पुण्यतिथि विशेष: इंदिरा गांधी की ऐसी थी शख्सियत, जिसने विपक्ष को भी उन्हें 'दुर्गा' बुलाने पर कर दिया था कायल

पूरे देश का सीना तब फख्र से चौड़ा हो गया जब इंदिरा ने संसद में ऐलान किया कि पाकिस्तान की सेना ने बिना शर्त समर्पण कर दिया है और 'ढाका अब एक स्वतंत्र देश की स्वतंत्र राजधानी है'। इस ऐलान के बाद विपक्षी नेताओं ने ‘दुर्गा' कहा।

फोटो: Getty Images
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तुषार एकनाथ जगदप

इंदिरा गांधी 15 अगस्त, 1947 को महज 20 साल की थीं। वह आगे चलकर देश की कमान हाथ में लेकर उसे ऊंचाइयों तक ले जाने और करोड़ों लोगों के दिलों की धड़कन बनने वाली थीं। 31 अक्तूबर, 1984 को 67 साल की उम्र में देश ने उन्हें खो दिया। इंदिरा गांधी की शहादत के इस दिन को हम राष्ट्रीय संकल्प दिवस के तौर पर मनाते हैं। 39 साल बाद देशवासियों को भारत को अखंड बनाए रखने के इस संकल्प के साथ इस दिवस को मनाना चाहिएः ‘मैं राष्ट्र की स्वतंत्रता और अखंडता की रक्षा और उसे मजबूत करने के प्रति समर्पित रहने की शपथ लेता हूं। मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि कभी भी हिंसा का सहारा नहीं लूंगा और सभी तरह के धार्मिक, भाषाई, क्षेत्रीय, राजनीतिक या आर्थिक मतभेदों और विवादों का समाधान शांतिपूर्ण तरीके से किया जाना चाहिए।’ मौजूदा हालात में इस तरह की प्रतिज्ञा बहुत जरूरी है क्योंकि देश उसी तर्ज पर विभाजित हो रहा है जिसकी रक्षा करने के लिए वह संविधान-बाध्य है।

श्रीमती गांधी अनेकता और बहुलवाद में एकता की प्रबल समर्थक थीं। देश की एकता और अखंडता उनके जीवन और संघर्ष का मुख्य आधार थी। राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के पूर्व सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर ने अपनी पुस्तक में उनके व्यक्तित्व को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। वह लिखते हैं : ‘श्रीमती गांधी मजबूत व्यक्तित्व थीं जो भारत के राष्ट्रीय हितों के एकमात्र लक्ष्य के लिए सूझ-बूझ और चतुराई से काम करती रहीं। मैं उनकी ताकत का सम्मान करता हूं, भले ही उनकी नीतियां हमारे राष्ट्रीय हित के लिए हानिकारक थीं।’

आप पूरे भरोसे के साथ कह सकते हैं कि अपने पूरे जीवन में इंदिरा अपने लोगों के लिए, अपने देश के लिए और पूरी दुनिया में राष्ट्रवादियों के ‘आत्म-सम्मान' की लड़ाई लड़ रही थीं। उनका व्यक्तित्व करिश्माई और कुछ हद तक रहस्यमय था। वह बड़े ठंडे दिमाग से सोच-समझकर फैसले लेतीं और ‘जैसे को तैसा’ व्यवहार करने में यकीन करती थीं। उन्होंने अपने दोस्तों, सहकर्मियों, विरोधियों और यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय हस्तियों के साथ इसी आधार पर व्यवहार किया। 29 जुलाई, 1982 को रोनाल्ड रीगन के साथ उनकी मुलाकात हुई और स्वागत समारोह में उनका ये कहना अपने आप बहुत कुछ कह रहा था कि 'जैसा कि इतिहास जानता है आपका देश युवा है ...'।

इंदिरा गांधी एक आजाद मुल्क की अति राष्ट्रवादी नेता थीं। उन्होंने हमेशा भारत को उसके सच्चे अर्थों में संप्रभु बनाए रखने की कोशिश की। 19 जुलाई, 1969 को जब उनके प्रधानमंत्री रहते 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया तो पूरा देश खुशी से झूम उठा। राष्ट्रीयकरण के बाद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में जमा राशि में 800% से अधिक की वृद्धि हुई। बैंक शाखाएं 8,200 से बढ़कर 62,000 से भी अधिक हो गईं। इनमें से ज्यादातर शाखाएं मुफस्सिल ग्रामीण इलाकों में खोली गईं।


