चौधरी संतोख सिंह को पंजाब की जनता से मिला जबरदस्त प्यार, हमेशा बुलंद रखा कांग्रेस का झंडा, ऐसा रहा सियासी सफर
70 साल के चौधरी संतोख सिंह पेशेगत वकील भी रहे। उनका राजनीतिक सफर युवा कांग्रेस से शुरू हुआ था। 1992 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने फिल्लौर से पहली जीत हासिल की और फिर कभी हार की शक्ल नहीं देखी।
![चौधरी संतोख सिंह](https://media.assettype.com/navjivanindia%2F2023-01%2F7e80709f-ec8d-46ae-b93c-4be865d66598%2Fimages___2023_01_14T120655_277.jpeg?rect=0%2C69%2C561%2C316&auto=format%2Ccompress&fmt=webp)
आज सुबह राहुल गांधी की अगुवाई में चल रही भारत जोड़ो यात्रा के जालंधर सफर के दौरान सांसद चौधरी संतोख सिंह के निधन से पूरी दोआबा पट्टी शोकग्रस्त है। पंजाब की जनता से चौधरी संतोख सिंह और उनके परिवार को जबरदस्त प्यार मिला। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि देश में चली कथित मोदी लहर के दौरान भी चौधरी संतोख सिंह 2014 और 2019 में जालंधर से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे। चौधरी परिवार 1936 से यानी भारत की आजादी से भी पहले, पंजाब की राजनीति में सक्रिय है। चौधरी संतोख सिंह साल 2004 से लेकर 2010 तक पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष रहे। उन्होंने विधानसभा चुनाव भी लड़ा। 2002 में सूबे में कांग्रेस सरकार का गठन हुआ तो चौधरी संतोख सिंह को कैबिनेट में शामिल किया गया।
70 साल के चौधरी संतोख सिंह पेशेगत वकील भी रहे। उनका राजनीतिक सफर युवा कांग्रेस से शुरू हुआ था। 1992 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने फिल्लौर से पहली जीत हासिल की और फिर कभी हार की शक्ल नहीं देखी। पंजाब में जब आतंकवाद अपने चरम पर था तो चौधरी संतोख सिंह उन प्रमुख नेताओं में से थे जिन्होंने आतंकवाद के मुकाबले कांग्रेस का झंडा निर्भीकता और मजबूती के साथ बुलंद रखा। तमाम धमकियों के बावजूद उन्होंने घुटने नहीं टेके और लोगों को आतंकवादियों के खिलाफ बदस्तूर लामबंद करते रहे। उनकी पहचान एक प्रगतिशील वरिष्ठ कांग्रेसी नेता की थी।
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पंजाब में दोआबा की दलित राजनीति का अलहदा महत्व और मतलब है। चौधरी परिवार इस राजनीति का सिरमौर रहा है। देश विभाजन से पहले 1936 से ही। उनके पिता मास्टर गुरबंता सिंह को दलितों में खास मुकाम हासिल था। वह दलितों के मसीहा कहलाते थे। मास्टर गुरबंता सिंह महज 20 साल की अल्पायु में पंजाब के दलितों के पहले बड़े आंदोलन 'अद धर्म' से सक्रिय तौर पर जुड़े और उसकी अगुवाई की। गुरबंता सिंह ने पहला चुनाव लड़ा तो फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1972 तक वह लगातार जीतते ही रहे और एक बार वह निर्विरोध निर्वाचित हुए थे। चौधरी संतोख सिंह के पिता प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और बाबू जगजीवन राम के बेहद करीबी थे।
संतोष सिंह को स्थानीय लोग जनहित की राजनीति करने वाला राजनीतिक व्यक्तित्व मानते थे। उनके दरवाजे हर किसी के लिए चौबीसों घंटे खुले रहते थे। चौधरी संतोख सिंह अपने हलके की नस-नस से वाकिफ थे। राहुल गांधी ने आज उनके परिजनों से जब मुलाकात की, तब कहा कि सांसद चौधरी संतोख सिंह की अचानक हुई मौत उन्हें सदमा दे गई है। वह सदा इस परिवार के साथ खड़े मिलेंगे।
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