आखिर विकास में दिलचस्पी किसे है?

युवाओं को नई नौकरियां ढूंढ़ने में भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है और सरकार द्वारा रूड़ी की बर्खास्तगी इस विफलता की पहली स्वीकार्यता है।

राजीव प्रताप रूड़ी और अनंत कुमार हेगड़े/ फोटो: Getty Images
राजीव प्रताप रूड़ी और अनंत कुमार हेगड़े/ फोटो: Getty Images
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राहुल पांडे

रोजगारविहीन विकास ने अपनी पहली बड़ी बलि ले ली है। खराब प्रदर्शन के लिए केंद्रीय कौशल विकास मंत्री राजीव प्रताप रूड़ी को हटा दिया गया है, लेकिन समस्या इससे कहीं ज्यादा गंभीर है। कुशल हों या गैर-कुशल, युवाओं को नई नौकरियां ढूंढ़ने में भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है और सरकार द्वारा रूड़ी की बर्खास्तगी इस विफलता की पहली स्वीकार्यता है। आगे और भी बहुत कुछ होने वाला है।

कैबिनेट मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को रूड़ी की जगह कौशल विकास मंत्रालय का प्रभार दिया गया है और अनंत कुमार हेगड़े को राज्यमंत्री बनाया गया है, जो डॉक्टरों को पीटने के आरोपी हैं और अपनी कट्टर दक्षिणपंथी विचार के लिए सुर्खियों में रहे हैं। हेगड़े विकास का चेहरा नहीं हो सकते, लेकिन वर्तमान सरकार में योग्यता बदलाव की वाहक नहीं है।

कैबिनेट से रूड़ी की विदाई काफी सम्मानजनक रही क्योंकि उन्हें पता है कि अपनी भावनाओं को जाहिर करने का अर्थ अपने राजनैतिक कैरियर का पटाक्षेप करना होगा। लेकिन उनकी प्रतिक्रिया यह बताने के लिए पर्याप्त है कि आर्थिक मोर्चे पर खराब प्रदर्शन को लेकर बीजेपी के भीतर सवाल खड़े होने शुरू हो गए हैं। अगले लोकसभा चुनावों का प्रचार शुरू होने में एक साल से थोड़ा सा ही ज्यादा समय बचा है और बीजेपी के पास उपलब्धि के नाम पर बताने के लिए कुछ खास नहीं है।

एनडीटीवी से बात करते हुए रूड़ी ने कहा कि कैबिनेट से हटाए जाने की वजह अपने बॉस को अपने काम के बारे में बता पाने में उनकी असमर्थता रही। बहरहाल, इस बात में कुछ हद तक सच्चाई हो सकती है। लेकिन उन्होंने एक अहम सवाल उठाया है जिसका जवाब सरकार को देना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘मैं किस तरह रोजगार पैदा कर सकता था? मेरा काम रोजगार प्राप्त करने लायक कार्यबल तैयार करना था। मुझे दिए गए निर्देश में उन्हें रोजगार दिलाने का कहीं उल्लेख नहीं था।‘

असल में रूड़ी कह रहे हैं- मेरा काम लोगों को प्रशिक्षण देना था, जो मैंने किया। अगर ये युवा पुरुष और महिलाएं नौकरी ढूंढ पाने में असमर्थ हैं तो मुझे इसका जिम्मेदार मत ठहराइए। असल में वह कह रहे हैं कि यह वित्त मंत्री की विफलता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आतुर युवाओं को अधिक रोजगार उपलब्ध कराने के अपने वादे के दम पर सत्ता में आए थे। उनका वादा आर्थिक विकास में तेजी लाना और लोगों को कम से कम एक करोड़ नई नौकरियां उपलब्ध कराने का था। अपने कार्यकाल के तीन वर्षों में रोजगार वृद्धि 8 साल के सबसे निचले स्तर पर चले जाने की वजह से वह पूरी तरह से विफल हो चुके हैं।

टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार के श्रम ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2015 और 2016 में प्रमुख क्षेत्रों में रोजगार वृद्धि दर 1.55 लाख और 2.31 लाख रही जो 8 साल का सबसे निचला स्तर है। इसकी तुलना में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के कार्यकाल में 2009 में 10 लाख नए रोजगारों का सृजन हुआ था।

ऐसे समय में वित्त मंत्री को बदलना अर्थव्यवस्था के अच्छा प्रदर्शन करने के किसी भी दावे की हवा निकाल देगा। प्रधानमंत्री सक्रियता को ज्यादा महत्व देते हैं और गहन विचारों को अर्थहीन समझते हैं, इसलिए इसका ज्यादातर दोष प्रधानमंत्री को झेलना होता।

यहां यह नहीं कहा जा रहा है कि रूड़ी ने कौशल विकास मंत्री के रूप में शानदार काम किया है। उनके मंत्रालय के अंतर्गत 2022 तक 50 करोड़ युवा भारतीयों को प्रशिक्षित करना था, लेकिन इस योजना पर पानी फेर दिया गया। मंत्रालय ने 2016-17 के लिए 8,062 करोड़ रुपये की मांग की थी, लेकिन उसे इसका एक चौथाई यानी लगभग 1804 करोड़ रुपये से ही संतोष करना पड़ा।

हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार कौशल मंत्रालय में संयुक्त सचिव और महानिदेशक प्रशिक्षण राजेश अग्रवाल ने कहा, ‘हम किसी भी संख्या का पीछा नहीं करना चाहते। चाहे नेशनल स्किल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (एनएसडीसी) की 15 करोड़ की संख्या हो या मंत्रालयों द्वारा दी गई 35 करोड़ की, हम किसी संख्या को नहीं जोड़ रहे हैं, बल्कि इसे अलग कर रहे हैं।‘

मोदी सरकार की कौशल विकास पहल कमोबेश मोदी सरकार द्वारा उठाए गए अन्य कदमों की तरह ही है। जब यह योजना लागू की गई तो बड़े पैमाने पर प्रचार कर माहौल बनाया गया, लेकिन इसके नतीजों ने निराश किया है। यह कहानी कई बार दोहराई जा चुकी है, लेकिन सरकार के पास अब नए हथकंडों की कमी हो गई है।

रूड़ी को हटाने के बीजेपी के फैसले को बड़े राजनीतिक संदर्भ में देखा जाना चाहिए। नीतीश कुमार के साथ गठबंधन के बाद बीजेपी बिहार में थोड़ा और बेहतर प्रदर्शन करने को लेकर आश्वस्त है और इसलिए वह कर्नाटक पर ध्यान केंद्रित करना चाहती है, जहां पार्टी कमजोर नजर आ रही है।

नए राज्य मंत्री का नफरत और घृणा से भरे ट्वीट का लंबा इतिहास रहा है, जो उनका सबसे प्रमुख कौशल नजर आता है। कर्नाटक में चुनाव होने वाले हैं, इसलिए राष्ट्रीय मीडिया में नए मंत्री और अधिक बयान देते नजर आएंगे जिसका लक्ष्य ध्रुवीकरण करना होगा। यह राजनीतिक रूप से लोगों को कौशल या रोजगार देने से अधिक उपयोगी हो सकता है।

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