विष्णु नागर का व्यंग्यः जो सत्ता में आता है, सबसे बड़ा देशभक्त हो जाता है, फिर हमें ही देशभक्ति पढ़ाने लगता है!

सरकार में आओ तो सरकार के जो काम हैं, वे करो। देशभक्ति करने न करने का दायित्व नागरिकों पर छोड़ दो। तुम्हें अपनी निजी देशभक्ति के प्रदर्शन का शौक हो तो जैसे पहलवान अखाड़े में पहलवानी दिखाते हैं या क्रिकेटर स्टेडियम में, तुम भी दिखाओ। चाहो तो टिकट लगाओ।

फोटोः सोशल मीडिया
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विष्णु नागर

एक हैं, जो भारत का 25 साला 'अमृत काल' शुरू करने जा रहे हैं। दूसरे भाजपाई नहीं हैं, मगर इसी राह पर हैं। वह देशभक्ति का पाठ पढ़ा रहे हैं। पहले वाले आजकल इतने बड़े देशभक्त बन चुके हैं कि सारी सरकारी संपत्ति को लूट कर खा और खिला रहे हैं। हिंदू-मुसलमानों को लड़ाने के नये-नये अन्वेषण कर-करवा रहे है़ं। उनके लिए अडानियों और अंबानियों की जेब भरना सबसे बड़ी 'देशभक्ति' है!

बुद्धिजीवियों, लेखकों, छात्रों से जेलें भरना, पत्रकारों को नौकरी से निकलवाना 'देशभक्ति' है। झूठ पर झूठ बोलना, जासूसी करवाना 'देशभक्ति' है। और जो उनकी जय न बोले, उसे सबसे बड़ा देशद्रोही घोषित करवाना 'देशभक्ति' है। बस उनका खांसना-खखारना अभी 'देशभक्ति' घोषित नहीं हुआ है। 'अमृत काल' में वह भी हो जाएगा!

दूसरे 'देशभक्त' दिल्ली में जगह-जगह बड़े-बड़े राष्ट्रीय ध्वज लगवाकर हमें 'देशभक्त' बनाने पर तुले हैं। पता नहीं, उन्हें किसने बताया कि उनकी पार्टी को दो-दो बार सत्ता में लाने वाले वोटर देशभक्त नहीं थे। उन्हें रोज देशभक्ति के इंजेक्शन देने पड़ेंगे! वह ऐसा इंतजाम कर रहे हैं कि दिल्ली में अपने दफ्तर या कहीं और आप जाएं तो रास्ते में कम से कम दो बार आपका तिरंगे से सामना हो। इससे हममें देशभक्ति जागेगी!

मेरा निवेदन है कि इस तरह माननीय राष्ट्रीय ध्वज को मजाक मत बनाओ। उसकी गरिमा रहने दो। इस पार्टी को दिल्ली में मेरे जैसों ने इसलिए वोट नहीं दिया था कि यह मुझे, मेरी पत्नी, मेरे बच्चों, मेरे दोस्तों को देशभक्ति का पाठ पढ़ाएगी। वोट इसलिए दिया था कि ये सरकार को ठीक से चलाएंगे। जो भी सरकार में आता है, स्वतः बहुत बड़ा देशभक्त हो जाता है, फिर देशभक्ति पढ़ाने लगता है। वह हमें वह नहीं रहने देता, जो हम हैं!


मैं तो बिना देशभक्त बने बहुत ठीक रहा। मुझे गाय के नाम पर किसी की हत्या नहीं करना। मैं 'लव जेहाद' की बकवास में नहीं पड़ा। किसी मुसलमान लड़के को कोई हिंदू लड़की पसंद आए या किसी हिन्दू लड़के को मुसलमान लड़की और दोनों शादी करना चाहें तो कोई दिक्कत नहीं। ऐसा जोड़ा मुझे शादी में बुलाए तो मैं जाऊंगा और नहीं जा पाया तो अपनी शुभकामनाएं दूंगा, दी भी हैं। मेरे लिए शादी करने वाले दो व्यक्तियों का प्रेम जरूरी है, उनकी जाति, धर्म और देश नहीं।

