‘मोटा’ भाई भी धीरे-धीरे क्यों हुए गायब? सरकार के ‘रंगमंच’ से 4 महीने से हैं नदारद

पीएम मोदी ने अमित शाह तक को भी इन दिनों तवज्जो देना बंद कर दिया है। मार्च में तालाबंदी होते ही लगा कि अमित शाह भी ताले में ही बंद हो गए हैं। इक्का-दुक्का इंटरव्यू छोड़कर पिछले 4 महीने में शाह सरकार के रंगमंच से लगभ गगायब से हैं।

फोटो: Getty Images
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एक वक्त ऐसा था जब अमिताभ बच्चन बॉलीवुड में 1 से 10 नंबर तक राज करते थे। वही स्थिति आज नरेंद्र मोदी की केंद्रीय मंत्रिमंडल में है। वैसे तो प्रधानमंत्री आवास- 7, रेस कोर्स रोड जिसे अब लोक कल्याण मार्ग कहा जाता है, सबसे बड़ा शक्ति केंद्र होता है। लेकिन इन दिनों यह एक मात्र शक्ति केंद्र बन गया है।

पीएम मोदी ने अमित शाह तक को भी इन दिनों तवज्जो देना बंद कर दिया है। पिछले लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी अध्यक्ष के रूप में अमित शाह ने एक के बाद एक राज्य बीजेपी की झोली में डाल अहम ओहदा हासिल कर लिया था। 2019 में सरकार में शामिल होकर गृहमंत्री बनते ही कई-कई मंत्रियों की बैठकें बुलाकर उन्होंने जताया कि मोदी के बाद सरकार में सबसे अहम भूमिका उन्हीं की है। इस आभा मंडल में तीन तलाक को कानून बनाकर और अनुच्छेद 370 को खारिज कर चार चांद लगा दिए। लेकिन मार्च में तालाबंदी होते ही लगा कि अमित शाह भी ताले में ही बंद हो गए हैं। इक्का-दुक्का इंटरव्यू छोड़कर पिछले 4 महीने में शाह सरकार के रंगमंच से लगभ गगायब से हैं। इन दिनों तो, खैर, कोविड-19 की चपेट में आ जाने से वह क्वारंटाइ नही हैं।

मोदी ने शाह का कद पार्टी में भी सीमित कर दिया है। उनके करीबी व्यक्तियों को राज्य पार्टी संगठन में भी कोई जगह नहीं मिल रही है। केंद्रीय संगठन का पुनर्गठन होने पर मालूम चलेगा कि उसमें से कितने शाह के करीबी बचे रह पाए। शाह ने ही बतौर बीजेपी अध्यक्ष जीतू वघानी को गुजरात बीजेपी इकाई का अध्यक्ष बनवाया था। लेकिन हाल ही में मोदी ने वघानी की जगह दक्षिण गुजरात से सांसद चंद्रकांत पाटिल को गुजरात बीजेपी अध्यक्ष बनवा दिया जबकि पाटिल और शाह में छत्तीस का आंकड़ा है। मोदी को लगा कि पिछले विधानसभा चुनाव में वघानी प्रधानमंत्री की जनसभाओं के बावजूद बीजेपी की स्पष्ट जीत सुनिश्चित नहीं कर पाए। यदि पाटिल ने सूरत की सभी की सभी सीटें बीजेपी की झोली में न डाली होती तो पार्टी को हिंदुत्व की प्रयोगशाला माने जाने वाले गुजरात में सरकार बनाने में कठिनाइयां आ सकती थी। यह बात और है कि पाटिल कुछ साल पहले बैंकों से 54 करोड़ रुपये का घोटाला करने के दोषी पाए गए थे और जेल भेजे गए थे।


अमित शाह की टीम को मजबूती प्रदान करने वाले राम माधव, भूपेंद्र यादव, अनिल जैन-जैसे पदाधिकारी अचानक दृश्य से गायब से हो गए हैं। जेपी नड्डा को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बने 6 महीने से अधिक हो गए हैं। लेकिन वह अभी तक अपने पदाधिकारी तक नहीं चुन पाए हैं क्योंकि मोदी ने नाम क्लीयर करने के संकेत ही नहीं दिए है। इन दिनों पार्टी कैसे चल रही, इसके कई उदाहरण हैं। पार्टी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने हिमाचल प्रदेश जाकर स्थानीय नेताओं से विचार-विमर्श कर इंदु गोस्वामी को राज्य का प्रदेश अध्यक्ष बनाने की घोषणा ट्विटर पर कर दी। लेकिन दो ही दिन बाद दिल्ली स्थित पार्टी के राष्ट्रीय मुख्यालय से जारी प्रेस रिलीज के मुताबिक, पार्टी के नए अध्यक्ष मोदी के विश्वासपात्र सांसद सुरेश कश्यप बनाए गए। कुछ इसी तरह की घटना हरियाणा में भी हुई जहां एक और राष्ट्रीय महासचिव मुरलीधर राव ने ट्विटर पर कृष्णपाल गुर्जर के नाम की घोषणा करते हुए उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनने की बधाई भी दी थी। लेकिन मोदी के दबाव में गुर्जर की जगह एक जाट नेता- ओम प्रकाश धनकड़ को हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया।