राष्ट्रीयकरण अभियान ने न केवल घरेलू बचत बढ़ाने में मदद की बल्कि इससे औद्योगिक और कृषि क्षेत्रों में काफी निवेश भी आया। यहां तक कि उनके विरोधियों ने भी बैंकों के राष्ट्रीयकरण के उनके फैसले की तारीफ की। आरबीआई के इतिहास में बैंकों के राष्ट्रीयकरण को 1947 के बाद से किसी भी सरकार द्वारा लिया गया सबसे बड़ा आर्थिक निर्णय बताया गया है- 1991 के उदारीकरण से भी बड़ा।

1971 में श्रीमती गांधी की सरकार ने कोयला, इस्पात और तांबा, रिफाइनरी, कपास, कपड़ा और बीमा क्षेत्र का राष्ट्रीयकरण किया। राष्ट्रीयकरण नीति के पीछे व्यक्त की गई प्रमुख चिंता संगठित श्रमिकों के रोजगार और हितों की रक्षा की थी। यह याद रखना चाहिए कि 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान विदेशी स्वामित्व वाली निजी तेल कंपनियों ने भारतीय नौसेना और भारतीय वायुसेना को ईंधन की आपूर्ति करने से इनकार कर दिया था और इससे खफा इंदिरा ने 1973 में तेल कंपनियों का राष्ट्रीयकरण कर दिया। ऐसा था उनका व्यक्तित्व।

पूरे देश का सीना तब फख्र से चौड़ा हो गया जब इंदिरा ने संसद में 16 दिसंबर, 1971 को ऐलान किया कि पाकिस्तान की सेना ने बिना शर्त समर्पण कर दिया है और 'ढाका अब एक स्वतंत्र देश की स्वतंत्र राजधानी है'। लंदन से प्रकाशित ‘दि इकोनॉमिस्ट’ ने उन्हें ‘एम्प्रेस ऑफ इंडिया' तो विपक्षी नेताओं ने ‘दुर्गा' कहा।

टेस्ट नंबर छह (चीन के परमाणु परीक्षण का कोड नाम) के जवाब में इंदिरा गांधी ने भारतीय वैज्ञानिकों को शांतिपूर्ण परमाणु परीक्षण की संभावनाओं पर काम करने की अनुमति दी। नतीजतन भारत 18 मई, 1974 को अपना पहला परमाणु परीक्षण करके 'न्यूक्लियर क्लब' का छठा सदस्य बन सका।

इंदिरा की घरेलू राजनीति हाशिये पर, उत्पीड़ित, दबे-कुचले वर्गों के इर्द-गिर्द केंद्रित थी। गरीबी-हटाओ उनका चुनावी दांव या प्रचार भर नहीं था बल्कि यह राजनीतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक आत्मसम्मान को पाने की उनकी खोज का हिस्सा था। खास तौर पर गरीबों और महिलाओं के साथ उनका जुड़ाव स्वाभाविक था। लोग उन्हें प्यार से 'भारत माता' या 'इंदिरा अम्मा' कहते थे। पर्यावरण और वन्य जीवन, विज्ञान, कला और प्रौद्योगिकी, खेल और संस्कृति के लिए उनकी चिंता वास्तविक थी। वह एक चतुर राजनीतिज्ञ थीं और उन्हें अच्छी तरह पता था कि वह संत नहीं। वह अपने लक्ष्य को लेकर बड़ी संवेदनशील थीं और उसके रास्ते में आने वाली किसी भी बाधा को किसी भी तरह से हटाने में जरा भी नहीं हिचकती थीं।


1959 में 42 साल की छोटी उम्र में कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने भविष्य में राष्ट्र का नेतृत्व करने के लिए खुद को तैयार करने के लिए देश-विदेश का दौरा किया। कांग्रेस नेता और फिर देश के पहले प्रधानमंत्री के रूप में अपने पिता जवाहर लाल नेहरू के साथ उन्होंने देश-विदेश की यात्राएं करते हुए राजनीति, कूटनीति का व्यावहारिक ज्ञान हासिल किया।

उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए हमें इस राष्ट्रवादी नेता की देश के प्रति प्रतिबद्धता को याद करना चाहिए। उन्होंने बैंकों का राष्ट्रीयकरण करके उसे गांव-गांव तक पहुंचाया। वहीं, सुनने में आ रहा है कि मौजूदा सरकार सार्वजनिक बैंकों के निजीकरण के लिए संसद के शीतकालीन सत्र में दो प्रमुख वित्त विधेयक पेश करने की योजना बना रही है। 71 वर्षों में देश ने उद्योग के राष्ट्रीयकरण और राष्ट्रीय संपत्ति का निजीकरण- दोनों को देखा है।

आइए, "राष्ट्रीय संकल्प दिवस" पर हम अपने देश को आने वाली पीढ़ियों के लिए मजबूत, सुरक्षित बनाने के लिहाज से सुनहरे रास्ते पर ले जाने की प्रतिज्ञा लें। इंदिरा गांधी को इससे अच्छी श्रद्धांजलि नहीं हो सकती।

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