खरी-खरी: चीन की लगातार बढ़ती हरकतों पर आखिर चुप्पी क्यों साधे रहते हैं प्रधानमंत्री?

चीन की घुसपैठ देश की रक्षा से जुड़ा गंभीर मामला है। इस पर केवल रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री के बयानों से काम नहीं चल सकता। यह प्रधानमंत्री का कर्तव्य है कि चीनी सीमा पर जो कुछ हो रहा है, वह देश को इस संबंध में स्वयं बताएं।

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ज़फ़र आग़ा

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अभी कुछ दिन पहले देश को इस बात से अवगत कराया कि भारत-चीन सरहद पर भारत की ओर से जैसी तैयारी है, वैसी तैयारी पहले कभी नहीं रही। हमारी सेना के जवान बड़ी संख्या में केवल सतर्क ही नहीं बल्कि चीन से हर मुकाबले के लिए तैयार है। एक मीडिया इवेंट को संबोधित करते हुए जयशंकर ने विपक्षी पार्टी कांग्रेस के नेता राहुल गांधी पर व्यंग्य करते हुए यह भी कहा कि सरकार की ओर से चीन के खिलाफ यह तैयारी राहुल गांधी के कहने पर नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हुक्म से हुई है।

जयशंकर जी, बहुत-बहुत धन्यवाद। कम से कम आपने यह उचित समझा कि भारत-चीन सीमा पर जो गतिविधियां हो रही हैं, उसके संबंध में देश को कुछ बताया जाए। आप से पूर्व रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी संसद के भीतर अरुणाचल प्रदेश में चीनी फौज ने जिस प्रकार तवांग के इलाके में घुसकर भारत की जमीन कब्जा करने की कोशिश की, उससे अवगत कराया था। लेकिन विपक्ष एवं देशवासी इस बात पर आश्चर्यचकित हैं कि देश के बारे में दिन-रात चिंता करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तवांग में चीनी घुसपैठ के बारे में, कम-से-कम इस लेख के लिखे जाने तक, चुप क्यों हैं।

संसद का शीतकालीन सत्र समय से पहले ही स्थगित कर दिया गया। कांग्रेस सहित लगभग पूरा विपक्ष चीन की तवांग पर घुसपैठ के संबंध में चर्चा की मांग करता रहा। वह इस मामले में प्रधानमंत्री से जवाब मांग रहा है। लेकिन सरकार इस विषय पर किसी प्रकार की चर्चा के लिए तैयार नहीं हुई। आखिर क्यों? 

सरकार को यह याद दिलाने की आवश्यकता नहीं कि चीनी फौज ने जिस प्रकार तवांग इलाके में आसानी से घुसपैठ की, वह देश के लिए गंभीर चिंता का विषय है। चीनी फौज जब चाहे लद्दाख में गलवान पर कब्जा कर ले और जब चाहे अरुणाचल प्रदेश में तवांग के भीतर पहुंच जाए, यह देश की सुरक्षा के लिए गंभीर चिंता की बात है। यदि संसद में इस विषय पर चर्चा न हो तो फिर कहां इसकी चर्चा हो। यह देश की रक्षा का मामला है।


इस संबंध में केवल रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री के बयानों से काम नहीं चल सकता। यह प्रधानमंत्री का कर्तव्य है कि चीनी सीमा पर जो कुछ हो रहा है, वह स्वयं देश को इस संबंध में बताएं। यह बात खुलकर संसद में होनी चाहिए ताकि देश और विपक्ष- दोनों के इस संबंध में जो भी सवाल हैं, उनको उसका जवाब मिल सके।  

लेकिन न तो प्रधानमंत्री और न ही सरकार भारत-चीन सीमा पर होने वाली गतिविधियों पर किसी प्रकार की चर्चा चाहते हैं। यदि इस संबंध में कोई सवाल करता है, तो बीजेपी और मीडिया- दोनों ही सवाल करने वालों को देशद्रोही बताने लगते हैं। उनको यह कहकर चुप कराने की कोशिश होती है कि वह देश की सेना पर उंगली उठा रहे हैं और यह देशभक्ति नहीं है। ऐसा कुछ भी नहीं है।

यदि सीमा पर कुछ गड़बड़ होती है, तो विपक्ष की ओर से राहुल गांधी या दूसरा कोई भी नेता सरकार से सवाल क्यों नहीं कर सकता है? देशभक्ति पर केवल सत्ता पक्ष का ही अधिकार नहीं है। इस देश का कोई विपक्षी नेता अथवा कोई भी भारतीय नागरिक चीन प्रेमी नहीं हो सकता है। चीन की नीयत भारत के प्रति ठीक नहीं है, यह सब समझते हैं। इसी कारण जब तवांग जैसी कुछ गतिविधि होती है, तो सवाल उठते हैं।

सरकार को ऐसे हर सवाल का जवाब देना चाहिए और इस पर चर्चा के लिए सदन से बेहतर कोई दूसरा मंच नहीं हो सकता है। इस संबंध में स्वयं प्रधानमंत्री देश को अवगत कराएं, तो यह और भी अच्छा होगा। इसलिए चीन के मामले में सदन में ही चर्चा हो और खुद प्रधानमंत्री जवाब दें। यदि ऐसा नहीं होगा, तो यह सवाल उठेगा कि आखिर तवांग पर प्रधानमंत्री की चुप्पी क्यों? 

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