आकार पटेल / भारत आखिर क्यों नहीं मान रहा कि गाज़ा में जो कुछ हो रहा है वह नरसंहार है !
गाजा में फिलिस्तीनियों के साथ जो हो रहा है, वह नरसंहार है। उसे भारत एक अंतरराष्ट्रीय अपराध मानता है और भारत ने नरसंहार को रोकने और दंडित करने के लिए कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए हैं।

9 फरवरी 2022 को राज्यसभा में सरकार से सवाल पूछा गया कि, “क्या गृहमंत्री यह बताने का कष्ट करेंगे कि क्या यह तथ्य है कि सरकार ने संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा पारित जेनोसाइड कन्वेंशन यानी नरसंहार रोके के लिए की गई संधि (1948) की पुष्टि की है।”
(बी) यदि हां, तो क्या सरकार ने नरसंहार रोकने के संबंध में कोई कानून बनाया है?
इस पर मोदी सरकार का जवाब था, “भारत ने 29 नवंबर, 1949 को नरसंहार अपराध की रोकथाम और दंड पर संधि, 1948 पर हस्ताक्षर किए और 27 अगस्त, 1959 को इस कन्वेंशन का अनुमोदन किया यानी पुष्टि की और इस प्रकार नरसंहार को एक अंतर्राष्ट्रीय अपराध के रूप में मान्यता दी।”
दरअसल इस संधि में शामिल सिद्धांत सामान्य अंतरराष्ट्रीय कानून का हिस्सा हैं और इसलिए पहले से ही भारत के सामान्य कानून का हिस्सा हैं। दंड प्रक्रिया संहिता यानी सीआरपीसी सहित भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी के प्रावधान ऐसे अपराध की श्रेणी के दोषी व्यक्तियों के लिए प्रभावी सजा देते हैं और उन कृत्यों का संज्ञान लेते हैं जिन्हें नरसंहार की प्रकृति का मानते हुए दोषी अपराध माना जाता है।'
नरसंहार अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत एक अपराध है, भले ही इसे शांतकाल में या फिर सशस्त्र संघर्ष के दौरान अमल में लाया गया हो। जेनोसाइट कन्वेंशन के तहत इसे निषेद्य और अपराध की श्रेणी में लाया गया है, इसका और रोम संधि का इजरायल ने 1950 में अनुमोदन किया था। नरसंहार के तहत 5 विशेष कृत्य आते हैं: लोगों के समूह की हत्या, लोगों के समूह को गंभीर शारीरिक या मानसिक पीड़ा पहुंचाना, जानबूझकर किसी समूह पर जीवन की ऐसी शर्तें थोपना जिससे आंशिक या पूर्ण शारीरिक नुकसान हो, किसी समूह में जन्म को प्रतिबंधित कर देना और बलपूर्वक एक समूह के बच्चों को दूसरे समूह में भेजना। नरसंहार के अपराध की श्रेणी में आने के लिए, ये कृत्य ‘किसी राष्ट्रीय, जातीय, नस्लीय या धार्मिक समूह को पूरी तरह या आंशिक रूप से नष्ट करने के इरादे से’ भी किए गए हो सकते हैं। यही खास मंशा है जो अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत नरसंहार को अन्य अपराधों से अलग करता है।
कोई फ़िलिस्तीनी भले ही इज़रायल में रहने वाला इज़रायल का नागरिक हो, या फ़िलिस्तीनी क्षेत्र में इज़रायली सैन्य शासन के अधीन रह रहा हो या फ़िलिस्तीनी शरणार्थी हो, मोटे तौर पर उसकी पहचान तो फ़िलिस्तीनी ही है। इन फिलिस्तीनियों के बीच गहरे और साझा राजनीतिक, जातीय, सामाजिक और सांस्कृतिक रिश्ते हैं। फ़िलिस्तीनी एक आम भाषा साझा करते हैं और अलग-अलग धर्म का होने के बावजूद उनके रीति-रिवाज और सांस्कृतिक प्रथाएं समान हैं। इसलिए, वे जेनोसाइट कन्वेंशन के तहत संरक्षित एक अलग राष्ट्रीय, जातीय और नस्लीय समूह ही माने जाते हैं।
अक्टूबर 2023 से इज़रायल ने गाज़ा पट्टी में भयावह और बड़े पैमाने पर काफी लंबे समय तक हमले किए हैं। इसके बाद से यह लगातार जमीनी और हवाई हमले कर रहा है, जिनमें बड़े विस्फोटी हथियारों का इस्तेमाल किया जा रहा है। बड़े पैमाने पर गाज़ा में तबाही हुई है और इलाके के इलाके जमींदोज़ हो गए हैं। जिन इमारतों को तबाह किया गया है उनमें जीवन रक्षक इंफ्रास्ट्रक्चर (जैसे अस्पताल आदि), कृषि भूमि और सांस्कृतिक और धार्मिक इमारतें भी शामिल हैं। इन हमलों में उन जगहों को भी नेस्तनाबूद कर दिया गया है जो फिलिस्तीनियों की गहरे धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व से जुड़ी हैं।
