आकार पटेल का लेख: सारे दल मिलकर मोदी का विरोध करते हैं तो इसमें गलत क्या है ?

आप वामपंथियों, समाजवादियों, जाति-आधारित दलों, क्षेत्रीय पार्टियों, निर्दलीयों, भाषायी दलों और भारत भर के किसी भी तरह के राजनीतिक संगठन का समर्थन कर सकते हैं। लेकिन अगर आप हिंदुत्व का समर्थन करते हैं तो आपके लिए सिर्फ एक ही पार्टी है और वह बीजेपी है।

फोटो: सोशल मीडिया 
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आकार पटेल

प्रधानमंत्री और बीजेपी अध्यक्ष दोनों को लगता है कि विपक्ष का एकमात्र लक्ष्य मोदी को सत्ता से बेदखल करना है। हाल में दिये साक्षात्कारों और भाषणों में इन दोनों ने स्पष्ट तौर पर ये बात कही है। क्या यह सच है ? निश्चित तौर पर बीजेपी इस बात पर विश्वास करती नजर आती है और उसके दोनों शीर्ष नेताओं ने लगातार ये बात दोहरायी भी है।

ये आरोप सही भी हो सकते हैं और गलत भी। चलिये पहले हम इसे सच मान लेते हैं। सवाल ये है कि विपक्ष मोदी को क्यों हटाना चाहता है। इसके दो बड़े कारण हो सकते हैं। पहला कारण नकारात्मक (अर्थात विपक्ष एक होकर देश को तबाह करना चाहता है, लेकिन उनके इस मंसूबे की राह में अकेले, नायक मोदी एक दीवार की तरह खड़े हैं। दूसरा कारण सकारात्मक है। अर्थात विपक्ष मोदी से छुटकारा पाना चाहता है, क्योंकि उन्हें लगता है कि वे एक साथ मिलकर मोदी से बेहतर वैकल्पिक सरकार दे सकते हैं। इस भावना में इस तथ्य का प्रभाव हो सकता है कि विपक्ष के कुछ लोगों को लगता है कि मोदी देश को बर्बाद कर रहे हैं।

निष्पक्षता से इसे देखने पर प्रतीत होता है कि पहला उद्देश्य इतना मामूली है कि उसे गंभीरता से नहीं लिया जा सकता है। भारत एक पुराना लोकतंत्र है। इसकी एक विशिष्ट राजनीतिक व्यवस्था है और राजनीतिक दलों ने स्वतंत्रता के समय से इसमें भाग लिया है। कई पार्टियों ने स्पष्ट रूप से अपनी विचारधारा और अपने करिश्माई नेताओं को सबके सामने रखा है और दशकों से उनके पास निष्ठावान प्रशंसक हैं। उन सभी को ‘एकमात्र एजेंडा’ के नाम पर खारिज करना इतिहास की अज्ञानता होगी या उसे नकारना होगा।

इसके साथ ही ‘एकमात्र एजेंडा’ और ‘एकजुट विपक्ष’ का विचार भी कहीं दिखाई नहीं देता है। सच्चाई यह है कि अभी तक कहीं कोई विस्तृत राष्ट्रीय गठबंधन नहीं है।

तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडीशा, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और केरल जैसे कई राज्यों में इस तरह का गठबंधन नहीं है और चुनाव से पहले इन राज्यों में इसकी कोई संभावना भी नहीं है। इन राज्यों में से ज्यादातर में क्षेत्रीय पार्टियों के लिए बीजेपी और मोदी से बड़ा खतरा कांग्रेस है।

मध्य प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी ऐसा कोई गठबंधन नहीं है क्योंकि ये सभी आमतौर पर दो पार्टी वाले राज्य हैं, जहां बीजेपी या एनडीए से कांग्रेस की सीधी लड़ाई है। अब हम दूसरी संभावना पर नजर डालते हैं: जो यह है कि यह आरोप गलत है। विपक्ष का एकमात्र एजेंडा मोदी को सत्ता से बेदखल करना नहीं है। लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मोदी का विरोध करने के लिए विपक्ष लीक से हटकर काम कर रहा है। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी स्वभाविक सहयोगी नहीं रहे हैं। उन्होंने अपने राजनीतिक इतिहास में ज्यादातर समय एक-दूसरे के खिलाफ लड़ा है। तो फिर अब वे एक साथ क्यों आ रहे हैं?

