खरी-खरीः मोदी को सत्ता से क्यों जाना ही चाहिए !

मोदी की पहली समस्या है कि अब यह सिद्ध हो चुका है कि मोदी एक झूठे नेता हैं। 2019 का मोदी एंटी इन्कम्बेंसी के बोझ से दबा हुआ है। जनता को उसका असल रूप दिख रहा है। दूसरी समस्या यह है कि 2014 में अपनी सफलता के चरम पर भी बीजेपी को कुल 31 प्रतिशत वोट ही मिले थे।

फोटोः Getty Images
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ज़फ़र आग़ा

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने गुजरात रैली के दौरान 2019 के लोकसभा चुनाव को जो संज्ञा दी है वह इस चुनाव पर बिल्कुल सही साबित होती है। राहुल गांधी के अनुसार 2019 का लोकसभा चुनाव गांधी और सावरकर के विचारों का एक संघर्ष है। निःसंदेह यह चुनाव इन्हीं दो विचारों का महाभारत है। इस चुनाव का मुद्दा केवल यह नहीं है कि एक सरकार रहेगी या नहीं रहेगी।

इस चुनाव का मुख्य मुद्दा यह है कि भारत रहेगा या नहीं रहेगा। यूं तो भारत को मिटाने वाले स्वयं मिट्टी में मिल जाते हैं। परंतु सवाल यह है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के पश्चात जो भारत रहेगा, वह किसके विचारों का भारत होगा! वह भारत गांधी के विचारों का भारत होगा या सावरकर के हिंदुत्व विचारों पर आधारित भारत होगा! सवाल यह है कि इन विचारों में अंतर क्या है? ये दोनों विचार एक-दूसरे के शत्रु हैं।

गांधी जैसा कि सब जानते हैं सत्य और अहिंसा पर संपूर्ण विश्वास रखते थे और उनके विचार इन्हीं दो सिद्धांतों पर आधारित थे। गांधीजी का यह भी मानना था कि भारतीय सभ्यता सदियों से इन्हीं सिद्धांतों पर आधारित है। उनके अनुसार सत्य का केवल एक ही रूप नहीं हो सकता। इसी प्रकार सत्य को खोजने का केवल एक ही मार्ग नहीं हो सकता है। वह मानते थे कि धर्म मुख्यतः सत्य को खोजने का एक मार्ग है। इसलिए उनका यह भी विचार था कि सब धर्मों का मूल्य एक ही है, हां उस मूल तक पहुंचने के रास्तेअलग-अलग हो सकते हैं।

यही कारण है कि गांधी के लिए ‘अल्लाह, ईश्वर तेरो नाम’ हो जाते हैं क्योंकि दोनों ही सत्य तक पहुंचने के उपाय या मार्ग हैं। निःसंदेह इस विचारधारा में घृणा या हिंसा की कोई गुंजाइश नहीं हो सकती। इसी कारण गांधी का मार्ग अहिंसा और प्रेम का मार्ग है। यह भी सत्य है कि हिंदू विचारधारा एवं सदियों से चली आ रही सभ्यता का भी यही निचोड़ है। तब ही तो निर्गुण और सगुण हिंदू सत्य के बराबर मार्ग हैं।

और यही कारण है कि भारतीय सभ्यता ने हर धर्म, हर सही विचारधारा, हर संस्कृति, भाषा, खान-पान और पहनावे के लिए दामन खुला रखा। तब ही तो सदियों से भारतीय सभ्यता परस्पर प्रगति पर है जबकि और न जाने कितनी सभ्यताएं गिर गईं या अब भीषण समस्या झेल रही हैं। इस बात का गुणगान प्रसिद्ध कवि इकबाल ने अपनी प्रसिद्ध कविता ‘सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा’ में इस प्रकार किया है:

