आखिर चीन क्यों विचलित हुए बिना टैरिफ मुद्दे पर अमेरिका को दे रहा है मुंहतोड़ जवाब! / आकार पटेल

चीन को अमेरिका के सामने खड़े होने का आत्मविश्वास है क्योंकि वह जानता है कि उसने योजना और मेहनत से जो बनाया है, उसे दोहराना मुश्किल है। और उसे यह समझ है कि दुनिया उस पर निर्भर करेगी, चाहे अमेरिका पर शासन करने वाले लोगों की अलग-अलग कल्पनाएं कुछ भी हों।

यह तस्वीर 2017 की है( फोटो : Getty Images)
यह तस्वीर 2017 की है( फोटो : Getty Images)
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आकार पटेल

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का दावा है कि दुनिया भर के देशों के वाणिज्य मंत्रालय टैरिफ को लेकर उनके सामने गिड़गिड़ा रहे हैं। क्या भारत भी इनमें शामिल है? जाहिर तौर पर है हम ऐसा नहीं कर रहे हैं। अभी वीकेंड पर एक हेडलाइन में वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के हवाले से कहा गया: ‘हम बंदूक की नोक पर बातचीत नहीं करते’। इस मामले में यह सही तरीका है, और मैं इससे सहमत हूं। संप्रभु राष्ट्रों को इस बात पर जोर देना चाहिए कि उनके साथ बराबरी का बरताव हो न कि उन्हें किसी जागीरदार का गुलाम माना जाए। चीन ने इस मोर्चे पर मजबूती से उसी तरह जवाब दिया है जैसा कि अब तक सिर्फ कनाडा ने दिया था, लेकिन अभी तक इस बारे में कोई स्पष्टता नहीं है कि आखिर अमेरिका की मंशा क्या है, इसलिए फिलहाल इंतजार करना ही सही है।

इसके अलावा भी गोयल ने कुछ ऐसा कहा कि जो था तो टैरिफ से संबंधित लेकिन जो कुछ कहा उससे वह परेशानी में पड़ गए। उन्होंने कहा कि भारत के नए व्यवसाय इनोवेशन के बजाय दुकानदारी पर आधारित हैं। उन्होंने चीन की मिसाल देते हुए कहा कि वहां जहां स्टार्ट-अप रोबोटिक्स और एडवांस मैन्यूफैक्चरिंग और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर काम कर रहे हैं। इस बयान के लिए गोयल को उद्यमियों से प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। उद्यमियों का कहना है कि कई नए बिजनेस वही काम कर रहे हैं जिसकी बात गोयल कर रहे हैं।

भारत में कारोबार का इतिहास बताता है कि 20वीं सदी तक व्यापारिक समुदाय मुख्य रूप से व्यापारी और बैंकर थे। 1919 में बिरला परिवार विनिर्माण क्षेत्र में आया, और उससे पहले पारसियों सहित कुछ गुजराती लोग ही थे - टाटा स्टील 1910 के आसपास अस्तित्व में आया।

निर्मित वस्तुओं के बजाय व्यापार के साथ इस ऐतिहासिक जुड़ाव और डिलीवरी ऐप जैसी चीजों तक इसके विस्तार का जिक्र गोयल कर रहे थे, और मैं फिर से उनके व्यापक बिंदु से सहमत हूं। सवाल यह है कि भारत के स्टार्ट-अप को चीन जैसा दिखने के लिए क्या करना होगा? यह सवाल व्यवसायों से पूछना सही है। यह सवाल सरकार से पूछना भी उतना ही वाजिब है।

सवाल है कि आखिर चीन इस मुकाम पर कैसे पहुंचा? पिछले साल के एक विश्लेषण से जो हकीकत सामने आई वह इस तरह है: 'चीन अब दुनिया की एकमात्र विनिर्माण महाशक्ति (मैन्यूफैक्चरिंग पॉवर)है। चीन में होने वाली मैन्यूफैक्चरिंग 9 सबसे बड़े प्रोड्यूसर्स (निर्माताओं) के संयुक्त उत्पादन से भी अधिक है।' इस बात का बहुत कुछ श्रेय वहां सरकार द्वारा अपनाई गई औद्योगिक नीति और शासन कौशल को जाता है।


