महाविकास अघाड़ी सरकार के 2 साल: कोई छोटा या बड़ा नहीं, निर्णय लेते समय हम तीनों एकसाथ होते हैं - अशोक चव्हाण

महाराष्ट्र सरकार में मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक चव्हाण का कहना है कि एक जिम्मेदार विपक्ष के तौर पर जनता के मुद्दों को उठाने की जगह बीजेपी जिस तरह सिर्फ सरकार को गिराने में लग गई है। इससे सत्ता के प्रति उनकी भूख लोगों से सामने आ आ गई है।

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गौतम एस मेंग्ले

कांग्रेस नेता अशोक शंकरराव चव्हाण महा विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार में पीडब्ल्यूडी मंत्री हैं। 8 दिसंबर, 2008 से 9 नवंबर, 2010 तक मुख्यमंत्री रहे चव्हाण ने नवजीवन के लिए गौतम एस मेंग्ले से लंबी बातचीत में बताया कि उद्धव ठाकरे सरकार क्यों और कैसे बनी, यह किस तरह काम कर रही है और जनता के बीच सरकार की यह पैठ किस प्रकार दिनोंदिन बढ़ती जा रही है।

एमवीए विपरीत विचारधारा वाली पार्टियों का समूह है, फिर भी इस सरकार में सहज गति लगती है। आपके विचार में इसकी वजह क्या है?

पिछले कई वर्षों से भारत केन्द्रीय और प्रादेशिक स्तरों पर गठबंधन सरकारों के कई प्रयोगों को देख चुका है। एमवीए उसी तरह का प्रयोग है। कांग्रेस और एनसीपी ने 15 वर्षों तक एक साथ मिलकर सरकार चलाई है। लेकिन शिव सेना के साथ काम करना हमारा पहला अनुभव है। 2014 से 2019 तक बीजेपी सरकार का प्रशासन इन तीन पार्टियों के मिलने का कारण था। इस अवधि के दौरान महाराष्ट्र में सामाजिक अन्याय की स्थिति थी, अपराध खुलेआम हो रहे थे, विपक्ष को भारी दबाव में डाल रखा गया था, लोकतंत्र के चिह्नों और मूल्यों को किनारे कर दिया गया था, सत्ता और धनबल का मनमाने ढंग से उपयोग किया जा रहा था और जनता को भ्रमित किया जा रहा था तथा उनके साथ धोखा किया जा रहा था। इसीलिए कांग्रेस जनहित में बीजेपी को रोकने के प्रयास में लगी हुई थी। यहां तक कि बीजेपी के साथ तीन दशकों से सहयोग कर रही शिवसेना का बीजेपी के दमन और दुरंगेपन का खराब अनुभव था और उसने इससे अपनी दूरी बनाने का फैसला किया। इसी पृष्ठभूमि में तीन पार्टियों ने राज्य में ऐसी स्थायी सरकार बनाने के आम लक्ष्य के तहत एमवीए बनाई जो लोकतंत्र के मूल्यों की मर्यादा बनाए रखे और यह प्रयोग आज की तारीख तक सफल लगता है।

अधिकांश लोगों ने महसूस किया है कि गठबंधन वाले दलों या विभिन्न पार्टियों में अंदरूनी तौर पर भी शायद ही कोई संघर्ष है? आपके खयाल से इसकी वजह?

राज्य के कई जिलों में, तीनों- कांग्रेस, एनसीपी और शिव सेना में से कम-से-कम दो पार्टियां एक-दूसरे की मुख्य प्रतिद्वंद्वी हैं। ऐसी हालत में जब तीनों पार्टियां साथ आई हैं, तो एक ही मुद्दे पर अलग-अलग राय अभिव्यक्त किया जाना स्वाभाविक है। परिणामस्वरूप, इस सरकार के दो साल में बारंबार असहमतियों के साथ-साथ कुछ छोटी, तो कुछ बड़ी शिकायतें भी सामने आई हैं। सरकार हो या नहीं, विधायकों और संबंधित पार्टी के कार्यकर्ताओं की कुछ अपेक्षाएं होती हैं। इन अपेक्षाओं को संतुष्ट करते हुए कुछ छोटे विवाद भी पैदा हुए तथा इसके साथ ही राजनीतिक संतुलन भी बनाया गया। लेकिन हमने रास्ता निकाल लिया। हालांकि विपक्ष जब-तब कहता रहा कि सरकार अब कुछ ही दिन चल पाएगी, हम दिनोंदिन मजबूत होते गए।


बीजेपी ने जिस तरह का दबाव निरंतर बनाए रखा, आप लोगों ने उन्हें किस तरह दूर किए रखा है?

सफलता या विफलता जीवन का अभिन्न अंग है और उसे समान रूप से स्वीकार किया जाना चाहिए। फिर भी, बीजेपी एमवीए की वास्तविकता को अब भी स्वीकार करती नहीं लगती। वह पहले दिन से हमारी सरकार को अस्थिर करने का प्रयत्न कर रही है। जब वे प्रयास विफल हो गए, तो उन्होंने सरकार को बदनाम करना आरंभ कर दिया है। इसके लिए केन्द्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग किया जा रहा है। सुशांत सिंह राजपूत आत्महत्या मामले में कई तरह के आरोप लगाए गए लेकिन सीबीआई-जैसी एजेंसी भी कुछ प्रमाणित नहीं कर पाई। पालघर में साधुओं के लिंचिंग वाले मामले में भी प्रोपेगैंडा के आधार पर और तथ्यों की अनदेखी कर वोट उगाहने का प्रयास किया गया। उत्तरदायित्वपूर्ण विपक्षी दल के तौर पर जनता के मुद्दों को उठाने की जगह बीजेपी किसी भी तरीके से सिर्फ सरकार को गिराने में लग गई है। इससे सत्ता के प्रति उनकी भूख लोगों की नजर में आ गई है। हाल में ग्राम पंचायत, विधान परिषद चुनावों के साथ-साथ जिला परिषद और विधानसभा उपचुनावों के परिणामों में बीजेपी जिस तरह पिछड़ती चली गई, वह उनके लिए संकेत है।

इस सरकार में हम शिव सेना और एनसीपी के बारे में कांग्रेस से अधिक सुनते हैं। ऐसा क्यों?

इस सरकार में तीनों मुख्य दलों की समान स्थिति है। किसी को भी ज्यादा या कम महत्व देने का कोई सवाल ही नहीं है। शिव सेना के उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री के तौर पर मंत्रिमंडल के प्रमुख हैं। हमारी सरकार में एनसीपी के अजित पवार उपमुख्यमंत्री हैं। इसलिए भले ही सरकार निर्णय लेने की प्रक्रिया में ये दोनों दिखते हैं, निर्णय लेते समय हम तीनों एकसाथ होते हैं। पिछले दो साल में कांग्रेस ने निर्णय लेने में बराबर भागीदारी निभाई है। वैसे, कांग्रेस के कामकाज की शैली शिव सेना और एनसीपी से कुछ अलग है। इस धारणा की वजह यह हो सकती है।

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