पोस्टरों से साफ होगी दिल्ली में यमुना, बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से नदियों की सफाई का मतलब बदला!

बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से नदियों की सफाई का मतलब ही बदल चुका है। पहले नदियों की सफाई का मतलब नदियों के पानी की सफाई होता था, पर अब इसका मतलब रिवरफ्रन्ट विकास, किनारे पर भव्य आरती और आलीशान क्रूज चलाना हो गया है।

फोटो: महेंद्र पांडेय
फोटो: महेंद्र पांडेय
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महेन्द्र पांडे

बीजेपी सरकारों में हरेक काम प्रधानमंत्री और साथ में मुख्यमंत्रियों के चित्रों से लैस अनगिनत पोस्टरों से होता है। देश का विकास भी पोस्टरों से ही किया जा रहा है। अब दिल्ली में यमुना नदी को साफ करने का काम भी तमाम पोस्टर ही कर रहे हैं। दिल्ली के विधानसभा चुनावों के समय भी मोदी जी की गारंटी में यमुना की सफाई का जिक्र था, जिसमें कहा गया था कि जिस तरह गुजरात के अहमदाबाद/गांधी नगर में साबरमती नदी की सफाई की उसे तरह दिल्ली में यमुना की सफाई करेंगें – यहाँ ध्यान देने वाला तथ्य यह है कि पोस्टरों में गंगा सफाई का जिक्र नहीं था, जबकि गंगा देश की सबसे पवित्र और प्रधानमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी से होकर बहने वाली नदी है। दूसरी तरफ केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार साबरमती देश की सर्वाधिक प्रदूषित नदियों में दूसरे स्थान पर है। तथ्य कुछ भी हों, प्रधानमंत्री के चित्रों के साथ पोस्टर लटकना ही इस सरकार में विकास की गारंटी है।

दिल्ली के विधानसभा चुनावों के परिणाम आए, कई दिनों के बाद मुख्यमंत्री के नाम का ऐलान हुआ और फिर रेखा गुप्ता सत्ता में आईं। अपने पहले भाषण से लेकर हाल में सम्पन्न हुए 100 दिनों के कार्यक्रम में यमुना सफाई का जिक्र होता रहा। यमुना सफाई पर दिल्ली में कई स्थानों पर मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के चित्रों के साथ पोस्टर लटका दिए गए। अपने बजट भाषण में भी रेखा गुप्ता ने यमुना सफाई के लिए 500 करोड़ रुपये के प्रावधान की चर्चा की। पिछले महीने ही रेखा गुप्ता ने यमुना और इसमें मिलने वाले नालों पर 32 रियल-टाइम मोनिटरिंग स्टेशन स्थापित करने की घोषणा की है। मेनस्ट्रीम मीडिया में इन घोषणाओं को कुछ इस तरह प्रस्तुत किया मानो दिल्ली की यमुना नदी में बहने वाला पानी अब एकदम साफ हो गया हो, जबकि नदी में वही काला बदबूदार पानी बह रहा है।


मार्च में जल संसाधनों पर संसद की स्टैन्डिंग कमिटी ने एक रिपोर्ट में बताया था कि दिल्ली में यमुना नदी का अस्तित्व लगभग नहीं के बराबर है और इसमें घुलित आक्सिजन के नहीं होने के कारण इसमें जलीय जीवन को पालने की क्षमता नहीं है। यदि दिल्ली से निकलने वाले गंदे पानी यानि घरेलू मलजल और औद्योगिक गंदे जल की हरेक बूंद भी निर्धारित मानकों के अनुसार साफ कर भी यमुना में डाला जाए तब भी यमुना का अस्तित्व बचाना कठिन है।

इसी वर्ष मई के महीने में दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी की एक रिपोर्ट के अनुसार अप्रैल की तुलना में मई के महीने में यमुना अधिक प्रदूषित थी। अप्रैल में फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की सांद्रता प्रति 100 मिलीलिटर जल में 15 लाख एमपीएन थी जो मई में बढ़कर 23 लाख एमपीएन तक पहुँच गई। इसी महीने में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली के 37 सीवेज ट्रीट्मन्ट प्लांट में से 17 प्लांट गंदे पानी की पर्याप्त सफाई नहीं कर रहे हैं। इन सबके बाद भी दिल्ली सरकार, केंद्र सरकार और मेनस्ट्रीम मीडिया लगातार यमुना सफाई की बातें कर रहे हैं।

