महिलाओं में आगे बढ़ने का माद्दा कहीं अधिक, लेकिन पुरुषों के हिसाब से रखा जाता है कार्यस्थल का माहौल

पुरुषों की बनाई दुनिया में काम करने वाली महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक संघर्ष की क्षमता और आगे बढ़ने का माद्दा रखतीं हैं। लेकिन नासा से लेकर हेल्थ सेक्टर तक हर जगह कार्यक्षेत्र का विकास पुरुषों के अनुसार किया जाता है और महिलाओं को इसे स्वीकारना पड़ता है।

फोटोः सोशल मीडिया
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महेन्द्र पांडे

कुछ दिनों पहले की बात है, अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा को दो अंतरिक्ष यात्रियों को इंटरनेशनल स्पेस सेंटर पर किसी उपकरण की बैटरी बदलने के लिए भेजना था और इस बार पहली बार बिना किसी पुरुष सहयोगी के दो महिलाएं इस काम के लिए अंतरिक्ष में जाने वाली थीं। पूरे वैज्ञानिक जगत में इसे बड़े उत्साह से सराहा जा रहा था क्योंकि ऐसा पहली बार होने जा रहा था। लेकिन अंतरिक्ष में जाने के ठीक दो दिन पहले एक महिला अंतरिक्ष यात्री, ऐनी मैक्लीन का नाम हटा कर उसके बदले एक पुरुष अंतरिक्ष यात्री के नाम की घोषणा कर दी गयी। इसका कारण भी अजीब सा था।

नासा के अनुसार उनके पास मीडियम साइज के दो ही स्पेस सूट हैं और इनमें से अंतरिक्ष में भेजने लायक एक ही है। दोनों महिला अंतरिक्ष यात्रियों, क्रिस्टीना कोच और ऐनी मैक्लीन ने अंतरिक्ष में जाने की पूरी तैयारी स्पेस सूट के लार्ज और मीडियम साइज के साथ करने के बाद मीडियम साइज को चुना था, लेकिन नासा के पास अंतरिक्ष में भेजने लायक केवल एक ही मीडियम साइज का स्पेस सूट था। इस तरह केवल स्पेस सूट के साइज उपलब्ध नहीं होने के कारण एक इतिहास बनने से रह गया।

इस घटना के बाद से पूरी दुनिया में यह बहस छिड़ गई है कि हर जगह कार्य क्षेत्र का विकास केवल पुरुषों को ध्यान में रख कर किया गया है और महिलाओं को इस माहौल को स्वीकारना पड़ता है। कैरलाइन क्रिअदो पेरेज एक अमेरिकी पत्रकार हैं और इन्होने कार्यक्षेत्र पर लैंगिक असमानता पर अध्ययन कर एक पुस्तक लिखी है- ‘इनविजिबल वीमेन: एक्स्पोजिंग डाटा बायस इन अ वर्ल्ड डीजाइंड फॉर मेन’।

कैरलाइन को यह पुस्तक लिखने की प्रेरणा तब मिली जब उन्हें पता चला कि दुनियाभर में चिकित्सक हार्ट अटैक को उन लक्षणों से पहचानते हैं जो केवल पुरुषों में पाए जाते हैं। हार्ट अटैक के सामान्य लक्षण माने जाते हैं– छाती में दर्द और बाएं हाथ में दर्द। ये दोनों पुरुषों में सामान्य हैं जबकि आठ में से केवल एक महिला को इस दौरान छाती में दर्द होता है। महिलाओं को जबड़े और पीठ में दर्द होता है, सांस लेने में दिक्कत होती है और उल्टी आती है।

इसका सीधा सा मतलब यह है कि महिलाओं में हार्ट अटैक के विशेष लक्षणों की कभी चर्चा ही नहीं की जाती है। जाहिर है इसका इलाज भी नहीं होता। कैरलाइन क्रिअदो पेरेज का एक इंटरव्यू हाल में ही साइंटिफिक अमेरिकन पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। चिकित्सा के क्षेत्र में तो हालात ऐसे हैं कि दवाओं का सारा परीक्षण पुरुषों पर ही कर दिया जाता है, इसीलिए महिलाओं में दवाओं के रिएक्शन या फिर असर नहीं करने के मामले बहुत अधिक होते हैं।

कैरलाइन ने नासा की घटना पर कहा कि उन्हें दुख तो है पर आश्चर्य कतई नहीं है। यह दुनिया पुरुषों के अनुसार बनाई गई है और इसमें महिलाओं को पुरुषों की शर्तों पर ही शामिल होना पड़ता है। नासा में पहले स्पेस सूट एक्स्ट्रा-लार्ज, लार्ज, मीडियम और स्माल साइज में उपलब्ध होते थे, लेकिन 1990 के दशक में जब इसके बजट में कमी की गई तब स्माल साइज के सूट गायब हो गए और लगभग एक-तिहाई महिलाएं कभी भी अंतरिक्ष में पहुंचाने से वंचित रह गईं। अब महिलाओं के पास केवल लार्ज और मीडियम साइज का ही विकल्प बचा है।

कैरलाइन की पुस्तक में बहुत सारे उदाहरण हैं, जिनसे पता चलता है कि कार्यस्थल पर महिलाएं किन समस्याओं का सामना करती हैं। पुलिस और मिलिट्री में महिलाएं अब भारी संख्या में आ रही हैं, लेकिन बुलेट प्रूफ जैकेट, बूट, गॉगल्स, हेलमेट और इस तरह की अन्य आवश्यक वस्तुएं केवल पुरुषों को ध्यान में रख कर बनाई जाती हैं।

