जब शब्दों की कलात्मकता और अपने अंदाज़ से जीत लिया था वाजपेयी ने लाहौर

लाहौर के गवर्नर हाउस की वह यादगार शाम थी। उस शाम प्रधानमंत्री वाजपेयी ने अपने जिस अंदाज़ और शब्दों की जादूगरी से जो समां बांधा था, उससे पाकिस्तान में बैठे मुझ जैसे भारतीय का सिर गर्व से ऊंचा हो गया था।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया

हम वाघा बॉर्डर पर दिल्ली से लाहौर के लिए रवाना हुई उस बस का इंतज़ार कर रहे थे जिससे प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी आने वाले थे। हम दोपहर से पहले ही वाघा बॉर्डर पहुंच गए थे और पाकिस्तानी इलाके में खड़े होकर बेताबी से बस का इंतजार कर रहे थे।

बस धीरे-धीरे सामने से आती नजर आई। वाघा बॉर्डर पर आते ही प्रधानमंत्री वाजपेयी बस से उतर आए और उन्होंने पाकिस्तानी सीमा में मौजूद लोगों का हाथ हिलाकर अभिवादन किया। इस दौरान पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त जी पार्थसारथी और विदेश मंत्रालय के अधिकारी के सी सिंह बहुत तनाव में नजर आ रहे थे। इन्हीं दोनों ने इस यात्रा के सारे इंतज़ाम किए थे।

वाघा बॉर्डर से हमें गवर्नर हाउस जाना था। रास्ते में हमें कई जगह जमात-ए-इस्लामी की छात्र इकाई के कार्यकर्ताओं के विरोध का सामना करना पड़ा। रास्ते भर जगह-जगह विरोध नजर आ रहा था। ऐसा लगता था मानों पाकिस्तानी एजेंसियों ने इन विरोध प्रदर्शनों का आयोजन किया हो।

लेकिन गवर्नर हाऊस में माहौल एकदम अलग था। मैंने जिंदगी में इतनी ढेर सारी काली मर्सिडीज़ एक जगह कभी नहीं देखी थी। हर काली मर्सिडीज़ से पाकिस्तान के मंत्री एक-एक कर उतर रहे थे। प्रधानमंत्री वाजपेयी के आने से पहले हम सब अपनी-अपनी तय जगहों पर बैठ गए।

अटल बिहारी वाजपेयी ने बोलना शुरु किया। उन्होंने मानो जादू कर दिया हो सब पर। मैंने जिंदगी में पहले कभी इस किस्म की वाकपटुता या भाषण कला किसी में नहीं देखी थी। बरसों बाद कुछ ऐसा ही भाषण अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने काहिरा में दिया था।

मुझे याद नहीं कि वाजपेयी कितनी देर बोले, लेकिन यह एक लंबा भाषण था। लेकिन किसी के चेहरे पर शिकायत की शिकन तक नहीं थी। हम सबको मानों उन्होंने सम्मोहित कर लिया हो। मुझे याद है कि मेरे आसपास बैठे लोग वाजपेयी जी की तारीफें कर रहे थे। वे बिना किसी पूर्व तैयारी या कोई कागज़ बोल रहे थे। उनके भाषम में अपनी बात कहने का जोर था, तो शब्दों में कलात्मकता झलक रही थी। वह इतना जबरदस्त भाषण था कि भारतीय प्रतिनिधि मंडल भी विस्मित नजर आ रहा था।

मैं महसूस कर सकता था कि वाजपेयी जी ने अगले दिन के अखबारों के लिए कई सुर्खियां दे दी हैं। मुझे याद है कि मैं काफी देर तक तय नहीं कर पाया था कि उनके भाषण की किस बात से अपनी रिपोर्ट की शुरुआत करूं। उन्होंने बहुत सारे मुद्दों पर बात की थी, और हर मुद्दा बेहद अहम था।

उस शाम को आत्मसात कर होश में आने में मुझे काफी देर लगी। मैं इस बात का साक्षी हूं कि वाजपेयी ने अपनी वाकपटुता और भाषण कला से कैसे शत्रु को धराशाई कर दिया। उनके भाषण की आभा में सारे विरोध हवा हो चुके थे और लोग सिर्फ यही चर्चा कर रहे थे कि वाजपेयी ने क्या क्या कहा।

भाषण के बाद पत्रकारों को संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस के लिए बुलाया गया। इस प्रेस कांफ्रेंस को वाजपेयी के साथ नवाज शरीफ को संबोधित करना था। शब्दों के जादूगर वाजपेयी ने प्रेस कांफ्रेंस तो मानो पूरी की पूरी अपने नाम ही कर ली। अपने अंदाज़ और हाजिरजवाबी से पाकिस्तानी मीडिया के तमाम पत्रकारों को उन्होंने अपना दोस्तबना लिया।

2004 के लोकसभा चुनावों में उनकी हार से एक बात तो साबित हो गई कि वे प्रधानमंत्री के तौर पर नाकाम रहे। उनके कई फैसलों पर हमेशा सवाल उठाए जाते रहेंगे। इनमें एयर इंडिया की उड़ान आईसी 814 का अपहरण या हाईजैक और 2002 के गुजरात दंगे भी हैं। उनके नाम के साथ ये दोनों घटनाएं हमेशा याद की जाएंगी।

लेकिन पाकिस्तान में गुजारी उस जोशीली शाम को वाजपेयी ही विजेता थे। उन्होंने तेवरों का युद्ध तो जीता ही, अपने हास्यपूर्ण और चुटीले अंदाज़ से पाकिस्तानियों का दिल भी जीत लिया।

एक और किस्सा है, जिसे में यहां लिखने से खुद को रोक नहीं पा रहा हूं। यूं तो किसी विदेशी जमीन पर यह मेरा पहला पत्रकारीय अनुभव था, लेकिन लाहौर पहुंचने के बाद मुझे ऐसा ही लगा मानो मैं भारत में पंजाब के किसी शहर से रिपोर्टिंग कर रहा हूं। वहां उर्दू के मुकाबले पंजाबी बोलने वाले ज्यादा लोग थे। 19 फरवरी 1999 को लाहौर के होटल पर्ल में चेक इन करने के बाद मैंने कुछ साथी पत्रकारों के साथ वहां का अनारकली बाज़ार घूमने का मन बनाया। हमारे मेजबान ने अनारकली बाजार तक पहुंचाने के लिए हमारे लिए एक बस का इंतज़ाम किया था, साथ ही दो खूबसूरत लड़कियों को हमारे गाइड के तौर पर हमारे साथ भेजा गया था।

मैं और मेरा सिख दोस्त रवि रंजन सिंह, बाजार की तरफ बढ़ रहे थे, तभी साइकिल पर सवार एक लड़का करीब आया और रवि से उसके हाथ में पहने हुआ कड़ा मांगने लगा। उस लड़के ने जिस अंदाज़ में रवि से कड़ा मांगा था, उससे हम दोनों ही थोड़ा सकपका से गए। उस लड़के ने कहा, “पा जी ऐ मैंनू दे दां”

उस लड़के के बुजुर्गों ने उसे कड़ा पहनने की ताकीद की थी, लेकिन पाकिस्तान के गुरुद्वारों में उसके नाप का कड़ा मिल नहीं रहा था। रवि ने खुशी-खुशी उसे अपन कड़ा दे दिया था।

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