शी जिनपिंग ने G-20 से यूं ही नहीं किया है किनारा, नियंत्रण रेखा पर चीन रच रहा गहरी साजिश!

शिखर सम्मेलन से ऐन पहले चीन भारत के साथ अपने नाजुक रिश्तों में खतरनाक तरीके से पलीता लगा रहा था। वह हिमालय की 3,488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर आक्रामक पेशबंदी कर भारत पर दबाव बना रहा था।

फोटोः सोशल मीडिया
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सरोश बाना

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 9 और 10 सितंबर को नई दिल्ली में होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग नहीं लेने का फैसला किया है और इसे भारत के खिलाफ चीन की आक्रामकता के एक और नमूने के तौर पर देखा जा रहा है। 

अमेरिका और हमारे पश्चिमी सहयोगियों, रूस, ऑस्ट्रेलिया, जापान, दक्षिण कोरिया जैसे 19 प्रतिष्ठित देशों की अगुवाई करके अपनी ‘वैश्विक नेतृत्व’ क्षमता का परिचय देने की भारत की आकांक्षाओं को निश्चित ही शी जिनपिंग की गैरमौजूदगी से झटका लगेगा। रोटेशन के हिसाब से 2024 में जी-20 की अध्यक्षता ब्राजील को मिलने जा रहा है।

चीन का प्रतिनिधित्व प्रधान मंत्री ली कियांग करेंगे। कुछ ही दिन पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने नई दिल्ली में शी जिनपिंग से मुलाकात की उम्मीद जताई थी। कुछ अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक अब यह मुलाकात संभवत: नवंबर में सैन फ्रांसिस्को में होने वाली एपेक (एशिया प्रशांत आर्थिक सहयोग सम्मेलन) के दौरान हो सकेगी। गौरतलब है कि 2021 में इटली में हुए शिखर सम्मेलन को छोड़कर जिनपिंग ने पिछले सभी जी-20 शिखर सम्मेलनों में भाग लिया। इटली सम्मेलन में वह चीन के कोविड प्रोटोकॉल के कारण भाग नहीं ले सके थे।

शिखर सम्मेलन से ऐन पहले चीन भारत के साथ अपने नाजुक रिश्तों में खतरनाक तरीके से पलीता लगा रहा था। वह हिमालय की 3,488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर आक्रामक पेशबंदी कर भारत पर दबाव बना रहा था। इसके साथ ही उसने 28 अगस्त को अपने ‘मानक मानचित्र’ का 2023 का संस्करण जारी किया, जिसमें अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन को चीन का हिस्सा दिखाया गया है। माना जा रहा है कि चीन ने भारत को असहज करने के लिए ऐसा किया।  

1950 में तिब्बत पर कब्जा करने के बाद चीन धीरे-धीरे भारत की जमीन में घुसता गया और वह 83,743 वर्ग किमी के भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश पर दावा करता है जिसे वह जंगनान या ‘दक्षिण तिब्बत’ कहता है। जबकि भारत 37,244 वर्ग किमी के अक्साई चिन पर दावा करता है जिसपर चीन ने 1962 में एक महीने तक चले युद्ध के दौरान कब्जा कर लिया था।


अगस्त के मध्य में चुशुल-मोल्डो में हुई कोर कमांडर स्तरीय बातचीत के 19वें दौर के बेनतीजा रहने के बाद बाद दोनों पड़ोसियों के बीच तनाव फिर से बढ़ गया है। अमेरिका की मैक्सार टेक्नोलॉजीज से उपग्रह से ली गई तस्वीरों और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों के विश्लेषण से पता चलता है कि चीनी सेना विवादित अक्साई चिन क्षेत्र की घाटी में पहाड़ के भीतर सुरंगों और छिपने की जगहों का निर्माण कर रही है। यह जगह भारत के सीमावर्ती केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के उत्तर में डेपसांग से लगभग 60 किमी पूर्व में स्थित है।

हालांकि पिछले दौर की बातचीत के बाद दोनों सेनाएं टकराव वाली कुछ जगहों पर पीछे हट गई हैं, लेकिन पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के सैनिकों ने पूर्वी लद्दाख के उन इलाकों पर अब भी कब्जा कर रखा है, जहां तक वे अंदर चले आए थे और जिसके एक माह बाद ही गलवान में  दोनों सेनाओं के बीच हिंसक झड़प में चीनियों ने भारत के 20 सैनिकों को शहीद कर दिया था। 