मोदी पर नहीं आंच

मोदी ने महज सोशल मीडिया के जरिये ऐसी छवि बना ली है कि जो कुछ भी गलत होता है, उसमें मोदी का कोई दोष नहीं है- कोई फैसला मोदी ने अकेले लिया हो, तब भी नहीं। जैसे, नोटबंदी। सब जानते हैं कि इसकी जानकारी किसी को नहीं थी। नोटबंदी के बाद पहले से भी ज्यादा नकदी बाजार में आ गई, न काला धन खत्म हुआ और न आतंकी और नक्सली गतिविधियां कम हुईं। फिर भी, मोदी पर आंच नहीं है। इसी तरह तालाबंदी की घोषणा करते समय भी मोदी ने सिर्फ 4 घंटे का समय दिया। उन्होंने उन करोड़ों कामगारों की हालत के बारे में सोचा भी नहीं जो तालाबंदी की वजह से बेरोजगार हो गए और जिनके पास आय का कोई साधन नहीं था कि वे कुछ खा सकते या मकान का किराया भी दे सकते। करोड़ों प्रवासी मजदूर अपने गांव जाने के लिए सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलने पर मजबूर हुए। कइयों ने भूख प्यास और थकान की वजह से रास्ते में ही दम तोड़ दिया। कोरोना भी इतना फैल गया कि संक्रमण के मामले में हम नंबर-1 हैं। पर इनके लिए मोदी दोषी नहीं ठहराए जा रहे।

अर्थव्यवस्था तो चौपट हो ही गई है, मोदी ने डिप्लोमेसी का भी कबाड़ा कर दिया है। पिछले 3 महीनों से भारत चीन के साथ युद्ध-जैसी स्थिति में है। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापारिक सौदे रद्द होते चले जा रहे हैं। अपनी लापरवाही में हमने न सिर्फ हंबनटोटा बंदरगाह बल्कि चाबहार भी चीन के हाथों गंवा दिया। यहां तक कि नेपाल जैसा छोटा देश जो अपने 80 प्रतिशत आयात के लिए भारत पर निर्भर है, वह भी अब हमें आंखें दिखाने लगा है और हमारी भूमि पर अपना दावा ठोक रहा है। भूटान, बांग्लादेश और श्रीलंका-जैसे पड़ोसी देश भी भारत के बजाय चीन की ओर झुकते नजर आ रहे हैं। फिर भी, मोदी समर्थक उन्हें अगले 10 वर्षों तक भारत का प्रधानमंत्री मानकर चल रहे हैं क्योंकि उनके अनुसार, मोदी का कोई विकल्प नहीं है, वह भ्रष्ट नहीं है और भारत की परिस्थितियों के लिए वही सबसे ज्यादा उपयोगी हैं।


मोदी समर्थकों को लगता है कि मोदी कभी कुछ गलत कर ही नहीं सकते। ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाखुमैनी की तरह मोदी के पास दैवीय शक्तियां हैं और वह कभी पराजित नहीं हो सकते। मोदी खुद भी इस छवि को मजबूत करते रहते हैं। अप्रैल में राष्ट्र के नाम संदेश में वह प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा पर तो एक शब्द नहीं बोले और उन्हें देश के मजबूती के लिए की जा रही तपस्या और त्याग करार दिया। पीलीभीत के एक किसान नरेंद्र कुमार सिंह कहते हैं कि मोदी के खिलाफ वैसे ही लोग प्रचार कर उनकी छवि धूमिल करना चाहते हैं जो चुनावों में उन्हें हरा नहीं पाते।

मोदी के कुछ अन्य भक्त उन्हें रूस के राष्ट्रपति पुतिन के रूप में देखते हैं जो अनंत काल तक देश पर राज करने आया है। पुतिन की तरह ही वे विपक्ष को लोकतंत्र बरकरार रखने के लिए एक नाम मात्र भूमिका में देखना चाहते हैं। बिहार के एक राजनीति शास्त्र शिक्षक रंगनाथ मिश्रा कहते हैं, “यह भी कोई पूछने की बात है कि पुतिन और शी जिनपिंग-जैसे नेता अपने अपने देश में कितने लोकप्रिय हैं और कैसे।

(सुरेंद कुमार सिंह के इनपुट के साथ)

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Published: 09 Aug 2020, 5:59 PM