मोदी सरकार में किसी चीज की गारंटी हो या न हो पर अभिव्यक्ति पर पहरे की पूरी गारंटी है!

भारत सरकार विरोध की किसी आवाज से किस कदर डरती है, इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि लगभग एक वर्ष के भीतर ही यह दूसरी डॉक्युमेंट्री है जिसे केंद्र सरकार ने प्रतिबंधित किया है।

फोटोः सोशल मीडिया
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महेन्द्र पांडे

पिछले कुछ महीनों से मोदी जी की गारंटियों का दौर चल रहा है, पर इनमें अभिव्यक्ति की आजादी की कोई गारंटी नहीं है। अलबत्ता, पिछले कुछ महीनों से सरकार यह साबित करने पर तुली है इस देश में केवल वही अभिव्यक्ति आजाद होगी जो मोदी जी, बीजेपी और संघ का गुणगान करेगी या उनका प्रचार करेगी। इनसे परे की अभिव्यक्ति पर पहरे लगा दिए जायेंगे। हाल में ही केंद्र सरकार ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित सिख नेता हरदीप सिंह निज्जर की कनाडा में हत्या से संबंधित एक डॉक्युमेंट्री को देश में दिखाए जाने से प्रतिबंधित किया है। कनाडा सरकार ने वैंकोवर में पार्किंग में हुई इस हत्या के लिए भारत सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। केंद्र सरकार ने सोशल मीडिया पर सभी वीडियो शेयरिंग प्लेटफोर्म को आदेश दिया है कि इस डॉक्युमेंट्री को ब्लाक कर दिया जाए।

इस डॉक्युमेंट्री को कनाडा के राष्ट्रीय नेटवर्क सीबीसी के फिफ्थ एस्टेट नामक चैनल ने बनाया है। कुल 43 मिनट की इस डॉक्युमेंट्री का नाम है, कॉन्ट्रैक्ट टू किल। सीबीसी ने अपने वक्तव्य में बताया है कि नेटवर्क डॉक्युमेंट्री टीम के साथ खड़ा है, इसे विस्तृत अनुसंधान के बाद बनाया गया है और पत्रकारिता के मानदंडों पर पूरी तरह से खरा उतरता है। सोशल मीडिया प्लेटफोर्म यूट्यूब और एक्स ने भारत सरकार के आदेश की पुष्टि की है, और कहा है कि आदेश को मानते हुए इस डॉक्युमेंट्री को केवल भारत में ब्लाक किया जा रहा है पर भारत छोड़कर पूरी दुनिया में इसे देखा जा सकेगा। एक्स के बयान में कहा गया है कि डॉक्युमेंट्री को केवल आदेश मानते हुए ब्लाक किया जा रहा है पर वे भारत सरकार के आदेश से सहमत नहीं हैं और अभिव्यक्ति की आजादी और प्रेस की आजादी का आदर करते हैं।


भारत सरकार विरोध की किसी आवाज से किस कदर डरती है, इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि लगभग एक वर्ष के भीतर ही यह दूसरी डॉक्युमेंट्री है जिसे केंद्र सरकार ने प्रतिबंधित किया है। वर्ष 2023 के शुरू में इमरजेंसी कानूनों की मदद से गुजरात दंगों से संबंधित बीबीसी की डॉक्युमेंट्री “द मोदी क्वेश्चन” को केवल प्रतिबंधित ही नहीं किया गया था, बल्कि केन्द्रीय जांच एजेंसियां बीबीसी के कार्यालयों और कर्मचारियों की आनन्-फानन में जांच करने लगी थीं।

इसी वर्ष फरवरी में कर्नाटक सरकार की अतिथी, भारतीय मूल की प्रोफ़ेसर नीताषा कौल को केंद सरकार के आदेश के अनुसार सुरक्षाकर्मियों ने बेंगलुरु के एयरपोर्ट से बाहर निकलने नहीं दिया और वहीं से अगले दिन ब्रिटेन वापस कर दिया। नीताषा कौल लंदन स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ़ वेस्टमिनस्टर में सेंटर फॉर स्टडी इन डेमोक्रेसी की अध्यक्ष हैं। नीताषा कौल भारतीय मूल की हैं और ओवरसीज सिटीजनशिप ऑफ़ इंडिया की कार्ड धारक हैं, जिसके तहत भारत में कितने बार भी आ सकती हैं और अपनी मर्जी की अवधि तक रुक सकती हैं। उन्होंने कभी राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ की आलोचना की थी, जाहिर है केंद्र सरकार ने उन्हें देश में आने नहीं दिया।

नीताषा कौल ने कहा है कि एयरपोर्ट पर भी उन्हें खाने और पीने की आजादी नहीं दी गयी और बहुत संकरी जगह पर बंधकों की तरह रखा गया। उन्हें एयरपोर्ट के सुरक्षाकर्मियों ने रोकने का कोई कारण नहीं बताया, पर अनौपचारिक बात में दिल्ली से रोकने के आदेश का जिक्र सुरक्षाकर्मियों ने किया। आरएसएस की आलोचना के बाद जैसा कि बीजेपी और आरएसएस की चारित्रिक विशेषता है, उन्हें लगातार बलात्कार और हत्या की धमकी मिलती रही और भारत में उनके परिवार वालों को भी प्रताड़ित किया गया।