मुझे न और मंदिर चाहिए और न और मस्जिदें। मुझे ऐसा मंदिर तो बिल्कुल नहीं चाहिए, जो किसी मस्जिद को गिरा कर बना हो। मुझे दंगे में किसी को मारने या किसी के हाथों मारे जाने में दिलचस्पी नहीं। इसके लिए 'देशभक्त' होना पड़ता है और वह मैं हूं नहीं। मुझे दिल्ली में 100- 115 फुट ऊंचे 500 तिरंगे नहीं चाहिए। मैं मंदिर के सामने से गुजरता हूं तो सिर नहीं झुकाता। इतने सारे तिरंगों के सामने से गुजरूंगा तो भी जन-गण-मन गाकर आगे नहीं बढ़ूंगा।

मुझे और मेरे परिवार को न संघ और मोदी की 'देशभक्ति' की दरकार है और न केजरी ब्रांड 'देशभक्ति' की। मैं ऐसी देशभक्ति का क्या करूं, जो मुसलमानों के मसलों पर मुंह फेर लेती है! जो दिल्ली दंगे से सुरक्षित दूरी बना कर रखती है। मुझे कन्हैया कुमार आदि पर देशद्रोह का मुकदमा चलाने की अनुमति देने वाली सरकार की देशभक्ति नहीं चाहिए। मैं इस देश के संविधान को मानता हूं और संविधान की भावना के अनुकूल बने कानूनों को भी।

मैं शाहीन बाग आंदोलन के साथ था और उसे आजादी के बाद के आंदोलनों में मील का पत्थर मानता हूं। मेरे मन में उन मुस्लिम महिलाओं के लिए और उनके साथ खड़े होने वाले तमाम लोगों के प्रति गहरा सम्मान है। मैं नागरिकता कानून का विरोधी हूं। मैं किसानों के ऐतिहासिक आंदोलन का समर्थक हूं। मैं किसानों-मजदूरों आदि के शोषण करने और करवाने वाली सरकारों से नफरत करता हूं।


मुझे महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सीमांत गांधी, भगत सिंह ऐसे सब नेताओं से प्यार है और उनकी मूल विचारधारा से सहमत हूं। मैं गांधी जी से पूरी तरह सहमत नहीं लेकिन सबका सबकुछ मानना भी जरूरी भी क्यों है? मैंने कम्युनिस्टों की आलोचना की, लेकिन उन्हें कभी देशद्रोही नहीं माना। मैं 'देशभक्त' नहीं हूं।

तुम सरकार में आओ तो सरकार के जो काम हैं, वे करो। देशभक्ति करने न करने का दायित्व नागरिकों पर छोड़ दो। तुम्हें अपनी निजी देशभक्ति के प्रदर्शन का शौक हो तो जैसे पहलवान अखाड़े में पहलवानी दिखाते हैं या क्रिकेटर स्टेडियम में, तुम भी दिखाओ। चाहो तो टिकट लगाओ। जिसे आना होगा, आएगा। 'देशभक्ति' हमारे सिर पर मत लादो।

मैं रवींद्रनाथ का कायल हूं, जो कहते थे, मैं देशभक्ति के कांच के टुकड़े के लिए मानवता का हीरा नहीं छोड़ सकता। मैं प्रेमचंद का कायल हूं, जिन्हें संघी अपना हीरो नहीं बना सके। ये जितने देशभक्त थे या नहीं थे, उतना मैं भी देशभक्त हूं या नहीं हूं। और अगर देशभक्त हूं तो भी इसका तमगा नहीं लगाऊंगा। इसके बावजूद मेरी तबीयत किसी भी देशभक्त से अधिक ठीक है। देश के सबसे बड़े और दिल्ली के सबसे बड़े देशभक्त से तो कुछ ज्यादा ही ठीक है!

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