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी

सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-जमां हमारा।

यही कारण है कि इस गांधी विचारधारा पर आधारित हमारा संविधान हर भारतीय नागरिक को उसके धर्म, जाति और लिंग के साथ बराबरी का अधिकार प्रदान करता है। दूसरी ओर सावरकर की हिंदुत्व विचारधारा है, जिसमें सत्य तक पहुंचने का केवल एक मार्ग है जो उनके विचारों का हिंदू धर्म है। साथ ही इस लक्ष्य को प्राप्त करने का मार्ग हिंसा भी हो सकता है। ये दोनों ही बातें भारतीय सभ्यता और स्वयं हिंदू धर्म के मूल्यों के विपरीत हैं।

इस विचारधारा के अनुसार भारत पर मुख्य अधिकार केवल यहां के बहुसंख्यक समुदाय को है, अल्पसंख्यक केवल दूसरे दर्जे के नागरिक हो सकते हैं। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए यदि हिंसा की आवश्यकता हो तो उसका भी उपयोग किया जा सकता है। मोदी राज में गुजरात के 2002 के दंगे एवं हाल में गोमांस के मुद्दे पर मुसलमानों की ‘मॉब लिंचिंग’ इसी विचारधारा का एक पथ है जो भारत को हिंदुत्व की ओर ले जाने का मार्ग भी है।

यही कारण है कि इस विचारधारा में विश्वास रखते हुए न तो नरेंद्र मोदी, न ही बीजेपी को 2002 के दंगों, बाबरी मस्जिद ध्वंस अथवा मॉब लिंचिंग पर किसी प्रकार की शर्मिंदगी है। जाहिर है इस विचारधारा का आधार ‘दूसरे’ के लिए घृणा ही हो सकता है।

नरेंद्र मोदी इसी हिंदुत्व विचारधारा से उपजे नेता हैं, जिनका लक्ष्य भारत को बीजेपी की विचारधारा पर ढालना है। पिछले पांच वर्षों में उन्होंने बहुत चतुराई से इस प्रोजेक्ट पर काम किया। भारत की तमाम संस्थाओं (शिक्षा प्रणाली से लेकर न्यायपालिका और मीडिया तक) पर हिंदुत्व का रंग चढ़ाया गया। अल्पसंख्यकों में भय की रणनीति अपनाकर उन्हें दूसरे दर्जे का नागरिक होने का एहसास दिलाया गया।

गुजरात से लेकर अभी तक मोदी की राजनीति का आधार बहुमत में अल्पमत के प्रति घृणा पैदाकर स्वयं को मुखर हिंदू नेता और ‘हिंदू हृदय सम्राट’ के रूप में पेश करना रहा है। इसके लिए वह बहुमत में भय उत्पन्न कर स्वयं को ‘हिंदू अंग रक्षक’ का रूप देते हैं और इस प्रकार बीजेपी राज्य स्थापित करते हैं।

परंतु यह हिंदुत्व विचारधारा एवं मोदी की रणनीति भारत के हित में नहीं हो सकती। यह भारत वर्ष के लिए एक खतरनाक विचारधारा है क्योंकि भारत ‘एकता में अनेकता’ जैसे विचारों पर ही सफल हो सकता है। पिछले पांच वर्षों में मोदी राज में हिंदुत्व विचारधारा को लागू करने का प्रयास हुआ। इसका असर क्या हुआ! कश्मीर से कन्याकुमारी तक आज भारत में आक्रोश एवं असंतोष है। कश्मीर में बल की नीति पर सबको झुकाने के प्रयास से कश्मीर की जो दुर्दशा है वह सबके सामने है।

उसी प्रकार नागरिकता बिल के आधार पर असम से लेकर उत्तर पूर्व के राज्यों में धार्मिक और सांस्कृतिक समानता थोपने के कारण संपूर्ण पूर्वी भारत में नित नई समस्याएं उत्पन्न हो गईं जो भारतीय एकता और अखंडता के लिए खतरा है। इसी प्रकार भारत की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या वाली आबादी मुस्लिम समाज में भय उत्पन्न करने की रणनीति भी देश हित में नहीं है।

