 मील की दूरी तय की। 


फिलिप्स टेलबोट आजादी के दौरान शिकागो डेली के दक्षिण एशिया संवाददाता थे। उन्होंने नोआखाली, पश्चिम बंगाल की यात्रा की और वहां सांप्रदायिक हिंसा के दौरान महात्मा गांधी के साथ वक्त बिताया। फिलिप्स ने दिल्ली से न्यूयॉर्क में अपने मित्र रोजर्स को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने महात्मा गांधी के साथ अपनी मुलाकात के बारे में लिखा।

यह पत्र रेडिफ डॉट कॉम पर उपलब्ध है, इस पत्र में उन्होंने लिखा कि दो सप्ताह पहले मैंने गांधी जी के साथ एक घंटा टहलने के लिए पांच दिनों की यात्रा की। उन्होंने लिखा कि, 'मेरी यात्रा इस प्रयास के लायक थी, गांधी को इस मुश्किल मौसम में हिंदू-मुस्लिम सौहार्द की तलाश में नंगे पैर गांव-गांव की यात्रा के लिए पूर्वी बंगाल के नोआखाली जिले की दूरदराज में खुद को झोंकते हुए देखना बहुत चौंकाने वाला था।'

गांधी होते तो मणिपुर पर क्या करते!

हमने देशभर में महात्मा गांधी को मानने वाले कुछ महत्वपूर्ण लोगों से पिछले साल गांधी जयंती पर (2 अक्टूबर 2023 में) बात की थी। सवाल था कि अगर आज महात्मा गांधी जीवित होते तो वह क्या करते! 

इस पर सामाजिक कार्यकर्ता प्रोफेसर आनन्द कुमार का कहना था कि "अगर आज गांधी जी हमारे बीच  होते तो वही करते जो उन्होंने नोआखली में किया था। तत्काल मणिपुर जाकर पीड़ित स्त्री - पुरुषों के आंसू पोंछते, हमलावर समुदाय को आइना दिखाते। सर्व धर्म समभाव की राह पर चलते और भटकाव के शिकार समुदाय को सद्भावना की ओर मोड़कर हिंसा की आग को बुझाने का हर संभव प्रयास करते। सरकार चला रहे लोगों को राजधर्म की याद दिलाने के लिए राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से लेकर राज्यपाल और मुख्यमंत्री को सचेत करते। "


गांधीवादी और बीबीसी के पूर्व पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी ने इस सवाल पर कहा कि 'गांधी जीवित होते तो खामोश नहीे रहते। गांधी ने अपने बारे में लिखा है कहीं "आई हैव बीन फाइटर ऑल थ्रू माय लाइफ..." तो गांधी वहां जाते ,दोनों कम्युनिटी के लीडर से बात करते, पता लगाने की कोशिश करते कि झगड़ा किस बात का है और कोई सर्वसम्मति बनाते। फिर भी लोग उस सर्वसम्मति को नहीं मानते तो शायद उपवास भी करते क्योंकि गांधी के अंदर इतना नैतिक बल था कि उनको लगता था कि वह उस नैतिक बल से लोगों का ह्रदय परिवर्तन कर सकते थे। वह अपनी जान जोखिम में डालकर भी समाज में सद्भाव कायम करने का पूरा प्रयास करते।' 

जाने-माने इतिहासकार प्रोफेसर शेखर पाठक ने महात्मा गांधी से जुड़े इस सवाल पर कहा कि 'वे किसी भी तरह मणिपुर जाते। मैतेई, कुकी और नागाओं से संवाद करते। उनको समझाते, सरकार के खिलाफ हड़ताल करते। सरकार को सामान्य स्थिति लाने को विवश करते। वे सभी समुदायों को हिंसा और घृणा से उबारने में जुट जाते।'

सोसाइटी फॉर कम्युनल हार्मनी से जुड़े शशि शेखर सिंह ने कहा 'गांधी जब देश को आजादी मिल रही थी तब भी सांप्रदायिक हिंसा और दंगाग्रस्त क्षेत्रों में हिंदू मुस्लिम समुदाय के लोगों के बीच सद्भावना बनाने के लिए जान की बाज़ी लगाकर कोशिश कर रहे थे। हिंदू मुस्लिम सद्भाव के दुश्मनों ने गांधी की हत्या की, आज अगर गांधी होते तो तुरंत मणिपुर पहुंचते और कुकी, मैतेई समुदाय के बीच हिंसाग्रस्त क्षेत्र में तब तक रहते जब तक, वहां शांति और सद्भाव स्थापित नही हो जाता।'

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