तुम्हारे पास योगेश है, तो हमारे पास हैं करोड़ों सुबोध !

यह वह अनोखा देश है जहां मंदिर में प्रार्थना के बाद निकला व्यक्ति पास की दरगाह पर भी दो फूल चढ़ाना अपना धर्म समझता है। इसी सभ्यता और आदर्शों में पले-बढ़े सुबोध कुमार सिंह के लिए बुलंदशहर की सांप्रदायिक सद्भावना बनाए रखना उनका कर्तव्य ही नहीं, धर्म भी था।

फोटो: सोशल मीडिया
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ज़फ़र आग़ा

इस देश की आत्मा की हत्या के जतन इतिहास में सदा ही होते रहे हैं। परंतु भारतवर्ष अपने मूल्यों एवं आदर्शों से कभी नहीं हटा। भारत की राजधानी दिल्ली से लगभग 150 किलोमीटर दूर बुलंदशहर जिले के महाब गांव में अभी जो हिंसा हुई, वह इस देश की आत्मा पर एक प्रहार था। आप जानते हैं कि वहां एक भीड़ ने किस प्रकार स्याना कोतवाली इंचार्ज सुबोध कुमार सिंह की हत्या कर दी। अब यह स्पष्ट है कि बुलंदशहर में जो हिंसा हुई, वह एक षड़यंत्र था। इस मामले में जिस मुख्य आरोपी योगेश राज का नाम सामने आया है, उसका संबंध बजरंग दल से है। समाचारपत्र यह भी कह रहे हैं कि जिन लोगों ने गोकशी की शिकायत की, वही हिंसा भड़काने में शामिल थे। बुलंदशहर में उस समय मुस्लिम तबलीगी जमात का एक बड़ा धार्मिक सम्मेलन चल रहा था, जिसमें देश-विदेश से आए कई लाख लोग एकत्र थे। इससे यह बात अब स्पष्ट हो गई है कि जो हिंसा बुलंदशहर के महाब गांव में हुई, उसका राजनीतिक उद्देश्य था। 2019 के लोकसभा चुनाव सिर पर हैं। अगली सरकार बनाने के लिए उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से अधिकतर सीटें जीतना बीजेपी के लिए अनिवार्य है। परंतु आसार ऐसे नहीं हैं। स्वयं बीजेपी नेता राजनाथ सिंह के अनुसार, इस बार उत्तर प्रदेश में पार्टी की 20-25 सीटें कम हो सकती हैं। ऐसी परिस्थितियों में क्या उपाय हो? बीजेपी की सदा से जो राजनीति रही है, बुलंदशहर में उसका ही उपयोग करने की साजिश थी। यानी गोकशी की आड़ में तबलीगी जमात के जमावड़े के बीच सांप्रदायिक आग भड़काओ और सांप्रदायिक आंच पर 2019 में हिंदू वोट बटोरो।

परंतु भारतवर्ष अंततः भारतवर्ष है। भारत के एक अकेले सपूत ने इस पूरे षड़यंत्र को नाकाम बना दिया। हां, इस काम में भले ही स्वयं उसे अपने प्राण की आहुति देनी पड़ी, पर उस वीर ने अपनी जान की परवाह नहीं की। उस महान वीर एवं शहीद का नाम, जैसा ऊपर लिखा गया है, सुबोध कुमार सिंह था। यूं तो सुबोध कुमार सिंह उत्तर प्रदेश के एक साधारण मध्य वर्ग के व्यक्ति थे, लेकिन उनके अंदर भारतीयता कूट-कूटकर भरी थी। उनके अंदर भारतीय मूल्यों एवं आदर्शों का समुद्र ठाठे मार रहा था। वह भारतवर्ष जिसने इतिहास में सदा हर किसी को आसरा देने के लिए अपना दामन फैला दिया। उस भारतवर्ष में आज हर धर्म के लोग बसे हैं। उस भारतवर्ष में यदि एक छोर से मंदिरों के घंटों की आवाज आती है, तो दूसरे छोर से अजान की आवाज आती है। इसी भारतवर्ष में चर्च के घंटे बजते हैं, तो साथ में गुरुद्वारों से सत श्री अकाल की गूंज भी सुनाई पड़ती है। इस देश में कौन-सा धर्म नहीं पनपता। बौद्ध, जैनी तो यहीं जन्मे, हजारों मील दूर से आकर पारसियों ने भी यहां पनाह ली। यह वह अनोखा देश है जहां मंदिर में प्रार्थना के बाद निकला व्यक्ति पास की दरगाह पर भी दो फूल चढ़ाना अपना धर्म समझता है। इसी सभ्यता और आदर्शों में पले-बढ़े सुबोध कुमार सिंह के लिए बुलंदशहर की सांप्रदायिक सदभावना बनाए रखना उनका कर्तव्य ही नहीं, धर्म भी था। तब ही तो उन्होंने अपने प्राणों की बाजी लगाकर उत्तर प्रदेश को सांप्रदायिक आग में झुलसने से बचा लिया। भले ही इस काम में उनके प्राण चले गए, इसकी सुबोध कुमार सिंह ने परवाह नहीं की। वह एक सच्चे भारतीय थे और उन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर भारत माता की लाज रख ली। ऐसे वीर को लाखों नहीं, करोड़ों नमन।

