अलविदा, मेरे साथी नाखुदा...विवान सुंदरम को रंजीत होस्टोके की श्रद्धांजलि

विवान सुंदरम एक अद्भुत और असाधारण कलाकार तो थे ही, इसके साथ ही वह एक बेहद सतर्क नागरिक भी थे।

फोटो - सोशल मीडिया
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रंजीत होस्टोके

जब उसका जन्म हुआ तो नाम रखा गया विवास्वन...यह नाम शायद संस्कृत के विद्धान उसके पिता के वी कल्याण सुंदरम् ने रखा था, जो हमारे देश के पहले चुनाव आयुक्त थे, या फिर उसके दादा उमराव सिंह शेरगिल ने रखा होगा, जो एक संस्कृत विद्धान होने के साथ ही एक योगी और शानदार फोटोग्राफर थे। विवास्वन एक वैदिक नाम है जिसका अर्थ होता है सूर्य देवता, प्रकाश अवतार न सिर्फ तर्कों का बल्कि अंतर्दृष्टि और ज्ञान का भी।

लेकिन मुश्किल से ही किसी को उसके इस नाम का बारे में आज याद होगा। जैसे-जैसे वह बड़ा हुआ, उसके नाम की भव्यता धीरे-धीरे लुप्त होती गई और उसे एक संक्षिप्त नाम के नाम से ही सब जानने लगे। और यह नाम है विवान....। फिर भी उसका असली नाम उस असीम ऊर्जा के रूप में उसके अंदर मौजूद रहा जिसने उसकी कलात्मक कल्पना को मूर्तरूप दिया। और इसी ऊर्जा और इससे उत्पन्न जिज्ञासा के कारण शायद वह एक कलात्मक माध्यम से दूसरे माध्यम में घूमता रहा...कभी कला और बड़े पैमाने पर नागरिक और सांस्कृतिक प्रथाओं के साथ इसके जटिल अंतर्संबंधों को लेकर तो कभी सिर्फ शुद्ध कला के लिए।

  

संस्कृति को संजोने वाले एक सांस्कृतिक पुरातत्वविद् के रूप में उसने अपने दादा और एक अद्भुत व्यक्तित्व वाली अपनी चाची और भारतीय आधुनिकतावाद के अग्रदूतों में से एक, अमृता शेर-गिल की जीवनी के साथ ही उन ऐतिहासिक क्षणों को उकेरा है जिनमें वे भारतीय और यूरोपीय आधुनिकताओं के बीच उनकी विशिष्ट शास्त्रीयता को बरकरार रखते हुए उपनिवेशवाद और नस्लवाद के विरुद्ध अपने तरीके से जीए।

कला के बारे में लिखने वाले एक लेखक के तौर पर मेरी शुरुआत उस एक निबंध से हुई थी जो मैंने विवान सुंदरम की चारकोल और कोलाज सीरीज ‘लॉन्ग नाइट’ पर दिसबंर 1988 में द टाइम्स ऑफ इंडिया के लिए लिखा था। बाद के वर्षों में हम कई बार कला प्रदर्शनियों, सम्मेलनों, लेक्चर्स में, किसी सामाजिक कार्यक्रम के बहाने कभी उसके घर पर मिलते रहे, और हमारे बीच बातचीत कब विजुअल आर्ट्स से निकलकर सांस्कृतिक इतिहास, साहित्य और मनोविज्ञान आदि पर पहुंच जाती, पता ही नहीं चलता।


हमने कुछ विरोध प्रदर्शनों में भी साथ हिस्सा लिया और कई मुद्दों से जुड़ी याचिकाओं पर हस्ताक्षर किए। मसलन जब कुछ उपद्रवियों ने एम एफ हुसैन का विरोध शुरु किया तो हम हुसैन के पक्ष में उतरे हमने देशभर में सेव चंद्रमोहन जैसे अभियान चलाए।

2011 में जब मैं वेनिस में भारत की सबसे पहली नेशनल पवेलियन तैयार कर रहा था, तब मुझे लालफीताशाही के चलचे कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। लेकिन विवान ने मुझे पीठ पर थपथपाया और कहा, “अगर आपको किसी भी मदद की ज़रूरत हो इस किस्म की समस्याओं से निपटने में तो बताने में झिझकना मत, हम इन सबसे वाकिफ हैं।”

मैंने विवान की कई प्रदर्शनियों की निबंधात्मक समीक्षा की है या उनके बारे में लिखा है। दशकों के इस सिलसिले के दौरान में एक उसे एक विजुअल आर्टिस्ट और अपने जैसे एक कवि के बीच एक आत्मीयता को विकसित होते देखा है। मैंने विवान के काम में उस चरण को भी महसूस किया है जब एक तरह से सबकुछ बिखरा हुआ सा दिख रहा था और मैंने इस सब पर भी स्पष्ट रूप से अपनी प्रतिक्रिया दी।

यात्राओं को लेकर विवान को जो ललक थी, उसे मैं हमेशा प्रभावित होता और वह मुझे  बहुत लुभाती थीं। मैंने इस बारे में दो कविताएँ भी लिखी हैं। यह मेरी किताब द स्लीपवॉकर्स आर्काइव और आइसलाइट में प्रकाशित हुई हैं।

मुझे विवान के अदम्य साहस, ऐतिहासिक तथ्यों के बहुवचनीय रूपों के साथ जुड़ने की उसकी क्षमता, पीछे हटकर कुछ सहज स्थितियों के लिए राजनीतिक आधार का त्याग करने से इनकार करने की उसकी क्षमता हमेशा लुभाती रही है। एक अद्भुत कलाकार होने के साथ ही एक हमेशा सतर्क रहने वाले नागरिक भी थे। अंधकारमय हालात और मायूसी भरी बीमारियों के बीच भी उन्होंने कभी उम्मीद नहीं छोड़ी।

पिछले साल विवान ने 12 सितंबर को मुझे एक पत्र लिखा था। उन्होंने अपने काम के एक खास पहलू का जिक्र करते हुए इच्छा जताई थी कि मैं उनकी कृतियों पर लिखी जाने वाली अपनी किताब में उसका जिक्र करूं। उन्होंने लिखा था कि इसकी रचना “विभिन्न स्थानों पर और विभिन्न दशकों में तैयार की गई ये कृतियां जल यात्रा और भूमि पर प्राश्रय के बारे में हैं, ये निर्वासन और शरण के बारे में हैं, यह नौका और छाया के बारे में हैं। इनमें संकेत हैं असुरक्षित यात्राओं और अस्थाई शरण के। तुम अब अनुमान लगा सकते हो कि आखिर क्यों मैंने इस काम के लिए तुम्हारे बारे में सोचा। क्या तुम्हारी दिलचस्पी है इस सबमें? क्या तुम वक्त निकाल पाओगे?”

मैं अवाक रह गया था सिर्फ यही समझकर कि उसने भी मेरी यात्राओं को उसी तरह देखा है जैसे कि मैंने उसकी। हां, विवान, मैं जरूर इस निबंध को तुम्हारे लिए पूरा करूंगा, लेकिन सिर्फ कल्पना मात्र से मेरा दिल बैठा जा रहा है कि ये सब देखने के लिए तुम नहीं होगे।

गुडबाय...मेरे साथी, मेरे  नाखुदा

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