इसका जवाब यह है कि विपक्षी दल मोदी के बहुत पहले से ऐसा करते आ रहे हैं। 1989 तक भारत की राजनीति का प्राथमिक विभाजन कांग्रेस बनाम गैर-कांग्रेस था। इंदिरा और राजीव की कांग्रेस अहंकारी और बहुत हद तक खतरनाक मानी जाती थी, क्योंकि यह दशकों से सत्ता पर हावी रही थी।

बीजेपी के अयोध्या मुद्दा उठाने और बाबरी मस्जिद को धराशायी करने के बाद यह विभाजन बदल गया। वामपंथियों और क्षेत्रीय दलों समेत विपक्ष ने खुद को बीजेपी से दूर करना शुरू कर दिया क्योंकि उन्हें लगता था कि यह पार्टी भारत के सामाजिक ताने-बाने के लिए खतरनाक है।

आप तर्क दे सकते हैं कि ऐसा मानने में वे गलत थे, लेकिन यह कहना गलत होगा कि उन्होंने सिर्फ मोदी की वजह से बीजेपी के खिलाफ एकजुट होना शुरू किया है। लालकृष्ण आडवाणी ने बीजेपी की अस्पृश्यता को "शानदार अलगाव" के रूप में वर्णित किया था, लेकिन वह सिर्फ शब्दों का खेल था। हिंदुत्व ज्यादातर भारतीयों को चिंतित करती है और पार्टियों को असहज करती है। इसका यही एकमात्र स्पष्टीकरण है।

बाबरी के बाद बीजेपी को मिली सफलता का नतीजा है कि जब भी वह सत्ता के करीब पहुंचती है, कई पार्टियां उससे हाथ मिलाने को तैयार रहती हैं, जैसा वाजपेयी के समय में हुआ और अब नीतीश कुमार का जनता दल इसका उदाहरण है। लेकिन अकाली दल और शिवसेना जैसी दो सहयोगियों को छोड़कर बीजेपी को कभी स्थायी साथी नहीं मिला। ऐसा इसलिए है क्योंकि अधिकांश पार्टियां वास्तव में इस बात को लेकर चिंता करती हैं कि हिंदुत्व की राजनीति ने भारतीय समाज के साथ क्या किया है।

मोदी और शाह एकमात्र एजेंडा के बारे में जो कहते हैं, अगर वास्तव में वे उस पर विश्वास करते हैं तो यह उनकी करनी में भी दिखना चाहिए। आप हिंदुत्व की बहुसंख्यक राजनीति का विरोध कर सकते हैं और किसी भी तरह की पार्टी के मतदाता हो सकते हैं। आप वामपंथियों, समाजवादियों, जाति-आधारित दलों, क्षेत्रीय पार्टियों, निर्दलीयों, भाषायी दलों और भारत भर के किसी भी तरह के राजनीतिक संगठन का समर्थन कर सकते हैं। लेकिन अगर आप हिंदुत्व का समर्थन करते हैं तो आपके लिए सिर्फ एक ही पार्टी है और वह बीजेपी है।

यह मानना कि 31% बीजेपी मतदाता जो कर रहे हैं, वह पवित्रता और राष्ट्रवादिता है और अन्य 69% जो कर रहे हैं वह अवसरवादिता है, भारतीय राजनीति को देखने का परिपक्व तरीका नहीं है।

निश्चित तौर पर यह सच है कि सभी राजनीतिक दल सत्ता पाना चाहते हैं और उसे बरकरार रखने के लिए कुछ भी करते हैं। इसमें मोदी और बीजेपी भी आते हैं। वे सरकार में अलग वजहों से नहीं हैं। सभी पार्टियां सोचती हैं कि वे कुछ सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं और सभी नेता इतिहास में जाना चाहते हैं क्योंकि उन्होंने सार्थक योगदान दिया होता है।

यही कारण है जिसकी वजह से पार्टियों का गठन होता है और इसीलिए वे काम करती हैं। इसलिए नहीं कि वे किसी खास व्यक्ति के खिलाफ एकमात्र एजेंडा से भ्रमित हैं।

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