इससे पहले स्वीडन स्थित भारतीय मूल के शिक्षाविद अशोक स्वेन का केंद्र सरकार ने ओवरसीज सिटीजनशिप ऑफ़ इंडिया कार्ड रद्द कर दिया है। अशोक स्वेन भारत सरकार की नीतियों के मुखर आलोचक रहे हैं। फरवरी 2024 के शुरू में फ्रांस की भारतीय मूल की पत्रकार वनेस्सा दौग्नाए को अपनी पत्रकारिता में मोदी सरकार की आलोचना के कारण भारत छोड़ना पड़ा है। मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना को केंद्र सरकार शुरू से ही देश की संप्रभुता और एकता पर हमला बताती रही है और यही वनेस्सा दौग्नाए के साथ भी किया गया। वनेस्सा दौग्नाए पिछले 25 वर्षों से भारत में रह रही थीं और फ्रांस के दो अखबारों के साथ ही स्विट्ज़रलैंड और बेल्जियम के एक एक अखबार के लिए दक्षिण एशिया प्रमुख थीं। फरवरी में ही सोशल मीडिया प्लेटफोर्म एक्स ने खुलासा किया था कि सरकारी आदेश के कारण उसे किसान आंदोलन से संबंधित सैकड़ों पोस्ट को ब्लाक करना पड़ा था।

इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स द्वारा प्रकाशित वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में स्वघोषित विश्वगुरु यानि भारत कुल 180 देशों की सूचि में 161वें स्थान पर पहुँच गया है। वर्ष 2022 में भारत 150वें स्थान पर था, यानि एक वर्ष में 11 स्थानों की गिरावट दर्ज की गयी है। दुनिया के केवल 19 देश ऐसे हैं जहां मीडिया की आजादी हमसे भी बदतर है। गिरावट का सिलसिला तेजी से बढ़ रहा है, वर्ष 2021 में भारत 142वें स्थान पर था। अब ऐसी खबरें पढ़कर कोई आश्चर्य नहीं होता अलबत्ता समाचार चैनलों को देखकर और समाचारपत्रों को पढ़कर कुतूहल अवश्य होता है कि अभी तक हम अंतिम स्थान पर नहीं पहुंचे? इंडेक्स में लगातार गिरते रहने से जाहिर है केंद्र सरकार जरूर खुश होती होगी और निष्पक्ष पत्रकारों और मीडिया जगत को डराने वाली नीतियों पर इतराती होगी। दूसरी तरफ तथाकथित जोकर-नुमा पत्रकार और पूंजीपतियों के मीडिया घराने भी इस खबर से खुश होते होंगे क्योंकि उन्होंने पत्रकारिता की मर्यादा तार-तार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। एक शर्मनाक तथ्य यह है कि पड़ोसी देश पाकिस्तान और अशांत अफ़ग़ानिस्तान ने इस वर्ष प्रेस फ्रीडम के सन्दर्भ में पिछले वर्ष की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है।

भारत के पड़ोसी देशों में भूटान 90वें, नेपाल 95वें, श्रीलंका 135वें, पाकिस्तान 150वें, अफ़ग़ानिस्तान 152वें, बांग्लादेश 163वें, म्यांमार 173वें और चीन 179वें स्थान पर है। रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स के अनुसार दुनिया की 85 प्रतिशत आबादी ऐसे देशों में रहती है, जहां पिछले 5 वर्षों के दौरान प्रेस की आजादी का हनन हुआ है। प्रेस की आजादी पर सबसे बड़ा खतरा तीन देशों – भारत, तुर्की और ताजीकिस्तान में है। इस वर्ष रिकॉर्ड संख्या में देशों में प्रेस की आजादी में गिरावट दर्ज की गयी है। इसका सबसे बड़ा कारण दुनिया में प्रजातंत्र के नाम पर निरंकुश तानाशाही का पनपना, सोशल मीडिया पर गलत सूचनाओं की भरमार, सरकारी प्रोपेगंडा और आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस का व्यापक प्रसार है।

हम इतिहास के उस दौर में खड़े हैं जहां मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी के सन्दर्भ में हम पाकिस्तान, रूस, चीन, बेलारूस, तुर्की, हंगरी, इजराइल को आदर्श मान कर उनकी नक़ल कर रहे हैं और स्वघोषित विश्वगुरु का डंका पीट रहे हैं। यह दरअसल देश के मेनस्ट्रीम मीडिया की जीत है, क्योंकि यह मीडिया ऐसा ही देश ऐसी ही निरंकुश सत्ता चाहता है जिसके तलवे चाटना ही उसे समाचार नजर आता है। यही रामराज्य है।

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