चीन ने अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के खनिज समृद्ध देशों के साथ रिश्ते कायम किए और इनमें से कई देशों में बंदरगाह और रेलवे लाइनें स्थापित कीं। सरकार के स्वामित्व वाली इसकी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों ने कमर्शियल जहाज और कमर्शियल प्लेन (वाणिज्यिक हवाई जहाज) बनाए ताकि उन्हें किसी और पर निर्भर न रहना पड़े। चीन अपने सभी पड़ोसियों को, जिनमें वे देश भी शामिल हैं जिनके साथ उसने युद्ध लड़े हैं और जिनके साथ उसके विवाद चल रहे हैं, यह समझाने में कामयाब रहा कि इन मुद्दों को व्यापार के रास्ते में न आने दें।

चीन का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार अमेरिका या यूरोपीय संघ नहीं है, बल्कि दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र है, जिनमें से कई के साथ चीन के गंभीर विवाद हैं।

उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन और AUKUS तथा क्वाड जैसे अमेरिकी सैन्य गठबंधनों के खिलाफ़ चीन ने बेल्ट एंड रोड पहल के ज़रिए विकास गठबंधन की रणनीति बनाई। इस पहल की पश्चिम में आलोचना तो हुई, लेकिन इसके साथ-साथ हमें यह भी देखना चाहिए कि इसमें भाग लेने वाले देश चीन के बारे में क्या कहते हैं और क्या सोचते हैं।

चलिए अब जलवायु परिवर्तन के बारें विचार करें जिससे पूरा विश्व दशकों चिंतित है, लेकिन चीन की सरकार ही एकमात्र ऐसी सरकार है जिसने इस समस्या से निपटने और इसका लाभ उठाने के लिए औद्योगिक रणनीति बनाई।

चीन ने जल्द ही इस बात को स्वीकार कर लिया कि उसका ऑटोमोबाइल क्षेत्र आंतरिक दहन इंजन (इंटरनल कम्बसशन इंजिन) के मामले में जापान और जर्मनी की ऑटो कंपनियों के अनुभव और उनके पेटेंट के साथ मुकाबला नहीं कर सकता, तो उसने इलेक्ट्रिक कारों पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया। इसने 2016 में 5 लाख नए ऊर्जा वाहन बनाए, 2018 में 10 लाख और पिछले साल इसने 1 करोड़ वाहनों का उत्पादन किया। पिछले साल चीन 58 लाख कारों का निर्यात किया।

ऐसी ही कहानी सौर पैनलों (सोलर इनर्जी पैनल) के मामले में भी देखने को मिलती है, जहाँ फिर से चीन की सरकार ने भविष्य की ओर देखा और इस अवसर पर काम किया। आज यह दुनिया भर में इस्तेमाल होने वाले 80 फीसदी से ज़्यादा सौर सेल (सोलर सेल) और दुनिया की दो-तिहाई इलेक्ट्रिक वाहन बैटरियां बनाता है।

माइनिंग (खनन) से लेकर रिफाइनिंग तक और विनिर्माण और असेंबली तक दुनिया की आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाई चेन) चीन से होकर गुजरती है। यह पूरे क्षेत्र में एकाधिकार की हद तक हावी है, और विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जो भविष्य में और भी महत्वपूर्ण होंगे।


यह सच है कि इसके उद्यमियों ने उल्लेखनीय काम किए हैं, जैसा कि हमने हाल ही में डीपसीक के मामले में देखा है। और यह भी सच है कि आम तौर पर अमेरिका के डोमेन जैसे सोशल मीडिया और रिटेल में चीनी उद्यमियों की सफलता को अमेरिका में टिकटॉक, शीन और टेमू की लोकप्रियता में देखा जा सकता है।

लेकिन चीन सरकार की ही रणनीति और औद्योगिक नीति है जिसने दुनिया को जीता है। यह उदारीकरण के आम तौर पर समझे जाने वाले तरीके के विपरीत है, जिसमें राज्य अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर हस्तक्षेप नहीं करता है। चीनी सरकार के हस्तक्षेप ही वास्तव में वह कारण हैं जिसकी वजह से देश इस मुकाम पर पहुंचा है और जिसके कारण इसके उद्यमी चमकने में सक्षम हुए हैं।

यही कारण है कि अमेरिकी स्टॉक और बांड बाजार ट्रम्प द्वारा शुरू किए गए इस युद्ध में केवल एक देश पर टैरिफ के प्रभाव पर बेहद हड़बड़ी वाली प्रतिक्रिया करते हैं और वह है चीन।

चीन को अमेरिका के सामने खड़े होने का आत्मविश्वास है क्योंकि वह जानता है कि उसने योजना और मेहनत से जो बनाया है, उसे दोहराना मुश्किल है। और उसे यह समझ है कि दुनिया उस पर निर्भर करेगी, चाहे अमेरिका पर शासन करने वाले लोगों की अलग-अलग कल्पनाएं कुछ भी हों।

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