परंतु उसी बुलंदशहर में एक और व्यक्ति था जिसका नाम योगेश राज है। यह वही योगेश राज है जो एक भीड़ की अगुआई कर गोकशी की आड़ में सांप्रदायिक आग भड़काने का प्रयास कर रहा था। यह योगेश राज बजरंग दल से जुड़ा कहा जाता है। भला सोचिए, वह उस बजरंग बली के नाम पर काम कर रहा था जिन्होंने भगवान राम की सेवा में अपने प्राणों की बाजी लगाकर स्वयं को अर्पित कर दिया एवं रावण की लंका का दहन कर दिया। योगेश राज बजरंग बली की नहीं, अपितु अपनी करतूतों से रावण की सेवा कर रहा था। यह कोई अनूठी बात नहीं है। यदि इसी भारत में सुबोध कुमार-जैसे धार्मिक व्यक्ति हैं तो इसी देश की धार्मिक गाथाएं राक्षसों से भी भरी पड़ी हैं। योगेश राज किसी ऐसे ही राक्षस का एक स्वरूप होगा जो गाय-जैसे सम्मानित पशु के नाम पर खून की होली जलाने का प्रयास कर रहा था।

दुखद यह है कि आज भारतवर्ष में ऐसे राक्षसों की कमी नहीं है। आज देश में धर्म की आड़ में चुनाव जीतने की एक खतरनाक राजनीति का चलन होता जा रहा है। नफरत की आग में वोट की रोटी सेंकने की यह राजनीति आज भारतवर्ष की आत्मा पर चोट पहुंचा रही है। इस देश की सभ्यता मानवीय मूल्यों पर आधारित है। हिंदू समाज एवं सभ्यता सदा हर प्रकार के भय से वंचित रही है। तब ही तो इस देश ने संसार के हर विचार एवं हर धर्म का खुलकर स्वागत किया। हर विचारधारा के प्रवाह को खुली छूट दी। ऋषि-मुनियों के इस देश ने कभी ‘अल्लाहो अकबर’ तो कभी ‘होली फादर’ जैसे स्वरों को अपने में समा लिया। क्योंकि लोकतंत्र आज नहीं, बल्कि आदिकाल से भारतीय आत्मा का अटूट अंग रहा है। केवल एक लोकतांत्रिक सभ्यता ही इतने धर्मों एवं विचारधाराओं का स्वागत कर सकती है जितने धर्म एवं विचारों का प्रवाह भारत में सदा होता रहा है। आज कुछ राजनीतिक दल केवल सत्ता की लालसा में भारत की उस आत्मा एवं सभ्यता की हत्या करना चाहते हैं जिसने भारत का सिर सदियों से बुलंद कर रखा है। आज उसी भारतवर्ष को पाकिस्तान-जैसे एक संकीर्ण समाज में बदलने की चेष्टा हो रही है। परंतु भारतवर्ष भारत था और भारत रहेगा। उसका कारण यह है कि यहां एक नहीं, करोड़ों सुबोध कुमार सिंह बसते हैं जो अपने प्राण न्यौछावर कर भी इस देश की आत्मा एवं मूल्यों को जिंदा रखने को तैयार हैं।

परंतु यह मत भूलिए कि इसी देश में योगेश राज-जैसे राक्षस भी हैं जो सांप्रदायिक नफरत की भट्ठी पर वोट की राजनीति करने में जुटे हैं। बस, यूं समझिए कि 2019 लोकसभा चुनाव जीतने के लिए न जाने कितने बुलंदशहर-जैसे षड़यंत्र और होंगे। अब इस देश को सैकड़ों क्या, हजारों सुबोध कुमार सिंह की आवश्यकता है जो भारतवर्ष के मूल्यों एवं उसकी आत्मा का संरक्षण कर भारतमाता का सिर ऊंचा कर सकें।

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