जयशंकर प्रसाद का 129वां जन्मदिन: ‘कामायनी’ समेत कई लोकप्रिय रचनाओं  के लेखक थे खाना बनाने के शौकीन 

हिंदी के प्रख्यात कवि, नाटककार, कहानीकार, निबंधकार और उपन्यासकार जयशंकर प्रसाद का आज 129वां जन्मदिन है। वे छायावादी युग के 4 स्तंभों में से एक हैं। कम लोग जानते हैं कि वे खाना बनाने के भी शौकीन थे।

फोटो: सोशल मीडिया 
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आईएएनएस

हिंदी के प्रख्यात कवि, नाटककार, कहानीकार, निबंधकार और उपन्यासकार के रूप में पहचान बनाने वाले जयशंकर प्रसाद हिंदी के छायावादी युग के 4 स्तंभों में से एक थे। उन्होंने हिंदी काव्य में छायावाद की स्थापना की, जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में कमनीय माधुर्य की रसधारा प्रवाहित हुई। इसका प्रभाव हुआ कि यह खड़ीबोली काव्य की भाषा बन गई। जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी, 1889 को काशी के सराय गोवर्धन में हुआ था। कलाकारों का आदर करने के लिए विख्यात उनके पिता बाबू देवीप्रसाद का काशी में बहुत सम्मान था और वहां की जनता काशी नरेश के बाद ‘हर-हर महादेव’ से देवीप्रसाद का स्वागत करती थी। जब जयशंकर प्रसाद 17 साल के थे, तभी इनके बड़े भाई और मां का देहावसान होने के कारण इन पर आपदाओं का पहाड़ टूट पड़ा।

जयशंकर प्रसाद ने काशी के क्वींस कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की, लेकिन कुछ समय बाद इन्होंने घर पर ही शिक्षा लेनी शुरू की और संस्कृत, उर्दू, हिंदी और फारसी का अध्ययन किया। इनके संस्कृत के अध्यापक प्रसिद्ध विद्वान दीनबंधु ब्रह्मचारी थे। इनके गुरुओं में ‘रसमय सिद्ध’ की भी चर्चा की जाती है।

घर के माहौल के कारण इनकी साहित्य और कला में बचपन से ही रुचि थी। जब जयशंकर प्रसाद 9 साल के थे, तभी उन्होंने ‘कलाधर’ नाम से एक सवैया लिखकर साबित कर दिया था कि वह प्रतिभावान हैं। उन्होंने वेद, इतिहास, पुराण और साहित्य शास्त्र का गंभीर अध्ययन किया था। जयशंकर प्रसाद को बाग-बगीचे को हराभरा रखने, खाना बनाने में काफी रुचि थी और वह शतरंज के अच्छे खिलाड़ी भी थे।

प्रसाद नागरी प्रचारिणी सभा के उपाध्यक्ष रहे। वह एक युगप्रवर्तक लेखक थे, जिन्होंने एक ही साथ कविता, नाटक, कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में हिंदी को गौरवान्वित होने योग्य कृतियां दी हैं। कवि के रूप में प्रसाद महादेवी वर्मा, पंत और निराला के साथ छायावाद के प्रमुख स्तंभ के रूप में प्रसिद्ध हुए। नाटक लेखन में वह भारतेंदु के बाद एक अलग धारा बहाने वाले युगप्रवर्तक नाटककार रहे। उनके नाटक को पढ़ना लोग आज भी पसंद करते हैं।

जयशंकर प्रसाद के जीवनकाल में काशी में कई ऐसे साहित्यकार माजूद थे, जिन्होंने अपनी कृतियों द्वारा हिंदी साहित्य को समृद्ध किया। उनके बीच रहकर प्रसाद ने भी अन्य साहित्य की सृष्टि की।

जयशंकर प्रसाद ने काव्य-रचना ब्रजभाषा से शुरू की और धीरे-धीरे खड़ी बोली को अपनाते हुए इस भांति अग्रसर हुए कि खड़ी बोली के बड़े कवियों में उनकी गणना की जाने लगी। जयशंकर प्रसाद की रचनाएं दो वर्गो ‘काव्यपथ अनुसंधान’ और ‘रससिद्ध’ में विभक्त हैं।

‘आंसू’, ‘लहर’ और ‘कामायनी’ उनकी प्रसिद्ध रचनाएं हैं। 1914 में उनकी सर्वप्रथम छायावादी रचना ‘खोलो द्वार’ पत्रिका इंदु में प्रकाशित हुई। उन्होंने हिंदी में ‘करुणालय’ नाम से गीत-नाट्य की भी रचना की।

जयशंकर प्रसाद ने कथा लेखन भी शुरू किया। साल 1912 में इंदु में उनकी पहली कहानी ‘ग्राम’ प्रकाशित हुई। प्रसाद ने कुल 72 कहानियां लिखी हैं। जयशंकर प्रसाद जी भारत के उन्नत अतीत का जीवित वातावरण प्रस्तुत करने में सिद्धहस्त थे। उनकी श्रेष्ठ कहानियों में से ‘आकाशदीप’, ‘गुंडा’, ‘पुरस्कार’, ‘सालवती’, ‘इंद्रजाल’, ‘बिसात’, ‘छोटा जादूगर’, ‘विरामचिह्न’ प्रमुख हैं।

जय शंकर प्रसाद ने ‘कंकाल’, ‘इरावती’ और ‘तितली’ नामक 3 उपन्यास भी लिखे हैं।

प्रसाद ने अपने जीवनकाल में 8 ऐतिहासिक, 3 पौराणिक और 2 भावनात्मक नाटक लिखे हैं। उनके नाटकों में देशप्रेम का स्वर अत्यंत दर्शनीय हैं और इन नाटकों में कई अत्यंत सुंदर और प्रसिद्ध गीत मिलते हैं।

जयशंकर प्रसाद ने समय-समय पर ‘इंदु’ पत्रिका में कई विषयों पर सामान्य निबंध लिखे हैं। बाद में उन्होंने ऐतिहासिक निबंध भी लिखे। जयशंकर के लेखन में विचारों की गहराई, भावों की प्रबलता, चिंतन और मनन की गंभीरता मिलती है।

जयशंकर प्रसाद 48 साल की आयु में क्षयरोग से पीड़ित हो गए और 15 नबंवर, 1937 को काशी में ही उनका देहावसान हो गया।

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Published: 30 Jan 2018, 6:30 PM