आकार पटेल का लेख: नोटबंदी की तारीफ में क्यों कसीदे नहीं पढ़े सरकार ने!

इसमें कोई संदेह नहीं कि आरबीआई ने हर मामले में नफा-नुकसान का सही अनुमान लगाया था और सटीक भविष्यवाणी की थी। लेकिन आरबीआई जिस बात को छिपा रहा था वह यह तथ्य था कि मोदी ने उसकी उन चिंताओ और आपत्तियों को नजरअंदाज कर दिया था - जो सभी सच साबित हुईं।

हर साल नोटबंदी की बरसी पर विरोध प्रदर्शन होते हैं (फाइल फोटो)
हर साल नोटबंदी की बरसी पर विरोध प्रदर्शन होते हैं (फाइल फोटो)
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आकार पटेल

नोटबंदी की बरसी आई और चली गई, और सरकार ने इस कथित मास्टरस्ट्रोक को लेकर कोई बयान तक जारी नहीं किया। नोटबंदी एक ऐसे शख्स का आइडिया था जिसने महाराष्ट्र के लातूर जिले से मेकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया हुआ था। इनका नाम अनिल बोकिल है जो अर्थक्रांति नाम का एक इंस्टीट्यूट चलाते हैं और खुद को इकोनॉमिक थियोरिस्ट यानी आर्थित सिद्धांतवादी बताते हैं। उनका मानना है कि भारत जैसे देश में जहां 70 फीसदी आबादी सिर्फ 150 रुपए प्रतिदिन पर जिंदगी गुजारती है, उस देश में 100 रुपए मूल्य से अधिक नोट की जरूरत ही क्या है?

प्रधानमंत्री मोदी द्वारा 86 फीसदी करेंसी नोटों को अवैध घोषिट करने वाली नोटबंदी का ऐलान करने के कुछ दिन इस शख्स ने एक इंटरव्यू में कहा था कि कैसे प्रधानमंत्री को नोटबंदी का विचार आया था। जुलाई 2013 में बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद, बोकिल अपने साथियों के साथ अहमदाबाद गए थे और उन्होंने अर्थक्रांति का एक प्रेजेंटेशन मोदी के सामने रखा था।

मोदी ने बोकिल को 10 मिनट का वक्त दिया था। बोकिल ने बताया कि जब तक मेरा प्रेजेंटेशन खत्म हुआ तो मैंने देखा कि मोदी ने मुझे 90 मिनट तक सुना था। उन्होंने इस दौरान कहा कुछ नहीं। और यह कोई हैरान करने वाली बात नहीं थी। उन्हें लगा कि एक सरल, जादुई और परिवर्तनकारी विचार ने मोदी को प्रभावित किया होगा।

अर्थक्रांति की वेबसाइट पर, नोटबंदी के उन फायदों को सूचीबद्ध किया गया है जो मोदी के सामने पेश प्रेजेंटेशन में बताए गए थे। इनमें, ‘आतंकवाद और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों पर नियंत्रण’, टैक्स चोरी रोकने, भ्रष्टाचार को खत्म करने और रोजगार को बड़े पैमाने पर बढ़ाने के दावे हैं।

लेकिन अब इसमें ऐसा कोई जिक्र नहीं है कि नोटबंदी को कैसे लागू किया जाएगा और बताए गए सभी लक्ष्यों को कैसे हासिल किया गया। इसका भी कोई संदर्भ या विश्लेषण नहीं दिया गया है कि इस कदम के दुष्प्रभाव किया हो सकते थे। अर्थक्रांति ने पूरी कर व्यवस्था को खत्म कर ट्रांसैक्शटैक्स लगाने का प्रस्ताव दिया था, साथ ही सिर्फ 2000 रुपए तक के ही नकद लेनदेन की अनुमति देने की बात की थी। इसका प्रस्ताव संक्षिप्त, सरल और आसानी से लागू करने वाले थे। मोदी के लिए यह एक शानदार मौका था, और उन्होंने इसके सबसे नाटकीय प्रस्ताव को अपनाते हुए नोटबंदी को लागू कर दिया।

8 नवंबर 2016 को रात 8 बजे मोदी ने नोटबंदी की घोषणा करते समय अपने भाषण में कहा था कि भारत की मूल समस्याएं भ्रष्टाचार, कालाधन और आतंकवाद है। और, इन्हें रोकने के लिए  कठोर कदम उठाने की जरूरत है और वे उन्हें उठाएंगे। भारतीय तो ईमानदार हैं, लेकिन भारत भ्रष्टाचारी है, इसिलए भ्रष्टाचार, कालेधन और आतंकवाद के खिलाफ एक शक्तिशाली निर्णायक कदम उठाने की जरूरत है।