समस्या यह है कि तमाम शहरों ने, सरकारों ने और उद्योगपतियों ने नदियों का उपयोग तो सीख लिया है पर इसके साथ ही नदियों को पानी के उपयोग के बाद उत्पन्न गंदे और प्रदूषित पानी को ठिकाने लगाने का एक माध्यम भी मान लिया है। प्रदूषित नदियों की सफाई का काम बड़े जोरशोर से शुरू किया गया पर यह भ्रष्टाचार का सबसे बाद स्त्रोत बन गया। इसके नाम पर तमाम प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और दूसरे सरकारी महकमे खड़े किये गए, जो आज सबसे निकम्मे पर सबसे भ्रष्ट संस्थान हैं। इनमें से किसी की जिम्मेदारी तय नहीं है, नदियों में प्रदूषण बढ़ता जा रहा है और साथ ही बाबुओं के रिश्वत की रकम भी बढ़ती जा रही है।


दिल्ली सरकार की यमुना सफाई की योजना में कुछ भी नया नहीं है, सबकुछ वही है जो नदियों की सफाई के नाम पर दशकों से किया जा रहा है। नदियों की सफाई पर जितने पैसे खर्च होते हैं उतना ही उनमें प्रदूषण बढ़ जाता है। इस बार भी यमुना की सफाई के आधार में सीवेज ट्रीट्मन्ट प्लांट हैं जो कभी ठीक काम नहीं करते, पर सरकारी बाबुओं के लिए कमीशन का एक बड़ा स्त्रोत हैं। जहां तक रियल-टाइम मोनिटरिंग स्टेशन का सवाल है तो भले ही मीडिया को एक बड़ा कदम नजर आता हो, क्रांतिकारी कदम नजर आता हो – पर वायु प्रदूषण को मापने के लिए भी देश भर में रियल-टाइम मोनिटरिंग स्टेशन का जाल बिछा दिया गया, और वायु प्रदूषण का स्तर साल-दर-साल बढ़ता गया।

बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से नदियों की सफाई का मतलब ही बदल चुका है। पहले नदियों की सफाई का मतलब नदियों के पानी की सफाई होता था, पर अब इसका मतलब रिवरफ्रन्ट विकास, किनारे पर भव्य आरती और आलीशान क्रूज चलाना हो गया है। बीजेपी सरकारों के लिए नदियों का बस यही मतलब रह गया है।

मई के मध्य में दिल्ली के बुराड़ी इलाके में यमुना नदी का प्रदूषण स्तर चिंता का विषय बन गया था। इस इलाके में यमुना नदी के किनारे हजारों मरी मछलियां मिलने से क्षेत्र के लोग परेशान थे और बदबू से बेहाल थे। मेनस्ट्रीम मीडिया से यह खबर पूरी तरह गायब रही और सरकार की कोई प्रतिक्रिया आज तक नहीं आई। प्राइमस पार्टनर्स नामक संस्था द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया है कि दिल्ली में यमुना की लंबाई 52 किलोमीटर है, जो यमुना की कुल लंबाई का महज 2 प्रतिशत है। पर, इस दो प्रतिशत क्षेत्र से यमुना के कुल प्रदूषण का 76 प्रतिशत हिस्सा आता है। दिल्ली के कुल प्रदूषण में से अकेले नजफ़गढ़ नाले और शाहदरा नाले से 80 प्रतिशत प्रदूषण यमुना में मिलता है।

दिल्ली की बीजेपी सरकार के पास यमुना को साफ करने की वही घिसीपीटी योजना है, जिससे नदियां साफ नहीं होतीं बल्कि प्रदूषण और बढ़ जाता है। पर, बीजेपी सरकार तमाम रंगीन पोस्टरों पर प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता की तस्वीरों के सहारे हमें बताती रहेगी कि यमुना साफ हो गई है और अति-उत्साही मीडिया रिपोर्टर यमुना का पानी पीकर दिखाएंगें कि पानी कितना साफ है, भले ही इसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़े। जनता भी बदबूदार यमुना के किनारे खड़ी होकर पोस्टरों को देखकर जय श्री राम का जयकारा लगाएगी।


नदियां एक थर्मामीटर की तरह हैं जो पृथ्वी की सतह की स्थिति से अवगत कराती हैं। मनुष्य जो भी गतिविधि पृथ्वी की सतह पर करता है उसका संवेदनशील सूचक नदियां हैं। नदियां कृषि, उद्योग, मनोरंजन, पर्यटन और यातायात का आधार हैं, फिर भी सरकारें और नागरिक इनकी लगातार उपेक्षा करते जा रहे हैं।

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