क्यों एकतरफा और गलत खबरें दिखाते हैं न्यूज चैनल, आखिर क्या है पूरी क्रोनोलॉजी!

कोरोना वायरस के मामले में जो सवाल केंद्र सरकार से पूछे जाने चाहिए वह गैर-बीजेपी शासित राज्य सरकारों से पूछे जा रहे हैं। जो सवाल पीएम और उनके मंत्रियों से होने चाहिए, वह विपक्ष से हो रहे हैं। खुलेआम मीडिया ने इस संकट को भी सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की।

फोटोः सोशल मीडिया
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तसलीम खान

कोरोना महामारी के दौर में देश के ज्यादातर न्यूज चैनलों पर या तो सरकारी सलाहों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जा रहा है, या फिर किसी समुदाय विशेष के खिलाफ एक माहौल बनाया जा रहा है या फिर किसी गैर बीजेपी शासित राज्य सरकार के खिलाफ शोर मचाया जा रहा है। सवाल है कि आखिर देश के अधिकांश न्यूज चैनल ऐसा क्यों कर रहे हैं? इससे भी बड़ा सवाल है कि आखिर बिना पुष्टि किए खबरें प्रसारित करने का क्या न्यूज चैनलों के न्यूजरूम में कोई विरोध नहीं होता?

इन सवालों को जानने के लिए आपको न्यूज चैनलों की कार्यप्रणाली और वहां के कामकाज के तौरतरीकों को समझना होगा।

दरअसल कई संपादकों, एंकर्स और रिपोर्टर्स के लिए संभवत: 2008 के मुंबई आतंकी हमले के बाद यह पहली ऐसी बड़ी खबर है, जिसमें टीवी न्यूज वाले गलतियों पर गलतियां किए जा रहे हैं या जानबूझकर सच्चाई को दर्शकों के सामने नहीं रख रहे हैं। नोटबंदी के ऐलान के बाद भी सभी न्यूज चैनलों का रवैया ऐसा ही था, जब लगभग सारे न्यूज चैनल सरकार के प्रचार तंत्र का हिस्सा बन गए थे। ऐसा ही पुलवामा हमले, पठानकोट आतंकी हमले, डोकलाम और नेपाल के साथ बॉर्डर विवाद, नागरिकता संशोधन कानून के विरोध, भारत के खिलाफ ट्रम्प के रुख आदि को लेकर भी इन न्यूज चैनलों का रवैया सरकारी भोंपू की ही तरह रहा और सवाल उठाने के बजाय उन्होंने सरकार का पक्ष ही लेना उचित समझा।

कोरोना वायरस के मामले में भी ऐसा ही हो रहा है। जो सवाल केंद्र सरकार से पूछे जाने चाहिए वह गैर-बीजेपी शासित राज्य सरकारों से पूछे जा रहे हैं। जो सवाल पीएम और उनके मंत्रियों से पूछे जाने चाहिए, वह विपक्ष से पूछे जा रहे हैं। दिल्ली में तबलीगी जमात का ही मामला लीजिए, सवाल पूछे जाने थे दिल्ली पुलिस और दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार से, लेकिन सारे मामले को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की गई और एक समुदाय के खिलाफ माहौल बनाने का एक तंत्र स्थापित किया गया।

इसी तरह नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग में हुए विरोध-प्रदर्शन और धरने को एक समुदाय विशेष से जोड़ा गया और केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन काम करने वाली दिल्ली पुलिस से कोई सवाल नहीं पूछा गया। उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों की जिम्मेदारी भी सीएए विरोधियों पर डाल दी गई और किसी न्यूज चैनल ने केंद्र सरकार से नहीं पूछा कि आखिर केंद्र सरकार के तहत काम करने वाला खुफिया ब्यूरो इस दंगे की आहट को सुन क्यों नहीं पाया?

ऐसे में सवाल तो पूछना ही पड़ेगा कि आखिर न्यूज चैनलों का रवैया ऐसा क्यों है। जैसा कि शुरु में बताया कि इन सभी बड़ी खबरों के बाद कोरोना संकट ऐसी बड़ी खबर है जिसमें गलतियों पर गलतियां हो रही हैं।

इसके लिए क्रोनोलॉजी समझने की जरूरत है। क्रोनोलॉजी यह है कि टीवी न्यूज खबरों के साथ संतुलन और तथ्यों की पुष्टि के बुनियादी उसूलों को कब का दरकिनार कर चुकी है। सबसे पहले खबर दिखाने की हड़बड़ी में और नंबर वन बनने की कोशिश में कुछ भी दिखा दिया जाता है। इसके अलावा ज्यादातर दफा तो ऐसा है कि दर्शकों तक क्या पहुंचना है इसका फैसला तो सिर्फ ऐंकर ही कर रहे होते हैं और उन्हें रोकने का कोई तरीका ही नहीं है।

ज्यादातर न्यूज चैनलों के मुख्य या स्टार एंकर चैनल के संपादक हैं, ऐसे में वे ऑन एयर क्या बोलेंगे या किसी खबर पर उनका क्या रुख होगा, इसे चुनौती देने के बारे में चैनल के न्यूज रूम में कोई सोच भी नहीं सकता। यूं भी चैनलों के न्यूजरूम में बड़ी संख्या उन युवा पत्रकारों या प्रोफेशनल्स की होती है जिनके जिम्मे वो काम कर दिए गए हैं, जिन्हें करने की उनकी क्षमता तक नहीं है। एंकर ही इन सारे लोगों का बॉस है तो आखिर बॉस की किसी गलती या किसी खबर को लेकर उसके नजरिए को चुनौती देने की कौन हिम्मत करेगा।

टीवी न्यूज का सारा खेल ज्यादा से ज्यादा दर्शकों को अपनी तरफ खींचना है और इसका सबसे सस्ता और आसान तरीका निकाल लिया है कि किसी भी ऐसे विषय पर बहस करा ली जाए जिसमें ध्रुवीकरण की गुंजाइश हो। इन बहसों में ऐसे लोगों को बुलाया जाता है जिन्हें विषय के बार में कुछ नहीं पता होता। कोरोना वायरस पर टीवी न्यूज चैनलों में हो रही बहसें इसकी मिसाल हैं।

यहां एक सवाल और खड़ा होता है कि न्यूज चैनलों द्वारा दिखाई जाने वाली खबरों की पोलपट्टी खुलने और झूठ पकड़े जाने के बावजूद दर्शक क्यों इन्हें देखता है? इसका जवाब यूं तो समाजशास्त्री ही दे सकेंगे, लेकिन जो कुछ समझ आता है वह यह कि बीते कुछेक सालों में समाज में हुए बदलाव के बाद दर्शकों को यह सब भाने लगा है और वह अपने ही मन की की बातें टीवी पर देखकर खुश होता है।

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