मोदी ने पूछा था, क्या लोगों ने कभी सोचा है कि आतंकवाद के लिए पैसा कहां से आता है। यह पाकिस्तान से नकली नोटों के रूप में आता है, और ऐसा लगातार होने वाली गिरफ्तारियों से साबित हुआ है। मोदी ने कहा था कि कैश का सर्कुलेशन यानी नकद का लेनदेन भ्रष्टाचार से जुड़ा हुआ है, इसीलिए देश की कुल करेंसी में 80-90 प्रतिशत हिस्सेदारी 500 रुपए और 1000 रुपए मूल्य के नोटों की है। उन्होंने ऐलान किया कि अबसे चंद घंटे बाद यानी चार घंटे बाद रात 12 बजे से ये नोट गैरकानूनी हो जाएंगे। इसका अर्थ होगा कि राष्ट्रविरोधी लोगों के पास जो ऐसे नोट हैं वे बेकार हो जाएंगे। मोदी ने माना था कि इससे कुछ तकलीफ होगी, लेकिन यह समस्या नहीं बनेगी। उन्होंने कहा था, ऐसा इसलिए क्योंकि आम नागरिक देश के लिए कुछ तकलीफें उठाने और बलिदान के लिए तैयार हैं।

नोटबंदी को लेकर किसी भी विभाग ने कोई तैयारी नहीं की थी, क्योंकि जैसाकि हमें पता चला कि इस बाबत बुलाई गई कैबिनेट की बैठक में मंत्रियों को अपने मोबाइल फोन बाहर रख देने को कहा गया था, ताकि यह राज, राज़ ही रहे जब तक कि इसकी घोषणा न हो जाए। चूंकि नोटबंदी के बारे में मंत्रियों तक को पता नहीं था, तो उनके विभागों को कहां से हवा लगती। और इसीलिए किसी विभाग ने कोई तैयारी की ही नही थी।

ऐसा ही कुछ 2020 में देशभर में लागू किए गए लॉकडाउन को लेकर किया गया था।

नोटबंदी के बारे में आरबीआई ने मोदी को चेतावनी भी दी थी कि ये एक बड़ी भूल होगी, क्योंकि उसी के पास नोटबंदी लागू करने का अधिकार था क्योंकि आरबीआई गवर्नर ही अपने हस्ताक्षर से नागरिकों को पैसे की गारंटी देता है, लेकिन सरकार ने बांह मरोड़कर आरबीआई की सहमति ली। इसके बाद इस फैसले के विरोध में आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने इस्तीफा दे दिया था। नए गवर्नर उर्जित पटेल को जबरदस्ती इस पद पर बैठाया गया। उन्होंने नोटबंदी को लेकर 8 नवंबर शाम 5.30 बजे हुए आरबीआई की बैठक के मिनट्स को जारी करने से इनकार कर दिया था। उन्होंने इसके पीछे राष्ट्रीय सुरक्षा और जान के खतरे को कारण बताया था।


और अंतत: जब आरबीआई के इस बैठक के मिनट्स करीब दो साल बाद सामने आए, तो उर्जित पटेल ने भी अगले महीने इस्तीफा दे दिया। आरबीआई के मिनट्स में कहा गया था कि सरकार ने आरबीआई से कहा था कि:

  • वर्ष 2011 और 2016 के बीच देश की अर्थव्यवस्था 30 फीसदी बढ़ी है, लेकिन बड़े मूल्य के नोटों की संख्या कहीं तेजी से बढ़ी है

  • कालेधन का मुख्य कारण बड़े मूल्य के नोट हैं

  • सिस्टम में करीब 400 करोड़ रुपए के नकली नोट मौजूद हैं

  • ऐसे में 500 और 1000 रुपए मूल्य के नोट अवैध घोषित किए जाएं

इस पर आरबीआई का जवाब था:

  • सरकार ने जिस आर्थिक प्रगति की बात की है, वह असली है जबकि करेंसी नोटों की संख्या में वृद्धि बहुत मामूली है, और इसे महंगाई के अनुसान एडजस्ट नहीं किया गया है, इसलिए नोटबंदी के लिए यह तर्क सही नहीं हैं

  • अधिकतर कालाधन या तो जमीनों में या सोने के रूप में जमा है, नकदी के रूप में नहीं, और नोटबंदी से कालेधन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है

  • नोटबंदी का देश की जीडीपी पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा

  • सिस्टम में मौजूद 400 करोड़ रुपए के नकली नोट बहुत अधिक नहीं है (कुल नकदी का मात्र 0.02 प्रतिशत है) जबकि कुल चलन में नकदी करीब 18 लाख करोड़ रुपए है

ये सारी बातें कहने के बावजूद आरबीआई ने मोदी के नोटबंदी के विचार पर मुहर लगा दी थी। आरबीआई ने क्यों अपना विरोध दर्ज कराया और इसे राज़ भी रखा, अब साफ हो गया है। इसने इस काम में अपनी असहमति दर्ज कराते हुए नोटबंदी के दुष्प्रभाव भी बता दिए थे, फिर भी इसने मोदी का बचाव किया। यही कारण है कि उर्जित पटेल ने बेशर्मी से दावा किया था कि इसके पीछे राष्ट्रीय सुरक्षा का मामाल था और जब आरटीआई एक्टिविस्ट ने इस बाबत जानकारी मांगी तो उन्होंने इससे इनकार कर दिया था।

अब इसमें कोई संदेह नहीं कि आरबीआई ने हर मामले में नफा-नुकसान का सही अनुमान लगाया था और सटीक भविष्यवाणी की थी। लेकिन आरबीआई जिस बात को छिपा रहा था वह यह तथ्य था कि मोदी ने उसकी उन चिंताओ और आपत्तियों को नजरअंदाज कर दिया था - जो सभी सच साबित हुईं और यह कहकर उसने अपना पल्लू झाड़ लिया था।

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