विष्णु नागर का व्यंग्य: टीएम कृष्णा के विचार क्यों हैं, असहमतियां और सवाल क्यों हैं!

सवाल भी उनके हैं, जवाब भी उनके हैं और ‘नैतिक अधिकारों’ का ‘कॉपीराइट’ भी उनका है। सरकार भी उनकी है, टीवी चैनल भी उनके हैं और भक्त-परमभक्त भी उनके हैं। इसके बावजूद हमें समझ में नहीं आ रहा है, अक्ल ठिकाने नहीं आ रही है तो यह हमारी समस्या है।

फोटो: सोशल मीडिया
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विष्णु नागर

हमारे महान देश में एक से एक बड़े मंदिर बन भी रहे हैं, बननेवाले भी हैं और ठीक वहीं बननेवाले हैं। वहीं से आप समझ गये न कहां? हां, वहां। आप तो जानते हैं, हर जगह, कण- कण में बाबरी मस्जिद है, इसलिए हर जगह क्या, कण-कण में एक से एक भव्य मंदिर बनने जा रहे हैं। प्रतिमाएं भी बन रही हैं - नेहरू का नाम, उनकी याद भी उनके लिए एक 'बाबरी मस्जिद' है, क्षमा करें ढांचा है, उसे तोड़कर प्रतिमा बनाई जा रही है। लौहपुरुष को उन्होंने अपना हथौड़ा बना लिया है, उस हथौड़े से यह ढांचा गिराया जा रहा है। लौहपुरुष का महत्व इसलिए है कि उनसे नेहरू की प्रतिमा गिराने का सपना गढ़ा जा सकता है, इसलिए उनकी प्रतिमा बनाई गई, गांधीजी इस काम आ नहीं सकते थे, इसलिए उन्हें कोल्डस्टोरेज में डाल दिया। अब स्टील पुरुषों, सोना-चांदी, तांबा-कांसा पुरुषों, वीरों और कायरों सबकी प्रतिमाएं बननेवाली हैं। आज एक से एक बड़ी बिल्डिंग बन रही है, राजमार्ग बन रहे हैं, एक से एक बड़े मॉल बन रहे हैं। एक से एक ऊंची केक बन रही है, एक से एक वजनी लड्डू बन रहे हैं, एक से एक उल्लू पैदा हो रहे हैं, प्रायोजित करवाये जा रहे हैं। छोटा कुछ नहीं बन रहा है, बड़ा और बड़ा और बड़ा बन रहा है, बनवाया जा रहा है। उद्योगपति, पूंजीपति, फ्रॉडपति, चोरपति  सब बड़े से और बड़े और भी बड़े  बनते जा रहे हैं। एक से एक बड़े भाषणपति, झांसापति, चोंचलापति ही नहीं बन रहे हैं, बनाने के कारखाने बन रहे हैं। बस विदेश जाने से फुर्सत मिले तो इनका भी उद्घाटन हो जाएगा। अभी नहीं तो 2022 में तो हो ही जाएगा। ठेकेदार-चौकीदार-चायवाले सभी 2022 का इंतज़ार कर रहे हैं। 2022 आए तो कुछ करें। आपने जैसे 'अच्छे दिन' का इंतज़ार किया तो नोटबंदी आ गई या नहीं आ गई, वैसे ही, उसी पद्धति से 2022 भी आ जाएगा।

एक तरह से देखें तो यह भी 'विकास' है और आजकल 'विकास ही विकास' हो रहा है। 'विकास' की बयार चल पड़ी है, रामजन्मभूमि मंदिर बनाने की बात, उस बयार को आंधी-तूफान बनाने का प्रयास है। मंदिर बन गया यानी 'विकास' हो गया और नहीं बना तो फिर तो 'विकास' ही 'विकास' होता रहेगा। लगेगा कि इस देश का निर्माण ही 'ढांचे' गिराकर मंदिर के 'विकास'  के लिए हुआ है। इस 'विकास' के लिए जरूरी था कि नेताओं के दिल और दिमाग, छोटे से और छोटे होते जाएं, बौने से और बौने, उथले से और उथले होते जाएं और वे लोगों को इसी दिशा में ले जाएं।