फिर हिंदुत्व की एक समस्या यह भी है कि वह स्वयं हिंदू समाज की पिछड़ी जातियों और गरीबों को भी बराबरी के अधिकार देने को तैयार नहीं है। तभी तो मोदी राज के पांच वर्षों में दलित और पिछड़ों में जो असंतोष उत्पन्न हो रहा है, वह स्वयं हिंदू समाज के पक्ष में नहीं है। फिर गरीब किसान, नौजवान और छोटे कारोबारी जिस प्रकार पिछले पांच वर्षों में हाशिये पर पहुंच गए, वह हिंदुत्व विचारधारा वाले भारत में कोई अनोखी बात नहीं है।

हिंदुत्व विचारधारा में ढले मोदी 2019 में एक बार फिर जनता का विश्वास मांग रहे हैं। अगर वह सफल होते हैं, तो फिर इस देश में खुल कर हिंदुत्व का डंका बजेगा। यह भारत के हित में नहीं है। सत्य यह है कि मोदी भारतीय सभ्यता के लिए एक खतरा हैं। अतः भारत के हित में यही है कि 2019 लोकसभा चुनाव में मोदी को हराया जाए।

लेकिन यह भी स्पष्ट है कि मोदी को हराना कोई बहुत सरल बात नहीं है। संघ ने मोदी का रंग गांव-गांव तक पहुंचा दिया है। भारतीय व्यवस्था, मीडिया और भारतीय कॉरपोरेट जगत लगभग पूरी तरह मोदी के पक्ष में खड़ा है। घृणा की राजनीति के आधार पर खड़ी संपूर्ण बीजेपी और संघ की अपार संगठन शक्ति मोदी के लिए चौबीसों घंटे समर्पित है। ऐसे में 2019 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष के लिए कोई सामान्य अथवा सरल चुनाव नहीं है।

इन कठिनाइयों के बावजूद मोदी को हराया जा सकता है। मोदी की दो बड़ी समस्याएं हैं। पहली यह कि यह सिद्ध हो चुका है कि मोदी एक झूठे नेता हैं। वह सत्ता प्राप्ति के लिए दो करोड़ सालाना रोजगार से लेकर हर बैंक खाते में 15 लाख रुपये जमा कराने जैसे वादे तो करते हैं, लेकिन जनता को बदले में ठेंगा ही मिलता है। अर्थात 2019 का मोदी एंटी इन्कम्बेंसी के बोझ से दबा हुआ है। जनता को उसका असल रूप दिखाई पड़ रहा है। मोदी की दूसरी समस्या यह है कि 2014 में अपनी सफलता के चरम पर भी बीजेपी को कुल 31 प्रतिशत वोट ही मिले थे।अर्थात झूठे वादों के बोझ से दबा मोदी एकजुट विपक्ष का सामना नहीं कर सकता है।

अतः 2019 में भारत और भारतीयों के हित में केवल यही है कि मोदी को दोबारा सत्ता में हरगिज नहीं आना चाहिए। यह लक्ष्य अभी थोड़ा कठिन दिख रहा है परंतु असंभव नहीं है। इस लक्ष्य की प्राप्ति का रामबाण विपक्षी एकता और मोदी के झूठों का भंडाफोड़ करने की रणनीति ही हो सकता है। स्पष्ट है कि मोदी फिर राष्ट्रवाद जैसे मुद्दे पैदाकर सत्ता प्राप्त करने की कोशिश करेंगे। परंतु इन परिस्थितियों में विपक्ष, विशेषतया कांग्रेस को उसके हथकंडों की काट के लिए तैयार रहना चाहिए। जनता का मन मोदी से ऊब चुका है। पिछले सप्ताह अहमदाबाद की कांग्रेस रैली में लाखों लोगों की उमड़ी भीड़ इस बात का संकेत है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी 2019 में हारी लड़ाई लड़ रही है।

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