भले ही दो-तरफा बातचीत शांतिपूर्ण तरीके से हो गई, फिर भी पीएलए डेपसांग के मैदानी इलाकों और डेमचोक के चार्डिंग निंगलुंग नाला जंक्शन पर भारतीय सेना को गश्त करने देने के लिए तैयार नहीं है। लेकिन नरेन्द्र मोदी ने न सिर्फ इस बात पर जोर दिया कि ‘भारत की सीमा के अंदर किसी ने कोई घुसपैठ नहीं की है और न ही हमारी कोई चौकी किसी और के कब्जे में है’, बल्कि उन्होंने जिनपिंग के साथ टेलीफोन पर इस मुद्दे पर चर्चा करने से भी परहेज किया है।

उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में हाल ही में संपन्न ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान भी जिनपिंग के साथ इस मुद्दे को नहीं उठाया। उम्मीदों के विपरीत जिनपिंग ने अपनी ओर से किसी भी स्तर पर इस विषय पर कोई चर्चा नहीं की है, जिससे इस धारणा को बल मिलता है कि भारत के खिलाफ चीन का सैन्य आक्रमण केवल सामरिक नहीं है, बल्कि विशिष्ट दीर्घकालिक उद्देश्यों को पूरा करने की रणनीति का एक हिस्सा है। आखिरकार, पीएलए चीन के शीर्ष नेतृत्व यानी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) के केंद्रीय सैन्य आयोग (सीएमसी) के निर्देशों पर यह सब कर रही है, जिसके अध्यक्ष खुद जिनपिंग हैं।


सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने जनवरी में चीन की बढ़ती सैन्य तैनाती को स्वीकारते हुए कहा था कि उनकी हर गतिविधि पर कड़ी नजर रखी जा रही है। सर्विलांस और उपग्रह इमेजरी से संकेत मिलता है कि चीन ने एलएसी पर सेना की तीन-स्तरीय घेराबंदी कर रखी है। पहले स्तर में सीमा रेजिमेंट, उसके बाद झिंजियांग और तिब्बत सैन्य जिला सैनिकों के दो डिवीजन तैनात हैं और तीसरे स्तर में रिजर्व सैनिक के चार ब्रिगेड। प्रत्येक ब्रिगेड में तकरीबन 4,500 सैनिक हैं जो खास भौगोलिक जरूरतों के लिहाज से आवश्यक हथियारों वगैरह से लैस हैं।

भारत ने जवाबी कार्रवाई में तोपखाने, रिजर्व सैनिकों, फिक्स्ड और रोटर-विंग विमानों, के-9 स्व-चालित हॉवित्जर रेजिमेंट, बीएई सिस्टम्स की 155 मिमी एम-777 अल्ट्रा-लाइट हॉवित्जर, 40 मिमी एल-70 एंटी-एयरक्राफ्ट गन को तैनात कर रखा है। भारतीय वायु सेना ने जमीनी सैनिकों को सामरिक सहायता प्रदान करने के लिए बोइंग एएच-64 अपाचे लड़ाकू हेलीकॉप्टर, सैनिकों और साजो-सामान ले जाने के लिए बोइंग सीएच-47 चिनूक हेवी-लिफ्ट हेलीकॉप्टर, निगरानी के लिए भारतीय नौसेना के पी-8 पोसीडॉन समुद्री गश्ती विमान के अलावा दसॉल्ट मिराज 2000 लड़ाकू विमान तैनात किए हैं। हालांकि, पीएलए भारत के अन्य सीमावर्ती राज्यों उत्तराखंड, अरुणाचल और सिक्किम की सीमाओं पर बार-बार घुसपैठ कर रहा है और उसने इन सीमाओं पर तोपखाने, हवाई सुरक्षा उपकरणों, लड़ाकू ड्रोन से लैस अतिरिक्त सैनिकों की तैनाती कर दी है।

चीन द्वारा अपना ‘मानचित्र’ जारी करने के कारण नई दिल्ली को राजनयिक चैनलों के माध्यम से औपचारिक विरोध दर्ज कराना पड़ा। भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा: ‘चीन ने उन क्षेत्रों के साथ मानचित्र जारी किया है जो उसके नहीं हैं। यह उसकी पुरानी आदत है। भारत के कुछ हिस्सों को नक्शे में दिखाने से ... कुछ नहीं बदलता। हमारी सरकार अपने इलाके के बारे में बहुत स्पष्ट है। बेतुके दावे करने से दूसरे का इलाका आपका नहीं हो जाता।’

वहीं, भारत में चीनी दूतावास के प्रवक्ता वांग जियाओजियान ने मानचित्र जारी करने को ‘संप्रभुता से जुड़ा कानून-सम्मत सामान्य व्यवहार’ कहकर भारत के दावे का खंडन किया। उन्होंने कहा, ‘हमें उम्मीद है कि संबंधित पक्ष शांत रहेंगे और इसका जरूरत से ज्यादा मतलब निकालने से परहेज करेंगे।’ 

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