यह भी 'विकास' है कि देश में एक तरफ, एक से एक व्यंजन बन रहे हैं, खाये और खिलाये  जा रहे हैं, घर बैठे बनाना सिखाया जा रहा है लेकिन जिन्हें सूखी रोटी मिल रही है, वह इतनी सूखी है और इतनी छोटी होती जा रही है कि उस पर प्याज का एक टुकड़ा रखने तक की जगह नहीं बची है, बल्कि प्याज का टुकड़ा ही नहीं बचा है, बल्कि सूखी रोटी भी पूरी बची नहीं है, उसका भी टुकड़ा बचा है। वह टुकड़ा धमका रहा है कि भाईयों-बहनों, पूरी रोटी का इंतजार अब छोड़ दो यह जो टुकड़ा, जो मिल रहा है, उसे फौरन खा लो वरना क्या पता कल यह भी न मिले! आगे की मत सोचो, वर्तमान में रहो क्योंकि 'विकास' हो रहा है, विकास दर विकास ही हो रहा है।

इसमें सूखी रोटी का टुकड़ा मिलना भी विकास है। इसे रामजन्मभूमि मंदिर समझो, जो बनने नहीं जा रहा है मगर बनने जा रहा है। आप-हम जैसे गधे इसे एप्रिशिएट नहीं कर पा रहे हैं, तो यह हमारी समस्या है, 'विकास' की नहीं। हमें समझाया जा रहा है कि यह 21वीं सदी है, उसका भी समझो यह स्वर्णयुग है, त्रेतायुग है, हम इस 'विकास' को नहीं समझ पा रहे हैं, इसका मतलब है कि हम हिंदूविरोधी, राष्ट्रविरोधी, कांग्रेसी, कम्युनिस्ट, पाकिस्तानी एजेंट हैं, इतना सब कहने के बावजूद हम इस 'विकास' को नहीं समझ रहे हैं तो यह उनकी नहीं, हमारी समस्या है।

हम भव्य राममंदिर की अनिवार्यता और आवश्यकता को नहीं समझ रहे हैं, हम शहरों-स्टेशनों का हिंदू नामकरण करने के ऐतिहासिक महत्व को समझ नहीं पा रहे हैं, हम किसानों की आत्महत्या को, किसानों को उचित दाम न मिलने को समस्या मान रहे हैं, तो यह उनकी नहीं, नोटबंदीवालों की नहीं, हमारी समस्या है, रामजादों की नहीं, ह में रामजादे जुड़ने से जो शब्द बनता है, उनकी समस्या है। यह वह समस्या है, जो नेहरू जी की देन है, जिन्होंने न पटेल को प्रधानमंत्री बनने दिया, न मोदी जी को। यह हमारी समस्या है कि हम उनके आंकड़ों, उनके भाषणों पर भरोसा नहीं कर रहे हैं। वे मन की बात करते हैं और हम बेवकूफ पूछते हैं कि तुम्हारे पास मन है कहां, सिर्फ़ जुबान है, अच्छा तुम अपनी जुबान को अपना मन कहने लगे हो? यह सवाल हम पूछते हैं तो यह हमारी समस्या है।

कर्नाटक संगीत के अनोखे गायक टीएम कृष्णा का गायन गया भाड़ में, उनके विचार क्यों हैं, उनकी असहमतियां और सवाल क्यों हैं, यह उनकी समस्या है। वैसे हमें और उन्हें सवाल पूछने का 'नैतिक अधिकार' नहीं है क्योंकि यह उनके पास सुरक्षित है। हमें जवाब देने का 'नैतिक अधिकार' भी नहीं है। सवाल भी उनके हैं, जवाब भी उनके हैं और 'नैतिक अधिकारों' का 'कॉपीराइट' भी उनका है। सरकार भी उनकी है, टीवी चैनल भी उनके हैं और भक्त-परमभक्त भी उनके हैं। इसके बावजूद हमें समझ में नहीं आ रहा है, अक्ल ठिकाने नहीं आ रही है तो यह हमारी समस्या है, बल्कि समस्या तो कोई है ही नहीं, समस्या हम हैं कि हम पाकिस्तान नहीं जा रहे हैं और अब यह उनकी भी समस्या नहीं है, हमारी और पाकिस्तान की द्विपक्षीय समस्या है, जिसका समाधान राफेल लड़ाकू विमान और उसमें कमीशनखोरी है।

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