इज़रायल के सैन्य हमले में हज़ारों फ़िलिस्तीनी मारे गए हैं और गंभीर रूप से घायल हुए हैं। इनमें हज़ारों बच्चे भी शामिल हैं, जो सीधे या अंधाधुंध हमलों में मारे गए हैं। कई खानदानों में तो कई पीढ़ियों के पूरे परिवार खत्म हो गए हैं। इज़रायल ने गाजा के 22 लाख निवासियों में से 90 फीसदी से ज़्यादा लोगों को जबरन विस्थापित कर दिया है, उनमें से कई को कई बार, लगातार सिकुड़ते, लगातार बदलते ज़मीन के ऐसे इलाकों में रहने को मजबूर हो गए हैं जहां बुनियादी जरूरतें तक मुहैया नहीं हैं। इन लोगों को एक सोची-समझी मौत के मुंह में ढकेल दिया गया है।
इज़रायल ने जानबूझ कर जीवन रक्षक वस्तुओं और मानवीय सहायता के आने और उसके वितरण में बाधा डाली है या इनकार किया है। बिजली आपूर्ति ठप कर दी गई है, जिससे नुकसान और विनाश के साथ-साथ पानी, स्वच्छता और स्वास्थ्य सेवा प्रणाली ध्वस्त हो गई है। इज़रायल ने गाजा के सैकड़ों और संभवतः हजारों फिलिस्तीनियों को बिना किसी सूचना के हिरासत में रखा है और उन्हें यातनाएं देने के साथ अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक हालात में कैद कर रखा है, जिसके कारण कई लोगों की मौत भी हुई है।
गाज़ा में फिलिस्तीनियों के साथ इज़रायल जो कुछ कर रहा है, क्या वह नरसंहार नहीं है? बेशक है। एम्नेस्टी इंटरनेशनल समेत बहुत सारे समूहों का यही निष्कर्ष है। किसी समूह को 'आंशिक रूप से' नष्ट करने का इरादा नरसंहार के अपराध के लिए अपेक्षित विशिष्ट इरादे को स्थापित करने के लिए पर्याप्त सबूत है। समूह का हिस्सा क्या है, यह निर्धारित करने के लिए, अंतर्राष्ट्रीय न्यायशास्त्र में एक विशिष्ट संख्यात्मक सीमा के बजाय इंतेहा को अपनाया गया है।
इस मानक के अनुसार अपराधी में संबंधित समूह के कम से कम 'काफी हिस्से' को नष्ट करने का इरादा सामने आना चाहिए, जो पूरे समूह पर प्रभाव डालने के लिए काफी हो। इसे इज़राइल के युद्ध पर लागू करते हुए, एमनेस्टी इंटरनेशनल का मानना है कि गाजा में रहने वाले फिलिस्तीनी पूरे फिलिस्तीनी समूह का एक बड़ा हिस्सा हैं। 2023 में, गाजा में रहने वाले फिलिस्तीनी, कब्जे वाले फिलिस्तीन में रहने वाले लगभग 55 लाख फिलिस्तीनियों का लगभग 40 फीसदी थे।
महत्वपूर्ण बात यह है कि नरसंहार को स्थापित करने के लिए अपराधी को लक्षित समूह को पूरी तरह या आंशिक रूप से नष्ट करने में सफल होने की आवश्यकता नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय न्यायशास्त्र यह मानता है कि 'शब्द "पूरी तरह या आंशिक रूप से" वास्तविक विनाश के विपरीत इरादे को संदर्भित करता है।' समान रूप से महत्वपूर्ण, विशिष्ट इरादे का पता लगाने या अनुमान लगाने के लिए एक या एकमात्र इरादे को खोजने की आवश्यकता नहीं है।
किसी राज्य या देश की कार्रवाइयों का दोहरा उद्देश्य हो सकता है - सैन्य नतीजे हासिल करना और किसी समूह को नष्ट करना। नरसंहार भी सैन्य नतीजे हासिल करने का साधन हो सकता है। दूसरे शब्दों में, नरसंहार का निष्कर्ष तब निकाला जा सकता है जब राज्य या देश किसी निश्चित सैन्य नतीजे को हासिल करने के लिए, किसी लक्ष्य के साधन के रूप में, या जब तक वह इसे हासिल नहीं कर लेता, तब तक किसी संरक्षित समूह को नष्ट करने का इरादा रखता है।
गाजा में फिलिस्तीनियों के साथ जो हो रहा है, वह नरसंहार है। उसे भारत एक अंतरराष्ट्रीय अपराध मानता है और भारत ने नरसंहार को रोकने और दंडित करने के लिए कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए हैं। भारत को इस अपराध के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए और कार्रवाई करनी चाहिए जो हमारी आंखों के सामने रोजाना जारी है।
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