इतना ही नहीं कार निर्माता कंपनी भी कार के क्रैश टेस्ट में केवल पुरुषों के डमी से अध्ययन और परीक्षण करती हैं। किसी भी कार निर्माता को यह नहीं पता कि ड्राईवर सीट पर बैठी महिलाओं पर दुर्घटना के समय क्या असर पड़ेगा। इसी कारण बड़ी दुर्घटना के समय ड्राईवर सीट पर बैठी महिलाएं पुरुषों की तुलना में 47 प्रतिशत अधिक प्रभावित होतीं हैं, जबकि छोटी घटनाओं में 71 प्रतिशत अधिक प्रभावित हो जाती हैं। केवल महिलाओं पर दुर्घटना का परीक्षण नहीं करने से दुर्घटना के समय पुरुषों की तुलना में ड्राईवर सीट पर बैठी 17 प्रतिशत अधिक महिलाओं की मृत्यु हो जाती है।

यह अंतर तो सामान्य ऑफिस में भी पता चलता है। जितने भी ऑफिस फर्निचर होते हैं या फिर कमरे का डिजाइन होता है सभी पुरुषों के लिए ही बने होते हैं। कुर्सियों की बनावट, ऊंचाई और फिर कुर्सी और वर्क स्टेशन या फिर मेज की ऊंचाई भी पुरुषों के हिसाब से ही रखी जाती है। पुरुषों और महिलाओं के शरीर में जितनी भी क्रियाएं होतीं हैं, उनकी दर अलग होती है। इसलिए उनके लिए आरामदेह तापमान भी अलग होता है। पुरुष 21 डिग्री सेल्सियस के आसपास के तापमान में आराम महसूस करते हैं जबकि महिलाओं के लिए यह तापमान 25 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहता है। लेकिन दुनिया भर में ऑफिस का तापक्रम 21 डिग्री सेल्सिउस के आसपास ही रखा जाता है, जिसे 40 वर्षीय पुरुष जो 70 किलो भार का हो, के लिए 1990 के दशक से सामान्य माना जाता है।

स्मार्टफोन अब लगभग सबके पास है फिर भी इसका बाजार तेजी से बढ़ रहा है। इसके स्क्रीन का साइज भी लगातार बढ़ता जा रहा है। स्मार्टफोन निर्माताओं को शायद यह मालूम ही नहीं है कि महिलाओं की हथेली पुरुषों की तुलना में एक इंच छोटी होती है। यही कारण है कि ज्यादा बड़े स्मार्टफोन पकड़ने में और इस पर एक हाथ से टेक्स्ट लिखने में महिलाओं को बहुत दिक्कतें आतीं हैं।

यही नहीं, स्मार्टफोन के साथ तरक्की करते हेल्थ एप्स भी पुरुषों की बीमारियों का ही विस्तार में विश्लेषण करते हैं। गूगल का वॉयस रिकग्निशन सिस्टम भी पुरुषों की आवाज को ध्यान में रखकर विकसित किया गया है, इसीलिए इसमें महिला के आवाज को पहचानने की क्षमता 70 प्रतिशत से कम रहती है।

कैरलाइन के एक उदाहरण से पता चलता है कि जाने-अनजाने दुनिया कैसे पुरुषों की बन जाती है। स्वीडन और कुछ अन्य यूरोपियन देशों में सामाजिक सरोकार के सभी कार्यों का जेंडर ऑडिट भी किया जाता है। इससे महिलाओं की भागीदारी बढ़ती है और उनकी समस्याएं पता चलती हैं। स्वीडन के एक शहर में सर्दियों में सड़क पर जमी बर्फ हटाने के काम का जेंडर ऑडिट किया जा रहा था। हर जगह पर जैसा होता है, पहले मुख्य सड़क की बर्फ हटाई जाती है जिससे कारें चल सकें, फिर छोटी सडकों की और फिर घरों के सामने और कॉलोनियों के अंदर की बर्फ हटाई जाती है।

स्वीडन के उस शहर में भी ऐसा ही किया जाता था। लेकिन ऑडिट में पता चला है कि इस क्रम में तो पुरुषों को ही फायदा होता है, क्योंकि कारें वही अधिक चलाते हैं। दूसरी तरफ, महिलाएं अधिकतर पैदल या फिर साइकिल से चलतीं हैं और उन्हें अधिक समय तक बर्फ का सामना करना पड़ता था। इस जेंडर ऑडिट के बाद बर्फ हटाने का क्रम ठीक उल्टा कर दिया गया। इससे महिलाओं को फायदा पहुंचा और बर्फ पर चलते समय फिसलने से दुर्घटना की संख्या में भी तेजी से कमी आ गई।

खेलों की दुनिया में भी जितने उपकरण और सामग्री हैं, उनका विकास पुरुषों को ही ध्यान में रखकर किया गया है। विज्ञान में भी यही समस्या है। नासा की घटना के बाद अमेरिका के केंसास में नदियों पर काम करने वाली वैज्ञानिक जेसिका माउंट्स ने बताया कि पानी में काम करने वाली या फिर चट्टानों पर काम करने वाली महिलाओं को पुरुषों के लिए बनाए गए कपड़े, बूट, उपकरण और हेलमेट का ही उपयोग करना पड़ता है। यहां तक कि साधारण से लैब-कोट भी पुरुषों के ही आकार के उपलब्ध होते हैं। महिलाओं के लिए अलग से मिलते भी हैं तो वे बहुत महंगे और बैडोल होते हैं।

स्पष्ट है कि महिलाएं पुरुषों की बनाई दुनिया में काम करतीं हैं, फिर भी वे पुरुषों की बराबरी कर रहीं हैं और कई मामलों में आगे भी बढ़ रहीं हैं। इससे इतना तो पता चलता है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक संघर्ष की क्षमता और आगे बढ़ने का माद्दा रखतीं हैं।

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