क्या नीतियों में सुंदरलाल बहुगुणा के विचारों को उचित महत्व मिलेगा या जुबानी सम्मान ही देती रहेंगी सरकारें?

हम आज की सरकारों की हिमालय क्षेत्र की नीतियां देखें तो साफ दिखता है कि विभिन्न प्रोजेक्ट के नाम पर अंधाधुंध पेड़ काटे जा रहे हैं, विनाशकारी खनन हो रहा है। शराब को तेजी से बढ़ाया जा रहा है। निश्चय ही यह नीतियां सुन्दरलाल बहुगुणा के आदर्शों के अनुकूल नहीं हैं।

 फोटोः सोशल मीडिया
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भारत डोगरा

हाल ही में जब 21 मई को परम आदरणीय पर्यावरणविद सुन्दरलाल बहुगुणा का निधन हुआ तो केन्द्र और राज्य सरकार दोनों स्तरों पर उन्हें उच्च सम्मान देकर उनकी उपलब्धियों को बहुत सराहा गया। पर एक सवाल फिर भी लोगों के मन में रह गया कि क्या सरकारें अपनी हिमालय-नीति में सुंदरलाल बहुगुणा के संदेश को समुचित महत्त्व देगी।

सुन्दरलाल बहुगुणा कोई साधारण कार्यकर्ता नहीं थे। दूर-दूर के जंगल को छानकर हिमालय संबंधी सोच बनाई थी कि यहां के लिए, यहां के लोगों की दीर्घकालीन भलाई के लिए सबसे उचित सोच क्या होगी, सबसे उचित नीतियां क्या होंगी। उन्होंने किसान से बात की, मजदूर से बात की, महिलाओं से बात की, युवाओं से नाता जोड़ा। इस आधार पर ही सोच बनाई।

आरंभिक दौर में उत्तराखंड में वनों की रक्षा के लिए बड़ा निर्णय प्राप्त करने के बाद उन्होंने वन-रक्षा, पर्यावरण-रक्षा को पूरे हिमालय में फैलाने का निर्णय लिया। इसके लिए कश्मीर से कोहिमा की दुर्गम पद-यात्रा पर निकल पड़े। नेपाल, भूटान और भारत के विभिन्न राज्यों के हिमालय क्षेत्र के वनों में गए, गांवों में गए। इतने खतरों का सामना किया कि कभी-कभी तो लगता नहीं था कि बच सकेंगे, इसके बावजूद यात्रा को पूरा किया। अनेकोनेक गांवों में अपना संदेश पहुंचाया। वहां की स्थिति को समझा और सीखा। अनेक वनों की क्षति स्वयं करीब से देखा। जहां अवसर मिला अधिकारियों और कार्यकर्ताओं से भी विमर्श किया। भविष्य के लिए नए कार्यकर्ता भी तैयार किए, उन्हें आपस में जोड़ा।

इतनी त्याग-तपस्या से, मेहनत, भाग-दौड़ से, सुंदरलाल जी और उनकी सहधर्मिणी विमला जी ने हिमालय संबंधी अपना दृष्टिकोण बनाया था। इसके कुछ जरूरी पक्ष थे- प्राकृतिक मिश्रित वनों की रक्षा, इनके साथ गांववासियों की टिकाऊ आजीविका और जीवन-पद्धति को जोड़ना, प्राकृतिक खेती और परंपरागत मिश्रित खेती व बीजों को महत्त्व देना, नदियों और जलस्रोतों की रक्षा, नदी पर बांधों का विरोध, पर्यावरण की क्षति वाले खनन का विरोध, दलित वर्ग की समानता और अधिकारों की प्रतिष्ठा, सभी धर्मों की एकता और आपसी सद्भावना, ग्राम समुदायों को मजबूत करना, महिलाओं की समानता को प्रतिष्ठित करना और उनकी स्थिति के सुधार को अधिक महत्त्व देना, शराब और हर तरह के नशे का निरंतरता से विरोध करना।


दूसरी ओर यदि हम आज की सरकारों की हिमालय क्षेत्र में नीतियों को देखें तो यह नजर आता है कि विभिन्न परियोजनाओं के नाम पर अंधाधुंध पेड़ काटे जा रहे हैं। नदियों पर पनबिजली परियोजनाओं और बांधों के सिलसिले को बहुत तेजी से बढ़ाया जा रहा है। जो इसका विरोध कर रहे हैं, उनके विरुद्ध कड़ी कार्यवाही की जा रही है। अनेक स्थानों पर विनाशकारी खनन हो रहा है। शराब को अधिकांश हिमालय क्षेत्र में बहुत तेजी से बढ़ाया जा रहा है।

निश्चय ही यह नीतियां सुन्दरलाल बहुगुणा के आदर्शों के अनुकूल नहीं हैं। क्या केन्द्र और राज्य सरकारें इन नीतियों पर पुनर्विचार के लिए तैयार हैं। यदि राष्ट्रीय स्तर पर भी देखें तो सुन्दरलाल और विमला बहुगुणा का प्रमुख संदेश समता, सादगी और न्याय का संदेश है। उनके संदेश में सभी धर्मों की एकता और आपसी सद्भावना को बहुत महत्व दिया गया है। क्या आज की विभिन्न सरकारें इन आदर्शों को आगे बढ़ा रही हैं या इनसे पीछे हट रही है।

आर्थिक नीतियों के संदर्भ में सुन्दरलाल बहुगुणा जी ने महात्मा गांधी के विचारों के अनुरूप आर्थिक नीति को नजदीकी तौर पर नैतिकता से जोड़ा। इसके दो महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं। पहला पक्ष अर्थ नीति में पर्यावरण रक्षा को अधिक महत्त्व देने से जुड़ा है। तभी विकास को टिकाऊ विकास माना जाएगा। दूसरा पक्ष सबसे निर्धन और वंचित समुदायों को केंद्र में रखने का है। सुन्दरलाल बहुगुणा ने गांवों को अधिक महत्त्व दिया और गांवों में भी भूमिहीनों के हितों की अधिक चिंता की। उन्होंने भूदान आंदोलन में भी सक्रिय भागेदारी की। क्या आज की सरकारें इन प्राथमिकताओं के अनुकूल चलने को तैयार हैं।

निश्चय ही सुन्दरलाल बहुगुणा का जीवन बहुत महान था। उन्हें हम जितनी भी श्रद्धांजलि दें, उनके सम्मान में जितना भी कहें, वह कम ही है। पर सरकारों के सामने एक बड़ा सवाल यह है कि क्या वे श्रद्धांललि देने के साथ सुन्दरलाल बहुगुणा के विचारों और संदेश को अपनाने और उनसे सीखने का प्रयास ईमानदारी से करेंगी।

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